हमारे एक पड़ोसी भैया को बड़ा क्वार्टर मिला था. क्वार्टर की साफसफाई आदि करवाने के बाद वे वहां शिफ्ट करने वाले थे. एक सुबह वे पत्नी से यह कह कर गए कि औफिस जा रहा हूं, वहीं से व्यवस्था कर के ट्रक भेज दूंगा. 2 घंटे बाद उन के दरवाजे पर एक ट्रक आ कर रुका. उस में से उतरे आदमी ने उन की पत्नी के पास जा कर कहा, ‘‘साहब ने ट्रक भेजा है तथा सामान चढ़ाने को कहा है.’’ भाभी बेचारी ने फर्नीचर, टीवी, कूलर, कंप्यूटर आदि सब चढ़वा दिया और ट्रक वाला ले कर चला गया. बाद में भैया आए और बोले, ‘‘ट्रक की व्यवस्था हो गई है, आता ही होगा.’’ जब भाभीजी ने कहा कि वह तो सामान ले गया है. भैया के हाथपांव फूल गए कि सामान कौन ले गया. वह ट्रक वाल दिनदहाड़े उन के घर का सामान ले कर रफूचक्कर हो गया था.

पूनम यादव, दुर्ग (छग)

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हम लोग 2 साल पहले हरिद्वार गए थे. वहां 3 दिन रहने के बाद हमारी दिल्ली के लिए सुबह 8 बजे की ट्रेन से टिकटें रिजर्व थीं. जैसे ही ट्रेन आई और मेरे पतिदेव ऊपर चढ़े और मैं ट्रेन में चढ़ने वाली थी कि अचानक कई स्त्रियां ट्रेन से नीचे उतरने लगीं और 2-3 मेरे पीछे खड़ी हो गईं. मेरे दोनों हाथों में सामान था. वे स्त्रियां मुझे पीछे से जल्दी चढ़ने के लिए धक्का दे रही थीं. जब मैं ऊपर चढ़ी तो देखा मेरे हाथ से 2 तोले का कंगन काट लिया गया था. तब तक टे्रन भी चलने लगी. हम कुछ नहीं कर सकते थे. वे सब स्त्रियां नदारद थीं.

शोभा आहुजा

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बात पुरानी है. मैं और मेरी पड़ोसिन दोनों ही जौब करते थे. एकदूसरे को जानते तो थे पर मिलनाजुलना ज्यादा नहीं था. लेकिन उन की नौकरानी हमारे घर रोज ही आ जाती थी, कभी 2 आलू मांगने, कभी ब्रैड के 4 स्लाइस, तो कभी 2 अंडे. मुझे बहुत खीझ होती थी लेकिन पड़ोस का मामला था सो मैं मना नहीं कर पाती थी. एक दिन सुबह जब वह नौकरानी हमारे घर कुछ मांगने आई तो पड़ोसिन ने उसे देख लिया और वहीं से उसे आवाज दे कर कहा कि तुम वहां क्या कर रही हो? मैं ने कहा कि यह तो रोज ही कुछ न कुछ मांगने यहां आती है. यह सुन कर वे बहुत शर्मिंदा हुईं और कहने लगीं कि मैं तो रोज ही इसे पैसे देती हूं सामान लाने के लिए. तब मेरी समझ में आया कि पैसे वह अपनी जेब में रख कर, सामान हमारे घर से ले जाती थी.

कीर्ति सक्सेना, बेंगलुरु (कर्नाटक)

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