सियासी बुके

तीसरा मोरचा एक परिकल्पना या अवधारणा भर बन इसलिए रह जाता है कि इस में कोई सर्वमान्य नेता नहीं होता. बीते दिनों दिल्ली में मुलायम सिंह यादव के घर नीतीश कुमार, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और एच डी देवगौड़ा सरीखे कल के दिग्गज इकट्ठा हो कर हल्ला मचाते रहे कि भाजपा और नरेंद्र मोदी देश के लिए खतरा हैं, इन्हें हटाओ वरना बहुत अहित होगा. ये सब के सब बूढ़े हो चले हैं और महज इत्तफाक से चल रहे हैं. कांग्रेस की पतली हालत देख सभी सकते में हैं कि जब देश की सब से बड़ी पार्टी औंधे मुंह लुढ़की पड़ी है तो हमारा क्या होगा. ठंडे तंदूर में रोटियां नहीं सिंकतीं, यह इन्हें भी मालूम है. बहरहाल, मुलायम खुश हैं, खुशफहमी यह है कि शायद उन्हें नेता मान लिया गया है. दल मिलाने की संभावनाएं जता रहे इन नेताओं के दिल में एकदूसरे के लिए कितना बैर है, यह बात किसी सुबूत की मुहताज नहीं है.

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गोआ टू दिल्ली

मनोहर पर्रिकर को नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में ले कर मौका दे दिया है कि अब वे दिल्ली संस्कृति को भी देखें व समझें. गोआ का सीएम रहते उन केकार्यकाल में कैसीनो, वाइन, बिकिनी आदि पर बवाल मचता रहा. अब रेसकोर्स, जनपथ, संसद वगैरह पर मनोहर शोध करेंगे. देशभर के लोग खासतौर से नवंबर-दिसंबर में गोआ जाते हैं. गोआ से दिल्ली कोई नहीं आता. लेकिन जब दिल्ली पर्यटन को बढ़ावा देने नरेंद्र मोदी ने मनोहर को बुला ही लिया है तो उन्हें साबित भी करना पड़ेगा कि वे पर्यटक नहीं रक्षा मंत्री हैं और सरहदों की जिम्मेदारी को बखूबी संभाल सकते हैं.

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नहीं दिया न्योता

दिल्ली की जामा मसजिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने अपने बेटे की दस्तारबंदी के मौके पर आयोजित होने वाले जलसे में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को तो न्योता दिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं बुलाया, इस खबर या बात के कोई माने नहीं होते अगर इस का प्रचारप्रसार नहीं किया जाता. न्यूज चैनल्स ने इस पर जोरशोर से बहस की पर दर्शकों ने इसे मुद्दा ही मानने से इनकार कर दिया. लिहाजा, खबर ने 3-4 घंटे में दम तोड़ दिया. शाही इमाम ने वही किया जो पुराने जमाने के मध्यवर्गीय परिवारों के मुखिया करते थे. जिस रिश्तेदार को अपमानित करना होता था उसे वे अपनी संतान की शादी में निमंत्रणपत्र नहीं भेजते थे. और शादी वाले दिन मंडप के नीचे दूसरे रिश्तेदारों को बताते थे कि देखो, फलां फूफाजी नहीं आए. इस तरह शादी की आड़ में किसी संपन्न रिश्तेदार को अपमानित कर जो हार्दिक सुख मिलता था, वह अब शाही इमाम को भी मिला. नरेंद्र मोदी की सेहत पर तो इस से कोई फर्क पड़ने से रहा.

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बेवफाई का इनाम

मुगल और ब्रिटिश काल में भी यही होता था कि लालच, असंतोष या स्वार्थ के चलते छोटीमोटी रियासतों के सिपहसालार अपने मुखिया से नाराज हो कर सीधे शासक के दरबार में जा कर गुहार लगाते थे, ‘हुजूर की जय हो, अब मैं आ गया हूं. फलां रियासत के दुर्दिन आप ही खत्म कर सकते हैं.’ आम बोलचाल की भाषा में इसे गद्दारी कहा जाता था. लोकतंत्र आया तो परिभाषाएं, मापदंड और पैमाने बदल गए. रामकृपाल यादव अब मंत्री हैं जिन के ज्ञानचक्षु वक्त रहते ही खुल गए थे कि अगर लालू यादव से बंधे रहे तो भांजेभांजियों की झिड़कियों के सिवा कुछ नहीं मिलना. नरेंद्र मोदी बिहार को ले कर परेशान से हैं और रहेंगे भी लेकिन हालफिलहाल तो यह ‘भरत मिलाप’ उन्हें सुकून देने वाला है.

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