साल 2013. साधु सुंतों और महात्माओं के देश भारत के उत्तर प्रदेश का जिला शाहजहांपुर, जो क्रांतिकारी शहीदों की जन्मभूमि, खूबसूरत कालीनों की निर्माणस्थली और चीनी मिलों की मिठास के लिए जाना जाता है, आजकल कथावाचक आसाराम द्वारा तथाकथित यौन उत्पीड़न की शिकार हुई उस नाबालिग लड़की के लिए चर्चा में है जिस के पिता आसाराम को अपना ‘भगवान’ मानते थे. शहर में चारों ओर आसाराम को ले कर हंगामा बरपा हुआ है. एक तरफ आसाराम के समर्थक शहर में प्रदर्शन कर रहे हैं तो दूसरी ओर शहर के आम लोग आसाराम का पुतला फूंक कर अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं. 

पीडि़त परिवार को आसाराम के समर्थकों द्वारा धमकियां मिल रही हैं. युवती के घर को पुलिस सुरक्षा मुहैया करवा दी गई है. घर के मुख्य गेट पर 2 कौंस्टेबलों को और घर के भीतर 1 दारोगा व 2 महिला कौंस्टेबलों को तैनात किया गया है जो चौबीसों घंटे उन के घर पर मौजूद रहते हैं. मीडियाकर्मियों का उन के घर आनाजाना लगा हुआ है. कुछ दिन पहले एक महिला ने पत्रकार के भेष में कई दिनों तक उन के घर में प्रवेश करने का प्रयास किया लेकिन पुलिस ने उसे भीतर नहीं जाने दिया. इसी कारण मीडियाकर्मियों को काफी छानबीन के बाद ही घर के भीतर जाने की इजाजत दी जा रही थी. जब हम पीडि़ता के घर उस के पिता से मिलने पहुंचे तो हमें मुख्य गेट पर बैठे 2 कौंस्टेबलों ने रोक लिया. उन में से 1 क ौंस्टेबल हमारा प्रैस कार्ड ले कर भीतर मौजूद दारोगा के पास गया. कुछ समय बाद आ कर उस ने हमें इंतजार करने को कहा.

सुबह के 11 बज चुके थे और धूप तेज होती जा रही थी. हम घर के बाहर बैठे रहे. 20 मिनट के बाद भीतर से दारोगा साहब ने हमें ऊपर बैठाने का संदेश कौंस्टेबल के जरिए भेजा. हम घर की पहली मंजिल पर पहुंचे. दारोगा ने बताया कि किशोरी के पिता पूजापाठ कर रहे हैं, कुछ समय लगेगा. हम बरामदे में पड़े नए डिजाइन की लकड़ी की कुरसी पर बैठ गए.

पिता की नादानी

मुख्य सड़क पर स्थित पीडि़त किशोरी के घर का यह वह हिस्सा था जिस में पीडि़ता के पिता ने आसाराम व उन के साधकों के लिए हर तरह की सुखसुविधाओं से भरपूर कमरे बनवाए थे. एसी लगवा कर और बढि़या रंगरोगन करवा कर एक कमरे में एक बैड और अच्छा फर्नीचर डलवाया था. इसी कमरे में अकसर सत्संग किया जाता था और साधक आ कर ठहरते थे.

ग्राउंड फ्लोर पर पीडि़ता के पिता व 21 वर्षीय भाई ट्रांसपोर्ट का कारोबार करते हैं. इसी फ्लोर से साथ वाले मकान में एक खिड़कीनुमा दरवाजा निकाला गया है. दोनों घरों में भीतर से ही आवाजाही के लिए शायद इस दरवाजे को खोला गया था हमें दारोगा ने उस कमरे में इंतजार करने को बैठा दिया जहां आसाराम का बेटा नारायण साईं एक बार आ कर रुका था और वहीं पड़े बैड पर सोया था. उन के इस घर में आसाराम के चरण भी पड़ चुके हैं. कुछ देर बाद पीडि़ता के पिता उसी दरवाजे से होते हुए कमरे में आ कर बैठ गए.

कभी आसाराम को अपना भगवान मानने वाले इस शख्स क ो आज आसाराम के नाम से ही घृणा है. वे अपनी बेटी के इस गुनाहगार को सख्त से सख्त सजा दिलाना चाहते हैं. युवती के पिता एक साधारण जाट परिवार से हैं जिन का कद लगभग 6 फुट के आसपास होगा. बातचीत के दौरान उन की आवाज में रुदन था. रुदन एक तरफ विश्वास के चकनाचूर हो जाने का तो दूसरी तरफ उन की नादानी की सजा बेटी को भुगतने का. वे कहते हैंकि मीडिया ने उन्हें काफी सहयोग दिया है. इस के लिए वे उस के आभारी हैं. उन के द्वारा सुनाई गई आपबीती को बयां करने से पहले हम पाठकों को उस घटना के बारे में बता रहे हैं जिस के आरोप में आसाराम सलाखों के पीछे हैं.

गत 16 दिसंबर को दिल्ली में चलती बस में एक युवती के साथ हुई सामूहिक दुष्कर्म की घटना पर आसाराम ने जब पीडि़ता को भी बराबर का जिम्मेदार ठहराते हुए बलात्कारियों का बचाव किया और कहा कि गलती एक तरफ से नहीं होती, तभी आसाराम की बलात्कारी सोच दुनिया के सामने उजागर हो गई थी.

अपने उक्त बयान के लगभग 8 महीने बाद अब आसाराम अपने एक साधक की 17 वर्षीय बेटी का यौन उत्पीड़न किए जाने के आरोप में खुद सलाखों के पीछे हैं. वैसे अपनी साधिकाओं व अपने पास आने वाली महिलाओं के साथ उन के अवैध संबंधों का खुलासा समयसमय पर होता रहा है लेकिन ऐसे किसी मामले में जेल की हवा वे पहली बार खा रहे हैं.

पीडि़त किशोरी के पिता 10-12 वर्षों से आसाराम बापू के साधक थे. आसाराम की सलाह पर ही उन्होेंने 5-6 वर्ष पूर्व अपनी बेटी का दाखिला आसाराम के मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा स्थित गुरुकुल में 7वीं कक्षा में करवाया था. वर्तमान में वह 12वीं कक्षा की छात्रा थी.

महंगी भक्ति

मामला बीते अगस्त माह में शुरू होता है जब युवती के पिता को छिंदवाड़ा गुरुकुल से फोन द्वारा सूचित किया गया कि उन की बेटी की तबीयत खराब है. गुरुकुल से सूचना पा कर किशोरी के मातापिता तुरंत छिंदवाड़ा आश्रम के लिए रवाना हो गए. वहां उन्हें बताया गया कि फिलहाल उन की बेटी की तबीयत में सुधार है लेकिन, तबीयत पूरी तरह ठीक करने के लिए झाड़फूंक व अनुष्ठान किए जाने की जरूरत है. किशोरी के पिता से कहा गया कि यह अनुष्ठान खुद आसाराम बापू द्वारा किया जाएगा. उन्हें बताया गया कि आसाराम राजस्थान में जोधपुर के पास मणाई गांव में अपने एक शिष्य के आश्रम में ठहरे हुए हैं.

किशोरी के पिता अपनी बेटी को ले कर उक्त आश्रम में पहुंचे. वहां आसाराम ने उन से कहा कि रातभर की पूजा और अनुष्ठान होने पर आप की बेटी हमेशा के लिए ठीक हो जाएगी. अनुष्ठान की तैयारी की गई. आसाराम किशोरी को कमरे में ले गए. फिर वहां से वे उसे एक गुप्त दरवाजे से एक अन्य कमरे में ले गए, जहां आसाराम व उन के 3 शिष्यों ने मिल कर किशोरी के साथ कई घंटे तक यौन उत्पीड़न का नंगा नाच किया.

व्यथा वर्णन

पीडि़त किशोरी के पिता ने आसाराम के प्रति अपनी भक्ति से ले कर उन के राक्षसी रूप के खुलासे तक की पूरी कहानी बयां की. पेश है उन्हीं की जबानी यह कहानी :

मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि आसाराम का साधक बन कर उन की भक्ति करना मुझे इतना महंगा पड़ने वाला है. इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि वही व्यक्ति मेरी बेटी को अपनी हवस क ा शिकार बना लेगा जिस की तसवीर के सामने बैठ कर मैं घंटों माला जपता था. पूरेपूरे दिन भूखेप्यासे रह कर उन की साधना करता था.

आसाराम के 60-70 हजार पूर्णव्रतधारी साधकों में मैं भी एक था. ये साधक पूर्णिमा के दिन आसाराम के दर्शन के बिना अन्नजल ग्रहण नहीं क रते हैं. मैं ने जिस दिन से दीक्षा ली थी उसी दिन से यह व्रत ले लिया था. यह व्रत मैं हर माह रखता था और सर्दीगरमीबरसात हर मौसम में, जहां भी आसाराम होते थे वहां जाता था, उन के दर्शन करने के बाद ही अन्नजल ग्रहण करता था. मेरे इस अंधविश्वास के कारण आज मेरे बच्चों की पढ़ाईलिखाई सब बंद है. उन का 1 साल बरबाद हो गया है. हर पल डर के वातावरण में गुजरता है.

किस तरह वे आसाराम के संपर्क में आए और अपना सबकुछ उन पर न्योछावर करने को आतुर रहने लगे, इस बारे में वे यों बताते हैं :

साल 2001 के जनवरी महीने में आसाराम का बरेली में सत्संग था. उस से पहले मेरा भतीजा रोहतक गया था जहां से वह ‘ऋषि प्रसाद’ नामक पत्रिका ले आया जो आसाराम द्वारा प्रकाशित की जाती है. मैं ने पत्रिका पढ़ी तो मुझे बहुत अच्छी लगी. मुझे लगा कि ये बाबा तो बहुत बढि़या बातें बताते हैं, इन से मिलना चाहिए, इन का सत्संग सुनना चाहिए.  इत्तफाक से 2-3 महीने बाद शहर में जगहजगह लगे पोस्टरों के माध्यम से इन के बरेली आगमन की खबर हमें लगी.

इन का सत्संग सुनने हम बरेली चले गए. वहां हमें इन की बातें बहुत पसंद आईं जिस में उन्होंने बताया कि गुरु के बिना गति नहीं है. बगैर गुरु के मुक्ति नहीं होती, बगैर गुरु के भगवान से मिलन नहीं हो सकता. इन की बातों से प्रभावित हो कर हम ने इन्हें गुरु बनाने का मन बना लिया और साल 2002 में इन से दीक्षा ले ली.

दीक्षा ले कर उन्हें अपना गुरु बनाने की इच्छा जताने वालों को बता दिया जाता है कि फलां दिन फलां समय पर गुरुदीक्षा दी जाएगी. लोग निर्धारित दिन व समय पर पंडाल में इकट्ठे हो कर बैठ जाते हैं. इस  के बाद आसाराम अपना दीक्षा कार्यक्रम शुरू करते हैं. जिस में वे कहते हैं कि यहां बैठे जितने लोगों के इष्टदेव शिव, भगवान हैं वे हाथ खड़ा कर लें. जो लोग हाथ खड़ा कर लेते हैं वे उन्हें ‘ओम् नम: शिवाय’ का मंत्र दे देते हैं. जो लोग कृष्ण को मानते हैं उन्हें ‘कृष्णाय नम:’ का मंत्र जाप करने को कहते हैं. इसी तरह राम को मानने वालों को ‘ओम् रामाय नम:’ का मंत्र देते हैं. जितनी भी मालाएं ये जपने को बताते हैं उतनी मालाएं साधक को जपनी होती हैं. यही मंत्र दीक्षा होती है. जिस समय मैं ने दीक्षा ली थी उस समय भी

3 से 4 हजार लोग दीक्षा लेने के लिए बैठे थे. आसाराम कहते हैं, ‘जो उन से दीक्षा लेने आएगा वह दानदक्षिणा कुछ भी ले कर नहीं आएगा.’ उन की इस बात से लोग बहुत ही प्रभावित होते हैं. लेकिन अपरोक्ष रूप से दक्षिणा उसी दिन से शुरू हो जाती है जिस दिन से व्यक्ति इन का साधक बनता है.

धर्म का धंधा

साधकों को उन के साहित्य स्टाल से साधक को मंत्र दीक्षा का सामान खरीद कर लाने को कहा जाता है, जिस में माला, गोमुखी, आसन व अन्य कई पूजापाठ की सामग्री होती है. यह सामग्री कम से कम 140-150 रुपए की होती है. सत्संग में इन सामानों की दुकानें लगी होती हैं. सत्संग खत्म होने पर उठ कर चलने वाला इन दुकानों पर अवश्य रुकता  है. कहीं इन की किताबें बिकती हैं तो कहीं दवाइयां और शरबत. धूप, अगरबत्ती, चंदन, रूह अफजाह, साबुन भी लोग खरीदते चलते हैं. इस तरह आसाराम का धंधा चलता रहता है.

इस के बाद आसाराम अपना अगला वार करते हैं और बातों को घुमाफिरा कर अपने मतलब पर ले आते हैं. यह कार्य उन का पुत्र, उन का दत्तक पुत्र व उन के सेवक निभाते हैं, जो साधकों को बताते हैं कि गुरूर्ब्रह्मा, गुरूर्विष्णु, गुरूर्देव महेश्वरा; यानी भगवान विष्णु, ब्रह्मा व शिव ये तीनों ही इन गुरु में समाहित हैं इसलिए इन तीनों की अगलअलग पूजा करने के बजाय आसाराम की पूजा करो.

पूजा सामग्री के साथ इन का फोटो दिया जाता है. साधक को बताया जाता है कि तसवीर की पूजा करोगे तो सारे देवों की पूजा हो जाएगी. इसलिए लोग इन की फोटो रख कर इन की पूजा शुरू कर देते हैं. इस तरह साधक इन से जुड़ जाता है, उसे लगता है कि ये तो भगवान हैं और फिर वह पीछे मुड़ कर नहीं देखता.

इस के बाद इन के सेवक साधकों को धीरेधीरे मीडिया के खिलाफ भड़काते हैं. कहा जाता है कि प्रिंट व इलैक्ट्रौनिक मीडिया को विदेशों से पैसा मिलता है संतों को बदनाम करने के लिए. यदि संत बदनाम होंगे तो हिंदू धर्म में लोगों की आस्था कम होगी. इस प्रकार ये साधकों का ब्रेनवाश कर देते हैं. यही वजह है कि इन के आश्रमों में अनेक घटनाएं घटने के बाद भी इन के साधकों का इन पर से विश्वास जरा भी नहीं डिगा, किसी ने इन के खिलाफ हुई बातों पर जरा भी यकीन नहीं किया. यही पहला फार्मूला है.

अहमदाबाद और छिंदवाड़ा में जब इन के आश्रमों में 2 बच्चों की बलि लेने की बात आई तो हमारे मोबाइल पर मैसेज आता था कि कोई भी आदमी न्यूज चैनल नहीं देखेगा. यह संदेश हमें ‘ऋषि प्रसाद’ पत्रिका व सत्संग के माध्यम से भी दिया जाता था. केवल ‘ए2जेड’ या ‘सुदर्शन’ चैनल ही देखने का निर्देश दिया जाता है.

उन के साधक बाकी चैनलों को बंद करवा देते थे. यही कारण है उन के साधक दुनियादारी से कटे रहते हैं. वे सिर्फ इन के धार्मिक चैनल देख क र, उन की पत्रिका पढ़ कर व सत्संग सुन कर उन के पिछलग्गू बने रहते हैं. उन का दायरा वहीं तक सिमट जाता है. लोगों को मीडिया के खिलाफ करने के बाद सत्संग के माध्यम से उन के साधक पूरी तरह इस बात पर जोर देते हैं कि हमें गुरु में निष्ठा होनी चाहिए. गुरु को ब्रह्माविष्णुमहेश मान कर निष्ठा रखनी चाहिए. इसलिए हर साधक गुरु में पूरी तरह निष्ठा रखता है यह सोच कर कि यदि गुरु प्रसन्न होंगे तो भगवान प्रसन्न होंगे.

फिर कुछ दिनों बाद इन के सेवक आसाराम के साधकों के सामने दूसरा तुरुप का पत्ता फेंकते हैं. कहते हैं, खाली माला जपने या साधना करने से कुछ नहीं होगा. जब तक तुम सेवा नहीं करोगे तब तक कुछ नहीं होगा. आसाराम कहते हैं कि सिर्फ मेरी चरणभक्ति करना ही सेवा नहीं है. जो भी, तुम मेरा कार्य करोगे वह गुरु व भगवान की सेवा मानी जाएगी. तुम ‘ऋषि प्रसाद’ या ‘लोक कल्याण सेतु’ नामक पत्रिका घरघर जा कर लोगों में बांटो या ‘ऋषि दर्शन’ नामक सीडी बांट कर लोगों में गुरु की महिमा बताओ, ईश्वरीय सेवा व गुरु सेवा मानी जाएगी.

यानी पूरी तरह से साधकों को यह बता दिया जाता है कि माला भी जपनी है और गुरु सेवा भी करनी है. साधक ऐसा ही करते हैं, जैसे कहीं प्याऊ बनवा कर उन के नाम का बैनर लगवा देते हैं या कहीं भंडारे करवा कर उन के नाम का प्रचार करते हैं. भंडारे में सारा पैसा साधक का लगा होता है और बैनर पर लिखा होता है ‘संत श्री आसाराम आश्रम की ओर से भंडारा.’ साधक जीजान से इन कामों में जुटे रहते हैं. पूरे देश में जगहजगह इन के नाम पर कपड़े बंटवाते हैं. मैं ने भी 11-12 सालों तक जम कर ये सब कार्य किए.

आसाराम से दीक्षा लेने से पहले मैं वैष्णो देवी को मानता था. हर साल उन की यात्रा पर जाता था, परिवार के साथ. मेरा पूरा परिवार आसाराम का भक्त था. मैं ने अपने बड़े बेटे को भी दीक्षा दिलवा दी थी. ऐसा मैं ने इसलिए किया क्योंकि आसाराम द्वारा सदा इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि जो बगैर मंत्र दीक्षा के  मर जाएगा उसे 84 लाख पाप योनियों में भटकना पड़ेगा. इसलिए मैं ने सोचा कि हमारे पूरे खानदान को मंत्र दीक्षा मिल जाए ताकि वे 84 लाख पाप योनियों में जाने से बच जाएं.

जहां तक बेटी और छोटे बेटे को उन के गुरुकुल में दाखिला दिलाने का सवाल है तो खुद आसाराम ने ही सत्संग में कहा था कि इन स्थानों पर मेरे गुरुकुल हैं. जिन के बच्चे मेरे इन आश्रमों में पढ़ेंगे वे बड़े हो कर बहुत होनहार बनेंगे. कोई बड़ा अधिकारी बनेगा, कोई बड़ा मंत्री बनेगा. इस प्रकार उन्होंने प्रेरित किया और हम ने 6-7 साल पहले अपनी बेटी का दाखिला इन केछिंदवाड़ा आश्रम में 7वीं कक्षा में करवा दिया और छोटे बेटे का तीसरी कक्षा में दाखिला करवाया. ये भरपूर खर्चा लेते थे. 1 लाख रुपए तो मैं ने ऐडवांस में जमा करवाया था. बाकी 1 बच्चे का सालाना 60-70 हजार रुपए का खर्च आता था. लेकिन हम ने उस पर कभी ध्यान नहीं दिया यह सोच कर कि यह भी एक प्रकार से दान हो रहा है.

गुरुकुल में बच्चों का एक पीरियड गुरु में निष्ठा और ध्यान का होता था. हम हर माह अपनी बेटी से बात करते थे. हर दीवाली पर उसे घर ले आते थे. हमारे क्षेत्र के 10-12 बच्चे वहां पढ़ते थे. अब सब ने अपने बच्चों को उन के आश्रम से निकाल लिया है. केवल एक लड़की बची है जो मेरी बेटी के साथ पढ़ती थी जिसे उस के पिता अगले साल निकालने वाले हैं. अब इस क्षेत्र में उन अधिकांश लोगों ने आसाराम की तसवीरों को नष्ट कर दिया है जिन्हें सामने रख कर वे पूजापाठ किया करते थे.

घिनौनी साजिश

मेरी बेटी की तबीयत खराब होने की सूचना मुझे छिंदवाड़ा आश्रम की वार्डन शिल्पी द्वारा फोन पर दी गई जिस ने मुझ से कहा कि आप तुरंत चल पड़ो, आप की बेटी सीरियस है. मैं ने उन से कहा कि आप अच्छे डाक्टर से इस का इलाज करवाएं, मैं वहां आ कर सारा पैसा दे दूंगा. इस पर उस ने कहा कि शायद सीटी स्कैन करवाने के लिए नागपुर ले जाना पड़े. मैं ने उन से कहा कि आप ले जाओ और अच्छे से ट्रीटमैंट करवाओ, हम आ रहे हैं. बेटी से बात हुई तो उस ने कहा कि पापा, ये लोग कह रहे हैं कि अपने मम्मीपापा को बुला लो.

यह सब मेरी बेटी को आसाराम के पास भेजने का एक बहाना मात्र था. खैर, मैं अपनी पत्नी के साथ छिंदवाड़ा के लिए अपनी कार से निकल पड़ा. वहां पहुंच कर हम अपनी बेटी से मिले और उसे जोधपुर आश्रम ले जाने के लिए निकले लेकिन पत्नी की तबीयत खराब हो जाने की वजह से हम वहां से घर आ गए. फिर कुछ दिन बाद हम जोधपुर आश्रम के लिए रवाना हुए. वहां मुझे और मेरी पत्नी को आसाराम की कुटिया के निकट बने मकान में ठहराया गया और रात में अनुष्ठान करने के बहाने उन्होंने मेरी बच्ची के साथ इस घिनौनी करतूत को अंजाम दिया.

दरअसल, मैं अपने बच्चों को गुरुकुल में पढ़ने के लिए नहीं भेजना चाहता था लेकिन पत्नी की जिद थी कि बच्चों का बापू के आश्रम में ही दाखिला करवाओ. मैं मना करता रहा कि बच्चे हमारे साथ ही ठीक हैं. पत्नी मुझ से ज्यादा उन की साधक थी. मैं ने पत्नी की खुशी की खातिर वहां बच्चों का दाखिला करवा दिया. वरना यहां एक से एक बढि़या स्कूल मौजूद हैं. अब पत्नी पछताती है.

जिस दिन उक्त घटना घटी उस दिन भी मैं पत्नी से कहता रहा कि चलो, बेटी को निकालो अंदर से. लेकिन वह बोली कि नहीं, बेटी का मंत्र अधूरा रह जाएगा, अनुष्ठान अधूरा रह जाएगा. जब तथाकथित अनुष्ठान पूरा हो गया तो जोधपुर से सुबह उन्होंने हमें स्टेशन पर छुड़वा दिया था.

सुबह जब मैं ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर पूछने का प्रयास किया कि बापू का आचरण कैसा है तो उस की आंखों में आंसू आ गए थे. तभी मुझे कुछ गलत होने का एहसास हो गया था. उस ने बस इतना कहा था कि जल्दी घर चलो यहां से. मैं ने अपनी पत्नी से कहा कि बेटी से पूछो कि क्या हुआ है. लेकिन उस समय बेटी ने इस डर से कि उस के मातापिता को आसाराम भस्म न कर दे, वह चुप रही.

जब घर आ कर वह थोड़ी नौर्मल हो गई तो अगले दिन उस ने सारी घटना बताई. सब सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं आसाराम से मिल कर उस से बात करना चाहता था. मैं पत्नी और बेटी को ले कर दिल्ली के लिए रवाना हो गया जहां 19-20 अगस्त को रामलीला मैदान में आसाराम का सत्संग हो रहा था. हम 19 अगस्त को दोपहर बाद दिल्ली पहुंच गए थे. हमारे अंदर आसाराम की इस करतूत को ले कर गुस्सा भरा हुआ था, लेकिन हमें मालूम था कि यहां इतनी भीड़ है, कुछ कहने पर आसाराम के समर्थक हमें मार डालेंगे. हम ने सोचा कि हम धरने पर बैठेंगे या कानूनी कार्यवाही करेंगे.

यह सोच कर हम कमला मार्केट थाने में आसाराम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाने पहुंचे. वहां पुलिस ने रिपोर्ट लिखने में काफी नानुकुर की. कहा कि जोधपुर जा कर लिखवाओ. हम ने कहा कि अगर आप ने रिपोर्ट नहीं लिखी तो हम धरने पर बैठ जाएंगे, तब जा कर उन्होंने हमारी रिपोर्ट लिखी. इस के बाद आसाराम के समर्थकों द्वारा हमें खूब डरानेधमकाने की कोशिशें की गईं. आज मुझे पछतावा इस बात का है कि मैं ने अपना सबकुछ आसाराम पर न्योछावर कर दिया. अपने घर के एक हिस्से को पूरी तरह से उन के सत्संग व उन के रहने के लिए तैयार करवा दिया. उन का बेटा एक बार यहां इसी कमरे में सोया था जिस कमरे में आप बैठी हैं. उस के बाद उस का दत्तक पुत्र भी यहीं पर आ कर रुका था.

ढाईतीन साल पहले जब मैं ने यहां सत्संग करवाया था तब आसाराम भी मेरे घर आए थे. मैं ने अपने घर में उन की चरणफिराई करवाई थी. किसी के घर में चरणफिराई के वे कम से कम 51 हजार या 1 लाख रुपए लेते हैं. इसे ही चरणफिराई कहा जाता  है. हम ने हमेशा अपने सामर्थ्य से अधिक उन्हें देने का प्रयास किया.

मैं ने 10-11 साल उन की सेवा में लगाए. हर रोज 4 घंटे पूजा करता था, 2 घंटे उन का साहित्य बांटता था. हजारों साहित्य बांटे मैं ने. जो पैसा घरगृहस्थी में खर्च करना चाहिए था वह सब उन की सेवा में लगा दिया. यह सोच कर कि भगवान प्रसन्न हो जाएंगे और हमें संसार से मुक्ति मिल जाएगी.

यहां हम ने उन के नाम पर आश्रम का निर्माण करवाया, जिस में लगभग 30-32 लाख रुपए का खर्च आया था. हम सब ने मिल कर आश्रम के लिए जमीन खरीदी. जिस की जितनी श्रद्धा थी उस ने उतना चंदा दिया, बाकी सारा पैसा मैं ने अपने पास से लगाया. ऐसा ही सत्संग में होता, जितना लोगों ने दे दिया वह दे दिया, बाकी मैं अपने पास से खर्च कर देता था. हर साल संकीर्तन यात्रा करवाते थे जिस में लाख से सवा लाख रुपए का खर्च आता था. उस में हम हजारों रुपया पानी की तरह बहाते थे.

धर्म के चोले में छिपे पाखंडी

मैं और मेरी पत्नी दोनों ही 10वीं क्लास पास हैं. मेरा जन्मस्थान हरियाणा है और मेरी पत्नी रोहतक की है. 30 साल पहले मैं यहां आ बसा था. मैं ने दिल्ली से अपने कारोबार की शुरुआत की. फिर पानीपत, गाजियाबाद में कारोबार किया और फिर यहां शाहजहांपुर में आ बसा. जब काम ठीकठाक चलने लगा तो मैं ने सोचा कि अब थोड़ी भगवान की भक्ति की जाए.

पीडि़त किशोरी के पिता के मुंह से बयां यह दास्तां धर्म के चोले में छिपे किसी पाखंडी के पापों की कोई पहली या आखिरी कहानी का खुलासा नहीं है लेकिन नई बात यह है कि आस्था के नाम पर इन पाखंडी साधुसंतों पर किस तरह लोग अपना सबकुछ न्योछावर कर देते हैं और खुद पर सबकुछ न्योछावर करने देने वाले ये संत अपने भक्त की बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने से बाज नहीं आते, यह रोंगटे खड़े कर देने वाली है.

पीडि़ता के पिता के मुंह से कही गई इस कहानी के बाद यह साफ हो जाता है कि धर्म की दुकानें किस तरह चलाई जाती हैं. लोगों को किस तरह पागल बना कर उन्हें लूटापीटा जाता है. धर्म और आस्था के नाम पर हमेशा से लोगों, विशेषकर औरतों का शारीरिक और मानसिक शोषण किया गया है. लोगों को पापपुण्य का भय दिखा कर कंगाल किया गया है.

पिछले एक दशक में भगवा चोलों में छिपे पाखंडी लोगों की ऐयाशियों का जिस तरह परदाफाश हुआ है उस ने भगवाधारियों के माथे पर चिंता और भय की मिलीजुली लकीरों को जरूर उकेर दिया है. चाहे वह स्वामी नित्यानंद हो, जो खुद को कृष्ण बताता था और उस के प्रवचनों से मोहित हो कर महिलाएं उस के आश्रमों में चली आती थीं और नित्यानंद उन्हें बहलाफुसला कर धीरेधीरे अपने बैडरूम तक ले जाता था. इसी तरह पाखंडी स्वामी भीमानंद की पाप की नगरी भी लुट गई जब धर्म की दुकान की आड़ में उस के सैक्स रैकेट का परदाफाश हुआ.

हैरानी यह है कि इन पाखंडी लोगों के असली चेहरे सामने आ जाने के बावजूद हम जागने को तैयार नहीं हैं. धर्मगुरुओं के  आह्वान पर अपने परिवारों सहित दुर्गम धार्मिक यात्राओं पर असमय मरने को रवाना हो जाते हैं, कथावाचकों की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर उन के नाम की माला जपते हैं, अपना सारा कामकाज छोड़ कर सत्संगों में अपना समय बरबाद करते हैं.

आज सब पानी पीपी कर आसाराम को कोस रहे हैं, लेकिन क्या यह सच नहीं है कि आसाराम को भगवान बनाने वाले या उसे मनमानी करने का लाइसैंस देने वाले हम खुद ही हैं. इस के बाद हम किस बात का रोना रोते हैं जब हम अंधे हो कर साधुसंतों की चकाचौंध और आवरण से प्रभावित हो कर उन पर अपना सबकुछ लुटाने को तैयार हो जाते हैं. 

हैरानी तब होती है जब आसाराम पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगने के बाद उस के समर्थक सड़कों पर उतर कर आसाराम का बचाव करते नजर आते हैं और इन में अधिकांश महिलाएं थीं जो मीडिया से भी हाथापाई करती दिखती हैं. महिलाएं ऐसे हैवान के साथ खड़ी दिखीं जिस ने तथाकथित रूप से अपनी पोती की उम्र की लड़की को भी अपनी हवस का शिकार बनाने से परहेज नहीं किया. आसाराम पर जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा कर के आश्रमों का निर्माण किए जाने, लोगों को डरानेधमकाने आदि के आरोप आएदिन लगते रहते हैं. 

शाहजहांपुर के निकट स्थित रुद्रपुर गांव में जब 3 साल पहले आसाराम ने आलीशान आश्रम का निर्माण किया और उस में सफेदपोश लोगों को बड़ीबड़ी गाडि़यों में आतेजाते देखा तो गांव के लोग काफी प्रभावित हुए. कुछ लोगों ने आसाराम के  इस भव्य आश्रम और तामझाम से प्रभावित हो कर उन से दीक्षा लेने का फैसला किया. गांव के ही एक  व्यक्ति का कहना है कि हमारे गांव में कई परिवार ऐसे हैं जो आसाराम के भक्त हैं. गांव के वे परिवार जो आसाराम के साधक बन गए, गरीब और छोटी जाति के हैं. आसाराम से दीक्षा लेना और उन के आलीशान आश्रमों में बैठ कर सत्संग सुनना उन के लिए किसी वरदान से कम नहीं. इन सफेदपोश लोगों के बीच बैठने की लालसा और आलीशान आश्रमों में बेरोकटोक प्रवेश पाने की इच्छा के चलते गांव के लोग आसाराम के निकट आते चले गए. 

दरअसल, अधिकांश लोग, जिन्हें आज भी मंदिरों में प्रवेश वर्जित है, उच्च जातियों के लोगों के बीच बैठने की इजाजत नहीं, सत्संगों और धर्मगुरुओं की शरण में जा कर उन के बीच जगह बनाने या अपनी गिनती करवाने की होड़ में लगे रहते हैं. हमारे यहां आज भी कई ऐसी जातियां हैं जिन्हें हीन दृष्टि से देखा जाता है.

ऐसी जातियों के लोग इन सत्संगों, प्रवचनों व अन्य धार्मिक आयोजनों में दानदक्षिणा दे कर खुद को उन जातियों के करीब लाने की कोशिश करते हैं जो उन्हें आज भी हिकारत की नजर से देखती हैं. जबकि यहां भी उन के साथ जम कर भेदभाव होता है क्योंकि अधिक दानदक्षिणा देने वाले को यहां भी अधिक तवज्जुह दी जाती है. बड़ी जातियों के लोग आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत होते हैं और उन के द्वारा दान की गई रकम भी ज्यादा होती है. महिलाएं इन में इसलिए बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह पुण्य कमाने का सुनहरा मौका है.       

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