सनी देओल पर सिख किरदार फबते हैं. इस फिल्म में सनी देओल ने सिख किरदार निभाया है, जो भ्रष्ट समाज में बदलाव लाने की कोशिश करता है. फिल्म को देख कर लगा, काश देश के ‘सिंह साहब’ भी ग्रेट होते और भ्रष्टाचारियों को कुछ सबक सिखाते.
निर्देशक अनिल शर्मा ने अपनी इस फिल्म में कोई नई बात नहीं कही है. उस ने एक ईमानदार कलैक्टर के जरिए देश में बदलाव लाने की कोशिश की है. इस तरह का बदलाव लाने की कोशिश प्रकाश झा ‘सत्याग्रह’ में कर चुके हैं. लेकिन प्रकाश झा के बदलाव और अनिल शर्मा के बदलाव में जमीनआसमान का अंतर है. अनिल शर्मा यह बदलाव ऐक्शन के बल पर लाए हैं. सनी देओल की फिल्म में जब तक जबरदस्त ऐक्शन न हो, फिल्म नहीं चलती.
फिल्म को मौजूदा हालात को ध्यान में रख कर बनाया गया है. इस में आम आदमी, जो भ्रष्टाचार से त्रस्त है, की बात कही गई है.
फिल्म की कहानी एक छोटे से कसबे में ट्रांसफर हो कर आए कलैक्टर सरनजीत तलवार (सनी देओल) की है, जिस की नईनई शादी मिनी (उर्वशी रौतेला) से हुई है. उस की एक जवान बहन भी है. कसबे में एक भ्रष्ट नेता भूदेव (प्रकाश राज) का गुंडाराज है. भूदेव सरनजीत को एक झूठे केस में फंसा कर उम्रकैद की सजा करा देता है. मिनी की जान भी चली जाती है. अच्छे चालचलन के कारण सरनजीत सिंह की रिहाई जल्दी हो जाती है. जेल से छूटने के बाद सरदार बन कर वह एक खबरिया चैनल की रिपोर्टर के साथ मिल कर एक स्टिंग औपरेशन कर भूदेव को जेल भिजवा देता है. लेकिन भूदेव के गुंडे सरनजीत की बहन का किडनैप कर लेते हैं. सरनजीत सिंह जनसमर्थन के साथ भूदेव और उस के गुंडों का सफाया कर डालता है.
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