यह फिल्म 2010 में आई अजय देवगन और इमरान हाशमी की फिल्म ‘वंस अपोन ए टाइम इन मुंबई’ की सीक्वल है. पिछली फिल्म के मुकाबले इस फिल्म की तुलना करें तो निराशा ही हाथ लगेगी. गैंगस्टरों पर बनी फिल्मों में अकसर हिंसा का डोज ज्यादा होता है, लेकिन इस फिल्म में रोमांस है. शायद इसीलिए दर्शकों को ज्यादा मजा नहीं आ पाता.
निर्देशक मिलन लूथरिया ने अपनी इस फिल्म में संवाद अच्छे लिखवाए हैं. उस ने पूरा ध्यान अक्षय कुमार से बुलवाए गए संवादों पर लगाया है. लगता है इस चक्कर में वह कहानी पर ध्यान देना भूल गया है.
सुलतान (अजय देवगन) की मौत के बाद शोएब (अक्षय कुमार) मुंबई पर राज करना चाहता है. उस के अवैध धंधे की जडे़ें खाड़ी देशों तक फैली हैं. असलम (इमरान खान) उस का दायां हाथ है. शोएब ने बचपन से उसे पाला है. एक दिन असलम की जिंदगी में यास्मीन (सोनाक्षी सिन्हा) आती है, जो हीरोइन बनने आई है. शोएब उस पर लट्टू हो जाता है और उसे हीरोइन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. लेकिन जब उसे असलम और यास्मीन के इश्क की खबर मिलती है तो वह असलम का दुश्मन बन बैठता है. दोनों के बीच लड़ाई छिड़ जाती है. उधर पुलिस शोएब को पकड़ने के लिए घेराबंदी कर चुकी है. असलम को शोएब की गोली लगती है तो शोएब भी पुलिस की गोलियों से जख्मी हो जाता है. यास्मीन शोएब को खूब भलाबुरा कहती है और कहती है कि उस ने कभी उस से प्यार नहीं किया. यहीं फिल्म का द एंड हो जाता है.
फिल्म की यह कहानी न तो पूरी तरह प्रेम त्रिकोणीय बन पड़ी है, न ही खूनखराबे वाली.फिल्म का निर्देशन साधारण है. संगीत कुछ अच्छा है. एक गीत ‘तैयब वली प्यार का दुश्मन…’ फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ से लिया गया है. छायांकन अच्छा है.