फिल्म इंगलिशविंगलिश में श्रीदेवी (शशि) ने एक समर्पित मां का किरदार निभाया है. वे अपने बच्चों से आदर और सम्मान की अपेक्षा रखती हैं. लेकिन उन के बच्चे उन के साथ बेहद रूखा व्यवहार करते हैं. बच्चे बातबात पर मां का मजाक बनाते हैं क्योंकि उन्हें अंगरेजी बोलनी नहीं आती. जब वे ‘जैज’ डांस फौर्म को ‘जहाज’ कहती हैं तो बच्चे उन का मजाक बनाते हैं. इस फिल्म द्वारा उन विद्रोही बच्चों पर अच्छा कटाक्ष किया गया है जो अंगरेजी जानने व टैक्नोसेवी होने के नाम पर स्वयं को सुपर समझते हैं और मांबाप की इज्जत नहीं करते.
आजकल के बच्चे
पता नहीं क्या हो गया है आजकल के बच्चों को, मांबाप की इज्जत करना तो जैसे वे भूल ही गए हैं. हर समय फोन पर, फेसबुक पर लगे रहना, दोस्तों को ही सबकुछ समझना, उन से ही हर बात शेयर करना, कुछ भी पूछो तो पहले तो जवाब ही नहीं देते और अगर दिया भी तो सिर्फ हां या ना में, और अगर कुछ और ज्यादा पूछ लिया तो जवाब मिलता है, ‘आप को क्या मतलब’, ‘जब आप को कुछ पता नहीं तो बोलते ही क्यों हो,’ बातबात पर चीखनाचिल्लाना, गुस्सा करना, गलत भाषा का प्रयोग करना उन के व्यवहार में शामिल हो गया है. रिश्तों का सम्मान और मानमर्यादा जैसे शब्द तो मानो उन की डिक्शनरी में हैं ही नहीं. हाल ही में अमेरिका में हुई एक रिसर्च में भी पाया गया कि पिछले 30-40 वर्षों की अपेक्षा आज के बच्चे अधिक उपद्रवी हो गए हैं.
बच्चों का रूखा व्यवहार
श्रेया (मां) : युक्ति बेटा, बहुत देर हो गई कंप्यूटर पर गेम खेलतेखेलते. अब पढ़ लो. कल आप का टैस्ट है न.
युक्ति (बेटी) : (कंप्यूटर पर नजरें गड़ाए हुए) जस्ट चिल, मौम, क्यों हमेशा मेरे पीछे पड़ी रहती हो. मुझे पढ़ना है न, मैं पढ़ लूंगी. जब आप को कुछ पता नहीं तो बोलती क्यों हो?
मां : बेटा, मैं तुम्हारे भले के लिए बोल रही हूं.
युक्ति : मुझे अपना भलाबुरा पता है. आप मेरे मामले में इंटरफियर मत किया करो.
अशिष्ट भाषा का प्रयोग
आजकल 7-8 साल के बच्चे वह भाषा बोलते हैं जो फिल्मों में बोली जाती है. फिल्म ‘राउडी राठौर’, ‘गैंग्स औफ वासेपुर’, ‘चमेली’, ‘जब वी मेट’, ‘गोलमाल-3’ में अपशब्दों की भरमार है, जिन का प्रयोग आज के बच्चे पियर ग्रुप में बखूबी करते देखे जा रहे हैं. जब भी बच्चों के मनमुताबिक बात नहीं होती वे गुस्से में ‘शटअप’, ‘डौंट बी स्टुपिड’, ‘डैम’ जैसे अपशब्दों का प्रयोग आम करते हैं.
बच्चों का सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अधिक समय बिताना भी उन की भाषा व व्यवहार पर गलत प्रभाव डाल रहा है. औनलाइन चैटिंग में वे ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जो गलत तो होती ही है मातापिता की समझ से भी बाहर होती है. मसलन, जब वे ‘एमडब्लूआई’ लिखते हैं तो उस का अर्थ होता है ‘गैटिंग मेड विद’ जिस का प्रयोग वे यह बताने के लिए करते हैं कि वे किसी रिश्ते से जुड़े हैं.
कंप्यूटर एडिक्शन
ब्रिटिश एसोसिएशन औफ एंगर मैनेजमैंट की एक हालिया रिसर्च में पाया गया है कि बच्चों के उद्दंड और असहयोगात्मक रवैये का एक मुख्य कारण कंप्यूटर एडिक्शन है. वे प्रति सप्ताह 16 या उस से अधिक घंटे कंप्यूटर पर बिताते हैं. इस रिसर्च में उन अभिभावकों को चेतावनी दी गई है जो घर में बच्चों के साथ होने वाले विवाद से बचने के लिए उन्हें कंप्यूटर पर अधिक समय बिताने की आजादी देते हैं. ऐसा करने से जहां एक ओर बच्चों का परिवार के सदस्यों से जुड़ाव टूटता है वहीं वे अपनी एक अलग दुनिया बसा लेते हैं.
जब भी बच्चों से अपना कमरा साफ करने, होमवर्क करने, खाना खाने के लिए कहा जाता है वे नकारात्मक व उद्दंडता भरा व्यवहार करते हैं. इस रिसर्च में 9 से 18 साल के कंप्यूटर पर अधिक समय बिताने वाले बच्चों के 206 अभिभावकों में से 46 प्रतिशत ने माना कि उन के बच्चे घर के कार्यों में सहयोग करने से कतराते हैं. 44 प्रतिशत ने माना कि उन के बच्चे जवाब देने लगे हैं और असहनशील हो गए हैं. शेष ने माना कि उन के बच्चों का व्यवहार पहले से अधिक रूखा हो गया है.
मनोवैज्ञानिक पहलू
बच्चों में बढ़ते बेरुखे व्यवहार, गुस्सा व चिड़चिड़ेपन के बारे में क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट अरुणा ब्रूटा कहती हैं, ‘‘जो बच्चे ऐसा गलत व्यवहार करते हैं वे आगे चल कर बड़ी समस्या खड़ी कर सकते हैं. वे अधिक आक्रामक हो कर समाज को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. आजकल के बच्चों के लिए लैपटौप व फोन फैमिली मैंबर बन गए हैं. और जब उन्हें इन के प्रयोग से रोका जाता है तो वे आक्रामक व उद्दंड हो जाते हैं. वे इन गैजेट्स को अपने अधिक नजदीक पाते हैं, अपने सभी सवालों और समस्याओं के हल वहीं ढूंढ़ते हैं. इसलिए बच्चों के लैपटौप, मोबाइल प्रयोग की सीमा निर्धारित करें और बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं. पियर ग्रुप के प्रभाव की उपेक्षा न करें क्योंकि जब भी बच्चों की अभिभावकों से अनबन होती है वे सभी बातें दोस्तों के साथ बांटते हैं.’’
पेरैंट्स की भूमिका
बच्चों के बिगड़ने या सुधरने में अभिभावकों की भूमिका अहम होती है. इस का उदाहरण सामने है. जनवरी 1990 के बीएमडब्लू हिट एंड रन केस में 6 लोग मारे गए. 10 जनवरी की उस रात को संजीव नंदा अपने 2 दोस्तों, माणिक कपूर और सिद्धार्थ गुप्ता के साथ गुड़गांव से एक लेटनाइट पार्टी से लौट रहे थे. पार्टी और पैसे के नशे में चूर उच्च व्यापारी वर्ग के इन बिगड़ैलों ने 6 मासूमों की जान ले ली.
अभिभावकों द्वारा बच्चों को दी गई निरंकुश आजादी, अधिक सुविधाएं व कम जिम्मेदारी बच्चों के उद्दंड व आक्रामक होने के लिए जिम्मेदार है. ‘बीएमडब्लू हिट ऐंड रन’ इस का जीताजागता उदाहरण है.
कैसे निबटें इन बच्चों से
जब भी बच्चा अशिष्ट भाषा बोले, चीखेचिल्लाए उसे इग्नोर न करें. आप ने बच्चे के रूखेपन व असहयोग के व्यवहार को जब भी स्वीकार किया तो वह समझने लगेगा कि आप को उस का ऐसा व्यवहार स्वीकार्य है. दृढ़ हो कर प्यार से कहें कि गलत भाषा व व्यवहार स्वीकार नहीं किया जाएगा.
बच्चा कुछ भी गलत बोले तो आराम से पूछें, ‘अभी आप ने क्या कहा?’ वह समझ जाएगा कि उस ने कुछ गलत कहा है.
बच्चे से जानने की कोशिश करें कि उसे ऐसा रूखा व्यवहार करने की जरूरत क्यों पड़ी? उस से बात करें, जानें कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है? उसे बताएं कि हर परिवार दूसरे से अलग होता है. कई बार आप का बच्चा अन्य बच्चों के गलत व्यवहार का कारण नहीं जान पाता और आप के साथ गलत व्यवहार कर देता है.
बच्चों की गतिविधियों की जानकारी रखें पर ज्यादा दखल भी न दें. उन्हें स्पेस दें. उन्हें समय दें. उन के साथ समझदारी से पेश आएं. उन की हर मांग को बिना सोचेसमझें पूरा न करें. उन्हें उन के गलत व्यवहार के लिए जिम्मेदार बनाएं.
बच्चों को संवेदनशील बनाएं ताकि वे घर के कार्यों के प्रति, आप के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें, आप के साथ सम्मानजनक तरीके से पेश आएं. कुछ बच्चे अपने लुक, फैशन के प्रति इतने अधिक जागरूक होते हैं कि घरेलू कार्यों को करना उन्हें अपनी छवि पर बट्टा लगना लगता है, इसलिए उन्हें प्रारंभ से ही घर के कार्य करने के लिए प्रेरित करें.