जापान के कागामिगहारा में महिला एशिया कप हौकी के फाइनल में भारतीय टीम ने जो कमाल दिखाया है वह काबिलेतारीफ है. चीन के साथ फाइनल मैच में दोनों टीमों के बीच जबरदस्त मुकाबला हुआ. आखिरकार भारतीय टीम ने जीत कर ही दम लिया. इस जीत से भारतीय महिला टीम को अगले वर्ष होने वाली विश्वकप हौकी प्रतियोगिता में जगह मिल गई.

भारतीय महिला टीम के हौसले इस लिहाज से भी बुलंद थे कि उस ने एशिया कप के लीग राउंड में चीन को 4-2 के अंतर से मात दी थी. इस के लिए भारतीय महिला टीम को 13 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा.

ऐसा नहीं है कि यह जीत आसानी से मिली हो. इस के लिए पूरी टीम ने हर मोरचे पर मेहनत की और योजनाबद्ध तरीके से खेल खेला. फाइनल मैच में दोनों टीमें 1-1 की बराबरी पर रह गईं. पैनल्टी शूटआउट में भी हारजीत का फैसला न हो सका. आखिर में सडेन डेथ के तहत चीनी खिलाड़ी गोल नहीं कर सकीं और भारतीय खिलाड़ी रानी के अचूक निशाने के बूते भारतीय टीम को जीत मिल गई.

पिछले कुछ समय से हौकी में भारत की महिला और पुरुष टीमों ने जिस तरह से प्रदर्शन किया है उसे देखते हुए अतीत का याद आना स्वाभाविक है. एक समय में भारत हौकी में नंबर वन हुआ करता था. समय के साथ देश में क्रिकेट की चकाचौंध में हौकी का खेल गुम होता चला गया. हौकी की दुर्दशा के पीछे खेल मंत्रालय से ले कर खेल संघ और संबंधित अधिकारी सीधासीधा जिम्मेदार रहे. नए प्रतिभाशाली खिलाडि़यों की खोज से ले कर बुनियादी सुविधाओं के लिए खिलाड़ी हमेशा तरसते रहे.

हौकी में राजनीति होती रही और यह खेल पिछड़ता चला गया. पैसों की किल्लत के आगे खिलाड़ी एकएक चीज के लिए जूझते रहे. जिन्होंने मुंह खोला उस की बोलती बंद कर दी गई. ऐसे में कैरियर की चिंता को ले कर खिलाडि़यों ने भी अपने मुंह में ताला जड़ लिया. गाहेबगाहे कुछ खिलाडि़यों ने हिम्मत जुटा कर बोलने की कोशिश की पर वे भी सफल नहीं रहे.

बहरहाल, महिला टीम की इस जीत से सुकून की बात यह है कि सभी खिलाडि़यों को 1-1 लाख रुपए का पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है. मगर क्या 1-1 लाख रुपए से खेल और खिलाडि़यों का भला हो जाएगा? इस के लिए संबंधित अधिकारियों और खेल मंत्रालय को सोचना पड़ेगा अन्यथा हौकी में दम देखने को मिलेगा, ऐसा लगता नहीं.

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