ईमानदारी का सट्टा

दिक्कत की बात यह है कि देश के आम लोगों, जिन्हें चुनाव के वक्त पुचकार कर मतदाता कहा जाने लगता है, ने मान लिया है कि राजनीति और ईमानदारी पेट और पीठ की तरह हैं. यानी पूरी ईमानदारी से राजनीति नहीं की जा सकती. पर ईमानदार इस में रहें तो बेईमानी पर अंकुश लगा रहता है.

‘आप’ के रास्ते में आम आदमी की यही उलझन आड़े आ रही है. सटोरियों ने नई दिल्ली विधानसभा सीट पर शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल का लगभग बराबरी का भाव दे रखा है. भाजपा उम्मीदवार विजेंद्र गुप्ता पर तो इस बात को ले कर दांव लगाया जा रहा है कि उन की जमानत बचेगी या नहीं. शीला दीक्षित अपना दामन यथासंभव पाकसाफ रखने में कामयाब रही हैं और सटोरियों की निगाह में उन का भाव अभी कम है यानी संभावनाएं बनी हुई हैं.

 

माया के 3 बंगले

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को याद होगा कि संघर्ष के दिनों में कभी कांशीराम उन के छोटे से घर में रहते हुए बड़ेबड़े कामों को अंजाम देते थे और संतुष्ट भी थे. लेकिन मायावती को दिल्ली के पौश और वीआईपी इलाके लुटियंस जोन में केंद्र सरकार ने 1 या 2 नहीं बल्कि 3-3 बंगले दे रखे हैं. एकदूसरे से सटे इन बंगलों को तुड़वा कर माया ने एक बंगला बनवा लिया है. यह तोड़फोड़ कायदे, कानूनों और नियमों के अनुरूप है.

घरों की जो परिभाषा चलन में है उस के लिहाज से मायावती अकेली हैं और इस रियासतनुमा बंगले में अकेली ही रहती हैं पर यह रियासत इतनी बड़ी भी नहीं है कि इस में उन का विशाल दलित समुदायनुमा परिवार रह सके. देखा जाए तो यह कीमती जमीनों और सरकारी आवासों का दुरुपयोग ही है, जो हो रहा है. कोई क्या कर सकता है?

 

नटगीरी

हवा में झूलते तार पर जब हाथ में डंडा लिए नट चलता है तो देखने वालों की सांसें थम जाती हैं और वे उस की संतुलन क्षमता के कायल हो जाते हैं. यही हालत इन दिनों भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की है जो नरेंद्र मोदी की तारीफ करते थकते नहीं और उन्हें हीरो बनाने के लिए खुद हाशिये पर जीवनयापन कर रहे हैं.

जयराम रमेश, दिग्विजय सिंह या नीतीश कुमार के कहने भर से भाजपा व्यक्तिवादी पार्टी नहीं हो जाती लेकिन राजनाथ सिंह के बयानों से लगता है कि व्यक्तिवादी हो गई है. पर दिक्कत यह है कि लालकृष्ण आडवाणी इस के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं और अनदेखी तो दूर, अपमानित हो कर भी वे पार्टी नहीं छोड़ रहे. शुक्र है, किसी को तो पार्टी की चिंता है.

 

कांग्रेसी संस्कार

8 नवंबर को छठ पूजन पर पश्चिम बंगाल के सूचना व संस्कृति विभाग द्वारा जारी एक इश्तिहार कुछ बड़े हिंदीभाषी अखबारों में भी छपा, जो शोध और चर्चा का विषय रहा. इस में ममता बनर्जी की जगह नाम ममता बंधोपाध्याय छपा था. जानकार ही समझ और समझा पाए कि बंगाली समुदाय में बंधोपाध्याय का मतलब बनर्जी, चटोपाध्याय का चटर्जी और मुखोपाध्याय का मुखर्जी होता है.

आदमियों का समुद्र कहे जाने वाले कोलकाता में भी उत्तर भारतीय खासतौर से उत्तर प्रदेश, बिहार के लोग इफरात से हैं, जिन्हें वोट समझने में ममता ने चूक नहीं की और छठ पूजा की बधाई साहित्यिक भाषा में दे डाली. छठ का व्यवसायीकरण हो गया है और ममता ने भी लोकसभा चुनावों की गोटियां बिछानी शुरू कर दी हैं, जिसे उन का हक ही कहा जाएगा.      

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...