Girls Social Change: लड़कियों की आज़ादी के रास्ते में एजुकेशन पहली सीढ़ी है। शिक्षा के जरिए ही वे गुलामी के बंधनों से मुक्त हो सकती हैं। ऐसे में उन्हें सबसे पहले किन-किन चीज़ों को छोड़ने की जरूरत है, जानें।

भारतीय समाज में जाति के कारण अलगाव हमेशा से रहा है। अमीरी-गरीबी भी जाति पर आधारित रही है। ऊँची जाति का मतलब ज़मीन-जायदाद वाला और नीची जाति का मतलब दरिद्र व गरीब माना जाता रहा है। ऐसी जातिगत व्यवस्था में लड़कियों को हमेशा छिपाने की वस्तु बनाए रखा गया। घर की लड़कियों का दूसरी जाति से किसी भी प्रकार का संपर्क वर्जित था। लड़कियों को बचपन से ही धार्मिक नियमों में बाँध दिया जाता है — व्रत, त्योहार, पूजा, परंपराएँ और संस्कार आदि को विशेष रूप से लड़कियों से जोड़ा गया।

पिछले कुछ दशकों में लड़कियों को इतनी आज़ादी मिली है कि वे स्कूल, कॉलेज और नौकरियों तक पहुँच रही हैं। लड़कियाँ समाज से बाहर निकलकर आधुनिक दुनिया का हिस्सा बन रही हैं और पुरुषों द्वारा बनाई गई घेराबंदियों को लाँघ रही हैं, लेकिन धर्म और जाति के एलिमेंट्स आज भी उनसे चिपके हुए हैं। प्राइमरी स्कूल तक लड़कियों में जाति-धर्म को लेकर ज्यादा जुड़ाव नहीं देखा जाता। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली ज्यादातर लड़कियाँ एक ही सामाजिक और आर्थिक परिवेश से आती हैं। ये लड़कियाँ प्राइमरी शिक्षा तक दोस्ती को धर्म और जाति से ऊपर रखती हैं। एक साथ स्कूल आने, साथ खेलने, गपें मारने और एक-दूसरे की परवाह करने की आदतें लड़कियों के स्वाभाविक गुणों में शामिल होती हैं।

लेकिन वही लड़कियाँ जैसे-जैसे बड़ी होती हैं, बड़ी कक्षाओं में पहुँचती हैं तो उनकी दोस्ती पर धर्म और जाति हावी होने लगती है। वहीँ कालेज और नौकरियों तक पहुँचते-पहुँचते कई लड़कियाँ विशुद्ध धार्मिक या जातिवादी हो जाती हैं। आखिर क्या वजह है कि आज की मॉडर्न लड़कियाँ भी जातिवाद और धार्मिक जाल से बाहर नहीं निकल पा रही हैं?

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