आज के दौर में क्रिकेट गेंदबाज से ज्यादा बल्लेबाजों का खेल माना जाता है. इस खेल में बदलते नियमों और नई तकनीक की बदौलत बल्लेबाजों के सामने गेंदबाज अब खुद को असहज महसूस करने लगे हैं. कई बार बल्लेबाज उनकी गेंद पर इतना लंबा छक्का जड़ देता है कि गेंद स्टेडियम से बाहर तक चली जाती है. क्रिकेट फैंस इस पर स्टेडियम में खड़े होकर तालियां बजाते हैं लेकिन वह गेंदबाज इसे जिंदगीभर नहीं भूल पाता.
क्रिकेट मैदान पर छक्का लगना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन कभी ये सुना या देखा है कि किसी बल्लेबाज ने ऐसा छक्का लगाया हो, जिसमें गेंद सीधे दूसरे शहर जाकर गिरी. जी हां, ऐसा ही हुआ था भारत-इंग्लैंड के बीच वारविकशायर में खेले गए मैच के दौरान. उस मैच में भारतीय कप्तान सी. के. नायडू ने ऐसा छक्का लगाया कि वो इतिहास में दर्ज हो गया. ये ऐसा रिकार्ड है, जिसे आज तक कोई भी दोहरा नहीं सका है.
हुआ यूं कि वारविकशायर के जिस स्टेडियम में मैच खेला जा रहा था उसके पास एक नदी थी, जिसके एक ओर वारविकशायर था और दूसरी ओर वार्सेस्टरशायर शहर. सी. के. नायडू ने एक गेंद पर इतना लंबा छक्का जड़ा कि गेंद सीधे नदी को पार करते हुए वार्सेस्टरशायर में पहुंच गया. खास बात ये थी कि ये उनके अंतर्राष्ट्रीय करियर का इकलौता छक्का था.
बता दें कि 31 अक्टूबर 1895 को नागपुर में जन्मे भारत के पहले कप्तान कर्नल सी. के. नायडू ने अपने करियर में 7 टेस्ट खेले, जिसकी 14 पारियों में उन्होंने 350 रन बनाए. इस दौरान उन्होंने 2 अर्धशतक भी जड़े. इतना ही नहीं नायडू ने गेंदबाजी में भी हाथ आजमाया और 9 विकेट चटकाए.
भारतीय क्रिकेट टीम के प्रथम टेस्ट कप्तान कोट्टारी कंकैया नायडु उस उम्र तक क्रिकेट खेलते रहे, जिसके बारे में सोचना भी आज के खिलाड़ियों के लिए एक सपने जैसा है. उनके अन्दर कमाल की फिटनेस थी जो आजकल के युवा क्रिकेटरों में बहुत कम देखने को मिलती है.
आज के युवा क्रिकेटर अपने फिटनेस से हमेशा जूझते रहते हैं लेकिन नायडू की उस समय की फिटनेस आज के उन खिलाड़ियों के लिए एक सबक है, जो दूसरे तीसरे मैच के बाद ही चोटिल हो जाते हैं. आज के समय में जब खिलाड़ी 37 साल की उम्र में रिटायर होने लगते है, तब इन्होंने ने टेस्ट मैंच खेलना शुरू किया था और 68 साल तक फिट रहकर क्रिकेट खेलते रहे.
भारत की प्रथम टेस्ट टीम के कप्तान सी. के. नायडू का जन्म 13 अक्टूबर, 1895 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था. कर्नल कोट्टारी कंकैया नायडू को प्यार से सभी लोग सी. के. कहकर पुकारा करते थे. भारत के प्रथम टेस्ट मैच में वह भारतीय टीम के कप्तान थे यह मैच 1932 में इंग्लैंड के विरुद्ध खेला गया था. इंग्लैंड की टीम पूरी तरह मजबूत थी, लेकिन सी. के. नायडू की कप्तानी में भारतीय टीम ने जमकर उनका मुकाबला किया.
वर्ष 1926-1927 में उन्होंने सबसे ज्यादा लोकप्रियता प्राप्त की, जब उन्होंने बम्बई में 100 मिनट में 187 गेंदों पर 153 रन बना दिए. यह मैच ‘हिन्दू’ टीम तरफ से ए. ई. आर. गिलीगन की एम. सी.सी. के विरुद्ध चल रहा था. जिसमें इनके 11 छक्के तथा 13 चौके शामिल थे. बम्बई के जिमखाना मैदान पर ‘हिन्दू’ टीम के लिए उनकी आखिरी पारी पर उन्हें चांदी का बल्ला भी भेंट किया गया था.
क्रिकेट जब राजा महाराजाओं का खेल हुआ करता था, तब उन्हें इग्लैंड जा रही भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया. वर्ष 1932 में भारतीय टीम के कप्तान पोरबंदर महाराज थे, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वह नहीं जा पाए और फिर कर्नल सी. के. नायडू को भारतीय टीम का पहला कप्तान बनने का गौरव प्राप्त हुआ.
1932 में इंग्लैंड दौरे के दौरान सी. के. नायडू ने प्रथम श्रेणी के सभी 26 मैचों में हिस्सा लिया था, जिनमें 40.45 की औसत से 1618 रन बनाए और 65 विकेट लिए. इन्हें 1933 में विजडन द्वारा ‘क्रिकेटर औफ द ईयर’ चुना गया था. 1932 में सी. के. नायडू ने कमाल का खेल दिखाते हुए 32 छक्के लगाए थे. उन्हें भारत सरकार द्वारा 1956 में ‘पद्मभूषण’ प्रदान किया गया.