इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट यानी अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय अब सही शक्ल लेने लगा है और नरेंद्र मोदी जैसे शासकों की नींद हराम कर सकता है जो आज भी अपने गुनाहों के लिए अफसोस जाहिर करना तो दूर, उन के सहारे अपना नया रास्ता खोज रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय अदालत के पास अब तक कम मामले आए हैं पर युगांडा में जोसेफ कोनी के खिलाफ वारंट जारी होने के बाद उस का बुरी तरह कमजोर हो जाना और कांगो के पहले शासक थौमस लुबांगा को 14 साल की सजा मिलने जैसे फैसलों से दहशत फैल गई है.

आज एक ऐसे शासक का बहुमत के सहारे भी राज करना खतरे से खाली नहीं अगर वह नरसंहार के लिए कभी जिम्मेदार रहा है. अब सरकारें अपनी जनता के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं. श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे पर भारी दबाव पड़ रहा है कि देश के विभाजन की गलत मांग को कुचलने के दौरान की गई निहत्थे निर्दोषों की हत्याओं के लिए उन को सजा क्यों न मिले?

जेनेवा स्थित यह अदालत असल में उन शासकों या अपनी निजी सेनाएं बना कर उन विद्रोहियों के लिए खतरा बन गई जो अपने ही लोगों को मारने को अपना हक समझते हैं. दूसरे देश की सेना आक्रमण करे और बचाव में हत्या हो तो यह रक्षा है पर अपने लोगों के विद्रोह को कुचलना अब अंतर्राष्ट्रीय मसला बन गया है जो वर्षों की सजा दिला सकता है. यूगोस्लाविया के टुकड़े होने के बाद वहां धर्म के आधार पर हुए दंगों और बाकायदा हत्याओं का खमियाजा उस में से बने कई देशों के शासक भुगत रहे हैं.

यह खुशी की बात है कि अब जनता के प्रति अपराध एक हद तक ही किए जा सकते हैं. सदियों से राजा जमीन, पैसे या धर्म के कारण लाखों की जान ले कर भी तालियां पिटवाते रहे हैं. हर देश की फौज का बड़ा काम अपने आदमियों को मारना रहा है. देश के मध्यवर्ती इलाकों में पनप रहे माओवादी चाहे कितने ही गलत क्यों न हों, उन के साथ जो हिंसा बरती जा रही है वह अपराध है, चाहे खाकी वर्दी वाले कर रहे हों. देश की रक्षा या सुरक्षा के नाम पर निर्दोषों की हत्या का हक अब इस इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट के कारण किसी शासक के पास नहीं रह गया.

1984 व 2002 के दंगों के मामले फिर खुल जाएं तो आश्चर्य नहीं. ये वे घाव हैं जो समय के चलते भी नहीं भरते. न्याय की पट्टी ही उन्हें ठीक कर सकती है. हां, लकीरें फिर भी रह जाती हैं, चोट पर भी, दिलों पर भी. 

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