एकएक सांस का 
हिसाब मांगती है जिंदगी
कहां से शुरू, कहां खत्म 
कितनी कहानी अभी बाकी है
 
कहां रुकी, कहां थमी
सांस लेने को जिंदगी
कहकहे कहां गए
क्या बुलबुले से फूट गए
 
लुप्त हुई मुसकान कहां गई
कहां जाएगी ये जिंदगी
समझने को बेकरार मेरा शरीर
किसी उत्तर के इंतजार में आज भी .
शशि श्रीवास्तव
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...