Hindi Social Story: पति का प्रेम भी बड़ा अनोखा होता है, जब तक पत्नी उस की सेवा करे तब तक संस्कारी. वहीं अगर पत्नी अपने लिए थोड़ा जी तो तोबातोबा. नीरजा को लग रहा था जैसे जीजाजी ने सुमिता जीजी पर अपना कौपीराइट लगा दिया है.
नीरजा जल्दीजल्दी तैयार हो रही थी कालेज के लिए. सुबह का समय तो ऐसे भागता है जैसे मैराथन रेस चल रही हो. इसी बीच फोन की घंटी, नहीं, नहीं ले सकती अभी फोन. मगर देखा तो नया नंबर था, उसे लेना जरूरी था.
‘‘हैलो भाभी,’’ सुमिता जीजी की आवाज थी.
2 दिन से लगातार उन का फोन नो रिप्लाई आ रहा था. चिंता थी मन में, सब ठीक तो है न, जीजाजी बीमार चल रहे हैं और घर में ही हैं साल भर से. ऐसे में फोन का जवाब न मिले तो चिंता होना स्वाभाविक है. काम करतेकरते ही इयरप्लक कान में लगाया और बोली, ‘‘सब ठीक है न, जीजी?’’
‘‘भाभी, कुछ भी ठीक नहीं है,’’ और रोने लगी.
‘‘अरे हुआ क्या जीजी, अच्छा पहले यह बताओ कि सब का स्वास्थ्य तो ठीक है?’’
‘‘हां, वह तो ठीक है. मैं अभी दवा लेने बाहर आई तो आप से बात कर रही हूं. यह बताना जरूरी था आप को कि वहां से कोई मुझे फोन मत करना. जब मौका लगेगा, मैं खुद ही करूंगी. आप यह बात भैया को भी बता देना.’’
नीरजा कुछ पूछती, उस से पहले ही लाइन काट दी उन्होंने. खटका सा हुआ पर आगे की बात अभी नहीं हो सकती थी. इसी नंबर पर मैं वापस फोन कर लेती लेकिन बाहर के शोर में सुमिता जीजी की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी.
शाम को वरुण को बताया तो वे बोले कि 2 दिन पहले मेरे पास जीजू का फोन आया था. शिकायतों का पिटारा खोल दिया था उन्होंने. मैं ने कहा भी कि आप की बीमारी अब कुछ सुधार पर आई है, ऐसे में क्यों तनाव लेते हैं, फिर कभी बात करेंगे लेकिन वे उलटे मुझा पर ही आगबबूला हो गए और बोले, ‘आप और भाभी बड़े हैं, उसे कुछ समझाने की जगह मुझे ही कहने से रोक रहे हैं.’
अब क्या बताएं यार, कोई समझाने जैसी बात तो हो. फालतू में तिल का ताड़ बनाने की पुरानी आदत है उन की. शादी के 40 वर्षों के बाद भी ससुराल वालों से पत्नी की शिकायत करते हैं.
उसे सुधारने की सलाह हम से दिलवाने का यह मामला नया नहीं था. हम देररात तक इस विषय पर बात करते रहे. कल छुट्टी थी.
सुबह बिस्तर छोड़ने का मन नहीं था पर घर के सैकड़ों अधूरे काम निबटाने थे, लिहाजा, नींद का मोह छोड़ उठना जरूरी था. वरुण सुबह की सैर कर के और घर का सामान ले कर आए तब तक मैं खासे काम निबटा चुकी थी और इस का संतोष था कि अब इत्मीनान से चायनाश्ता किया जा सकता है. वरुण की पसंद के ओट्स के पेनकेक बनाए और चाय कपों में छानी.
सर्दी की गुनगुनी धूप में बरामदे में मैं ने नाश्ता लगाया. अखबार लाने को मुड़ी कि वरुण का फोन घनघना उठा.
मैं ने कहा, ‘‘जरूरी न हो तो अभी जाने दो, पहले नाश्ता कर लेते हैं.’’
फोन जीजू का था, इसलिए लेना ही था. जोरजोर से गरजने की आवाज रिसीवर फाड़ कर बाहर आने लगी और वरुण की ‘हां हूं हां हूं’ करने की मियाद भी बढ़ती जा रही थी. इधर चायनाश्ता ठंडा हो रहा था और उधर से ऐलान हुआ कि ‘भाभी को दीजिए.’
वरुण ने जान छुड़ाते हुए फोन मुझे पकड़ा दिया.
न दुआ न सलाम, बस शुरू हो गए श्रीमान-
‘‘भाभीजी, अपनी ननद को जरा सा समझातीं क्यों नहीं?’’
‘‘क्या अपराध हो गया जीजाजी, पहले पता तो चले?’’
‘‘क्यों, आप को वरुण भैया ने नहीं बताया? मैं ने 2 दिन पहले सारी बात बताई थी उन्हें.
मैं ने टालने की गरज से कहा, ‘‘हम बाद में बात करें, जीजाजी?’’
वे जोर से गरजे, ‘‘बाद में क्यों, अभी क्यों नहीं? आज तो छुट्टी का दिन है.’’ बड़े रोब से वे बोले, जमाई होने का यह फायदा तो लेना ही था.
‘‘ठीक है, कहिए?’’
‘‘देखिए, मैं सालभर से घर में बीमार पड़ा हूं, मेरी देखभाल करने, मेरे पास बैठने की जगह हर वक्त फोन पर लगी रहती है आप की दुलारी ननद. आवाज देदे कर थक जाता हूं पर इस के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. कितनी बार फोन हाथ से ले कर अंदर भी रखा. अब देखिए इस ने नया फोन मंगवा लिया, इस की हिम्मत देखिए.’’
उन की आवाज का ताप मेरे कानों से हो कर दिमाग तक पहुंच रहा था. रात को हम दोनों ने इस मसले पर खूब बातें की थीं, सो, मुझे होमवर्क करना नहीं पड़ा.
‘हिम्मत तो देखिए’ सुन कर मेरे धैर्य ने भी जवाब दे दिया.
‘‘जीजाजी, हिम्मत ही तो नहीं है उन में, नहीं तो क्या कुछ नहीं कर लेतीं.’’ वरुण ने आवेश से थरथराते हाथ पर अपना हाथ रख कर संयत रहने का संकेत दिया. मैं मन ही मन बड़बड़ा रही थी कि आप जैसे बददिमाग और काहिल आदमी को ढो रही है बेचारी.
‘‘आप ने कोई कामवाली को रख लिया है क्या घर के कामों के लिए और अपनी देखभाल के लिए नर्स रखी है क्या?’’
‘‘क्या कह रही हैं आप, वह सब तो हमेशा सुमि ही करती है. 2 लोगों का काम ही कितना है?’’
‘‘जीजाजी, सुमिता जीजी भी अब
60 से ऊपर हो गई हैं. आप से 2 वर्ष ही तो छोटी हैं. जिस तरह आप का शरीर सेवाटहल मांगता है उन का भी तो मांगता होगा न. वे भी थकती होंगी. रोजमर्रा के पूरे काम निबटा कर वे फोन पर अपने भाईबहनों, संगीसहेलियों से थोड़ाबहुत बोलबतला लेती हैं तो कौन सा अपराध करती हैं जिस के लिए आप ने हम तक गुहार मचाई. वे भी तो हम से कभी कह सकती थीं कि अब मैं थक गई हूं भैयाभाभी, तन से भी और मन से भी.’’
‘‘यह आप कह क्या रही हैं, यह उस ने कहा?’’
‘‘उन की आदत नहीं है अपने दुखडे़ रोने की. हमें क्या दिखता नहीं है. आप की गृहस्थी की गाड़ी खींचने में जुटी रही हमेशा. आप ने तो गहना, कपड़ा, घूमनाफिरना तो दूर, कभी उन की हारीबीमारी के लिए भी पैसा खर्च नहीं किया. वे घरेलू उपचारों से ही अपना काम चलाती रहीं जबकि आप का इलाज अच्छे डाक्टर से करवा रही हैं. कभी सोचा कि वह सारा जुगाड़ कहां से करती होंगी. घरखर्च के पैसे से और यह कितना मुश्किल काम है, आप को क्या पता?
‘‘यह तो सभी औरतें करती हैं, करना पड़ता है.’’
‘‘करना पड़ता है, वाह, तो फिर आप पुरुषों के लिए क्यों जरूरी नहीं है उस के एवज में उन्हें बहुत शानोशौकत न सही पर चिंताओं से मुक्त जिंदगी तो जीने दें. नौकरी उन्होंने करनी चाही, उस की इजाजत आप ने दी नहीं यह कह कर कि 2 जनों का खर्च ही कितना होता है, क्या जरूरत है.’’
‘‘तो क्या गलत कहा था मैं ने?’’
‘‘नहीं, गलत आप कैसे हो सकते हैं लेकिन इस की जगह आप को कहना था कि मेरा खर्चा ही कितना है उतना तो मैं कमाता ही हूं. जीजी तो आप के घर के काम करने के एवज में सिर्फ रोटी ही खाती रही हैं. उन के लिए कभी किसी भी चीज का पैसा भी खर्च किया है तो बताइए? अपनी छोटीमोटी त्योहार उत्सव से मिली पूंजी से पहली बार खुद के लिए एक फोन क्या खरीदा कि आप हत्थे से ही उखड़ गए.
‘‘हम सबकुछ जानते हुए भी, सुमि जीजी के साथ भरपूर हमदर्दी रखते हुए भी, कभी बीच में नहीं पड़े कि आप का पतिपत्नी का मामला है. जीजी के आत्मसम्मान को क्यों आहत करें. करने को थोड़ीबहुत सहायता कर भी सकते थे पर उन्होंने कभी स्वीकारा नहीं क्योंकि वह आप का सम्मान ससुराल में बनाए रखना चाहती हैं लेकिन यह आप के समझा में आने वाली बात है नहीं.’’
‘‘आप क्या कह रही हैं, भाभी? आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी कभी. परिवार में सब से समझादार मानी जाती रही हैं पर.’’
‘‘जीजाजी, औरत जब तक मुंह नहीं खोलती वह समझादार ही मानी जाती है और जैसे ही उस ने आप पुरुषों की कारगुजारी बताने के लिए मुंह खोला या थोड़ी मनमानी की नहीं कि आप नाग की भांति फुंफकारने लगते हैं. यहां तो मनमानी भी नहीं है, अपने बचाए पैसे से एक फोन क्या ले लिया, कहर टूट पड़ा. आप के औफिस से आने के बाद आप ही के सामने वे दोचार फोन कर लेती हैं तो वह आप को गवारा नहीं. इस की जगह आप ही कभी सोचते कि घर का काम निबटा कर थोड़ी देर वह भी तो किसी से बात करना चाहती होगी. सो, आप ही उस के लिए एक अदद फोन ला देते. पर नहीं, घड़ी, चूड़ी, साड़ी और बिंदी भी जो व्यक्ति कभी लाया नहीं, वह पत्नी को फोन क्या ला कर देगा.
‘‘अब आप को डर होगा कि वह आप से बात करने, आप की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक टांग पर खड़ी नहीं रहेंगी तो क्या होगा. आप का किंगसाइज का मैन ईगो कैसे संतुष्ट होगा कि देखो, एक हाड़मांस का जीताजागता इंसान पुतले की तरह मेरे आदेश मानने को 24 घंटे एक टांग पर खड़ा रहता है.’’ उत्तेजना से नीरजा का चेहरा तमतमा रहा था.
‘‘आप से ऐसी उम्मीद न थी. आप मेरे बारे में ऐसा सोचती हैं. आप लोगों की शह ने ही उस का दिमाग खराब किया है. दिनभर फोन पर यही सब तो बातें चलती रहती हैं.’’
‘‘फिर आप कह रहे हैं कि दिनभर, आप क्या उस के लिए फोन घर पर छोड़ कर चले जाते थे औफिस जाते समय. आप जरा आंख खोल कर देखिए, दुनिया कहां से कहां चली गई और आप आज भी पतिपरमेश्वर के स्वर्ण सिंहासन को छोड़ना ही नहीं चाहते.’’
‘‘तो आप लोग इस मामले में उसे कुछ नहीं समझाएंगे?’’
नीरजा के हाथ से फोन वरुण ने ले लिया, ‘‘यदि जरूरत होती तो जरूर समझाते, जीजाजी. हम सुमि जीजी को जानते हैं. वे अपने घर और अपने पति के प्रति कर्तव्य से विमुख हो कर कुछ नहीं करेंगी. हमारी सुमि चाहती तो घरगृहस्थी के साथसाथ अपने हुनर से अपनी एक पहचान बना लेती. वे आप के आदेश पर चलीं, जिस के लिए शुक्रगुजार होने या फिर अपने अंदर कोई पछतावा रखने की जगह उसी को दोषी ठहरा रहे हैं आप. ऊपर से तुर्रा यह कि आप हम से चाहते हैं कि हम अपनी बहन को गलत करार दें. हां, गलती तो हुई है उन से जो उन्होंने पहली बार पति के आदेश को नहीं माना. काश, यह पहले ही किया होता या फिर थोड़ा हम ने ही उन को साहस दिया होता तो बात कुछ और ही होती.’’
यह सब कहने के बाद वरुण का कंठ अवरुद्ध हो गया. नीरजा ठंडे पानी का गिलास ले कर आई. पूरा दिन बरबाद हो गया. दिनभर सुबह की मनहूस बहस की छाया घर में डोलती रही.
‘‘इस बार उन्होंने फिर शिकायतों का पिटारा खोला तो मैं वह कह बैठूंगा जो मुझे कहना नहीं चाहिए.’’
‘‘यह आप क्या कह रहे हैं, वरुण. यह सुमि जीजी के साथ विश्वासघात नहीं होगा क्या?’’
‘‘तो क्या करूं, नीरजा. मेरे अंदर का अपराधबोध, उन का उतरा चेहरा देख कर कोड़े मारता है. मैं कुछ नहीं कर पाया उन के लिए.’’
‘‘अब छोड़ो, जो बीत गई उस की बात करने और पछतावा करने का कोई अर्थ नहीं है. हम ने तो कोशिश भी की थी. गलत का विरोध करने का साहस हम ही कहां जुटा पाए और सुमि जीजी नहीं चाहती थीं कि जीजाजी से कोई बात करे उस विषय पर. तभी तो हम ने उस विषय को छोड़ दिया. अब आप नहाने जाओ.’’
सुमि जीजी की शादी को 5 वर्ष हो गए. गोद नहीं भरी उन की तो अम्माजी ने नीरजा के साथ उन्हें डाक्टर के पास भेजा था. डाक्टर की सलाह पर उन के सारे टैस्ट हुए और कोई रुकावट उन की तरफ से नहीं है, यह तय हो गया. डाक्टर ने पति को भी परीक्षण करवाने को कहा और जीजी ने डरतेडरते यह बात साहस जुटा कर जीजाजी को बताई तो उस दिन उन के घर में भीषण घमासान मच गया. जीजाजी परीक्षण के लिए मानना तो दूर, अपनी तरफ उठी उंगली को जड़ से उखाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. क्रोधी तो पहले से ही थे, बाद में तो दुर्वासा का अवतार बन गए.
नीरजा ने बहुत कुरेदा तब उन्होंने बताया और हाथ जोड़ कर वचन लिया कि उस बात को कोई कभी नहीं उठाएगा यदि उन के जीवन में शांति चाहते हैं तो, बहनबेटी के जीवन में शांति कौन सा बापभाई नहीं चाहता. सब चुप हो गए. अनाथ आश्रम से बच्चा लाने या रिश्तेदार के बच्चे को गोद लेने के विकल्प खुले थे. चिकित्सा विज्ञान में नितनए आविष्कारों में से भी किसी एक को चुना जा सकता था. सामान्य सी बात थी लेकिन स्थिति को समझादारी से स्वीकार कर के, थोड़ी उदारता बरती होती तो जीवन में संतुलन आ जाता.
जीजाजी अपनी तरफ फेंका किसी का भी प्रश्न बरदाश्त करने की जगह पत्नी को ही जिम्मेदार ठहराने की सनातन-पुरातन लीक पर चले. भरपूर जीवंतता से लबरेज सुमि जीजी पतझाड़ के पत्ते की तरह मुरझाती चली गईं.
पेड़ तो बसंत आते ही फिर भी हरिया जाता है परंतु जीजी के जीवन की तो जड़ ही सूख गई थी. यह सच्चाई सिर्फ नीरजा और वरुण को ही पता थी और उन्होंने इसे अपने तक रखा. शुरू में तो कई बार वरुण का खून खौलता और वह जीजाजी को खरीखरी सुनाने के लिए बावला हो उठता. मगर गोपनीयता का जीजी से किया वादा आड़े आ जाता. Hindi Social Story.





