मेरी बिल्ंिडग में एक दक्षिण भारतीय परिवार रहता है. उस परिवार की एक सदस्या मेरी सहेली है. उस की सास को जरा भी हिंदी नहीं आती है. लेकिन उन से मेरी थोड़ीबहुत इशारों में बात हो जाती है.
एक बार मेरी सहेली काफी बीमार हो गई. मैं ने सोचा, फोन कर के उस का हालचाल पूछूं. जब मैं ने फोन किया तो उस की सास ने उठाया. हैलोहैलो होती रही, लेकिन न उन्हें मेरी भाषा समझ आई न मुझे उन की.
अचानक मुझे ‘बागोनारा’ शब्द याद आया, जो मेरी सहेली ने बताया था, जिस का अर्थ होता है, ‘सब ठीक है.’ मैं ने जैसे ही उन्हें बागोनारा बोला, वे समझ गईं कि मैं उन की बहू की सहेली बोल रही हूं और उन्होंने झट उस से मेरी बात करा दी. हम दोनों फोन पर खूब हंसीं.
सरोज गर्ग, मुंबई (महाराष्ट्र)

एक सेवानिवृत्त शिक्षक हर माह पैंशन लेने बैंक जाया करते थे. एक दिन जब वे पैंशन लेने बैंक गए तो वहां प्रत्येक काउंटर पर लंबीलंबी कतारें लगी थीं. जिस कतार में वे लगे वह कतार आगे सरक नहीं रही थी क्योंकि उस काउंटर का बाबू थोड़ी देर काम कर के कुछ समय के लिए गायब हो जाता था. उस की इस हरकत से परेशान वे महाशय उस काउंटर क्लर्क के पास पहुंचे और कहने लगे, ‘‘क्यों जी, आप इस के पहले किसी टीवी चैनल पर ऐंकरिंग करते थे क्या?’’
बाबू एकदम चौंक गया. बोला, ‘‘आप ने कैसे पहचाना?’’
‘‘यही कि आप थोड़ी देर के लिए काउंटर पर आते हो और हम लोगों से छोटे से ब्रेक की अनुमति ले, ‘कहीं जाइएगा नहीं’ कह कर पता नहीं कहां गायब हो जाते हो.’’ उन की इस बात से उस बाबू के काम में गति आ गई.
प्रकाश दर्प, इंदौर (म.प्र.)

मेरी बेटी पहली बार ससुराल से घर आई थी और उसी दिन उस की दूसरी विदाई थी. मैं विदाई की तैयारी में लगी थी. दामादजी को देने के लिए एक सोने की अंगूठी बनवाई थी. जाने से कुछ देर पहले ही मैं ने उन्हें वह अंगूठी देते हुए आग्रह किया कि वे अंगूठी पहन कर देख लें, सही है या नहीं.
उन्होंने डब्बी हाथ में ले कर खोली. देख कर बोले, ‘‘यह मेरे लिए नहीं है, अपनी बेटी को दे दीजिए.’’
मुझे बुरा लगा कि मेरे दिए हुए उपहार को वे इस तरह ठुकरा रहे हैं. मैं ने फिर भी उन से जिद की तो उन्होंने डब्बी को बंद कर के मुझे वापस कर दिया.
मैं ने उदास मन से डब्बी खोल कर देखी, तो हैरान रह गई. उस में मेरी बेटी के कान के बुंदे थे.
सुषमा सिन्हा, वाराणसी (उ.प्र.)

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