मैं फ्रंटियर मेल से कोटा से रवाना हो कर मुंबई जा रही थी. कुछ ही देर बाद 10-11 वर्ष का किशोर मेरी सीट के पास आ कर बैठ गया. मेरे साथ मेरा 8 साल का पोता था. मैं स्कूल में प्राध्यापिका रही हूं और मनोविज्ञान मेरा विषय रहा है. मैं उस सामान्य से दिखने वाले किशोर को देख रही थी. वह स्कूल की यूनिफौर्म में था. बारबार इधरउधर झांकती भयभीत सी उस की आंखें मुझ से छिपी न रह सकीं. देखने में वह संभ्रांत एवं शिष्ट किशोर था. अंगरेजी माध्यम में पढ़ रहा था. धीरेधीरे मेरे पोते से वह हिलमिल गया और उस के साथ खेलता रहा. इस बीच, टिकटचैकर आया पर संयोग कि उस किशोर का न टिकट चैक किया और न ही उसे कुछ कहा. हमारा टिकट चैक कर के वह चला गया. मैं ने अपने पोते को खाने को जो दिया वह उस को भी दिया और उस ने खा भी लिया. उसे हमारे साथ बैठे 4-5 घंटे हो गए थे. तब मैं ने उसे कुरेदते हुए उस की शिक्षा, घरपरिवार की कुछ जानकारी ले ली. वह बच्चा नागदा (मध्य प्रदेश) का था. उस के सौतेले पिता उसे बहुत मारते थे, इसीलिए वह घर छोड़ कर भागा हुआ था. मेरी एक मित्र नागदा में थी. मैं ने तत्काल उसे फोन लगाया और सारी स्थिति बताते हुए चुपचाप उस की मां से मिलने को कहा और सारी बात मुझे फोन कर के बताने को भी कह दिया. मेरी युक्ति सफल हुई. मैं ने बच्चे से अलग हो कर उस की मां से बात की, उस के दिल की हालत समझी और सांत्वना दी. दरअसल, उस की मां ने विधवा होने के बाद दोबारा शादी की थी और अब नया पति अपने 2 बच्चों के साथ इस बच्चे को सहन नहीं कर पा रहा था.
ऐसी ही एक विपरीत स्थिति का परिचय मुझे कुछ समय पहले भी हुआ था. वहां मां सौतेली थी और बच्ची 12 वर्ष की थी. रातदिन घर के काम में वह बच्ची लगी रहती थी और एक दिन वह भी रोरो कर घर से चली गई थी. सौतेले मातापिता के साथ यह एक गंभीर सामाजिक समस्या बन गई है. स्ट्रीट चिल्ड्रन के एक सर्वे में मैं ने पाया कि 70 प्रतिशत बच्चे पारिवारिक प्रताड़ना के कारण अपना भविष्य चौपट कर बैठते हैं. मातापिता जो पुनर्विवाह करते हैं उन्हें विवाह के साथसाथ इन बच्चों के लिए भी कुछ सोचना होगा. वे बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता दें. यदि आप पुनर्विवाह कर रहे हैं, दोनों में एक के पास बच्चा है या दोनों के पास हैं तो सब से पहले दोनों ही उन्हें अपना बच्चा समझें. उन बच्चों का समुचित पालनपोषण करना आप का दायित्व है.
समझदारी से काम लें
दूसरी शादी कर महिला यदि अपना बच्चा साथ ले कर पति के घर जा रही है तो उसे यह समझदारी तो रखनी होगी कि दूसरी पत्नी को एडजस्ट करना ही आसान नहीं होता और बच्चे के साथ यह और भी कठिन होता है. वह अपने नए पति की आय और उस के स्वभाव के अनुसार एडजस्ट करे. हो सकता है आप का पहला पति अधिक संवेदनशील हो, बच्चे पर ज्यादा समय देता हो, ज्यादा खर्च करता हो. नई परिस्थिति में बारबार पुरानी बात न दोहराएं वरना दूसरे पति को बच्चे से ही चिढ़ होने लगती है और इस से आप दोनों के संबंध भी कटु हो जाएंगे. पति की आर्थिक स्थिति का ध्यान रखें : हो सकता है अब आप दूसरी शादी कर जिस घर में आई हों उस की आर्थिक स्थिति पहले घर जैसी न हो, आप की और आप के बच्चे की कई आदतें और अभिरुचि न पूरी हो पाएं. ऐसे में बारबार पहले की बातें करना उचित नहीं होगा. अब जब ऐसे घर को स्वीकारा है तो वहां के अनुसार अपने को एडजस्ट करने की कोशिश करें. किसी के बच्चे को अपना समझने का दिल हर किसी में नहीं होता. आप बच्चे के पुराने खिलौने, खानेपीने के शौक, वस्त्रों आदि की अधिक चर्चा न करें, इस से केवल तनाव ही बढ़ेगा. फिर अब इन बातों से कुछ लाभ भी होगा नहीं. आप नए घर की आर्थिक स्थिति और अपने नए जीवनसाथी की सलाह ले कर ही बच्चे की परवरिश करें.
बच्चों की कोमल भावनाओं को आहत न करें : जिन बच्चों ने अपने मातापिता को छोटी सी अवस्था में खो दिया है उन की मानसिक स्थिति का खयाल रखें. उन्हें संतुलित प्यार दें. उन का भविष्य बनाना अब आप दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है. यदि आप का अपना बच्चा भी हो जाता है तो दोनों में अंतर नहीं, समान सुविधाएं व समान प्यार दें. ध्यान रखें कि बच्चा अपनी माता या पिता के खोने के आघात को सहज ही नहीं भूलता. वह बारबार अपने अतीत को सामने रखता है. जरा सी भी कमी उसे दुखी करती है.
ऐसे बच्चों की रचनात्मक गतिविधियां बढ़ाएं. इनडोर अभिरुचि विकसित करें. आप का भावनात्मक संबल उन के लिए संजीवनी है. ऐसे बच्चे दोहरी मार से ग्रस्त होते हैं. एक तो उन का प्यार लुट गया, दूसरे, नए घर में जहां अभी जिस के साथ आया उस की ही जड़ें जमीं नहीं. ऐसे में बच्चे में मनोवैज्ञानिक रूप से कुंठा, उग्रता, हीनभावना, क्षुब्धता, जिद्दीपन पनपने की संभावना रहती है. इसलिए धीरेधीरे बच्चों से संवाद बनाएं और स्पष्ट रूप से बता भी दें कि अब वे नए घर में हैं और उन्हें नए लोगों की बातें माननी हैं, अपनी आदतें भी बदलनी हैं. चूंकि अकेले रहना संभव नहीं है इसलिए समझौता करना पड़ेगा.
बच्चे का भविष्य आप की प्राथमिकता : दूसरा विवाह करते समय केवल अपने ही वर्तमान और भविष्य की न सोचें. जिस बच्चे को आप ने जन्म दिया है उस का भविष्य संवारना भी आप की प्राथमिकता होनी चाहिए. आप परिपक्व हैं पर बच्चा अभी अबोध है. वह पहले ही मानसिक आघात से ग्रस्त है. आप की छाया में उसे अपनत्व की खुशबू मिलेगी और अभाव की संपूर्ति. किसी भी हालत में ऐसा वैवाहिक समझौता न करें जो बच्चे के भविष्य को चौपट कर दे. आप पर दोहरी जिम्मेदारी है.
बच्चों को ले कर अधिक अपेक्षा भी न करें : यह सच है कि आप के सामने आप के अपने जीवन की भी रूपरेखा है. आप अपना जीवन भी जीना चाहेंगी. यदि बच्चा साथ है तो यह भी मान लीजिए कि बच्चा आप का है जिस से पुनर्विवाह कर रहे हैं उस का नहीं. सो, जो भावनात्मक लगाव आप को अपने बच्चे से हो सकता है, दूसरे को नहीं. उस के लिए प्राथमिकता आप हैं. अब आप की समझदारी इसी में है कि बच्चे को ले कर संबंधों में कटुता न लाएं. जरूरी नहीं कि आप की तरह वे भी आप के बच्चे की देखभाल करें, ध्यान दें, उस की भावनाओं का खयाल रखें.
यह मान कर ही चलिए कि बच्चा आप का है तो उस की जिम्मेदारी आप की ही बनती है इसलिए आप को अपनी हर सुविधा में बच्चे के लिए कटौती करनी है. अपने ममत्व को दूसरों के सम्मुख प्रदर्शन करने से मायूसी और टकराहट ही हाथ लगेगी. आप की समझदारी से ही नया घर आप के और आप के बच्चे के लिए शीतल छाया बन सकता है वरना बच्चे को ले कर जिंदगी अभिशप्त होते भी देर नहीं लगती.
दूसरों की उपेक्षा की अनदेखी करें : दूसरी शादी कर नया घर आप के लिए नया परिवेश है. क्या पता आप के बच्चे को स्वीकार करना नए पति और उस के घरवालों के लिए उन की विवशता हो. कई बार ऐसी विवशता अनचाहे प्रकट भी हो जाती है. ऐसे में आप संयम रखें. कभीकभी सबकुछ सामान्य होने में समय लगता है. बच्चे को नए वातावरण में खिन्नता महसूस होती है, झुंझलाहट भी. उस की खीझ को समझें, कुछ इग्नोर करें. बच्चे के साथ वाली स्त्री या पुरुष के लिए विवाह करना अग्निपरीक्षा से कम नहीं होता. हर पल तनाव उत्पन्न होने की आशंका रहती है. आप की समझदारी, सकारात्मक सोच और सामंजस्यता की शीतल धाराएं ही आप की नई बगिया को पुष्पित, पल्लवित कर सकती हैं. अपने बच्चे के साथ रहना, सहना और ढलना यदि आप को आ गया तो 2 परिवारों के साथसाथ 2 पीढि़यां लहलहा उठेंगी, बचपन मुसकराएंगे और आप न जाने कितनों के प्रेरणास्रोत बनेंगे.