Nepotism Debate: परिवार का नाम पूरे करियर की गारंटी नहीं बन सकता. समय के साथ यह सिद्ध हुआ है कि टैलेंट, मेहनत और कर्मठता ही किसी व्यक्ति को लंबे समय तक टिकाए रखते हैं. यदि क्षमता न हो, तो चाहे कितनी भी ऊंची पृष्ठभूमि क्यों न हो, जनता उसे स्वीकार नहीं करती.

समाज की संरचना में परिवार एक महत्वपूर्ण इकाई है. हर व्यक्ति का प्रारंभिक व्यक्तित्व, संस्कार, सोच और अवसर परिवार के भीतर ही विकसित होते हैं. इसलिए यह स्वाभाविक है कि कई क्षेत्र चाहे राजनीति हो, फ़िल्म उद्योग हो, खेल, व्यवसाय, कला या अन्य कोई भी पेशा, में पहले से स्थापित परिवार अपने किसी व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रारंभिक मंच और संसाधन उपलब्ध कराता है. इसे आम भाषा में परिवारवाद या नैपोटिज्म कहा जाता है.
फिल्म इंडस्ट्री और राजनीति के क्षेत्र में नैपोटिज्म को काफी बदनाम किया जाता है. आरोप लगाए जाते हैं कि परिवारवाद के चलते बाहर की प्रतिभाओं को अवसर नहीं मिलता या इन क्षेत्रों में स्थापित परिवार अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए बाहरी लोगों से अवसर छीन लेते हैं.
अभिनेत्री तापसी पन्नू की सशक्त एक्टिंग उन की फिल्मों की सफलता की गारंटी है, मगर एक समय वह भी था जब किसी ‘स्टार किड’ के लिए उन से फिल्म छीन ली गई थी. तब उन्होंने कहा था – ‘सिर्फ टैलेंट होने पर भी, अगर आप के पारिवारिक या इंडस्ट्री कनेक्शन नहीं हैं, तो अवसर मिलना आसान नहीं होता है.’
कुछ ऐसे ही एक्सपीरयंस से कृति सेनन भी गुजरी थी जब उन्हें एक फिल्म से हटा दिया गया था और उन की जगह “स्टारकिड” को लिया गया था. कृति ने भी एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर वे किसी फिल्म फैमिली से होतीं, तो उन का सफर आसान होता, क्योंकि उन्हें एक फिल्म से दूसरे में जाने का मौका आसानी से मिलता.

कई मीडिया रिपोर्ट्स में सुशांत सिंह राजपूत को उद्धृत किया गया है कि उन्हें फिल्मों में “वही मौके” नहीं मिले जो स्टारकिड्स  को मिलते थे. नैपोटिज्म विरोधी बहस में, सुशांत के केस को अक्सर इंडस्ट्री में “अन्याय” और “फेयरनेस” की कमी का उदाहरण माना जाता है.

प्रियंका चोपड़ा के बारे में भी कहा जाता है कि “भेदभाव” और “अन्याय” की वजह से उन्हें बौलीवुड में पर्याप्त फिल्में नहीं मिली. हालांकि प्रियंका ने बाद में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई, लेकिन करियर के शुरुआती दिनों में “फेयर चांस” की कमी उन को सालती रही.
लेकिन इन सभी कलाकारों ने अपने टैलेंट और मेहनत के दम पर एक ऊंचा मुकाम हासिल किया. जबकि इन के मौके छीनने वाले स्टारकिड्स में से अनेक विफलता के अंधेरे में गुम हो चुके हैं.
कई “स्टारकिड्स” तो खुद कहते हैं कि शुरुआत आसान होती है, लेकिन टिके रहने के लिए मेहनत और टैलेंट मायने रखता है. कुछ कलाकार ऐसे भी हैं जिन्होंने बिना किसी इंडस्ट्री बैकग्राउंड के कड़ी मेहनत कर के सफलता पाई. इस का मतलब हुआ कि परिवारवाद नहीं, बल्कि प्रतिभा, अवसर, मेहनत और किस्मत मायने रखते हैं.

यशराज परिवार से आने वाले उदय चोपड़ा फिल्म ”धूम” के बाद एक्टिंग की दुनिया से पूरी तरह गायब हो चुके हैं. काजोल की बहन तनीषा मुखर्जी भले नैपोटिज्म के चलते रंगीन परदे पर दिखाई दीं, मगर उन की सभी फिल्में फ्लौप रहीं. वहीं निर्देशक हैरी बावेजा के बेटे हरमन बावेजा बड़े लान्च के बाद भी फिसड्डी साबित हुए. सुपरस्टार फिरोज खान के बेटे फरदीन खान भी अपने असफल करियर के बाद इंडस्ट्री से गायब हो चुके हैं. जबकि बिना किस गौडफादर के फिल्मों के आने वाले अक्षय कुमार, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, इरफान खान, सुशांत सिंह राजपूत, राजकुमार राव, विक्की कौशल, रवीना टंडन, कंगना रनौत, स्वरा भास्कर और अभय देओल अपनी काबलियत और संघर्ष के चलते इंडस्ट्री के आसमान पर खूब चमके.

रणबीर कपूर, आलिया भट्ट, ऋतिक रोशन, करीना कपूर, वरुण धवन और जान्हवी कपूर को जरूर नैपोटिज्म का फायदा मिला और इंडस्ट्री में अगर उन्होंने अपनी पहचान बनाई तो इस में उन की मेहनत और काबिलियत भी शामिल है. तो परिवारवाद का अर्थ यह नहीं कि प्रतिभा की कमी को प्रतिष्ठा, नाम या धन के सहारे पूरा किया जा सकता है. सही मायनों में यह केवल पहला अवसर या एक शुरुआती प्लेटफार्म देता है, लेकिन उस के बाद का सफर पूरी तरह मेहनत, संघर्ष, योग्यता और परिणामों पर आधारित होता है.

कुछ बड़े परिवार और राजनैतिक वंशराज जिन का अक्सर नैपोटिज्म के साथ नाम जुड़ा है, उस में सब से पहला नाम नेहरूगांधी परिवार का आता है. कहा जाता है कि कांग्रेस में इस परिवार के सदस्य ही सदा शीर्ष पर बैठते हैं, औरों को आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जाता है.

वहीं लालू प्रसाद यादव की पार्टी और परिवार में पत्नी, बेटेबेटियां, रिश्तेदारों को राजनीतिक अवसर दिए जाने की आलोचना होती रही है. मगर सफलता एकाध के हाथ ही लगी. मुलायम सिंह यादव परिवार पर भी वंशवाद के आरोप लगते रहे हैं. एचडी देवेगौड़ा (कर्नाटक) के परिवार के कई सदस्य राजनीति में रहे. मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती (जम्मूकश्मीर) की पार्टी/परिवार में राजनीतिक वंशवाद को लेकर चर्चा बनी रहती है. मगर इन खानदानों से आने वाले लोगों में से कुछ ही राजनीति के मंच पर खुद को साबित कर पाए.

दरअसल नैपोटिज्म (परिवारवाद) का अर्थ है रिश्तेदारों, परिवार या नजदीकी लोगों को योग्यता की तुलना में अधिक प्राथमिकता देना. हालांकि हर इंसान स्वाभाविक रूप से अपने परिवार के लिए अच्छा चाहता है, लेकिन सार्वजनिक जीवन, राजनीति, नौकरी, शिक्षा या मनोरंजन उद्योग जैसे क्षेत्रों में जब यह प्रवृत्ति बढ़ जाती है, तो कई नकारात्मक बातें और परिणाम सामने आते हैं.
यही कारण है कि नैपोटिज्म को आलोचना का सामना करना पड़ता है. लोग इसलिए इस के विरोध में बोलते हैं क्योंकि यह समान अवसर, न्याय और मेरिट की अवधारणा को कमजोर करता है.
लेकिन सच पूछें तो नैपोटिज्म व्यक्ति को मौका दे सकता है, एक मंच दे सकता है, मगर परिवारवाद उस के सफल करियर की गारंटी नहीं है. वह उस का लंबा करियर तय नहीं कर सकता है. क्योंकि उस के लिए व्यक्ति में टैलेंट होना जरूरी है.
परिवारवाद एक दरवाजा खोल सकता है, मगर पूरे भवन की नींव, दीवार और छत सब मेहनत से बनते हैं. किसी को मंच विरासत में मिल सकता है, मगर तालियों की गूंज केवल प्रतिभा, संघर्ष और कर्मठता से ही हासिल होती है. इसलिए कहा जाता है – “पहचान विरासत से मिल सकती है, मगर सम्मान केवल कर्म से मिलता है.”
इतिहास गवाह है कि मंच मिल जाने मात्र से कोई महान नहीं बन जाता है. असंख्य उदाहरण मिलते हैं जहां परिवारवाद के सहारे प्रवेश तो मिला, लेकिन प्रतिभा और मेहनत की कमी के कारण व्यक्ति टिक नहीं पाया. लंबे समय तक जनता, उपभोक्ता, मतदाता या दर्शक केवल नाम के आधार पर किसी को स्वीकार नहीं करते है. वे परिणाम चाहते हैं, गुणवत्ता चाहते हैं.

यदि कलाकार में अभिनय का कौशल नहीं है तो दर्शक उसे नकार देते हैं. यदि नेता जनता के काम नहीं करता तो मतदाता उसे सत्ता से बाहर कर देते हैं. यदि उद्योगपति जिम्मेदार और सक्षम नहीं है तो व्यवसाय डूब जाता है. यदि खिलाड़ी कड़ी मेहनत नहीं करता तो मैदान पर असफल हो जाता है. साफ है कि वास्तविक सफलता का आधार केवल कर्मठता और कौशल है.
किसी भी क्षेत्र में सफलता के कुछ सार्वभौमिक नियम हैं. जैसे- लगातार सीखते रहना, कठिन परिश्रम करना, समय और अवसर का सही उपयोग करना, नैतिकता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता और परिणाम के आधार पर स्वयं को साबित करना. ये गुण न तो खरीदे जा सकते हैं और न ही किसी विरासत से सीधे प्राप्त हो सकते हैं. अगर किसी में यह गुण हैं तो उसे सफल होने से कोई रोक नहीं सकता है.

रही बात नैपोटिज्म या परिवारवाद की तो किसी को केवल इसलिए नहीं आंकना चाहिए कि वह परिवारवाद से आया है, क्योंकि यह उस की क्षमता का पूरा पैमाना नहीं है. अवसर मिलना गलत नहीं, अवसर का गलत उपयोग करना गलत है. उपलब्धियों का मूल्यांकन हमेशा परिणाम, प्रदर्शन और व्यक्तित्व के आधार पर होता है.

 

भारत सहित कई देशों में परिवारवाद एक बहस का गंभीर विषय है. राजनीति, फिल्म उद्योग, खेल या व्यापार, हर क्षेत्र में अक्सर यह आरोप लगता है कि प्रतिभा से अधिक महत्व पारिवारिक पृष्ठभूमि को दिया जाता है.

परिवारवाद की सब से बड़ी समस्या यह है कि यह योग्य और प्रतिभाशाली युवाओं के लिए रास्ते संकरे कर देता है. इस से समाज में निराशा और असमानता बढ़ती है. निश्चित रूप से परिवारवाद किसी युवक या युवती को एक मंच और प्रारंभिक अवसर प्रदान कर सकता है. पहुंच, संसाधन और पहचान जैसे लाभ ऐसे लोगों को आसानी से मिल जाते हैं जिन का संबंध किसी प्रभावशाली परिवार से हो.

परंतु सिर्फ परिवार का नाम पूरे करियर की गारंटी नहीं बन सकता. समय के साथ यह सिद्ध हुआ है कि टैलेंट, मेहनत और कर्मठता ही किसी व्यक्ति को लंबे समय तक टिकाए रखते हैं. यदि क्षमता न हो, तो चाहे कितनी भी ऊंची पृष्ठभूमि क्यों न हो, जनता उसे स्वीकार नहीं करती.

इतिहास गवाह है कि अनेक लोग बड़े नाम होने के बावजूद असफल हुए, जबकि साधारण परिवारों से आए लोगों ने अपने गुणों के दम पर शिखर हासिल किया. आज के युवा बदलते भारत का चेहरा हैं. वे जानते हैं कि सफलता सिर्फ वंश से नहीं, बल्कि कड़ी मेहनत, अनुशासन, संघर्ष और कौशल से मिलती है. तो यदि समाज में समान अवसरों की व्यवस्था हो, तो प्रतिभा स्वयं रास्ता बना लेती है. Nepotism Debate.

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