मेरी सहेली को स्वैटर बुनने का बहुत शौक है. उस के हाथों में अकसर ऊन और सलाइयां रहती हैं. एक दिन हम दोनों लोकल बस में आगे की सीट पर बैठी थीं और वह आदत के अनुसार स्वैटर बुन रही थी व बातें भी कर रही थी. तभी राउंडअबाउट पर ज्योंही बस मुड़ी, जोर से झटका लगा और ऊन के गोले लुढ़कते हुए बस के दरवाजे से बाहर गिर गए. बुनने वाला स्वैटर हाथ में और ऊन के गोले सड़क पर घूम रहे थे. सवारियों का हंसहंस कर बुरा हाल था. ड्राइवर ने यह नजारा देखा तो मुसकराते हुए बस रोक दी और हम दोनों ने फटाफट जितना भी हो सका ऊन समेट लिया. उस दिन के बाद मेरी सहेली स्वैटर तो बुनती है मगर ध्यान से.

विमला गुगलानी, चंडीगढ़ (यू.टी.)

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मेरे पति एक दिन औफिस से लौटते समय अपने सहयोगी को साथ ले कर आए जो कुछ दिन पहले ही ट्रांसफर हो कर शहर में आए थे. उन से इन्होंने हम मांबेटी का परिचय इस तरह से दिया कि यह मेरी श्रीमती हैं और यह मेरी बिटिया है जो 11वीं कक्षा में पढ़ रही है. मैं सब के लिए रात के भोजन की तैयारी करने लगी. जब खाना तैयार हो गया तो बेटी मेरी मदद के लिए रसोई में आ गई और खाना परोसने लगी. इन्हें कुछ भी चाहिए होता तो मुझे आवाज लगाते-दीपा, चावल लाना, दीपा, रोटियां लाना, दीपा, स्वीट डिश लाना, मेरी बेटी तुरंत टेबल पर पहुंचा देती. वे सहयोगी जब भोजन कर चुके तो मैं ने भी उन के साथ बैठ कर बातचीत करनी शुरू कर दी व बिटिया वापस अपने कमरे में चली गई. जब वे चलने लगे तो मैं ने उन्हें नमस्कार किया तो वे मुझे नमस्कार कर जोरजोर से कहने लगे, ‘अच्छा दीपा, बायबाय, बाय दीपा.’ मेरे पति भौचक्के से उन का मुंह देखने लगे. जब वे चले गए तो मैं ने पति को समझाया कि तुम्हारे बारबार दीपादीपा करने व बेटी के सामान पहुंचाने से वे उसी का नाम दीपा समझे और जाते समय उसी को बाय कर रहे थे. फिर तो हम दोनों उन की इस हरकत पर खूब हंसे.  

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