मन करता है दूर कहीं चली जाऊं
यहां से दूर, कहीं बहुत दूर
इतनी दूर जहां न छू पाए दुखदर्द
आघात-प्रतिघात
यहां तो है बस दर्द ही दर्द
घुटन, पीड़ा और संत्रास
कितनी ही कोशिश कर लो
हारना ही है अपनों से
तो कभी अपने आप से
हारना अच्छा नहीं लगता
कामना है जीतने की
तभी तो जाना है दूर कहीं
जहां न कोई जान पाए
न पहचान पाए
न पहुंचा पाए ठेस
न दुखा पाए मन.
– सुधा शुक्ला
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