हम आजाद हैं

कहीं भी जा सकते हैं

कुछ भी कर सकते हैं

कहीं भी थूक सकते हैं

कुछ भी फेंक सकते हैं

हम आजाद हैं

घर का कूड़ा छत पर से

किसी पर भी फेंक सकते हैं

गंगा की सफाई योजना की

कर के सफाई

हम किसी भी पवित्र नदी में

घर की गंदगी बहा सकते हैं

अरे, कहां रहते हैं आप?

यह इंडिया है

यहां जितने कानून बनते हैं

उतने ही विकल्प खुलते हैं

कानून तोड़ने के बहाने बनते हैं

नएनए तरीके बनते हैं

अरे, हम आजाद हैं

आजादीपसंद है नियति हमारी

पड़ोसी के दरवाजे पर

अपना कूड़ा फेंकने को

आजाद हैं हम

अपने स्पीकर

कानफोड़ू संगीत लगा कर

महल्ले वालों को चौबीस घंटे तक

भजनकीर्तन सुना कर

आलसी जो पूजापाठ में हैं

उन्हें रातभर जगा कर

उन का उद्धार करते हैं

हां, हम आजाद हैं.

                 –  केदारनाथ ‘सविता’

 

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