‘‘जयहिंद, सर.’’
‘‘जयहिंद, आइए डीआईजी सिंह साहब, कैसे आना हुआ?’’ आईजी चमक सिंह ने कहा.
‘‘हैडक्वार्टर गया था, सर. आप के ट्रांसफर की खबर ले कर आया हूं.’’
‘‘अच्छा, कहां?’’
‘‘सर, आप को गुरदासपुर जिले का आईजी बना कर भेजा जा रहा है. पंजाब का बहुत बड़ा जिला है.’’
‘‘जानता हूं, जितना बड़ा जिला होगा जिम्मेदारियां भी उतनी ज्यादा होंगी. यह खुशी की बात है, लंबे अरसे बाद होम स्टेशन मिला है,’’ चमक सिंह ने खुशी जाहिर की.
‘‘काफी डिस्टर्ब इलाका है. वहां आप जैसे सख्त अफसर की जरूरत है.’’
‘‘हां, यह तो है. मेरी वहां से बहुत सी यादें भी जुड़ी हैं, कुछ बचपन की कुछ जवानी की. मैं चुपचाप सबकुछ देखना चाहता हूं. देखने का मौका भी मिलेगा.’’
ये भी पढ़ें- शक की निगाह : नीरा स्टूडैंट्स के आने से परेशान क्यों थी
‘‘आप जिले के मालिक होंगे, कुछ भी देखना, सर,’’ कह कर डीआईजी सिंह साहब चले गए परंतु चमक सिंह दूर बचपन की यादों में खो गया.
कलानौर, गुरदासपुर जिले का छोटा सा कसबा, उस का गांव. यह वही कलानौर है जहां मुगल बादशाह अकबर को बादशाह घोषित किया गया था. दादू याद आए जो उसे बहुत प्यार करते थे. चाचू की याद नहीं आई जिन की बुरी आदतों के कारण सब बरबाद हो गया था. सब बिक गया था, जमीन, मकान सबकुछ. हमारा नौकर गिरधारी याद आया जो रोज रात को सोते समय अपने मधुर स्वर में हीर गाया करता था. वहां का स्कूल आंखों के सामने आ गया जहां वह पहली से ले कर 12वीं तक पढ़ा था. वे उस के जीवन के सब से हसीन साल थे. बचपन की चपलता चरमसीमा पर थी. पढ़ाई और खेल के अलावा कुछ सूझता नहीं था. पढ़ाई कम खेल ज्यादा. वह अपनी पढ़ाई को ले कर संजीदा नहीं था. कभी होता भी न, यदि उस के जीवन में राजो न आती. राजो उस की क्लास 7वीं में आई. सुंदर और सजीली. गंभीर, हमेशा अपनी किताबों में खोई रहती. उस की किसी से दोस्ती न थी. उस के साथ डैस्क पर बैठती थी. उस ने अपना नाम राजो और गांव के नाम के अतिरिक्त और कुछ नहीं बताया था. वह उस की तरफ आकर्षित तब हुआ जब छमाही परीक्षा में 7वीं की सभी क्लासों में हर विषय में वह प्रथम आई. पढ़ाई में चाहे वह इतना ध्यान नहीं देता था तो भी उस का परिणाम इतना बुरा नहीं आता था. राजो के प्रथम आने पर उसे बुरा लगा था. मन को धक्का भी लगा. एक लड़की हो कर यदि वह प्रथम आ सकती है तो मैं क्यों नहीं. पहली बार मन में जलन हुई और संजीदगी भी आई. अगली परीक्षाओं में वह उस की बराबरी तो न कर पाया परंतु उस के नजदीक जरूर आ गया. राजो यदि प्रथम थी तो वह चौथे नंबर पर था. तब राजो शायद उस की तरफ आकर्षित हुई. एक ही डैस्क पर बैठने पर भी उन की आपस में ज्यादा बोलचाल नहीं होती थी. चौथे नंबर पर आने पर राजो ने कहा था, ‘चमक सिंह, अगली बार तुम मेरी बराबरी कर लोगे.’
‘अगर ऐसा हुआ तो तुम्हें खुशी होगी?’ उस ने भोलेपन से प्रश्न किया था.
‘हां, क्यों नहीं. मुझे हर वह लड़का या लड़की अच्छी लगती है जो पढ़ाई में होशियार हो. इधरउधर की बातों में अपना समय न बिताता हो,’ राजो ने उसी भोलेपन से उत्तर दिया था. फिर उन की दोस्ती गहरी होती चली गई. पढ़ाई में राजो ने कभी उसे आगे नहीं निकलने दिया. राजो 12वीं में पूरे जिले में प्रथम आई तो चमक सिंह दूसरे नंबर पर आया. उस ने 12वीं में भी उस से बाजी मार ली. बाद में वह छात्रवृत्ति ले कर अमृतसर डीएवी कालेज में आगे की पढ़ाई के लिए चला आया और राजो को सरकारी कालेज, गुरदासपुर ने छात्रवृत्ति दे दी. वह वहां पढ़ने लगी. वह अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गया. राजो से उस की दूरियां बढ़ती गईं. शायद वह भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई थी. मन ही मन राजो के लिए उस का आकर्षण बना रहा.
ये भी पढ़ें- जंतरमंतर : सिराज में अचानक बदलाव देखकर लोगों को क्या लगा -भाग 1
जब भी वह कलानौर आता, राजो के बारे में जानने की कोशिश करता. बीए पास कर के आईएएस परीक्षा दे कर कलानौर आया तो पता चला गांव के पास भागोवाल गांव में उस की शादी हो गई है. खातापीता परिवार है. अकेला बेटा है और काफी जमीनजायदाद वाले हैं.यह सब सुन कर जाने क्यों उस को अच्छा नहीं लगा और उस के मन के किसी कोने में जलन हुई. राजो के प्रति उस के दिल में आज भी आकर्षण बना है. शायद राजो का भी हो. उन दोनों ने कभी इस बारे में बात नहीं की. कभी मिलना ही नहीं हुआ. इतने सालों बाद जब होम पोस्ंिटग पर वह आया तो उस के मन में राजो की याद प्रबल हो उठी. उस के बारे में सबकुछ जान लेने की इच्छा को वह दबा नहीं पाया. उस ने भागोवाल थाने के एसएचओ से बात करवाने के लिए ऐक्सचेंज को कहा. थोड़ी देर बाद-
‘‘जयहिंद सर, मैं इंस्पैक्टर धर्म सिंह एसएचओ भागोवाल, सर.’’
‘‘मैं आईजी चमक सिंह बोल रहा हूं.’’
‘‘हुक्म करें, जनाब.’’
‘‘नोट करो, मैं भागोवाल की एक औरत, राजो, जिस का मायका कलानौर है, के बारे में जानना चाहता हूं. उस के पति का नाम शायद कर्म सिंह सेखों है. वे आजकल कैसे हैं और उन का क्या हालचाल है?’’
‘‘राजो, कर्म सिंह, सर,’’ इंस्पैक्टर धर्म सिंह थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘राजो, कर्म सिंह के पूरे परिवार को मैं जानता हूं, सर. राजो के साथ बहुत बुरा हुआ. उस के सासससुर तो पहले ही मर गए थे. कर्म सिंह भी एक रोज अपने बिस्तर पर मृत पाया गया. राजो पर अपने पति की हत्या का आरोप लगा. इस समय वह गुरदासपुर जेल में बंद है.’’
‘‘ओह, यह तो सचमुच बुरा हुआ. राजो को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. वह मेरे साथ 12वीं तक पढ़ी है. वह तो चींटी तक नहीं मार सकती, बंदा क्या मारेगी. कुछ न कुछ गलत हुआ है,’’ चमक सिंह ने कहा.
ये भी पढ़ें- जूनियर, सीनियर और सैंडविच : मोनिका ऑफिस जानें से पहले किस बात पर
‘‘मेरे लिए क्या हुक्म है, जनाब?’’
‘‘उन के जो खेत थे, उन का क्या हुआ?’’
‘‘सर, उन पर कलानौर के इंस्पैक्टर ईश्वर चंद के रिश्तेदारों ने कब्जा कर रखा है. काफी रसूख वाले लोग हैं वे.’’
‘‘हूं, राजो को जेल हुए कितना समय हुआ? उस के कोई बच्चा है?’’
‘‘अभी 1 महीना हुए जेल हुए. राजो के कोई बच्चा नहीं है, सर. लोअर कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा दी है. उस के घर पर ताला लगा हुआ है.’’
‘‘मेरी पोस्ंटग गुरदासपुर हुई है. अगले हफ्ते चार्ज ले लूंगा. आप इंस्पैक्टर ईश्वर चंद से बात करें. वह अपने रिश्तेदारों से बात करे और राजो के खेत छुड़वाए,’’ चमक सिंह ने कहा.
‘‘सर, मैं बात कर के आप को बताता हूं.’’
‘‘ठीक है,’’ कह कर उस ने लाइन काट दी.
2 दिन बाद भागोवाल के एसएचओ इंस्पैक्टर धर्म सिंह का फोन आया, ‘‘सर, मैं ने इंस्पैक्टर ईश्वर चंद से बात की थी. पहले तो वह अपने पैरों पर पानी न पड़ने दे रहा था, लेकिन जब मैं ने उस से बताया कि आप इस में पर्सनली इन्वौल्व हैं तो वह घबराया, बोला, अपने रिश्तेदारों से बात कर के बताऊंगा.’’
‘‘हूं, फिर?’’
‘‘सर, आज उस का फोन आया था. कहने लगा, उस के रिश्तेदार कब्जा छोड़ने को तैयार हैं पर इस साल उन्होंने फसल बो दी है. वे इस साल की फसल ले कर कब्जा छोड़ देंगे.’’
‘‘घर का राज है. पहले नाजायज कब्जा किया, अब फसल ले कर कब्जा छोड़ने की बात कर रहे हैं. कब्जा लिया ही क्यों था? किस ने ऐसा करने को कहा था? अगर मैं खुद वहां आ गया, उन सब को लेने के देने पड़ जाएंगे,’’ चमक सिंह की आवाज में गुस्सा था. फिर थोड़ी देर बाद कहा, ‘‘कब्जा तो उन को अभी छोड़ना होगा, छोड़ना पड़ेगा. आप ऐसा करें, उन से कहें कि बीज और लेबर की जो लागत लगी है, उन की कीमत ले लें और कब्जा छोड़ दें. फसल उन को नहीं मिलेगी. यह सुझाव उन को अपनी ओर से देना. कहना, आईजी साहब बहुत गुस्से में थे. खुद आने की बात कर रहे थे. अगर वे आ गए तो सब जेल में होंगे. फिर वह कुछ नहीं कर पाएगा. देखो, वे क्या कहते हैं. 2 दिन बाद मैं गुरदासपुर का चार्ज ले लूंगा. मैं जानता हूं, वे इस प्रैशर को झेल नहीं पाएंगे और मान जाएंगे,’’ चमक सिंह ने फोन काट दिया.
और सचमुच 2 दिन बाद मामला सुलझ गया. इंस्पैक्टर ईश्वर चंद और उस के रिश्तेदारों ने बीज और लेबर के पैसे लेना स्वीकार कर लिया. एक थानेदार से पैसे भिजवा कर सब लिखित में ले लिया गया. एक जिम्मेदार आदमी को खेतों और फसल की देखभाल का काम सौंप कर चमक सिंह ने संतोष की सांस ली. उसे तसल्ली हुई कि उस के बिना वह सारा मामला ठीक हो गया. अब चार्ज ले कर सब से पहले वह राजो से मिलने का प्रबंध करेगा. चार्ज ले कर उस ने गुरदासपुर जेल का इंस्पैक्शन करने का प्रोग्राम बनाया. उस के इंस्पैक्शन के कारण सारी जेल चमक रही थी. इंस्पैक्शन के बाद उस ने जेलर से राजो से मिलने की इच्छा जाहिर की. जेलर ने पूछा, ‘‘कोई बात, सर?’’
चमक सिंह ने कहा, ‘‘मैं उसे व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. मैं उस के साथ 12वीं तक पढ़ा हूं. वह अपने पति के खून के सिलसिले में यहां बंद है. मैं जानता हूं, कहीं न कहीं उस के साथ गलत हुआ है. इसी सिलसिले में मैं उस से मिलना चाहता हूं. तुरंत इस का प्रबंध किया जाए.’’ हुक्म की तामील हुई. राजो को जब उस के सामने लाया गया तो वह जेल के कपड़ों में थी. वह पहले की तरह सुंदर और सजीली थी, चाहे हालात ने उस के चेहरे पर प्रौढ़ता ला दी थी. वह दुबली भी हो गई थी. चमक ने सब को बाहर जाने के लिए कहा. जब एकांत हुआ तो उस ने राजो से कहा, ‘‘कहो, राजो, पहचाना?’’ राजो काफी देर तक उसे घूरती रही. फिर कहा, ‘‘आप, चमक सिंह.’’
‘‘तो आखिर तुम ने मुझे पहचान ही लिया. समय के लंबे अंतराल ने भी तुम्हारी याददाश्त को धूमिल नहीं होने दिया.’’ चमक सिंह ने महसूस किया कि अब वह उस के लिए तुम नहीं रहा, आप हो गया है. बेगानेपन का एहसास भी हुआ पर उस ने इस एहसास को जबरदस्ती दबा दिया.
‘‘मैं आप को भूली ही कब थी. आप के मित्र रौनक सिंह से आप के बारे सारी जानकारियां मिलती रहती थीं. कब आप पुलिस में गए और कब आप बड़े अफसर बन गए. बस, यह न जान पाई कि आप यहां आ गए हैं. अब शायद आप आईजी हैं.’’
यह सब सुन कर चमक सिंह को सुखद लगा कि उस की तरह ही इस के मन में भी उस के लिए जगह खाली है.
‘‘राजो, कैसी हो?’’
‘‘ठीक हूं, चमक, पर मैं ने अपने पति का खून नहीं किया. मैं उन का खून कर ही नहीं सकती. वे मेरे पति थे. हालात और गवाह सब मेरे विरोध में थे. मुझे फंसाया गया है. मैं बेकुसूर हूं.’’
‘‘मैं जानता हूं, तुम ऐसा कर ही नहीं सकतीं. किसी का खून तो बिलकुल नहीं. वह भी अपने पति का. इसीलिए मैं तुम से सारी बात जानने आया हूं. मुझे डिटेल में बताओ ताकि हाईकोर्ट में अपील की जा सके.’’
‘‘पर चमक, मेरे पास अपील के लिए कुछ भी नहीं है. मतलब, पैसे आदि. मेरे खेतों पर भी किसी ने कब्जा जमा रखा है, रौनक सिंह ने बताया था.’’
‘‘तुम उस की फिक्र मत करो. खेतों पर से कब्जा हटवा दिया गया है. एक जिम्मेदार आदमी को खेतों और फसल की देखभाल के लिए रख लिया है,’’ चमक सिंह ने कब्जे को ले कर सारी कहानी बता दी.
राजो ने एक लंबी सांस ली. चेहरे पर संतोष झलक उठा, ‘‘मैं आप का किस तरह धन्यवाद करूं.’’
‘‘अपनों से इस तरह की फौरमैलिटी नहीं की जाती. अच्छा, बताओ उस रोज क्या हुआ था?’’
‘‘कुछ नहीं, वे रात को शराब पी कर आए. पहले भी आते थे. बिना कुछ खाए, सो गए. सुबह मृत पाए गए. घर के खाने में जहर था, जाने कैसे यह साबित कर दिया गया. गवाह भी खड़े कर दिए गए और मुझे जेल हो गई. मैं कुछ नहीं कर पाई. मेरी बात किसी ने नहीं सुनी.’’
‘‘तुम चिंता मत करो. मैं आ गया हूं. तुम्हारी बातें सब सुनेंगे. अपील के लिए कल मैं एक नामी वकील को भेजूंगा. कुछ पेपर ले कर आएगा. सब साइन कर देना. सब ठीक हो जाएगा. वह कोर्ट में तुम्हें निर्दोष साबित कर देगा.’’
‘‘जी, धन्यवाद.’’
‘‘फिर वही बात.’’
‘‘अच्छा, नहीं कहती. अब जाती हूं.’’
राजो चुपचाप चली गई और वह अपने औफिस चला आया.दूसरे रोज नामी वकील द्वारा अपील की सारी कार्यवाही कर ली गई. चमक सिंह ने अपने प्रभाव से जल्दी तारीख भी दिलवा दी. राजो के वकील ने हाईकोर्ट में यह साबित कर दिया कि राजो के पति ने घर में खाना खाया ही नहीं. यह उन लोगों का काम था जो उस की जमीन पर कब्जा करना चाहते थे. गवाह भी उन्होंने ही खड़े किए थे. पुलिस को हिदायत दी जाए कि वह असली खूनी की खोज करे. चमक सिंह और वकील की मेहनत रंग लाई. हाईकोर्ट ने राजो को निर्दोष करार दे दिया. वह जेल से बाहर आ गई. बाहर आ कर वह चमक सिंह से मिलने आई. बड़े विनीत भाव से कहा, ‘‘सच में चमक, यदि आप और वकील साहब न होते तो मैं कभी निर्दोष साबित न हो पाती. आप का बहुतबहुत धन्यवाद. खर्चे के रूप में आप का कर्ज मुझ पर है. मैं बहुत जल्दी उसे उतार दूंगी. वैसे, मैं आप के एहसानों के कर्ज से कभी मुक्त नहीं हो पाऊंगी.’’
‘‘तुम कर्ज लौटाने की बात मत सोचो. अपनेआप को संभालो. कर्ज अपनेआप चुकता हो जाएगा. यह एक मित्र का तुम्हें तोहफा होगा.’’
‘‘मैं कभी आप का कर्ज नहीं चुका पाऊंगी, जानती हूं. संबंध बनाए रखना. कभी अपने परिवार के साथ मेरे यहां आओ, मुझे अच्छा लगेगा,’’ कहते हुए राजो की आंखें भर आईं. चमक सिंह ने हामी भरी कि ऐसा ही करेगा. राजो धीरेधीरे चल कर उस के औफिस से बाहर चली गई. वह उसे बाहर तक छोड़ने भी नहीं जा सका. अपनी कुरसी में धंस सा गया. उस ने महसूस किया कि उस की आंखें भी नम हैं.