कालोनी की पानी की टंकी के ऊपर मधुमक्खियों ने बड़ेबड़े छत्ते बना रखे थे. एक रविवार को सुबहसुबह कालोनी के सभी घरों के दरवाजों की घंटियां बज उठीं. सामने खड़े कुछ आदमियों, जो देखने में ग्रामीण दिख रहे थे, ने बताया कि वे लोग गांव से आए हैं और मधुमक्खियों के छत्ते तोड़ने का उन का पेशा है. हम सब से उन्होंने अनुरोध किया कि पानी की टंकी के छत्ते तोड़ने का ठेका उन्हें मिला है. कृपया हम अपने घर की खिड़कियां और दरवाजे बंद कर लें और एक घंटे तक बाहर न निकलें. चूंकि मधुमक्खियां चारों तरफ उड़तीं और किसी को भी काट लेतीं, इसलिए हम सब ने फौरन दरवाजेखिड़कियां बंद कर लीं और बच्चों को सख्त हिदायत दी कि कोई भी बाहर न निकले. एक घंटे बाद वही लोग बाल्टियां लिए हुए फिर से दरवाजों की घंटियां बजाते चले आए, सब को बोलते हुए कि हम ने ताजाताजा शहद निकाला है, ले लीजिए. कई लोगों ने जल्दीजल्दी खरीद भी लिया. जब वे लोग चले गए और हम सब घरों से बाहर निकले तो देखा कि टंकी पर मधुमक्खियों के छत्ते ज्यों के त्यों लगे हुए थे. कोई भी छत्ता तोड़ा नहीं गया था. असल में वे लोग शकर की चाशनी बेच कर पूरी कालोनी को बुद्धू बना कर चले गए थे. चूंकि कोई भी घर के बाहर निकला नहीं था तो किसी को पता भी नहीं चला था कि छत्ते टूटे भी हैं या नहीं.
अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)
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एक दिन मैं कुछ सामान लाने दुकान पर गई. वापसी में रास्ते के किनारे एक आटो खड़ा था. उस के पास एक बुजुर्ग सरदारजी खड़े थे. वे उस आटो के ड्राइवर थे. मैं ने उन्हें झुक कर नमस्ते किया और आगे बढ़ गई. थोड़ी दूर जाने के बाद एक आटो मेरे नजदीक आ कर रुका और उस आटो के ड्राइवर ने कहा कि वे सरदारजी आप को बुला रहे हैं. मुझे लगा मेरा कुछ गिरा होगा तो मैं वहां गई. सरदारजी पास वाले ठेले से चाय ले कर पी रहे थे. मेरे जाने से वे मुझे भी चाय पीने को कह रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘मैं अभी पी कर आ रही हूं, शुक्रिया.’’ तो भी वे पीने के लिए कह रहे थे. मैं ने मना कर दिया और फिर नमस्कार कह कर आगे चल पड़ी. मैं सोच रही थी कि ऐसे भी इंसान मिलते हैं.
एन सरकार, कालकाजी (न.दि.)