नागौर के वीर तेजाजी परबतसर पशु मेले से बैलों की जोडि़यां खरीद कर लाए व बैल दौड़ प्रतियोगिता में अव्वल रहने पर परबतसर के उपखंड अधिकारी के हाथों सम्मान पाने वाले किसानों को नहीं पता था कि ट्रकों में बैलों को लाद कर अपने गांव लाने पर जयपुर जिले के चाकसू थाना इलाके में उन का अपमान भी किया जाएगा. चाकसू थाना पुलिस ने कई गौरक्षक संगठनों के दबाव में आ कर करौली जिले के उन लोगों को गौ तस्कर मान कर गिरफ्तार कर लिया. पशुपालक मोहनलाल, मुंशी, चिरंजीलाल, भरतलाल, मुन्ना, प्रकाश, महेश व खेमराज आदि ने बताया कि वे नागौर के परबतसर पशु मेले से 45 जोड़ी बैल खरीद कर रामदेवरा पदयात्रा के चलते पैदल चलने के बजाय किराए के ट्रक व पिकअप में बैलों को लाद कर अपने गांव सपोटरा, करौली ले जा रहे थे. जब वे चाकसू के पास पहुंचे तो अचानक 3 लग्जरी गाडि़यां आ कर रुकीं और उन में से करीबन 20 व्यक्ति उतरे व 2 लाख रुपए  की रसीद कटवाने की मांग की और कहने लगे कि रसीद कटवाने के बाद ही इलाके से जाने देंगे वरना जिंदा नहीं छोड़ेंगे. उन में से कुछ लोग एक गौरक्षक संगठन का नाम भी पुकार रहे थे. रसीद नहीं कटवाने पर उन में से कुछ लोगों ने उन्हें मारनापीटना शुरू कर दिया व 73 हजार रुपए छीन कर ले गए. जब मामले की जानकारी पुलिस थाने में देने गए तो वहां भी पुलिस के सामने ही कमला दीदी नामक गौरक्षक संगठन चलाने वाली महिला जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन से मारपीट करने लगी.

खूबसूरत कदकाठी, फुरतीलेपन और गजब की ताकत को देखते हुए उन्नत नस्ल के नागौरी बैलों का कोई सानी नहीं है. लेकिन पिछले कुछ सालों से इन बैलों की पहचान व शान सिमटती जा रही है. मेलों से खरीद कर इन्हें एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाने पर कई भगवाई गौरक्षक संगठनों के बवाल की वजह से धीरेधीरे इन बैलों की शान ही फीकी पड़ गई है. रोक की वकालत करने वाले संगठनों का तर्क है कि छोटे बछड़ों को मेलों से खरीद कर खेतीबाड़ी या पशुपालन के लिए नहीं, बल्कि बूचड़खानों में हलाल करने के लिए ले जाया जाता है. इस के चलते नागौर क्षेत्र के अलावा प्रदेश के दूसरे हिस्सों व प्रदेश से बाहर के व्यापारियों का यहां के पशु मेलों में आना कम हो गया है. बैलों की खरीदबिक्री के पेशे से जुड़े व्यापारियों का पक्ष रखते हुए मध्य प्रदेश के व्यापारी अर्जुनलाल बताते हैं कि हालांकि यह सच है कि कुछ लोग बैलों को बूचड़खानों के लिए खरीदते थे, लेकिन इस का खमियाजा हम बाकी व्यापारियों को भुगतना पड़ रहा है. दरअसल सोयाबीन, गन्ना, धान और कपास के खेत तैयार करने के लिए नागौरी बैल सब से अच्छे माने जाते हैं. मध्य प्रदेश के किसान नागौरी बैल को खासतौर पर पसंद करते हैं, क्योंकि वहां की चिकनी मिट्टी में ट्रैक्टर से बोआईजुताई करना आसान नहीं है. इस के अलावा कई जगहों पर 2 फसलों की खेती एकसाथ होती है. इस में बैलों से ही बोआई करना मुनासिब होता है, क्योंकि इस से दूसरी खड़ी फसल को नुकसान नहीं होता. मध्य प्रदेश के किसान तो इसे अपनी शान का प्रतीक तक समझते हैं.

इस बार नागौर के परबतसर पशु मेले से करीब सवा सौ बैल खरीदने वाले मध्य प्रदेश के पशुव्यापारी नंदराम जाखड़ बताते हैं, ‘नागौरी बैल तो बस नाम से ही बिक जाते हैं. दुनिया में इन से अच्छी नस्ल के बैल कहीं नहीं मिल सकते. कई बड़े लोग तो शान के लिए अपने फार्महाउस में 8-10 बैलों के जोड़े रखते हैं. बस, उन को पसंद आने चाहिए. कीमत चाहे जो भी हो.’ 5 हजार से 40 हजार रुपए तक के बैल खरीद चुके नंदलाल अब निराश हैं. वे बताते हैं, ‘पहले एक बार में मेले से 5 सौ से ज्यादा बैल खरीदते थे. अब 100 बैल खरीद पाना भी मुश्किल हो गया है, क्योंकि 3 साल से बड़े बैल भी काफी महंगे आ रहे हैं और उन को गाडि़यों में ले जाना भी महंगा पड़ रहा है.’ गौरतलब है कि पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश के व्यापारी यहां नागौरी बैल खरीदने आते हैं. तकरीबन 1 दशक पहले नागौर के परबतसर में लगने वाले वीर तेजाजी पशु मेले में 1 लाख से सवा लाख तक की तादाद में नागौरी  बैल बिकने के लिए आते थे. अब यह तादाद 20 हजार के करीब ही रह गई है. प्रदेश के पशुपालन विभाग के निदेशक भागीरथ चौधरी बताते हैं, ‘अब पहले के मुकाबले एक चौथाई से भी कम बैल आ रहे हैं. इन में भी 3 साल से कम उम्र के बैलों की सही कीमत नहीं मिल पा रही है. गौरक्षक संगठनों द्वारा आए दिन किए जाने वाले बवालों की वजह से प्रदेश के बाहर के व्यापारियों ने इन बैलों से मुंह मोड़ लिया है.’

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