Mystery Story In Hindi : सरिता, बीस साल पहले, दिसंबर (द्वितीय) 2005 – पार्टी में सभी को प्रीति का इंतजार था लेकिन वह नहीं आई. अचानक उस के खून होने की खबर ने पार्टी का सारा माहौल बदल डाला. खूनी पार्टी में मौजूद कोई मेहमान था या घर का कोई सदस्य, यह गुत्थी सुलझाना जरा मुश्किल काम था.
बहुत बड़ी पार्टी थी. अभिजात्य वर्ग के हर क्षेत्र से जुड़े लोग सपरिवार मौजूद थे. बीच-बीच में कोई पूछ लेता था, ‘‘भई, महफिल तो सजा ली लेकिन शमा जलाई ही नहीं. कहां है वह जिस के लिए पार्टी आयोजित की है?’’
पहले तो ऋतिका यह कह कर टालती रही कि प्रीति अभी आ जाएगी लेकिन जब यह सवाल सभी की जबान पर आ गया तो रतन को कहना पड़ा, ‘‘लंबे सफर के बाद प्रीति काफी थकी हुई थी, इसलिए सो रही है.’’
मेहमानों की बेचैनी को शांत कर दोनों मुड़े तो उन की नजर एक अजनबी सुदर्शन युवक पर पड़ी. रतन और ऋतिका दोनों अपने बच्चों के सभी दोस्तों को पहचानते थे और यह उन का हम उम्र भी नहीं था. इस से पहले कि वे उस अजनबी से कुछ पूछते, पुलिस कमिश्नर बत्रा ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘अरे, देव, तुम यहां किस के मेहमान हो?’’
‘‘किसी का नहीं, सर,’’ युवक कमिश्नर बत्रा को सैल्यूट मारते हुए बोला, ‘‘मेरी बहन नीना प्रिया की सहेली है, उसे लेने आया हूं.’’
‘‘नीना के भाई होने के नाते आप भी हमारे मेहमान हैं,’’ रतन जी ने नम्रता से कहा, ‘‘मेरा नाम रतन है और प्रिया मेरी बेटी है.’’
तभी प्रिया नीना और कुछ दूसरी लड़कियों के साथ आ गईं.
‘‘देव भैया, आप नीना को इतनी जल्दी ले कर नहीं जा सकते. अभी न तो इस ने खाना खाया है और न ही यह मम्मी से मिली है,’’ प्रिया ने कहा.
‘‘वह सब मैं नहीं जानता,’’ देव हंस कर बोला, ‘‘मुझे मम्मी ने कहा था कि 9 बजे जा कर नीना को ले आना. सो, मैं लेने आ गया हूं.’’
‘‘आप बैठिए,’’ ऋतिका बोली, ‘‘जब तक आप कुछ पिएंगे तब तक प्रीति भी आ जाएगी और खाना भी लग जाएगा.’’
‘‘प्लीज, इंस्पेक्टर, आज मेरी बेटी बहुत खुश है. उस की चहेती सहेली को जल्दी ले जा कर आप उसे दुखी मत कीजिए,’’ और पलट कर रतन पत्नी से बोले, ‘‘ऋतिका, तुम प्रीति को नीचे लाओ और खाना भी लगवाने को कहो. वरना मेहमान बिना खाए ही जाना शुरू
हो जाएंगे.’’
‘‘मैं मम्मी को लाने जाऊं?’’ प्रिया ने पूछा.
‘‘नहीं, मैं ही ले कर आती हूं,’’ कह कर ऋतिका चली गई और कुछ देर बाद वह चीखती हुई नीचे आई और बोली, ‘‘प्रीति ने अपनी कनपटी पर गोली मार ली है. प्लीज नायक, मेरे साथ चलिए और कोई ऐंबुलेंस के लिए फोन करो.’’
लौन में अफरातफरी मच गई. देव ने बत्रा साहब से पूछ कर मेन गेट बंद करवा दिया और बत्रा साहब को साथ ले कर घटनास्थल की ओर चल दिया.
हंसी-मजाक की जगह अब प्रिया की हृदयविदारक चीखों ने ले ली थी. ऊपर एक कमरे में प्रीति ड्रेसिंग टेबल और पलंग के बीच में औंधेमुंह पड़ी हुई थी. उस की दाहिनी ओर की कनपटी से खून बह कर कालीन पर बिखरा पड़ा था. दाएं हाथ में साइलेंसर लगा रिवॉल्वर था. कमरे की हालत और सामान को देख कर नहीं लग रहा था कि हत्या चोरी की नीयत से की गईर् है.
लाश का मुआयना कर डा. नायक बोले, ‘‘मौत हुए कम से कम एक घंटा हो चुका है.’’
‘‘सर, यह आत्महत्या का नहीं, हत्या का मामला है,’’ देव बोला, ‘‘गोली कम से कम 2 फुट की दूरी से मारी गई है.’’
‘‘आप, यह कैसे कह सकते हैं? ऋतिका ने पूछा.’’
‘‘जख्म देख कर. अगर मृतका ने खुद को गोली मारी होती तो नली को कनपटी से न सटाती तो अपने हाथ को 2 फुट दूर नहीं ले जा सकती थी. साफ जाहिर है, जब वह तैयार हो कर शीशे में खुद को पीछे मुड़ कर देख रही थी तो किसी ने उसे गोली मार दी.’’
इतना बताने के बाद देव ने पूछा, ‘‘यह रिवॉल्वर किस का है?’’
‘‘प्रीति का,’’ ऋतिका बोली, ‘‘उस के पास इस का लाइसेंस है.’’
‘‘वह क्या इसे अमेरिका साथ ले कर गई थी?’’ बत्रा साहब ने हैरानी से पूछा.
‘‘जी नहीं,’’ ऋतिका ने सुबकते हुए कहा, ‘‘आज आते ही उस ने अपना सूटकेस मांगा था. रिवॉल्वर उसी में था.’’
‘‘उन्होंने सूटकेस क्यों मांगा था. इस से कुछ फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मृतका ने स्वयं को गोली नहीं मारी है,’’ देव कड़े स्वर में बोला, ‘‘दरबान का कहना है कि 7 बजे से लोग सिर्फ अंदर आ रहे हैं. बाहर कोई नहीं गया, इसलिए हत्यारा यहीं मौजूद है. आप पुलिस बुलाइए.’’
पुलिस कमिश्नर बत्रा साहब अपने मोबाइल पर नंबर मिलाने लगे और बोले, ‘‘पुलिस के आने से पहले कोई घर से बाहर नहीं जाएगा.’’
‘‘भैया,’’ प्रिया देव के पास आ कर बोली, ‘‘मेहमानों को जाने दीजिए. उन में से तो किसी ने मम्मी को कभी देखा भी नहीं था क्योंकि मम्मी पहली बार आज सुबह इस शहर में आई थी.’’
देव चौंक पड़ा पर संभल कर बोला, ‘‘अमेरिका जाने से पहले तुम्हारी मम्मी कहां रहती थी?’’
‘‘पुणे में. वह वहां एएफएमसी (आर्मंड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज) में पढ़ाती थीं. किसी छात्र ने उन का नाम अमेरिका में एडवांस्ड स्टडीज के लिए प्रस्तावित किया था.’’
‘‘फिर तुम यहां कैसे आईं?’’
‘‘ऋतिका आंटी मम्मी की सहेली थीं. एक दिन अचानक हम से मिलने पुणे आईं, मुझे अच्छी लगीं और मैं उन के पास रहने के लिए मान गई.’’
‘‘पापा यानी रतन अंकल से पहले कभी मुलाकात नहीं हुई थी?’’
‘‘हां, वे अकसर पुणे आया करते थे. फिर मां ने उन्हें, अंशुल और रिया को फोन कर के बुलाया. हम सब लोग कुछ रोज खंडाला, लोनावला घूमे, फिर मम्मी के अमेरिका जाने से पहले सब लोग दोबारा मुझे लेने आए थे. पहले मम्मी का भी यहां आने का कार्यक्रम था लेकिन समय की कमी के कारण वे नहीं आ सकी थीं. इसीलिए मैं कह रही हूं भैया, कि आज जो भी मेहमान यहां हैं, मम्मी से पहले कभी नहीं मिले.’’
‘‘इस का मतलब तो यह हुआ कि घर वालों में से ही किसी ने कत्ल किया है.’’
‘‘यह क्या कह रहे हैं, भैया?’’ प्रिया सिहर कर बोली, ‘‘डॉक्टर ने हत्या का समय 8 बजे के आसपास बताया है और हम सब परिवार वाले तो 7 बजे से लौन में मौजूद थे तो मम्मी को मारता कौन?’’
‘‘खैर, फिक्र मत करो. किसी न किसी ने तो किसी को ऊपर जाते देखा ही होगा,’’ देव बोला.
‘‘मुश्किल है.’’ रिया जो अब तक चुप खड़ी थी, बोली, ‘‘हां, चिन्नामा मौजूद होती तो जरूर बता सकती थीं.’’
‘‘यह चिन्नामा कौन है?’’
‘‘वैसे तो वे दादी के जीवनकाल में उन की नौकरानी थीं लेकिन असल में वे मां की मैजिक आई हैं. उन का काम हम सब की और नौकरों की चुगली करना है.’’
‘‘मगर आज वह कहां है?’’ देव ने पूछा.
‘‘अपने कमरे में,’’ रिया हंसी, ‘‘वे शाम को 7 बजे से अपने कमरे में घुस जाती हैं.’’
रिया, प्रिया और नीता को बत्रा साहब के पास भेज कर देव लाश पर झाक कर घाव देखने लगा.
प्रीति की आयु 40 के आसपास होगी. अभी भी बला की खूबसूरत थी. जवानी में तो गजब ढाती होगी. ऐसी हसीन बीवी और प्यारी बच्ची को किसी ने छोड़ने की हिमाकत कैसे की होगी, देव ने सोचा.
‘‘देव, मेहमानों से तुम जल्दी से पूछताछ कर के उन्हें जाने दो,’’ बत्रा साहब बोले, ‘‘लेकिन उन से यह जरूर पता करना कि उन में से किसी ने घर के किसी सदस्य को संदेहजनक स्थिति में ऊपर जाते तो नहीं देखा था.’’
‘‘जी सर, आप को परिवार के लोगों पर शक है?’’
‘‘और हो भी किस पर सकता है देव? प्रीति के रिवॉल्वर तक तो घर वालों की ही पहुंच थी.’’
‘‘लेकिन घर वाले इतने बेवकूफ नहीं लगते सर कि इतने लोगों की मौजूदगी में कत्ल करने का जोखिम लें. उन्हें तो कई मौके मिल सकते थे.’’
‘‘डिप्रैशन में इंसान कुछ भी कर सकता है,’’ बत्रा साहब हंस कर बोले.
देव को लगा कि बत्रा साहब ठीक कह रहे हैं. डिप्रेशन में कोई कुछ भी कर सकता है. मगर डिप्रेशन में कौन है? नीना से इस परिवार के बारे में अकसर सुनता रहता था, सो, कुछ अटकल तो लगा ही सकता था. हो सकता है प्रीति ने प्रिया को साथ ले जाने की मंशा जाहिर की हो और प्रिया मां के साथ जाना न चाहती हो.
ऋतिका को भी प्रिया से बेहद लगाव है और उस के रहने से फायदा भी है क्योंकि अंशुल और रिया की ओर से वह निश्चिंत हो गई है, उस पर घर की देखभाल में भी वह हाथ बंटाती है. ऋतिका की सहेलियों के आने पर उन की खातिरदारी की जिम्मेदारी प्रिया की होती है. धूमधाम से गोद ली बेटी वह क्यों प्रीति को वापस करेगी?
रतन प्रिया को बहुत प्यार करता है. अभी कुछ देर पहले ऋतिका बोली भी थी कि रतन की जान प्रिया में बसती है. सो रतन भी बच्ची को न भेजने के लिए उस की मां को रास्ते से हटा सकता है.
रिया तो खैर छोटी है मगर किशोर अंशुल का जुर्म करना अस्वाभाविक नहीं था, वजह कुछ भी हो सकती है.
एक संभ्रांत महिला को अस्त-व्यस्त
हुई स्थिति को संभालते देख कर
देव ने रिया से पूछा कि वे महिला कौन हैं?
‘‘सुलभा मौसी. मम्मी की कजिन हैं.’’
‘‘यहीं रहती हैं?’’
‘‘नहीं, अपने घर गुलमोहर पार्क में,’’ रिया ने बताया.
देव तेज कदमों से चलता हुआ सुलभा के पास पहुंचा और बोला, ‘‘आप को यह हत्या रहस्यमय नहीं लग रही?’’
‘‘इंस्पैक्टर, मुझे तो जब से प्रिया गोद ली गई है, यह रिश्तेदारी या दोस्ती जो भी है, रहस्यमय लग रही है.’’
‘‘वह क्यों?’’
‘‘लंबी बात है, इंस्पेक्टर पिछले बरामदे में एकांत मिलेगा, चलिए, वहीं चल कर बात करते हैं,’’ कह कर सुलभा ने सीढि़यों के नीचे का दरवाजा खोला. बरामदे में कुछ कुर्सियां पड़ी हुई थीं.
सुलभा ने देव को एक कुर्सी दे कर बैठने को कहा और उस के बिना कुछ पूछे ही शुरू हो गई.
‘‘मैं और ऋतिका चचेरी बहन ही नहीं बल्कि सहपाठी भी रह चुकी हैं. संयोग से हमारी शादी भी 2 दोस्तों से हुई है. रतन और तिलक दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं. कई बार देशविदेश हम एकसाथ घूमने भी गए हैं. कहने का मतलब है कि मैं शादी से पहले की भी ऋतिका की सब सहेलियों को जानती हूं और शादी के बाद की भी. यहां तक कि रतन की जानपहचान वालों को भी. मगर प्रिया के मांबाप के बारे में पहले कभी नहीं सुना था.’’
‘‘आप ने पूछा नहीं कि यह सहेली कब बनाई.’’
‘‘पूछा था तो टालने के स्वर में बोली कि वह उस की सास की डाक्टर है. सो, उन्होंने परिचय करवाया था जो दोस्ती में बदल गया.’’
‘‘आज की पार्टी के बारे में कुछ बताएंगी? यानी आप किस समय पार्टी में आईं?’’
‘‘ऋतिका ने अंशुल को भेज कर मुझे मेहमानों के आने से कुछ पहले बुला लिया था ताकि मैं पार्टी की व्यवस्था में उस की मदद कर सकूं.’’
‘‘और तब से आप बराबर उन के साथ रहीं?’’
‘‘लगातार तो नहीं कह सकती क्योंकि लौन बहुत बड़ा है और हम दोनों ही मेहमानों से मिलती हुई इधरउधर घूम रही थीं, लेकिन ऋतिका इस बीच ऊपर नहीं गई. हां, मेरे कहने पर उस ने मोबाइल पर ही प्रीति से बात की थी.’’
‘‘यह कितने बजे की बात होगी?’’
‘‘7.45 के आसपास की.’’
इस से पहले कि सुलभा कुछ और कहती, ऋतिका आ गई.
‘‘तो तू यहां गप्पें मार रही है.’’
‘‘जी नहीं, ये मेरे सवालों का जवाब दे रही हैं,’’ देव ने बात काटी, ‘‘आप मेरे सवालों का जवाब देंगी?’’
‘‘पूछिए, इंस्पेक्टर साहब?’’
‘‘आप प्रीति को कैसे और कब से जानती हैं?’’
‘‘मेरी सास का शिरडी जाते हुए ऐक्सिडैंट हो गया था और उन्हें कई महीने पुणे के अस्पताल में रहना पड़ा था. तब डा. प्रीति सप्रे ने उन का बहुत खयाल रखा था. इसलिए वे भी परिवार की एक सदस्य बन गईं.’’
‘‘फिर यह कैसे कहा जा रहा है कि प्रीति आज यहां पहली बार आई थीं?’’
‘‘प्रीति वैसे भी बहुत व्यस्त डाक्टर थी. फिर पति से अलगाव के बाद उस की अपनी दुनिया, व्यवसाय और बच्चों तक ही सिमट कर रह गई थी. बहुत बुलाने पर भी वह कभी यहां नहीं आई.’’
‘‘अपने बच्चे होने के बाद भी आप ने प्रिया को गोद क्यों ले लिया?’’
‘‘इंसानियत के नाते. प्रीति के प्रेमी ने उस से शादी तो कर ली लेकिन परिवार के विरोध के कारण उसे अपना न सका. जब तक बच्ची छोटी थी, पालना आसान था और फिर प्रीति को अमेरिका जाने का मौका भी मिल रहा था. उस की समस्या सुन कर मैं ने कहा कि वह प्रिया को हमें गोद दे दे. बच्ची को परिवार का माहौल और संरक्षण मिल जाएगा और प्रीति को विदेश जाने का मौका भी. थोड़ी हिचकिचाहट के बाद वह मान गई. वह तो हम सब को अमेरिका घूमने के लिए बुला रही थी लेकिन मैं ने कहा कि इस साल तो वही आ जाए, हम फिर आएंगे. मेरी ही जिद पर आई थी बेचारी,’’ ऋतिका का स्वर रुंध गया.
‘‘आप का क्या खयाल है? खून कौन कर सकता है?’’
‘‘कोई नहीं, हत्या का समय 8 बजे के आसपास बताया गया है और उस समय हम परिवार के लोग मेहमानों के साथ थे. अगर कोई चोर या नौकर गोली मारता तो वह ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी घड़ी व चूडि़यों के साथ बैग को भी ले जाता.’’
‘‘प्रिया के पिता कौन हैं, आप जानती हैं?’’
ऋतिका ने इस सवाल पर लापरवाही से कंधे झटके, तभी रतन वहां आ गए तो देव उन से पूछ बैठा, ‘‘प्रिया के पिता के बारे में आप कुछ जानते हैं?’’
‘‘वह तो अब मैं ही हूं.’’
‘‘मेरा मतलब उस के असली पिता से है. उन के बारे में कुछ जानते हैं.’’
‘‘सिर्फ इतना कि वह अपने परिवार की आज्ञा के खिलाफ भी प्रीति से शादी करना चाहता था लेकिन प्रीति उसे उस के परिवार से अलग करने के पक्ष में नहीं थी.’’
‘‘यह हत्या कौन कर सकता है?’’
‘‘यह तो आप को पता लगाना है, इंस्पेक्टर. मैं प्रीति से शाम की चाय यानी 5 बजे के करीब मिला था. थकी हुई होने के बावजूद वह बहुत खुश थी. उसे यहां आ कर बहुत अच्छा लग रहा था. मेरे यह कहने पर कि वह हमेशा के लिए यहां क्यों नहीं आ जाती, उस ने शोखी से कहा कि काम दिलवाओ. मैं ने कहा कि विख्यात ऑर्थोपेडिक सर्जन डा. नायक पार्टी में आ रहे हैं, उन से बात करेंगे. यह सुन कर उस ने ऋतिका से कहा कि फिर तो उसे फ्रेश होने के लिए कुछ देर और सोना चाहिए ताकि डा. नायक को प्रभावित कर सके. यह कह कर वह ऊपर सोने चली गई और हम सब लोग काम में लग गए,’’ इतना कह कर रतन उठ खड़े हुए और बोले, ‘‘प्लीज इंस्पेक्टर, अब बाकी सवाल कल पूछिएगा. बहुत रात हो गई है, मुझे बच्चों को सुलाने दीजिए,’’ रतन के स्वर में याचना थी.
‘‘चलिए, यही सही,’’ कह कर देव भी खड़ा हो गया.
अगली सुबह जब देव रतन के यहां पहुंचा तो वे कुछ बेचैनी के साथ बाग में टहल रहे थे. बरामदे में बैठी एक बूढ़़ी औरत ने घूर कर देव को देखा जैसे आंखों ही आंखों में उस की औकात तोल रही हो.
‘‘बच्चे अभी सो रहे हैं,’’ रतन ने पूछा, ‘‘उन्हें बुलाऊं क्या?’’
‘‘थोड़ा रुक जाइए,’’ देव ने चिन्नामा की ओर देखा, ‘‘ये कौन हैं?’’
‘‘यह लक्ष्मी जी हैं लेकिन सभी इन को चिन्नाम्मा यानी छोटी मां के नाम से जानते हैं.’’
‘‘मेरे दादाजी के अंगरक्षक की पत्नी हैं. एक बार दादाजी पर हुए हमले में उन्हें बचाते हुए इन के पति शहीद हो गए तब से ये हमारे साथ परिवार के सदस्य की तरह रहती हैं. मां की बीमारी के दौरान इन्होंने जिस तरह रातदिन उन की सेवा की उस से उन का सम्मान परिवार में और भी बढ़ गया.’’
‘‘कल आप नजर नहीं आईं, आप कहां थीं?’’ देव ने चिन्नाम्मा से पूछा.
‘‘अपने कमरे में,’’ चिन्नाम्मा अवहेलना के स्वर में बोली, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. सो, मैं कल कमरे से बाहर ही नहीं निकली.’’
‘‘लेकिन आज तो आप बिलकुल ठीक लग रही हैं, यानी इतनी बीमार तो नहीं कि घर में आए मेहमान या दावत की रौनक को देखने न आ सकें?’’ देव ने जिज्ञासा व्यक्त की. रतन मुस्कुराया, फिर देव को एक ओर ले जा कर धीरे से बोला कि चिन्नाम्मा को बुढ़ापे की तकलीफें तो रहती ही हैं और जब तब ये उस का फायदा भी उठाती हैं. यह सोच कर कि ऋतिका की पार्टी में कोई काम न बता दे, कल कमरे में रहना ही बेहतर समझा होगा. फिर भी आप कुछ पूछना चाहते हैं तो पूछ लीजिए, कह कर रतन चला गया.
‘‘तो रात को जो खून हुआ उस के बारे में आप को कुछ पता नहीं, चिन्नाम्मा?’’ देव ने पूछा.
‘‘न खून के बारे में, न जिस का खून हुआ उस के बारे में.’’
‘‘लेकिन आप तो इस परिवार में कई सालों से हैं, प्रीति के बारे में तो जानती ही होंगी.’’
‘‘वह मां जी की डाक्टर थी. यह बड़े लोगों का घर है, इंस्पेक्टर. यहां डाक्टर, नर्सों की बात नहीं की जाती लेकिन रतन भले ही ऊंच-नीच न समझे, मैं तो मां जी की बताई लकीर पर ही चलती हूं.’’
‘‘और बहूरानी, वे भी नए जमाने की हैं क्या?’’
‘‘खानदानी घर की लड़की है, जैसा पति नचाता है, नाच लेती है.’’
तभी रतन और ऋतिका भी वहां आ गए और बोले, ‘‘इंस्पैक्टर, प्रिया अभी काफी सामान्य लग रही है. आप ऊपर चल कर उस से पूछताछ कर लीजिए. यह बताइए कि पोस्टमार्टम के बाद बॉडी कब मिलेगी? यह पता करने का कमिश्नर साहब से कहूं या आप पता कर देंगे.’’
‘‘मैं फोन कर के संबंधित अधिकारी से कह देता हूं कि 12 बजे से पहले बॉडी आप को मिल जाए. बॉडी घर लाएंगे या वहीं से अंतिम संस्कार के लिए ले जाएंगे?’’
‘‘इस बारे में तो सोचा ही नहीं.’’
‘‘सोचना क्या है, बेटा?’’ चिन्नाम्मा ने बात काटी, ‘‘जिस घर में उस ने प्राण त्यागे हैं उसी घर से उस की अर्थी उठनी चाहिए. सुहागिन थी, सुहागिन के रूप में विदा करो. क्यों, ठीक है न, बिटिया?’’
‘‘जैसा आप कहें, चिन्नाम्मा. आग कौन देगा, यह भी बता दीजिए?’’ ऋतिका ने असहाय भाव से पूछा.
‘‘अब जो अर्थी उठवा रहा है वही आग भी दे देगा,’’ चिन्नाम्मा ने तटस्थ भाव से कहा.
कुछ देर के बाद ही प्रीति का पार्थिव शरीर आ गया. चिन्नाम्मा उसे ऋतिका के साथ अंदर ले गई. कुछ देर के बाद उस का दुल्हन की तरह श्रृंगार कर के अंतिम यात्रा पर भेजने के लिए तैयार कर दिया गया. देव को लगा जैसे चिन्नाम्मा के अब तक निर्वाक चेहरे पर अचानक संतुष्टि के भाव उभर आए हों. यही भाव अंतिम संस्कार करने के बाद रतन के चेहरे पर भी थे.
उस रात देव देर तक नीना से बात करता रहा. नीना देव की इस बात से तो सहमत थी कि मामले में जितनी गहराई नजर आ रही है, उस से कहीं ज्यादा गहराई है जो प्रीति के अतीत से जुड़ी है लेकिन वह इस बात पर अड़ी हुई थी कि प्रिया को अपनी मां के अतीत के बारे में कुछ मालूम नहीं है.
‘‘अपने असली बाप का नाम भी नहीं?’’
‘‘वही फर्जी नाम जो प्रीति आंटी ने उस के
जन्म के सर्टिफिकेट पर लिखवाया था. प्रीति आंटी का कहना था कि उस का बाप बहुत ही भला और शरीफ आदमी था, आंटी उस की शराफत का फायदा उठा कर उसे उस के समृद्ध परिवार से अलग करना नहीं चाहती थीं. भैया, पुणे में प्रीति आंटी की कोई सहेली न सही, कोई नौकरानी वगैरह तो होगी जो शायद कुछ जानती हो.’’
‘‘तू ठीक कहती है, नीना. नौकरानी से ही सच उगलवाना होगा,’’ कह कर देव उठ खड़ा हुआ.
अगले रोज वह रतन के घर गया तो बच्चे कालेज और रतन अपने औफिस जा चुके थे. चिन्नाम्मा बरामदे में बैठी थी. देव उस के पास जा कर बैठ गया. चिन्नाम्मा ने उस की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखा.
‘‘कैसे आना हुआ. सब ठीक है न?’’
‘‘ठीक तो नहीं है, चिन्नाम्मा. कातिल के बारे में कुछ पता ही नहीं चल रहा.’’
‘‘तो फाइल बंद कर दो. जब हत्यारे का पता नहीं चलता तो पुलिस यही करती है.’’
‘‘मैं तो नहीं करने वाला. यहां कुछ पता नहीं चला तो पुणे जा कर डेरा डाल दूंगा और तब तक वापस नहीं आऊंगा जब तक डा. प्रीति सप्रे की पुरानी जिंदगी की बंद किताब न खोल लूं.’’
‘‘उस से हत्यारे का पता चल जाएगा?’’
‘‘चलना तो चाहिए क्योंकि हत्या की जड़ यानी वजह तो प्रीति के अतीत में ही छिपी है,’’ देव उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं रतनजी को अपने पुणे जाने के बारे में
ही बताने आया था. खैर, आप उन्हें बता देना.’’
‘‘आप का पुणे जाना जरूरी है?’’
‘‘हां, क्योंकि यहां तो कुछ पता नहीं चल रहा.’’
‘‘पुणे जा कर आप को हत्यारे का पता नहीं चल सकता. प्रीति का अतीत जानने पर मामला और भी उलझा जाएगा और इस परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. आप पुणे मत जाइए.’’
‘‘तो फिर यहीं हत्यारे को पकड़वाने में कुछ मदद कीजिए.’’
‘‘वादा कीजिए कि मैं जो सुबूत दूंगी आप उस की बुनियाद पर मुझे गिरफ्तार कर लेंगे और ज्यादा छानबीन नहीं करेंगे.’’
‘‘मैं ऐसा कोई वादा नहीं कर सकता क्योंकि मुझे तो हत्यारे को सुबूत के साथ पकड़ कर कानून के हवाले करना है.’’
‘‘चोरी के सुबूत मिल जाएंगे जो कत्ल की वजह है, मैं ने जो डौलर चुराए हैं उन्हें जब्त कर के मुझे गिरफ्तार कर लो. कह देना शक की बुनियाद पर तुम ने मेरे कमरे की तलाशी ली और पैसे बरामद किए, बात खत्म.’’
‘‘मैं यहां असली अपराधी पकड़ने आया हूं, किसी दूसरे का अपराध छिपाने में आप की मदद करने नहीं.’’
‘‘हत्या मैं ने की है और मेरे पास उस का सुबूत भी है. वह साड़ी जिसे पहन कर मैं ने गोली चलाई थी. उस पर प्रीति के खून के छींटों के निशान हैं.’’
‘‘यह चोरी वाली बात तो मैं मानने से रहा. चिन्नाम्मा सच बताइए, आप ने हत्या क्यों की?’’
‘‘यह मैं आप को नहीं बता सकती.’’
‘‘तो मैं भी आप को नहीं पकड़ सकता. पुणे जाए बगैर यह गुत्थी नहीं सुलझेगी.’’
‘‘सुलझा सकती है. मैं तुम्हें असली वजह बताने को तैयार हूं पर शर्त यह है कि तुम उसे अपने तक ही सीमित रखोगे. यह खून मैं ने किसी की खुशी के लिए किया है या लालच के लिए, इस से तुम्हारे कानून को क्या फर्क पड़ता है?’’
‘‘यह तो पूरी कहानी सुनने के बाद ही कह सकता हूं.’’
इस के बाद चिन्नाम्मा उठी और देव को ले कर अपने कमरे में चली गई. उस के कमरे में सभी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. देव सोफे पर बैठ गया तो चिन्नाम्मा बताने लगी.
‘‘पहले तो तुम्हें यह बता दूं कि मैं नौकरानी नहीं हूं. मेरे पति सूबेदार थे और मैं भी पढ़ीलिखी हूं. मांजी ने तो मुझे जो मानसम्मान दिया था वह शायद मेरा एहसान समझा कर था लेकिन ऋतिका ने मुझे पहले रोज से ही मां की तरह समझा और मैं ने उसे बेटी की तरह. कई सालों तक तो मैं ने उस से यह कटु सत्य छिपा कर रखा था लेकिन जब व्यापार के बहाने रतन का पुणे जाना बढ़ने लगा और वह बेहद उदास रहने लगा तो मैं ने ऋतिका को रतन, प्रीति और प्रिया के बारे में बताना ही बेहतर समझा.
‘‘यह भी बता दिया कि इस सारे मामले में दोषी मांजी ही थीं, जो रातदिन प्रीति की तारीफ करती थीं, समयअसमय रतन को उसे लाने के लिए भेज देती थीं और अकसर कहा करती थीं कि सोचती हूं तुझे हमेशा के लिए साथ कैसे ले जाऊं? लेकिन जब बच्चों ने शादी करनी चाही तो बिदक गईं कि वे तो प्रीति को बेटी मानती हैं. रतन ने तरकीब सोची कि अगर प्रीति उस के बच्चे की मां बनने वाली हो तो मां को मानना पड़ेगा लेकिन तब मामला और भी बिगड़ गया. मांजी ने प्रीति को बदचलन करार दे कर रतन को उस से मिलने पर भी रोक लगा दी और ऋतिका से रतन की शादी तय कर दी.
‘‘रतन तो घर छोड़ कर चला गया लेकिन प्रीति ने उसे समझा-बुझा कर वापस भेज दिया. कुछ साल तक तो सब ठीक चला लेकिन युवा होती बेटी के भविष्य को ले कर रतन बहुत चिंतित रहता था और उस की हालत देख कर ऋतिका. मुझा से दोनों की वह हालत नहीं देखी गई. मैं ने ऋतिका को सब बताया और सलाह दी कि रतन को खुश देखने का एक ही तरीका है कि वह किसी तरह प्रिया को गोद ले ले.
‘‘ऋतिका ने बहुत सोचने के बाद तरकीब निकाली. उस का भाई अमेरिका में डाक्टर था. उस की सहायता से उस ने प्रीति के अमेरिका जाने की व्यवस्था कर दी और प्रिया को गोद ले लिया. फैसला तो यही था कि प्रीति वापस भारत नहीं आएगी, प्रिया को ही उस से मिलने भेजा जाएगा लेकिन रतन और प्रीति के आभार प्रकट करने से ऋतिका का दिमाग खराब हो गया और उस ने मेरे मना करने के बाद भी प्रीति को यहां बुला लिया.
‘‘मुझे बहुत बुरा लगा और मैं ने अपनी नाराजगी कमरे से न निकल कर दर्शायी. पहले तो ऋतिका ने कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन शाम को वह मेरे कमरे में आ यह बता कर बहुत रोई कि कैसे रतन हमेशा के लिए प्रीति को इसी शहर में रखने की व्यवस्था कर रहा है. मैं ने उसे दिलासा दिया कि वह मुझा पर भरोसा रखे. मेरे जीतेजी उस का अहित कभी नहीं होगा. उस ने जिस उत्साह से मेहमान बुलाए हैं उसी उल्लास से उन का स्वागत करे.
‘‘मैं कुछ देर के बाद प्रीति के कमरे में उसे समझाने के इरादे से गई. वह मुझा से बड़ी गरमजोशी से मिली और पूछने लगी कि वह कैसी लग रही है? मैं ने कहा ठीक लग रही है तो बोली कि उसे ठीक नहीं, बहुत अच्छी लगना है ताकि डा. नायक उसे फौरन नौकरी दे दें.
‘‘मैं ने मौका लपक कर उसे समझाना चाहा कि उस के आने से ऋतिका का कितना अहित होगा तो वह बोली कि जब ऋतिका को असलियत मालूम हो ही चुकी है तो उसे रतन को उस के साथ बांटने में एतराज नहीं होना चाहिए. वह अकेले रहतेरहते बहुत परेशान हो चुकी है और अब एक भरापूरा घर चाहती है.
‘‘मुझे गुस्सा आ गया. मैं ने कहा कि मैं ऐसा कुछ नहीं होने दूंगी. प्रीति ने अवहेलना से पूछा कि मैं क्या करूंगी? मैं ने कहा कुछ भी, तभी मेरी नजर ड्रैसिंग टेबल पर रखे रिवौल्वर व कारतूस पर पड़ी और मैं ने कहा कि मैं उसे गोली मार दूंगी.
प्रीति बगैर जवाब दिए हंस कर खुद को आईने में निहारने लगी. उस ने सोचा होगा कि मुझे तो रिवौल्वर पकड़ना भी नहीं आता होगा. मुझे रिवौल्वर में कारतूस भरते देख कर भी उस ने कुछ नहीं कहा. बस, व्यंग्य से हंसती रही और उस के दूसरी ओर मुड़ते ही मैं ने गोली चला दी और हमेशा के लिए फांस निकाल कर अपने कमरे में लौट आई.
‘‘मेरा खयाल था कि सुबूत के अभाव में पुलिस केस रफादफा कर देगी पर जब मुझे पता चला कि तुम तफतीश कर रहे हो तो मैं डर गई क्योंकि तुम्हारी काबिलीयत के बारे में मैं पहले से जानती थी. तुम ने जब कहा कि तुम पुणे जा रहे हो तो मुझे लगा कि जिस सच्चाई को छिपाने के लिए रतन, प्रीति और ऋतिका ने इतने साल असहनीय पीड़ा सही है वह अब एक चटखारे ले कर सुनाने वाली खबर बन कर फैल जाएगी. बस, मैं ने अपना गुनाह कुबूल करने का फैसला कर लिया.’’
चिन्नाम्मा ने अलमारी की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इंस्पेक्टर, उस में तुम्हें डौलर और खून के धब्बों वाली साड़ी मिल जाएगी. मुझे चाहे जितनी कड़ी सजा दिलवानी चाहो, दिलवा देना लेकिन इस परिवार की इज्जत बचा लेना.’’
देव चुपचाप सजल नेत्रों से अलमारी की ओर बढ़ गया. Mystery Story In Hindi :





