उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के गांव किशुनपुर ग्रिंट के आदित्य प्रसाद कुआनो नदी से सटे सुंदरघाट जंगल के जंगली पशुओं से होने वाले नुकसान की वजह से खेती छोड़ कर दूसरे काम करने लगे थे. इसी वजह से उन के परिवार का खर्चा मुश्किल से चल पाता था. उन की पत्नी उन्हें गेहूंगन्ना जैसी फसलों के अलावा दूसरी फसलें लेने पर जोर देती, लेकिन गांव के अन्य किसानों के साथ वे ताश के खेल में उलझे रहते थे. 2 साल पहले आदित्य की पत्नी ने गांव में स्पेस संस्था द्वारा सब्जी की खेती पर दी गई ट्रेनिंग में भाग लिया, जिस में वैज्ञानिक तरीके से कम लागत में अधिक उत्पादन के तरीके बताए गए व मचान विधि पर जानकारी दी गई. ट्रेनिंग में यह भी बताया गया कि अगर किसान खुद अपनी सब्जी बेचे तो उस की मालीहालत तेजी से सुधर सकती है.
इस ट्रेनिंग के बाद आदित्य की पत्नी ने उन्हें मचान विधि से सब्जी की खेती करने की सलाह दी तो आदित्य बिदक गए और बोले कि मैं एक बीमा कंपनी में काम करता हूं, इसलिए मैं बाजार में सब्जी नहीं बेच पाऊंगा. इस पर पत्नी ने आदित्य से कहा कि वे सब्जी की खेती के लिए हामी भरें, वह तैयार सब्जी को खुद बच्चों के साथ बाजार में बेच लेगी. आखिर पत्नी की जिद की वजह से आदित्य ने साल 2013 में बांस का मचान बना कर मचान के नीचे प्याज व ऊपर लौकी की फसल ली. इस फसल में आदित्य ने पत्नी द्वारा तैयार जैविक कीटनाशी व जैविक खादों को डाला. 500 वर्गमीटर में ही लौकी व प्याज की भरपूर पैदावार हुई. उन्होंने अपने खेत से लौकी की तोड़ाई कर के अपने लड़के को लौकी बेचने के लिए बाजार में बैठाया. उन के लड़के ने 1 घंटे बाद फोन कर के बताया कि उन की सारी लौकी जैविक विधि से पैदा किए जाने की वजह से सब से पहले और सब से ऊंचे रेट पर बिकी. घर आने पर आदित्य के लड़के ने पहली बार में ही 600 रुपए पिता के हाथों पर रखे तो उन की शर्म दूर हो गई. अगली बार वे खुद अपने बेटे के साथ सब्जी बेचने बाजार गए.
इस बार उन्हें 1500 रुपए की आमदनी हुई. अब तो आदित्य नियमित रूप से बाजार में अपनी सब्जी बेचने जाने लगे. उन्हें सिर्फ 3 महीने में 40 हजार रुपए की आमदनी हुई. अब आदित्य की फिर से खेती में रुचि जग गई. उन्होंने लौकी और प्याज की फसल के बाद खाली खेत में करेला और सूरन की खेती करने का फैसला लिया. इस के लिए उन्होंने स्पेस संस्था से जरूरी तकनीकी सहयोग भी लिया. इस बार उन्हें पहले से ज्यादा आमदनी हुई. आदित्य का मन अब खेती में पूरी तरह लग चुका है. इस बार उन्होंने अपने खेत में कई तरह की सब्जियां उगा रखी हैं, जिन में पालक, मूली, चुकंदर, धनिया, सूरन व करेला वगैरह शामिल हैं. वे रोजाना करीब 15 सौ रुपए की सब्जी बेच लेते हैं. आदित्य ने अपनी पत्नी की प्रेरणा से फिर खेती से जुड़ कर सब्जी उत्पादन की दिशा में एक मिसाल कायम की है. उन के द्वारा जैविक विधि से उगाई गई सब्जियों की बाजार में भारी मांग बनी रहती है. मचान विधि से सब्जी की खेती करने से उन की फसल पर जंगली जानवरों का हमला नहीं होता है. खेत में लगाए गए मचान बाड़ का काम करते हैं.
आदित्य का कहना है कि उन्होंने जंगली जानवरों के डर से खेती से मुंह मोड़ लिया था, लेकिन उन की पत्नी की प्रेरणा ने उन्हें दोबारा खेती करने के लिए राजी किया. अब उन के घर की माली हालत में तेजी से सुधार आया है. यह मचान विधि से सब्जी की खेती करने की वजह से ही मुमकिन हुआ है. स्पेस संस्था के संजय कुमार पांडेय का कहना है कि आदित्य की सब्जी की खेती उस इलाके के लिए एक मिसाल बन चुकी है.
वैसे इस हकीकत को आदित्य ही बेहतर जानते हैं कि उन की तरक्की की असली वजह उन की मेहनती पत्नी हैं. अगर उन की पत्नी स्पेस संस्था के जरीए कदम आगे न बढ़ातीं तो शायद आदित्य आज भी ताश खेल रहे होते. अब तो आदित्य से सीख ले कर अगलबगल के गांवों के सैकड़ों किसान मचान खेती अपना कर अपनी माली हालात को सुधार रहे हैं