देश व राज्यों की सरकारें खिलाडि़यों  पर तब मेहरबान होती हैं जब कोई खिलाड़ी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में पदक जीतता है, खिलाडि़यों पर धनवर्षा के साथसाथ नौकरी औफर की जाती है. ऐसा अकसर होता है. पर उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से खिलाडि़यों के लिए यह सबकुछ बंद था. अब प्रदेश सरकार खेलों व खिलाडि़यों को बढ़ावा देने के लिए खिलाडि़यों को नौकरी देने की बात करती है.

उत्तर प्रदेश के खेलमंत्री चेतन चौहान ने कहा है कि प्रदेश का कोई भी खिलाड़ी ओलिंपिक, एशियाई खेलों या किसी भी विश्वस्तरीय खेल प्रतियोगिता में कोई भी पदक जीतता है तो उसे प्रदेश सरकार द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित अधिकारी के पद पर नियुक्ति देगी. इस के लिए उस खिलाड़ी को स्नातक होना अनिवार्य है. यदि कोई पुरुष खिलाड़ी या महिला खिलाड़ी स्नातक नहीं है तो उस से स्नातक करने के लिए कहा जाएगा, तभी वह इस नौकरी का हकदार होगा.

इस तरह के लौलीपौप देने से क्या खेलों में सुधार हो जाएगा? शायद नहीं. क्योंकि खेलों को आगे बढ़ाने के लिए बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करने की जरूरत है. सरकारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती हैं और खिलाडि़यों को वे सुविधाएं मिल नहीं पातीं जिन के वे हकदार हैं.

वैसे भी कोई भी खेल अब सस्ता नहीं रहा. हर खेल की ट्रेनिंग के लिए अब लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अभी भी मातापिता अपने बच्चों की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं. सभी मातापिता चाहते हैं कि बच्चा पढ़लिख कर आगे बढ़े. मातापिता एक बार जरूर सोचते हैं कि खेल में यदि बच्चा फेल हो गया तो क्या होगा. इसलिए वे किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते.

रही बात सरकार की, तो सब से पहले खेल संघों में व्याप्त राजनीति को खत्म करना होगा क्योंकि अब हर खेल संघ में राजनीति हावी हो चुकी है. राजनीति मुक्त खेल संघ अब रहा नहीं और जहां खेल में राजनीति हावी हुई तो निश्चित ही वहां खेलों का सत्यानाश होना तय है.

सरकारें खिलाडि़यों को पदक जीतने के बाद नौकरी देने की बात करती हैं. यदि पदक जीतने से पहले खिलाडि़यों को तराशने का काम करें तो शायद खेलों के अच्छे दिन आ सकते हैं. खिलाडि़यों की कमी नहीं है. बस, उन्हें ढूंढ़ने और उन्हें सही ट्रेनिंग की व्यवस्थाभर कर देने से खिलाडि़यों और खेलों के दिन फिर सकते हैं.

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