यह एक ऐक्शन कौमेडी फिल्म है जिस में शाहिद कपूर रणबीर कपूर के पोस्टर को फाड़ कर बाहर निकला है. ‘घायल’ और ‘दामिनी’ जैसी गंभीर फिल्में बनाने वाले निर्देशक राजकुमार संतोषी ने इस बार कौमेडी में अपना हाथ आजमाया है. वैसे, इस से पहले वे ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ जैसी कौमेडी फिल्म बना चुके हैं. इस फिल्म में वे भूल गए हैं कि उन्हें ऐक्शन फिल्म बनानी है या कौमेडी. दर्शकों को शाहिद कपूर से बहुत उम्मीदें थीं. काफी अरसे के बाद वे परदे पर नजर आए परंतु इस फिल्म में उन्होंने अपने चाहने वालों को निराश ही किया है.

फिल्म की कहानी है एक नौजवान विश्वास (शाहिद कपूर) की. जब वह पैदा हुआ था तभी उस का पिता, एक भ्रष्ट इंस्पैक्टर, अपने परिवार को छोड़ कर भाग गया था. मां सावित्री (पद्मिनी कोल्हापुरे) ने उसे पालापोसा, बड़ा किया. मां चाहती है कि उस का बेटा पुलिस में भरती हो कर ईमानदार पुलिस इंस्पैक्टर बने परंतु विश्वास पर तो हीरो बनने का भूत सवार है.

पुलिस में इंटरव्यू देने का बहाना कर वह मुंबई पहुंच जाता है. वह फिल्मों में कहानियां लिखने वाले एक स्ट्रगलर जोगी (संजय मिश्रा) से मिलता है. विश्वास को फिल्मों में छोटेमोटे रोल मिलने लगते हैं. तभी उस की जिंदगी में काजल (इलियाना डिकू्रज) उस वक्त आती है जब विश्वास फोटोशूट कराने के लिए नकली पुलिस की वरदी में जा रहा होता है. काजल उसे असली पुलिस इंस्पैक्टर समझ लेती है और गुंडों से भिड़ जाने को ललकारती है.

यहीं से विश्वास की जिंदगी में तूफान आ जाता है. उधर उस की मां मुंबई पहुंच जाती है तो गैंग वाले उस की मां को कैद कर लेते हैं. विश्वास अपनी मां को गैंग वालों के हाथों से छुड़वा लेता है. तभी उसे पता चलता है कि गैंग का डौन नैपोलियन (मुकेश तिवारी) उस का पिता है जो बचपन में ही परिवार को छोड़ कर भाग गया था और अब वह पूरी मुंबई पर रासायनिक ब्लास्ट कर उसे खत्म करना चाह रहा है.

वह अकेले दम पर पूरे गैंग को पकड़वाता है और अपनी मां के आगे कसम खाता है कि मैं अब कभी पोस्टर हीरो नहीं बनूंगा, सच्चा हीरो बन कर देश की हिफाजत करूंगा. फिल्म की यह कहानी 70-80 के दशक जैसी है. मध्यांतर से पहले इस कहानी में कौमेडी है तो मध्यांतर के बाद फुल ऐक्शन. फिल्म का पूर्वार्ध भाग धीमा है और बोर करता है. उत्तरार्ध वाले हिस्से में शाहिद कपूर ने 2 डांस किए हैं. एक गाने पर डांस करते वक्त शाहिद कपूर ने कई बेहतरीन डांसरों को भी पीछे छोड़ दिया है.

अभिनय की दृष्टि से शाहिद कपूर ने कहींकहीं फनी ऐक्ंिटग की है. उस ने कई भावुक दृश्यों में अपना टेलैंट भी दिखाया है. अतिथि की भूमिका में सलमान खान फिल्म का आकर्षण है. नरगिस फाखरी का आइटम सौंग दर्शकों को अच्छा लगेगा. संजय मिश्रा की कौमेडी भी अच्छी लगेगी. इलियाना डिकू्रज मिसफिट है.

फिल्म का निर्देशन औसत दरजे का है. गीतसंगीत कुछ अच्छा है. एक गीत ‘मैं रंग शरबतों का तू मीठे घाट का पानी…’ अच्छा बन पड़ा है. फिल्म का छायांकन अच्छा है.

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...