झाड़ू को बेचारी कह कर मैं उस का उपहास नहीं उड़ा रही. मैं जानती हूं कि झाड़ू अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की वस्तु है. वह रोज नए कीर्तिमान गढ़ रही है. हमें भी झाड़ू पर गर्व है. कितने आश्चर्य की बात है कि एक अदनी सी झाड़ू, जिस का कोई महत्त्व न था, घर के किसी कोने में पड़ी रहती. घर में कहीं गंदगी होती तो सफाई के लिए उठा ली जाती थी. सफाई कर के फिर कोने में पटक दी जाती थी. इसी उठापटक में वह सदियों से करवटें बदलती रही. महात्मा गांधी ने मलिन बस्तियों की सफाई के लिए झाड़ू हाथ में पकड़ी थी, लेकिन उन का अभियान उस समय सिर नहीं चढ़ा क्योंकि वह अंगरेजों का जमाना था. उस समय जब आम आदमी की कोई बिसात न थी तो झाड़ू कैसे परवान चढ़ती.
मुझे लिखते समय एक लोकगीत के बोल याद आ रहे हैं जिसे बुजुर्ग महिलाएं यानी मेरी दादी मां और मां अकसर सफाई करते हुए प्रभाती के रूप में गुनगुनाया करती थीं.
‘उठो री सुहागिन नार, झाड़ू दे लो अंगना…’
यानी सुबह उठ कर घरआंगन साफ करना आवश्यक था. औरतें विशेष रूप से सफाई अभियान में जुटती थीं. आज भी जुटती हैं बिना किसी हीलहुज्जत के, लेकिन अब सफाई करतेकरते थोड़ा मुसकरा भी रही हैं कि चलो, देर आए दुरुस्त आए. अब मर्द झाड़ू लगाना सीख रहे हैं वरना सफाई पर उन का ही एकाधिकार था. बड़ा ही बोरिंग काम है.
झाड़ू कभीकभी खूब लड़ी मरदानियों के हाथ की शोभा भी बन जाती है. झाड़ू युद्ध देखना बड़ा रोमांचक है. कभी इस की जद में शोहदे, पड़ोसी, दुश्मन, चोरउचक्कों के साथ पति महोदय भी आ जाते हैं. एक अन्य पक्ष भी रहा है झाड़ू का. त्योहारों, पर्वों पर सफाई का विशेष महत्त्व, शादीब्याह में भी, गृह प्रवेश में भी. यानी नए घर में प्रवेश करना है, मंडप सजाना है, रंगोली बनानी है तो स्थान विशेष की सफाई तो करनी ही पड़ेगी.सो, बुजुर्गों ने झाड़ू को तथाकथित लक्ष्मी बता खरीदना आवश्यक कर दिया. अब हालात ये हैं कि कोई भी संस्कार बाद में होगा, नई झाड़ू पहले आएगी.
लेकिन भला हो अरविंद केजरीवाल का जिन्होंने अपनी पार्टी का चुनाव चिह्न झाड़ू को बना लिया. चुनाव चिह्न झाड़ू और पार्टी का नाम आप रख लिया यानी आप की झाड़ू. बात कुछ समझ में आई, कुछ नहीं. लगा, यह नेता झाड़ू लगालगा कर पूरे देश की सफाई कर देगा.
मतलब सड़कें साफ करने से नहीं था. संसद में चुन कर जाने वाले भ्रष्ट नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा, भ्रष्ट लोगों का सफाया होगा, रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी, घोटाले, काली कमाई सब पर झाड़ू फिर जाएगी और एक स्वच्छ भारत, माने स्वच्छ दफ्तर, स्वच्छ नेता की छवि बनेगी. लेकिन जुमाजुमा 2 महीने भी नहीं गुजरे कि झाड़ू केजरीवाल के हाथ से खिसक मोदी के हाथ में आ गई. बेचारे घर के रहे न घाट के. अब मोदी समझा रहे हैं जिन्हें झाड़ू चलाने की तमीज नहीं, वे झाड़ू उठा कर चल रहे हैं. देखो, झाड़ू कैसे चलाई जाती है. हमें आती है झाड़ू चलानी. अब बारी केजरीवाल के चौंकने की थी. झाड़ू उन की, लिए घूम रहे हैं मोदी. बनारस के घाट, गुजरात के गलीकूंचे और पूरे देश में नेता झाड़ू हाथ में लिए देश बुहारने में लगे हैं. अखबार और न्यूज चैनल धड़ाधड़ बता रहे हैं कहां, किस ने झाड़ू लगाई. बेचारे कैमरामैन कैमरा लिएलिए नेताओं के पीछे भाग रहे हैं. औफिस के बाबूचपरासियों की तो बिसात ही क्या, फिल्मी हस्तियां, समाजसेवी, छोटेबड़े सभी अफसर झाड़ू लगा कर अपने नाम के झंडे गाड़ रहे हैं. झाड़ुओं के टैंडर भरे जा रहे हैं. सफाईकर्मी नेताओं के आगेपीछे कूड़े की ट्रौली ले कर दौड़ रहे हैं, पता नहीं कब, कहां कूड़ा फैलाना पड़ जाए. फिर बारी आई केजरीवाल की. केजरीवाल ने दिल्ली में मोदी की झाड़ू पर पानी फेर दिया और वे देखते रहे. लेकिन बड़ी अजीब स्थिति है. झाड़ू को भी समझ में नहीं आ रहा कि वह आगे किस की शोभा बनेगी.
उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की तहसील सिकंदराबाद में निंमुज महाशय ने अपने 9 सहयोगियों के साथ लगातार 36 घंटे तक सफाई अभियान चला कर वर्ल्ड रिकौर्ड बना लिया जिस में पूरा प्रशासनिक अमला और 400 सफाई कर्मचारी लगे रहे. सब के हाथों में झाड़ू. झाड़ू भी चलतेचलते थक गई, घिस गई. लोगों ने छोड़ दी, नई उठा ली, पर किसी ने यह आंकड़ा नहीं बताया कि कितनी झाड़ू खरीदी गईं, टैंडर कितने का था, झाड़ू किस कंपनी की थी. हमेशा ऐसा ही होता है. आंकड़े आधेअधूरे रह जाते हैं. पर एक बात तो है कि सिकंदराबाद भी विश्वपटल पर चमाचम चमक गया.
सुना है अब मर्दों ने जोश में आ कर झाड़ू हाथ में थाम ली है. घरद्वार वे ही बुहार रहे हैं. स्वच्छ भारत अब ऐसे ही स्वच्छ होगा. औरतों के वश में यह काम कहां है? विश्व रिकौर्ड ज्यादातर मर्दों ने ही बनाए हैं. स्वच्छ भारत अभियान से मेरी विचारधारा कुछ ऐसी बन गई है कि कहीं भी कूड़ा पड़ा देखती हूं, तो हाथ झाड़ू पकड़ने के लिए मचलने लगते हैं. एक जगह मैं ने ढेर सा कूड़ा पड़ा देखा, मुझे सहन नहीं हुआ. मैं ने सामने वाले घर की कुंडी बजा दी और गुर्राते हुए बोली, ‘तुम्हें सड़क गंदी करते शर्म नहीं आती?’
मुझे उस से भी तेज आवाज में उत्तर मिला, ‘सुबहसुबह क्यों दिमाग खराब करती है. यह कचरा मैं ने डलवाया है. फोटो खिंचानी है. फोटोग्राफर आता होगा. तब झाड़ू पकड़ूंगी. तू भी खड़ी हो कर देख. तू भी एक झाड़ू मेरे साथ उठा ले.’ यह सुन कर मैं हतप्रभ रह गई. झाड़ू की इतनी बेइज्जती. हाय झाड़ू, अब झाड़ू सफाई की नहीं, प्रदर्शन की चीज है. संभव है कभी शोकेस में सज जाए. इतरा रही है झाड़ू, चुनौती दे रही है झाड़ू, सिर चढ़ कर बोल रही है झाड़ू. है कोई आज मुझ सा…