बात कुछ साल पहले की है. मेरा बेटा साढ़े 4 साल का था. पड़ोस में रहने वाली आंटीजी के यहां नाती हुआ था और वे खुशी से अपने नाती की एकएक ऐक्टिविटी हमें बतातीं. एक बार वे मुझे बताने आईं, ‘देखो, शायद मेरे नाती की आंखें आई हैं,’ मैं ने उन्हें बोला, ‘आंटीजी, आप तुरंत उसे डाक्टर के यहां ले जाओ.’
थोड़ी देर बाद आंटीजी और उन की बहू डाक्टर के यहां से वापस आईं तो मेरा बेटा मुझ से बोला, ‘चलो न मम्मी, हम लोग छोटे गोलू को देखने चलते हैं क्योंकि आज उसे आंखें आई हैं, मैं भी देखूंगा नईनई आंखें कैसी होती हैं?’ उस की बात का अर्थ समझ कर हम लोग हंसने लगे क्योंकि उसे लग रहा था छोटे गोलू के चेहरे पर पहली बार नई आंखें उभरी हैं.
अल्पिता घोंगे, भोपाल (म.प्र.)
मेरे देवर का 5 वर्षीय बेटा शुभांक सुबह स्कूल जाने के लिए उठाने पर रोज नए नखरे करता है. उस की इस आदत से हम सभी बहुत परेशान रहते हैं. एक दिन जब उस की मम्मी ने उसे स्कूल जाने के लिए उठाया तो वह कहने लगा, ‘मैं आज स्कूल नहीं जाऊंगा,’ इस पर उस की मम्मी ने झल्ला कर उस से कहा, ‘आज ऐसी कौन सी खास बात है जो तुम स्कूल नहीं जाओगे,’ वह चुपचाप उठ कर स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया.अगले दिन सुबह जब उस की मम्मी ने उसे उठाया तो वह बोला, ‘आज ऐसी कौन सी खास बात है जो मैं स्कूल जाऊं?’ उस के इस अनोखे सवाल का हमारे पास कोई जवाब नहीं था.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन