एडवांस टैक्नोलौजी के युग में लगभग सभी काम औनलाइन द्वारा होने लगे हैं. खासतौर पर नैटबैंकिंग का उपयोग काफी तेजी से बढ़ा है. आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल 25 प्रतिशत लोग नैटबैंकिंग से जुड़ रहे हैं. नैटबैंकिंग जितनी आसान और सुलभ है उतनी ही खतरनाक भी. इस के इस्तेमाल में बहुत सावधानी और जागरूकता की आवश्यकता है.
नैटबैंकिंग के इस्तेमाल में की गई जरा सी भी लापरवाही आप को कंगाल बना सकती है. वर्तमान समय में साइबर अपराधियों द्वारा बैंक में सेंध लगाने के काफी मामले सामने आ रहे हैं. साइबर अपराधियों द्वारा 2011 में 40 करोड़ रुपए व 2012 में 52 करोड़ रुपए नैटबैंकिंग द्वारा चुराए गए थे. पूरे विश्व में साइबर अपराधियों द्वारा प्रतिवर्ष 1 ट्रिलियन (1 के बाद 18 शून्य) डौलर चुराए जाते हैं. पिछले साल भोपाल साइबर क्राइम ब्रांच में नैटबैंकिंग से संबंधित 50 से अधिक मामले दर्ज किए गए. साइबर जालसाजों ने नैटबैंकिंग में सेंध लगा कर दूसरों के खातों से लाखों रुपए अपने खाते में ट्रांसफर कर लिए थे. इस मामले में भोपाल के साइबर सैल के आईजी, अनिल गुप्ता का कहना है, ‘‘जिस तरह से नैटबैंकिंग द्वारा रुपए चोरी किए जाने के मामले सामने आ रहे हैं, उस से यह लगता है कि लोग नैटबैंकिंग को ले कर सावधान व जागरूक नहीं हैं.’’
आइए देखते हैं, साइबर अपराधी किसकिस तरह से नैटबैंकिंग में सेंध लगाता है :
ईमेल : आगरा साइबर पुलिस ने ईमेल आईडी के द्वारा बैंक खाते में सेंध लगाने वाले एक गैंग को गिरफ्तार किया. यह गैंग पूरे देश के कई बैंकों में सेंध लगा कर मात्र 1 साल में 400 करोड़ रुपए चोरी कर चुका था. यह गैंग मोबाइल सिम को ब्लौक कर खाते से रुपए गायब कर देता था. गैंग के लोग ईमेल आईडी पर बैंक अधिकारी बन कर अकाउंट अपडेट करने का मैसेज लोगों को भेजते थे. लोग उन के झांसे में आ जाते थे और ईमेल पढ़ कर अपने खाते को अपडेट करने के चक्कर में अपनी सारी गोपनीय जानकारी भेज देते थे. जैसे ही इन्हें गोपनीय जानकारी मिल जाती थी, ये सब से पहले सिम ब्लौक करवा देते थे ताकि बैंक से रुपए निकलने पर एसएमएस द्वारा इस की जानकारी खाताधारक को न पहुंचे.
फिशिंग वेब : मुंबई पुलिस ने गोवंडी में रहने वाले अब्दुल रहीम उर्फ अब्दुल मजीद, मूसा गौस शेख को पकड़ा था जो बैंकों के फिश्ंिग वैब बना कर लोगों के बैंक खातों में सेंध लगाता था. इस का एक साथी एडवर्ड एंडूज, नाइजीरिया में बैठ कर भारतीय लोगों के बैंक खातों में सेंध लगाता था.
एडवर्ड अकाउंट अपडेट करने के बहाने लोगों से संपर्क करता था. इसे अंजाम देने के लिए एडवर्ड का साथ मुंबई के 2 लोग देते थे. उन की बातों में आ कर जो लोग बैंक से संबंधित गोपनीय जानकारी उन्हें भेज देते थे, उन के खाते से वे रुपए उड़ा लेते थे. इस गैंग ने कुछ ही दिनों में देश के हजारों लोगों को करोड़ों रुपए की चपत लगाई थी.
पायरेटेड सौफ्टवेयर का खतरा
सौफ्टवेयर : पायरेटेड सौफ्टवेयर का इस्तेमाल करने वालों के लिए सुरक्षा को ले कर हमेशा जोखिम बना रहता है. साइबर अपराधी पायरेटेड सौफ्टवेयर में ऐसे वायरस भेज देते हैं जो उपयोगकर्ता के कंप्यूटर में से सारे डाटा जमा कर लेते हैं. विन-32, बांकेस, जूस, नका आदि नौर्मल बैंकिंग मालवेयर्स हैं जिन्हें ट्रोजन्स कहा जाता है. बैंक खातों की चोरी के लिए इन का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे ही पायरेटेड सौफ्टवेयर सिस्टम में लोड किया जाता है, ट्रोजन्स भी लोड हो जाता है. ट्रोजन्स प्रोग्राम के जरिए दूर बैठा साइबर अपराधी सारी जानकारी कैप्चर करना शुरू कर देता है, जिस में यूजर्स आईडी, पासवर्ड, पासबुक विवरण आदि शामिल हैं.
डैस्कटौप कुकीज : साइबर कैफे में बैठ कर किसी सिस्टम से इंटरनैट ट्रांजैक्शन करना काफी जोखिमभरा होता है. इस बात की गारंटी नहीं है कि साइबर कैफे में अधिकृत सौफ्टवेयर का उपयोग किया गया हो. पायरेटेड सौफ्टवेयर के वायरस से स्मार्ट हैकर डैस्कटौप कुकीज के द्वारा बैंक खातों की जानकारी ले लेते हैं.
लौटरी का प्रलोभन : साइबर जालसाजों द्वारा करोड़ों डौलर की लौटरी लगने के झूठे मैसेज भेजे जाते हैं. करोड़ों रुपए की लौटरी की सूचना मिलते ही जब कोई संपर्क करता है, अपराधी उस से बतौर सिक्योरिटी डिपौजिट, रजिस्टे्रशन, ट्रांसफर चार्ज, लीगल डाक्यूमैंट आदि के नाम पर बड़ी राशि हथिया लेते हैं.
टैलीमार्केटिंग : साइबर ठग टैलीमार्केटिंग या औनलाइन शौप के प्रतिनिधि बन कर डैबिड या क्रैडिट कार्ड धारक को विशेष छूट देने का प्रलोभन दे कर अपनी बातों में फंसा कर उन से पिन नंबर हासिल कर लेते हैं. इस के बाद वे इस का इस्तेमाल कर खुद बड़ीबड़ी खरीदारी कर लेते हैं. कार्डधारक को जब इस बारे में पता चलता है, वह ठगा सा रह जाता है.
सवाल यह आता है कि नैटबैंकिंग का इस्तेमाल करें या न करें. आज की व्यस्तता और समय की कमी की वजह से नैटबैंकिंग द्वारा लेनदेन एक जरूरत बन गई है. यदि आप धोखाधड़ी के शिकार हो गए हैं तो तत्काल पुलिस व बैंक को इस की शिकायत करें. आईडी ऐड्रैस की मदद से अपराधी के बारे में पता लगाया जा सकता है, लेकिन इस की भी सीमा होती है. एक तो 21 दिनों के बाद ऐड्रैस खोजना मुश्किल होता है. दूसरी बात, यदि भारत के बाहर से बैंक खाते में सेंध लगाई गई है तो इस तकनीक से अपराधी को पकड़ना मुश्किल है. तीसरी बात, जितनी बार लौगऔन और लौगऔफ होता है, अपराधी पुलिस की पकड़ से दूर होता जाता है. इसलिए नैटबैंकिंग का इस्तेमाल करते वक्त हमेशा सावधान रहने की जरूरत है.