दक्षिण कोलकाता के एक चौराहे पर चाय की एक गुमटी. आमनेसामने रखी बैंचों पर हाथों में चाय के कुल्हड़ लिए लड़केलड़कियों का समूह. उन के मध्य राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय राजनीति से ले कर फैशन, औनलाइन शौपिंग, लेटेस्ट टैक्नोलौजी, कैरियर जैसे विषयों पर बहस चल रही है. कुल मिला कर बंगाल में जिसे चाय के ‘प्याले में तूफान’ के रूप में जाना जाता है, वह अड्डा अपने पूरे शबाब पर है. अचानक इशिता ने जींस की पौकेट से ‘लाइट’ सिगरेट का एक पैकेट निकाला और मीना की ओर बढ़ाया. ग्रुप में राजदीप भी है, जिस का सिगरेट और इस के धुएं से छत्तीस का आंकड़ा है. लड़कियों के सिगरेट पीने के तो वह घोर खिलाफ है.
बहस का मुद्दा हर तरफ से सिमट कर लड़कियों के सिगरेट पीने की ओर मुड़ गया. इशिता सिगरेट पीने के पक्ष में तर्क दिए जा रही है और राजदीप इस के खिलाफ तर्क दे रहा है. इशिता राजदीप के तर्क को मानने को तैयार नहीं है. कुल मिला कर उस का कहना है कि वह ट्यूशन के पैसे से अपना पौकेटमनी निकालती है. अपने खर्च के लिए किसी पर निर्भर नहीं है. ऐसे में अब इन पैसों से वह सिगरेट पिए या चौकलेट खाए, पूरी तरह से उस का अपना मामला है. इस पर किसी को बोलने का अधिकार नहीं है. वहीं, मीना का तर्क है कि वह सिगरेट रोज नियम से नहीं पीती. जब कभी दिल चाहता है तो पी लेती है. वह ‘रेगुलर’ सिगरेट के बजाय ‘ब्लू’ सिगरेट पीती है. इस में टार या निकोटिन कम होता है और इस से नुकसान भी कम होता है.
जब से बाजार में ई-सिगरेट यानी ब्लू सिगरेट आई है, महिला स्मोकर की संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है. पल्लवी भट्टाचार्य किसी पानसिगरेट की दुकान से सिगरेट लेने के बजाय औनलाइन शौपिंग करती है, वह भी ब्लू यानी ई-सिगरेट. पल्लवी बताती है कि चार्जेबल ई-सिगरेट किसी रेगुलर सिगरेट से कहीं अधिक सुरक्षित है. वहीं, ये अलगअलग फ्लेवर में मिल जाती हैं. तंबाकू से ले कर मेंथौल, चैरी, वनीला, पीच के फ्लेवर में. इस का होंठों के बीच रखा जाने वाला सिरा सिलीकोन का होता है, जिस से लीकेज की संभावना नहीं होती है.
आंकड़ों की जबानी
इसी साल जनवरी में अमेरिकन मैडिकल एसोसिएशन की ओर से विश्वभर में सिगरेट ट्रैंड पर की गई एक समीक्षा रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिस में भारत में महिला स्मोकर का आंकड़ा लगभग 1 करोड़ 20 लाख 10 हजार का बताया गया. समीक्षा में कहा गया कि 1980 से ले कर 2012 के बीच पुरुषों में सिगरेट पीने के चलन में कमी आई है. यह चलन 33.8 फीसदी से घट कर 23 फीसदी रह गया है. जबकि महिला स्मोकर की संख्या बढ़ी है. औसतन 10 में 1 लड़का जहां 18.8 साल में सिगरेट पीना शुरू करता है, वहीं 5 में से 1 लड़की औसतन साढ़े 17 साल में सिगरेट पकड़ लेती है. औसत रूप से लड़कियां दिनभर में जहां 7 सिगरेट पीती हैं वहीं लड़कों का आंकड़ा 6.1 का है.
बहरहाल, सिगरेट पीने के चलन के बारे में राष्ट्रीय कैंसर संस्थान और विश्व स्वास्थ्य संगठन की समीक्षा कहती है कि अपेक्षाकृत रईस परिवार के लोगों के बीच सिगरेट से जुड़ी बीमारियों को ले कर जागरूकता बढ़ने के कारण पुरुषों में इस का चलन दिनोंदिन कम हो रहा है. लेकिन इन्हीं परिवार की महिलाओं में सिगरेट का चलन बढ़ रहा है. समीक्षा में इस का कारण बताया गया है कि आजकल इन परिवारों की महिलाएं व लड़कियां ज्यादातर प्रोफैशनल नौकरी या कैरियर में होती हैं. जाहिर है इन के हाथों में पैसे होते हैं. इन के दिमाग में या तो महिलाओं की आजादी की भावना काम करती है या फिर ‘स्टेटस कौंशसनैस’ इन्हें सिगरेट की ओर मोड़ देती है. इसी कारण सिगरेट बनाने वाली कंपनियां महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सस्ती लाइट सिगरेट बाजार में ले कर आई हैं. सिगरेट कंपनियों ने ऐसा तीसरी दुनिया के देशों को ध्यान में रख कर किया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की समीक्षा रिपोर्ट यह भी कहती है कि लाइट सिगरेट के बारे में कंपनियां बाजार में यह अवधारणा बनाने में काफी हद तक कामयाब रही हैं कि इन में टार या निकोटिन की मात्रा बहुत कम होती है. इन से होंठ काले नहीं पड़ते. जाहिर है लाइट के बारे में बाजार में यह धारणा बन गई है कि एक तरफ होंठों की खूबसूरती के लिए कोई खतरा नहीं है तो दूसरी ओर सेहत के नजरिए से भी इस तरह की सिगरेट कम नुकसानदेह होती है. सिगरेट कंपनियों के ऐसे प्रचार के कारण ही बड़ी संख्या में लड़कियों और महिलाओं का झुकाव सिगरेट की तरफ देखने में आ रहा है. इतना ही नहीं, लाइट सिगरेट को सुरक्षित मान कर वे अधिक लंबा कश ले रही हैं. इस कारण नुकसान की मात्रा कहीं से भी कम नहीं हो रही है. नतीजतन, बड़ी संख्या में महिलाएं नौन कम्युनिकेबल डिजीज यानी एनसीडी की शिकार हो रही हैं.
दक्षिणपूर्व एशिया में भारत, बंगलादेश और श्रीलंका के साथ दक्षिण अफ्रीका के तीसरी दुनिया के अंतर्गत आने वाले देशों की महिलाओं के बीच दिनोंदिन सिगरेट पीने का चलन बढ़ रहा है. कुल मिला कर इन देशों में क्या लड़कियां क्या लड़के उन में औसतन 15 साल की उम्र से सिगरेट पीने का चलन शुरू होते देखा गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की समीक्षा में बताया गया है कि पूरी दुनिया में हर साल लगभग 50 लाख लोग धूम्रपान से जुड़ी बीमारी से मारे जाते हैं. इन में 15 लाख महिलाएं होती हैं. 2030 तक सिगरेट पी कर मरने वालों की संख्या 80 लाख तक जा सकती है और उस में 25 लाख महिलाओं की भागीदारी होगी.
इस से पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से 2010 में प्रकाशित एक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया के 151 देशों में आधे से अधिक देशों में बराबर संख्या में पुरुषों और महिलाओं में सिगरेट पीने का चलन है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इन दिनों सिगरेट कंपनियों के निशाने पर महिलाएं हैं. महिलाओं को ही ध्यान में रख कर तमाम प्रचार किए जा रहे हैं. ये कंपनियां महिलाओं के बीच अपनी बिक्री बढ़ाने के मकसद से उन के सौंदर्य, व्यक्तित्व, आत्मसम्मान, व्यक्तिगत आजादी जैसी भावना को उकसाते हुए प्रचार कर रही हैं.