गांव पेवनपुर, ब्लाक पिपरौली, जिला गोरखपुर के 44 साला आनंद निशाद ने अपनी खेती को नई तकनीक से एक नया रूप दे दिया. बचपन से ही आनंद का खेती के प्रति बहुत लगाव था. जब वे 10 साल के थे, तभी अपने पिता के साथ खेती करने लगे थे और उन का हाथ बराबर बंटाते रहते थे. 4 भाइयों में सब से गरीब आनंद ही थे. उन के पास बहुत कम जमीन है. उन्हें व्यावसायिक खेती करने का बेहद शौक था, इसलिए उन्होंने दूसरों की 1 एकड़ जमीन ले कर उस पर पारंपरिक ढंग से खेती शुरू की. साल 2013 में आधार संस्था द्वारा सर दोराब जी टाटा ट्रस्ट के सहयोग से कृषि आधारित आजीविका परियोजना पेवनपुर गांव में शुरू हुई. इस में आनंद निशाद को आधार द्वारा संचालित किसान विद्यालय का संचालक बनाया गया.

इस दौरान आनंद संस्था के कार्यकर्ताआें व संस्था में बुलाए गए कृषि विशेषज्ञों के संपर्क में आए और अपनी खेती संबंधी जानकारियों को लगातार बढ़ाते रहे. संस्था के कहने पर उन्होंने हुंडा की 500 वर्गमीटर जमीन पर मचान में द्विस्तरीय सब्जी की खेती शुरू की. पहले फसल चक्र में उन्होंने नीचे प्याज लगाया और ऊपरी स्तर पर लौकी के पौधे लगाए. दूसरे फसलचक्र में उन्होंने नीचे सूरन लगाया और ऊपरी स्तर पर करेले की खेती की. पहले साल मचान की फसलों को लगाते समय उन्हें काफी दिक्कतें हुईं, लेकिन इस से प्राप्त उत्पादन व आमदनी से वे इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन पर भी इस साल मचान लगाया है. अप्रैल में उन्होंने मचान के नीचे खीरा लगाया, जिस से अब तक 15 हजार रुपए प्राप्त हुए. मई में उन्होंने मचान के ऊपर खीरा लगाया, जिस से अब तक 69 हजार रुपए प्राप्त कर चुके हैं. इस प्रकार महज 4 महीने में वे अब तक 84 हजार रुपए की सब्जी बेच चुके हैं. करीब 20 हजार रुपए की सब्जी और होने का अनुमान है. पहले साल में खीरा, लौकी, मचान, खाद व कीटनाशक को मिला कर 40 हजार रुपए का निवेश किया गया था.  इस तरह पहले साल में लगभग 50 हजार रुपए की आमदनी हुई.

इस मचान की कामयाबी को देख कर अब तक 7-8 अन्य किसान भी मचान लगा चुके हैं और कई अन्य किसान भी मचान लगाने के लिए बेताब हैं. गांव के लोग आनंद के कृषि ज्ञान के कारण उन्हें कृषि डाक्टर के नाम से पुकारते हैं. आनंद मचान के अलावा आधार संस्था के तकनीकी सहयोग से नए ढंग से पत्तागोभी, गाजर, चुकंदर, मूली, लौकी व खीरा की वैज्ञानिक खेती कर के अपने उत्पाद बाजार में ऐसे समय पहुंचाते हैं, जब उन की मौजूदगी कम रहती है जिस से उन की सब्जियां अधिक दामों में बिक जाती हैं और अन्य किसानों की तुलना में उन्हें अधिक आमदनी होती है. आनंद की सफलता व आमदनी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे अपने 6 बच्चों की पढ़ाईलिखाई व पत्नी समेत पूरे परिवार का खर्च बेहतर ढंग से चलाते हैं और अपनी सारी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बाकायदा पूरा करते हैं. वे बचत भी कर लेते हैं.

अपने कृषि उत्पादों को उचित समय पर बाजार पहुंचाने के लिए आनंद ने दोपहिया वाहन भी खरीद लिया है. कृषि के साथसाथ पशुपालन कर के भी वे अपनी आय में इजाफा करते हैं. कृषि वानिकी के तहत उन्होंने आधार संस्था के सहयोग से क्लोनल यूकेलिप्टस व सागौन के पेड़ों को भी अपने खेत के किनारों पर लगाया है. आनंद को बचपन में स्कूली तालीम नहीं मिल पाई थी, फिर भी वे अपने बच्चों व अन्य लोगों से थोड़ाबहुत पढ़नालिखना सीख गए हैं. वे अपने खेती के कामों का पूरा लेखाजोखा रखते हैं. आनंद समयसमय पर अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए आधार संस्था के सहयोग से और निजी खर्चे पर भी विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों व सब्जी अनुसंधान केंद्रों पर जाते रहते हैं. उन्होंने अपने 2 भाईबहनों की शादियां भी खूब धूमधाम से कीं. आनंद के तमाम कामों में उन की पत्नी मीरा देवी व बच्चों का पूरा साथ रहता है.

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