संतों की भारत भूमि पर आजकल एक और ‘संत की लीला’ के चर्चे गरम हो रहे हैं. एक हफ्ते तक न्यायिक और राजसत्ता को अपने किलेनुमा आश्रम से किसी राजशाही सामंत की तरह टक्कर और चुनौती देने वाला कथित संत रामपाल आखिर धरा गया. अपने निजी सुरक्षा कर्मचारियों और अनुयायियों की फौज को आगे कर वह पुलिस और सुरक्षा जवानों को लगातार छकाने में कामयाब हो रहा था. 19 नवंबर को आखिर उसे राजसत्ता के जवानों के आगे पस्त होना ही पड़ा. जब यह प्रतिनिधि गिरफ्तारी के 2 रोज बाद हरियाणा के बरवाला से 3 किलोमीटर दूर चंडीगढ़टोहाना मार्ग पर बने विशाल महलनुमा आश्रम पर पहुंचा तो भी देखा कि बाहर सैकड़ों लोगों की भीड़ है. भीड़ में आश्रम के किसी रहस्य के उजागर होने जैसी उत्सुकता दिखाई दे रही थी. लोग खुशी और रोमांच से भरे हुए थे. भीड़ में ज्यादातर आसपास के गांवों के लोग थे जो आश्रम की गतिविधियों पर संदेह करते आ रहे थे और इस से परेशान थे.

रामपाल को ले कर तरहतरह की चर्चाएं हैं. रामपाल आखिर आश्रम में क्या करता था? उस ने अपनी कमांडो फोर्स क्यों बनाई? पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों के साथसाथ आश्रम के बाहर मौजूद हर व्यक्ति जानना चाहता है कि आश्रम के भीतर से क्या कुछ नया रहस्य बाहर निकल कर आ रहा है. सतलोक आश्रम के तिलिस्म से परदा उठ रहा है. आश्रम के प्रमुख रामपाल और उस के 800 से ज्यादा समर्थकों की गिरफ्तारी के बाद आश्रम में सर्च अभियान चलता रहा. नएनए खुलासे होते रहे. पहले आश्रम के भीतर क्या चल रहा था, अब तक किसी को पता न था. 

इस प्रतिनिधि ने देखा कि करीब 12 एकड़ में फैले और सामने 3 दीवारों से मजबूत किलेबंदी वाले विशाल सतलोक आश्रम के मुख्य दरवाजे पर खड़े अधिकारी भीतर से आ रहे सामान पर गहराई से निगाह रख रहे हैं और फिर उस सामान को टै्रक्टरों में भर कर पुलिस के संरक्षण में भेजा जा रहा था. आश्रम के अंदर केवल जांच टीम के सदस्य मौजूद थे. अन्य किसी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं थी. 3 दिन पहले पुलिस से पिट चुका मीडिया 30 फुट दूर से ही तमाशा देख रहा था.

संदेहास्पद आश्रम

4-5 दिन तक आश्रम समर्थकों और पुलिस के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद आश्रम से हजारों महिला, पुरुष, बच्चे, अनुयायियों को बाहर निकाला गया. इन में से 6 लोगों की मौत हो गई. मरने वालों में 4 महिलाएं थीं. आश्रम के भीतर से भारी मात्रा में हथियार, लाठियां, तेजाब की बोतलें, पैट्रोल बम, हजारों गुलेल, कमांडो ड्रैसें मिलने से सनसनी व्याप्त है. हजारों भक्तों को बाहर निकालने के 2 दिन बाद आश्रम में महिलाओं के अंत:वस्त्र, कंडोम, नशीली दवाएं, गर्भपात कराने की किट और एक बेहोश महिला के मिलने की खबर से आश्रम और भी संदेहास्पद लग रहा था. आश्रम से लैपटौप, कंप्यूटर, हार्डडिस्क, सीडी, डायरियां भी बरामद हुईं.

आश्रम के आगे की बाहरी दीवार टूटी हुई है. अंदर भक्तों के रहने की जगह नजर आ रही थी. टूटी दीवार के पास दर्जनों धूलभरी मोटरसाइकिलें खड़ी थीं. ये शायद आश्रम के कर्मचारियों की हैं. दावा किया जा रहा है कि आश्रम में सुरक्षा, सफाई, खानपान, हिसाबकिताब देखने वाले आदि सैकड़ों कर्मचारी थे. दीवार को पुलिस द्वारा जेसीबी मशीनें लगा कर तोड़ दिया गया क्योंकि इस दीवार समेत भीतर तहखाना और मंजिलें बनाने के लिए कोई अनुमति नहीं ली गई थी. आश्रम को हाईवोल्टेज का कनैक्शन भी दे दिया गया था. क्यों और कैसे का जवाब कोई देने को तैयार नहीं. लग रहा है, प्रशासन ने इस पूरे निर्माण पर पहले आंखें  मूंदे रखीं.

रामपाल के रोहतक जिले के करौंथा आश्रम में गोलीबारी से एक आदमी की मौत के बाद उस के खिलाफ 2006 में रोहतक के सदर थाना में हत्या का मामला दर्ज हुआ था. वहां रामपाल का पहला सब से बड़ा हिंसक संघर्ष हुआ था. वह कुछ समय जेल में भी रहा. फिर उसे जमानत मिल गई पर अदालत में पेशियों पर गैरहाजिर रहने लगा. इसी वजह से उस की जमानत रद्द कर दी गई. इस संघर्ष की वजह, उस का भक्तों को अपने प्रवचन में आर्यसमाजियों के विरुद्ध खूब विषवमन करना था. उस की लिखी किताबों में भी ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की खिल्ली उड़ाई गई है. इस से आर्य समाज के लोग भड़क गए थे और रामपाल को बाज आने की चेतावनी दी थी. रामपाल ने 2008 के बाद अदालत में पेशी पर जाना बंद कर दिया और उस के समर्थक वकीलों से उलझ पड़ते थे. रामपाल द्वारा जजों के खिलाफ पर्चे बांटे गए जिस में लिखा होता था,  ‘भ्रष्ट जज कुमार्ग पर’ है. ऐसा कर के उस ने न्यायपालिका व शासनप्रशासन से सीधा टकराव मोल ले लिया.

हिसार जिला अदालत के एडवोकेट सुंदरलाल सैनी कहते हैं, ‘‘अदालत की तारीख के आसपास वह जानबूझ कर आश्रम में सत्संग रखता था और अपने हजारों अनुयायियों को इकट्ठा करता था. उस के हजारों अनुयायी अदालत में हंगामा करते थे. वकीलों से बदसलूकी करते थे और जजों पर दबाव बनाते थे, धमकाते भी थे. वकीलों को उस के खिलाफ हड़ताल करनी पड़ी. पुलिस जब वारंट तामील कराने जाती तो समर्थकों द्वारा पुलिस को धमकाया जाता था. हम ने उस की ज्यादती की शिकायत चंडीगढ़ हाईकोर्ट में भेजी थी. फिर भी उस ने कोई परवा नहीं की. वह खुद को सरकार और न्यायपालिका से ऊपर समझने लगा था और अदालती आदेश की अवहेलना करता रहा. वह सरकार और अदालत को चुनौती देने लगा था.’’

2008 के बाद रामपाल अदालत में हाजिर नहीं हुआ. उस के खिलाफ 40 से अधिक बार वारंट जारी किए जा चुके थे फिर भी वह टालमटोल करता रहा. बीमारी का बहाना खोजता था. आखिर पंजाब ऐंड चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने इस पाखंडी की मंशा को समझा और गैरजमानती वारंट जारी किए. पुलिस बारबार वारंट तामील कराने में नाकाम रही तो पुलिस को कई बार फटकार सुननी पड़ी. ताजा वारंट जारी करने के बावजूद पुलिस उसे पकड़ने में नाकाम रही तो अंत में हाईकोर्ट को कहना पड़ा कि सरकार अगर रामपाल को पेश नहीं कर सकती तो मुख्यमंत्री को अदालत में पेश किया जाए. इस से आश्रम के बाहर तनाव फैल गया क्योंकि रामपाल के समर्थक कहते थे कि वे कानून और सरकार को नहीं मानते, वे तो कथित ईश्वर के दूत की मानते हैं जो रामपाल ही है.

सोचीसमझी रणनीति

अदालत की सख्ती के बाद सरकार को रामपाल की गिरफ्तारी के पक्के इंतजाम करने पड़े. क्योंकि हजारों समर्थक सतलोक आश्रम में डेरा डाले रामपाल की हिफाजत के लिए जान देने की बात कर रहे थे. प्रशासन द्वारा इस से निबटने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया लेकिन रामपाल को शायद पहले से अंदेशा था कि अब वह अदालती शिकंजे से बच नहीं पाएगा, इसीलिए उस ने 7 दिन का सत्संग का आयोजन रखा और अपने हजारों समर्थकों को आश्रम में इकट्ठा कर लिया. आश्रम की किलेबंदी कर दी गई. हथियार, लाठियां, पैट्रोल बम, गुलेल, ईंट, पत्थर आदि सामान पुलिस से मुकाबले के लिए तैयार कर लिए गए. रामपाल की ‘सेना’ आश्रम की छत व दीवारों पर जंग के लिए आ डटी. महिलाएं और बच्चों को भी आगे कर दिया गया. रामपाल आश्रम में छिपा रहा. पुलिस ने आश्रम के संचालकों से बारबार रामपाल को उसे सौंपने के लिए कहा. बारबार चेतावनी दी गई लेकिन रामपाल हठधर्मिता ओढे़ अंदर घुसा रहा. रामपाल ने लोगों को इकट्ठा करने के लिए आश्रम में 7 दिन का सत्संग रखा था और भक्तों को संदेश भेजे गए कि सभी गुरुमर्यादा को ध्यान में रख कर सत्संग में पहुंचें. वह भक्तों को मर्यादा में बांध कर रखता था. वह कहता था कि भक्तों को गुरुमर्यादा में रहना जरूरी है. वह अपनी हर बात मानने के लिए कहता था. हर बाबा की तरह रामपाल भी अपने भक्तों से सुख, शांति, समृद्धि के लिए पूजापाठ के एवज में 8 से 10 हजार रुपए लेता था.

पुलिस ने आत्मसमर्पण कराने के लिए रामपाल के भरोसेमंद 2 नेताओं के जरिए उस से बात भी की पर कोई फायदा नहीं हुआ. पुलिस ने रामपाल के बेटे को कब्जे में ले कर धमकाया तो उस ने अपने पिता से बात की, तब जा कर वह समर्पण को राजी हुआ.  रामपाल की गिरफ्तारी के बाद उस के पाखंड के किस्से खुलने शुरू हो गए. उस के खिलाफ हत्या के प्रयास, देशद्रोह सहित विभिन्न धाराओं में 2 दर्जन से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं. आश्रम की तलाशी में तरहतरह के सामान मिल रहे हैं. जांच का काम एक एसआईटी गठित कर उसे सौंपा गया है. जांच से पता चला है कि रामपाल के 3 में से 2 ट्रस्ट ही पंजीकृत हैं. एक, कबीर परमेश्वर भक्ति ट्रस्ट (हिसार) तथा दूसरा, बंदी छोड़ भक्ति मुक्ति ट्रस्ट (लुधियाना).

अकूत संपत्ति का मालिक

रामपाल की ज्यादातर संपत्तियां बंदी छोड़ भक्ति मुक्ति ट्रस्ट के अंतर्गत हैं. इस ट्रस्ट के नाम से उस ने मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के निकट उड़दन गांव में 50 एकड़ जमीन ली थी जिस पर आश्रम निर्माणाधीन है. साढे़ 4 एकड़ की जमीन पर बना करौंथा आश्रम, दौलतपुर में 2 एकड़ और सतलोक आश्रम क 12 एकड़ जमीन खरीदी गई कीं. जांच में अभी तक कबीर परमेश्वर भक्ति ट्रस्ट की संपत्ति नहीं आंकी गई है. अनुमान है कि रामपाल के पास 250 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है. पूर्व सरपंच धर्मपाल कहते हैं, ‘‘लोगों को इस बात का भी डर रहता था कि उन्हें कहीं अपनी जमीन, घर बेच कर न जाना पड़ जाए. लोकल गांव का कोई भी आदमी रामपाल का चेला नहीं है, सब बाहर के हैं. अंदर क्या चल रहा होता था, किसी को कुछ पता न रहता था.’’

निकटवर्ती बरवाला के बलबीर सिंह कहते हैं, ‘‘गांववासी खुश हैं. उन जज को शुक्रिया, जिन्होंने सही निर्णय लिया. सचाईर् के प्रति आम जनता में खुशी का माहौल है.’’ कुछ समझदार लोग चकित हैं कि कैसे हजारों, लाखों लोग इन बाबाओं के झांसे में फंस जाते हैं. इन के गीत गाने लगते हैं और इन के लिए जान देने को तैयार रहते हैं. आखिर किस तरह रामपाल ने भक्तों पर अपना प्रभाव जमा रखा था. 1995 में राज्य के सिंचाई विभाग में जेई की नौकरी छोड़ कर रामपाल ने अपने गांव घनाना में ही सत्संग की शुरुआत की थी. शुरू में यहां 10-12 परिवार उस के साथ जुड़े लेकिन गांव के दूसरे परिवार उस के विरुद्ध हो गए. इस के बाद रामपाल को वहां से जाना पड़ा.

हत्या के मुकदमे के बाद रामपाल धर्म की ओट में झूठे चमत्कारों के दिखावे और फर्जी किस्सों के जरिए भोलीभाली जनता की भीड़ जुटाने में लग गया. इस के लिए वह तरहतरह के टोटके आजमाने से नहीं चूका. गुफा के जरिए लोगों में अंधविश्वास फैलाने में कामयाब हो गया और उस के अनुयायियों की भीड़ बढ़ती गई. रामपाल एक ट्रौलीनुमा हाइड्रोलिक लिफ्ट के जरिए एक जगह से दूसरी जगह अनुयायियों के बीच प्रकट होता था. इसी अंधविश्वास के कारण लोग उसे चमत्कारी, भगवान का अवतार समझने लगे थे.

वह अपने सिंहासन के पास बने कमरे में हजारों शीशियां रखता था, जो तलाशी में बरामद हुई हैं. पूछताछ में उस के समर्थक बताते हैं कि वह भक्तों को जो पानी चमत्कारी तथा दुख निवारक बता कर चरणामृत के रूप में देता था वह असल में ट्यूबवैल का पानी होता था. इन शीशियों में वह यही पानी भर कर रखता था. रामपाल टैलीविजन पर धार्मिक चैनलों में भी अपने प्रवचनों के माध्यम से लोगों को आकर्षित करता था. टीवी के अलावा खुद की साहित्य प्रचार सामग्री के जरिए वह लोगों तक पैठ बनाता था. वह आश्रम में अपने भक्तों को अपनी फोटो वाले स्टिकर, तसवीर वाले लौकेट, अंगूठी बेचता था. आश्रम की दीवारों पर उस के छोटेबड़े पोस्टर, बोर्ड लगे हैं जिन में उसे जगद्गुरु, भगवान बताया गया है. अनेक लोग चैनल पर उस के प्रवचन सुन कर आश्रम से जुड़ गए. इस तरह उस के भक्तों की तादाद बढ़ती गई. रामपाल के विभिन्न राज्यों में 12 लाख से ज्यादा अनुयायी बताए जाते हैं. उस के एजेंट अनुयायियों को खराब किडनी, कैंसर से ठीक करने और मृत अवस्था में पहुंच चुके व्यक्ति को जीवित करने जैसे चमत्कारी किस्से सुनाते हैं. बलबीर सिंह के अनुसार, रामपाल खुद को कबीरपंथी बताता है लेकिन कबीर ने अपने साहित्य में जो मानवता की सीख दी थी, रामपाल के प्रवचनों में वे बातें कहीं नहीं कही जातीं. वह तो कबीर की आड़ में धर्म की दुकान चला रहा था.

और भी हैं ऐसे बाबा  

हरियाणा में यह पहला मामला नहीं है. इस से पहले भी बाबाओं और उन के विरोधियों तथा बाबाओं में ही आपस में गैंगवार चलती रही है. डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम सिंह और सिखों के बीच काफी समय से तनाव के हालात हैं. खूनी संघर्ष भी हो चुके हैं. राम रहीम पर कई मामले दर्ज हैं. उस के भक्तों की तादाद भी हजारों में है. डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम सिंह को अंबाला कोर्ट में पेश करने में पुलिस प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. उस के समर्थक भी बाबा को अदालत से  बड़ा मानते थे. एक  वक्त लोगों की नजरों में कथित भगवान का अवतार बन चुका आसाराम जब बलात्कारी का रूप निकला तो भक्तों की आंखें खुलीं. आसाराम को भी इंदौर आश्रम में राजस्थान और गुजरात पुलिस पकड़ने गई तो विरोध में उस के हजारों समर्थक सड़कों पर उतर आए थे. आखिर वह पकड़ा गया और उस के ईश्वरत्व का मुलम्मा उतर गया. उस के लाखों भक्तों की आंखों पर पड़ा श्रद्धा का परदा भी हट गया. आज 1 साल से अधिक समय बाद भी आसाराम जेल के सीखचों से बाहर नहीं आ पाया है.

कुछ समय पहले निर्मल बाबा के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले ने तूल पकड़ा था. वह चुटकुलेनुमा टोटके बता कर लोगों से करोड़ों रुपए ऐंठ चुका है और अब फिर टैलीविजन चैनलों पर बेशर्मी के साथ धर्मांधों को बेवकूफ बना रहा है. वह अपने दरबार में प्रवेश की 2 हजार रुपए फीस वसूलता है. संत की शक्ल में आज जो रामपाल गिरफ्तार किया गया है वह एक इंजीनियर था. एक मामूली से इंजीनियर का इस वक्त 250 करोड़ रुपए से ऊपर का टर्नओवर बताया जाता है. इसी तरह, स्वामी नित्यानंद की रंगीन लीलाओं से कौन परिचित नहीं है. शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती पर अपने मठ के मैनेजर की हत्या का मामला चला था और वह जेल में रहा था. योग और आयुर्वेद के नाम पर रामदेव का धार्मिक कारोबार अरबों में पहुंच गया है और सरकार की जेड प्लस सुरक्षा हासिल कर वह वीवीआईपी बाबा कहलाने का गौरव हासिल कर चुका है.

सरकारें अदालतों के भय से रामपाल, आसाराम जैसे बाबाओं को चाह कर भी नहीं बचा पा रही हैं. रामपाल की घटना के बाद पंजाबहरियाणा हाईकोर्ट को इन दोनों राज्य सरकारों को आदेश देना पड़ा कि वे अपने यहां के आश्रमों, डेरों का जायजा ले कर एक मुकम्मल रिपोर्ट पेश करें. उत्तर भारत में छोटेमोटे हजारों आश्रम, डेरे हैं और इन के अनुयायियों की संख्या लाखोंकरोड़ों में है. हर समय एक न एक बाबा लोगों के दिलोदिमाग पर छाया रहता है. फिर कुछ समय बाद उस की पोल खुलती है तो कोई दूसरा उठ खड़ा होता है. तब लोग उस की ओर भागने लगते हैं. यह सिलसिला चलता आया है. एक ही धर्र्म के बाबाओं के बीच आए दिन भिडं़त होती रहती है. हिंसा, मारपीट, मुकदमेबाजी आम बात है. ये बाबा अपने प्रवचनों में भी एकदूसरे की निंदा करते नहीं थकते. खुद को धर्म का असली अलंबरदार, बाकी को नकली साबित करने पर तुले देखे जा सकते हैं.

सवाल उठता है कि देश भर में इस तरह के आश्रम चलते कैसे हैं? असल में संत बन कर आश्रम को संचालित करना एक गजब की कला है. बाबा, संत, गुरु लोग तिकड़मों के उस्ताद होते हैं. हजारोंलाखों लोगों के बीच ढोंग, पाखंड का प्रचारप्रसार करना और झूठ को सच के रैपर में पैक कर के बेचना किसी कुशल प्रबंधक के ही वश की बात है. बाबा के साथ ऐसे कई लोग होते हैं जो तमाम तरह के प्रबंधन में कुशल होते हैं. उन में चतुराई, शातिरपन, कुटिलता, बेईमानी, झूठ, पैसा बटोरने की कला, माफियागीरी, गुंडागर्दी जैसे हर तरह के गुण होते हैं.

कैसे मिले निजात

बाबा लोग लोगों की अज्ञानता की वजह से पनपते हैं क्योंकि सुख, शांति, समृद्धि की कामना के लिए और दुख, अभाव, असुरक्षा से निजात पाने के लिए भोली जनता इन के पास जाने को मजबूर महसूस करती है. बाबाओं को नेताओं और शासन का पूरा संरक्षण मिलता है. ये आश्रम इन के वोटबैंक बन चुके हैं. यही वजह है कि रामपाल ने अपने कारोबार का विस्तार हरियाणा से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा नेपाल व भूटान तक फैला लिया था. यह हालत विश्वव्यापी है. अमेरिका, चीन, जापान जैसे देशों में भी चमत्कारी संत, छोटेछोटे अलगअलग कल्ट यानी पंथ के लोगों के मनमस्तिष्क पर छाए रहते हैं. यहां भी धार्मिक ढकोसलों की पोल खुलती रहती है. पादरी, मुल्ला, ग्रंथी खुद को कथित ईश्वर का एजेंट बता कर, लोगों को मुक्ति, सुखसमृद्धि का मार्ग बताते  अपना उल्लू सीधा करते आ रहे हैं. इन सब में एक समानता जरूर है और वह यह कि ये तिकड़मों में माहिर होते हैं. जनता को बेवकूफ बनाने की कला इन में कूटकूट कर भरी होती है. ये आश्रम, बाबा तब तक फलतेफूलते रहेंगे जब तक जनता अज्ञानता के कुएं से बाहर नहीं निकल आती.

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