गाढ़ी नींद में ख्वाबों को सजाने का
होंठों की जुंबिश के राज बताने का
तुम्हारी आंखों से जिगर में समाने का
तुम्हारी आतीजाती सांसों में सिमट जाने का
मैं ने वर्षों ख्वाब नहीं देखा है
ऊंची परवाज पे आकाश में बांहें फैलाने का
तितलियां बन फूलों पे मुसकराने का
तुम्हारे नाम,
तुम्हारी कई कशमकश चुराने का
ख्वाबों में तुम्हें उठा कर हालेदिल सुनाने का
मैं ने वर्षों ख्वाब नहीं देखा है
आओ हम तपिश में छांव बछाएं
तपती धरती में हरी घास लगाएं
यहां मजलूमियत और भूख मिटाएं
नई फसलें उगा परिंदों को लाएं
मैं ने वर्षों ख्वाब नहीं देखा है
हमारी जैसी कई जगीं अलसाई रातें
सितारों को जमीं पे इशारे से बुलाई रातें
रात और सुबह की आमद कराती रातें
बोझिल पलकों पे शरमाती रातें
पलकों पे ठंडी हथेली रखने को बुलाती रातें
मैं ने वर्षों ख्वाब नहीं देखा है.
- डा. के पी सिंह
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