Bollywood Nepotism Actors: राजनीति से जुड़ी हस्तियों के बच्चे व पोते फिल्मों में आने लगे हैं. हालांकि, इन में इक्का दुक्का को छोड़ दिया जाए तो सारे बॉलीवुड में मात्र खाता खुलवाने ही आ रहे हैं. सभी फ्लॉप हो रहे हैं. आखिर क्या कारण है इस का?
कुछ माह पहले तक बॉलीवुड के अंदर ही नैपोकिड्स को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता था पर धीरे-धीरे यह वैश्विक मसला बनता जा रहा है. हाल ही में नेपाल में जेन जी के कोपभाजन के चलते वहां सरकार बदल गई. तब से नेपाल में भी ‘नैपोकिड’ उर्फ ‘नैपोबेबी’ का विरोध चरम पर है. इस के चलते पूर्व ‘मिस नेपाल’ श्रृंखला खातीवाड़ा को इंस्टाग्राम पर लगभग 2 लाख फॉलोअर्स के खोने का खामियाजा भुगतना पड़ा है.
सोशल मीडिया पर निशाने पर आईं नैपोकिड 29 वर्षीय श्रृंखला खातीवाड़ा नेपाल के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री विरोध खातीवाड़ा की बेटी हैं. उन की मां मुनु सिगडेल खातीवाड़ा, बागमती प्रांत की राज्य संसद की सदस्य हैं. श्रृंखला ने 2018 में ‘मिस नेपाल वर्ल्ड’ का खिताब जीता था. इंस्टाग्राम पर सक्रिय श्रृंखला खातीवाड़ा ने लंदन, अमेरिका, स्विट्जरलैंड आदि जगहों की यात्रा की अपनी तस्वीरें साझा की हुई हैं.
28 अगस्त को श्रृंखला खातीवाड़ा के 10 लाख से अधिक फौलोअर्स थे पर ‘नैपोकिड’ का विरोध शुरू होते ही 5 सितंबर से उन के फॉलोअर्स की संख्या घटनी शुरू हुई थी. केवल 9 सितंबर के दिन 97 हजार फॉलोअर्स कम हो गए थे. अब तक उन के 2 लाख फॉलोअर्स घट चुके हैं. विरोध करने वालों को श्रृंखला खातीवाड़ा से शिकायत है कि नैपोकिड का फायदा उठाते हुए वह सब पा रही है जिस की वह हकदार नहीं है और वह ‘जेन जेड’ के पक्ष में बोलना तक पसंद नहीं करती.
नेपाल में ‘जेन जी’ ने ‘नैपेकिड’ ओर ‘नैपोबेबी’ का मुद्दा उठाया पर भारत, खासकर बॉलीवुड, में इस मसले पर 10 वर्षों पहले से आवाज उठती आई है. अब हमें इस नेपाल की श्रृंखला खातीवाड़ा के संदर्भ के साथ इस बात की जांच पड़ताल करने की जरूरत है कि बॉलीवुड के नेपो किड ही नहीं, राजनीतिक हस्तियों के पोते भी क्यों बॉलीवुड में सुपर फ्लॉप हो रहे हैं?
आखिर क्या वजह है कि 19 सितंबर, 2025 को रिलीज हुई बाला साहेब ठाकरे के पोते ऐश्वर्या ठाकरे की फिल्म ‘निशानची’ बौक्स औफिस पर महज एक करोड़ रुपए ही कमा सकी. क्या वजह है कि 24 जनवरी, 2025 को रिलीज हुई पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे के ग्रैंड सन वीर पहाड़िया और अक्षय कुमार की फिल्म ‘स्काय फोर्स’ ने बौक्स औफिस पर पानी तक नहीं मांगा.
मशहूर शिवसेना नेता व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी की ग्रैंड डॉटर शरवरी वाघ लगातार संघर्ष कर रही हैं, जबकि उन्हें यशराज फिल्म्स का साथ मिला हुआ है. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पोते अरुणोदय सिंह भी लगातार संघर्ष ही कर रहे हैं. इन की असफलता के चलते फिल्म उद्योग किस तरह तबाह हो रहा है, किस तरह कई निर्माताओं के घर-बार सब कुछ बिक गए, हम इस पर बाद में बात करेंगे.
बॉलीवुड में नेपो किड और नेपोटिज्म की काफी चर्चाएं होती रहती हैं. नैपोकिड्स के पोषक के तौर पर फिल्मकार करण जौहर हमेशा लोगों के निशाने पर रहते हैं पर करण जौहर का दावा है कि वे अपना काम करते रहेंगे. लोगों के कुछ भी कहने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. यह अलग बात है कि 2012 से अब तक उन की नैपोकिड्स वाली एक भी फिल्म बौक्स औफिस पर सफलता के झंडे नहीं गाड़ सकी हैं. जिस के चलते 2 साल पहले उन्हें अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘धर्मा प्रोडक्शन’ की आधी हिस्सेदारी भी बेचनी पड़ी पर उन के ऊपर यही मुहावरा फिट बैठता है, ‘रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई.’
मजेदार बात यह है कि 2 अक्टूबर को रिलीज हुई करण जौहर की फिल्म ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ में भी वरुण धवन और जान्हवी कपूर जैसे नेपो किड हैं. जिस ने बौक्स औफिस पर मुंह की खाई है. नेपो किड को ले कर सब से अधिक आलोचना कंगना रनौत करती रहती हैं. वहीं, बॉलीवुड से जुड़े 50 प्रतिशत से अधिक लोग नेपो किड्स के खिलाफ हैं.
नेपो किड होना काफी नहीं
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बिशेश्वर प्रसाद कोईराला की पोती तथा नेपाल के राजनेता व सांसद रहे प्रकाश कोईराला की बेटी मनीषा कोईराला भी नैपोकिड हैं, जिन्होंने 1989 में पहली बार नेपाली फिल्म ‘फेरी भोतुला’ से अभिनय जगत में कदम रखा था. उस के बाद 1991 में सुभाष घई ने उन्हें हिंदी फिल्म ‘सौदागर’ में लॉन्च किया था. तब से वे भारतीय फिल्मों में सक्रिय हैं. उन्होंने ‘यलगार’, ‘धनवान’, ‘मिलन’, ‘1942 अ लव स्टोरी’, ‘संजू’ सहित कई सफलतम फिल्मों में अभिनय किया लेकिन उन्हीं के भाई सिद्धार्थ कोईराला को सफलता नहीं मिली.
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि मनीषा कोइराला का नेपो किड के नाम पर विरोध क्यों नहीं हुआ? जबकि श्रृंखला खातीवाड़ा को नेपो किड होने की सजा क्यों मिल रही है? सवाल यह भी उठता है कि नैपोकिड होते हुए भी मनीषा कोइराला के भाई सिद्धार्थ कोईराला को बौलीवुड ही नहीं, नेपाली फिल्मों में भी सफलता क्यों नहीं मिली?
सिद्धार्थ कोईराला, अरुणोदय सिंह, शरवरी वाघ, वीर पहाड़िया, ऐश्वर्या ठाकरे जैसे पौलिटीशियन के नैपोकिड की असफलता की सब से बड़ी वजह यही है कि नेपो किड होना किसी भी क्षेत्र में सफलता की गारंटी नहीं हो सकती, कम से कम फिल्म इंडस्ट्री या बॉलीवुड में तो कभी नहीं.
उदाहरण के तौर पर अपने समय के सर्वाधिक सफल अभिनेता राजेंद्र कुमार के बेटे कुमार गौरव की पहली फिल्म ने सफलता के कई रिकॉर्ड बना डाले थे पर उस के बाद कुमार गौरव कहां हैं? अभिनेता व राजनेता शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे कुश और लव, अभिनेता व राजनेता राज बब्बर के बेटे आर्य बब्बर भी सफल नहीं हो सके पर इन में से किसी ने भी अपने अंदर की कमी को खोज कर उसे दूर करने के प्रयास नहीं किए.
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बिशेश्वर कोईराला के पोते सिद्धार्थ कोईराला ने 2004 में असफल हिंदी फिल्म ‘पैसा वसूल’ का निर्माण कर बॉलीवुड में कदम रखा था. 2005 में उन्होंने असफल फिल्म ‘टेररिज्?म बायो अटैक’ का लेखन किया. फिर 2005 में ही फिल्म ‘फन’ में अभिनय किया. इस के बाद उन्होंने ‘अनवर’, ‘देख भाई देख’, ‘देशद्रोही 2’ और ‘मेघा’ फिल्मों में अभिनय किया. इन में से किसी भी फिल्म ने बौक्स औफिस पर पानी नहीं मांगा. 2014 के बाद सिद्धार्थ कोईराला कहां हैं, पता नहीं.
सफलता अपने दमखम पर ही मिलती है
मध्य प्रदेश के मशहूर राजनेता अर्जुन सिंह के पोते और राजनेता अजय सिंह के बेटे अरुणोदय सिंह अमेरिका से पढ़ाई पूरी करने के बाद बॉलीवुड से जुडे़ थे. उन्होंने 2009 में रिलीज फिल्म ‘सिकंदर’ से बॉलीवुड में कदम रखा था. उस के बाद ‘आइसा’, ‘ये साली जिंदगी’, ‘जिस्म 2’, ‘मैं तेरा हीरो’, ‘मोहन जोदड़ो’, ‘ब्लैकमेल’ जैसी 16 फिल्में तथा ‘ये काली काली आंखें’ व ‘कनाडा’ जैसी कुछ वेब सीरीज में नजर आ चुके हैं. इस के बावजूद अभी भी उन की गिनती सफलतम कलाकारों में नहीं होती.
हिमाचल प्रदेश के प्रमुख कांग्रेस नेता सुखराम के पोते और अभिनेता सलमान खान के बहनोई आयुष शर्मा का पूरा अभिनय करियर व्यावसायिक असफलताओं से भरा हुआ है. किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि वह उन के मुंह पर उन्हें अफसल कलाकार कह सके.
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी की 28 वर्षीय ग्रैंड डौटर शरवरी वाघ 2014 से बौलीवुड में संघर्ष कर रही हैं. 2021 में आदित्य चोपड़ा ने यशराज फिल्म्स की फिल्म ‘बंटी और बबली’ में अभिनय करने का अवसर दिया. फिल्म को सफलता नसीब नहीं हुई. फिर मराठी फिल्म ‘मुंज्या’, नेटफ्लिक्स की फिल्म ‘महाराजा’ में गेस्ट अपीयरेंस, जॉन अब्राहम की फिल्म ‘वेदा’ में नजर आईं पर अभी तक उन की कोई पहचान नहीं बनी. कोई फिल्म सफल नहीं. अब वे यशराज की ही फिल्म ‘अल्फा’ कर रही हैं, जिस में उन के साथ आलिया भट्ट हैं.
पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे के ग्रैंड सन वीर पहाड़िया ने अक्षय कुमार के साथ फिल्म ‘स्काय फोर्स’ से बॉलीवुड में कदम रखा. उन के उद्योगपति पिता तथा फिल्म निर्माण से जुड़ी उन की माता के साथ ही अक्षय कुमार व जियो स्टूडियो ने इस फिल्म को सफल बनाने के लिए सारी तिकड़म लगा डाली, मगर परिणाम शून्य रहा. यह फिल्म इसी साल रिलीज हुई थी. अब हालत यह है कि जियो स्टूडियो ने फिल्म निर्माण से तोबा कर ली है. लंदन से एमबीए की पढ़ाई कर वापस लौटे वीर पहाड़िया ने अभिनय को करियर बनाने का असफल प्रयास किया.
शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के पोते जयदेव ठाकरे व स्मिता ठाकरे के बेटे ऐश्वर्या ठाकरे ने अमेरिका से पढ़ाई कर वापस लौटने के बाद अभिनय को ही करियर बनाने का निर्णय लिया. फिल्म ‘रामलीला गोलियों की रास लीला’ में संजय लीला भंसाली के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम किया और अब अनुराग कश्यप निर्देशित फिल्म ‘निशानची’ में जुड़वां भाइयों की दोहरी भूमिका निभा कर अभिनय जगत में कदम रखा है.
19 सितंबर को रिलीज हुई फिल्म ‘निशानची’ बौक्स औफिस पर 15 दिनों में बमुश्किल एक करोड़ रुपए ही एकत्र कर सकी, जिस से सिनेमाघरों का किराया तक नहीं चुकाया जा सका. यानी इतनी बुरी अफसलता की कल्पना भी करना मुश्किल होता है.
अब अहम सवाल है कि आखिर नेपो किड या यों कहें कि राजनेताओं के ग्रैंड सन, ग्रैंड डॉटर को फिल्म इंडस्ट्री में कोई सफलता क्यों नहीं मिल पा रही?
इस सवाल का जवाब ढूंढते हुए हमें करीबन 80 साल पहले की घटना याद आ गई. किशोरवय में पहुंचने के बाद राज कपूर ने अपने पिता पृथ्वीराज कपूर से कहा कि वे फिल्में बनाना चाहते हैं. इस पर पृथ्वीराज कपूर ने कहा कि इस के लिए तो पहले अपने आप को उस काबिल बनाओ. कठिन परिश्रम करना पड़ेगा. जूते घिसने पड़ेंगे. राज कपूर ने कहा कि वे सब कुछ करने को तैयार हैं. तब पृथ्वीराज कपूर ने अपने मित्र व फिल्म निर्देशक केदार शिंदे से बात कर राज कपूर को उन का सहायक बनवा दिया पर शर्त यही थी कि राज कपूर को हर जगह पैदल या बस या लोकल ट्रेन से ही आना जाना होगा. सैट पर उन्हें कोई सुविधा नहीं मिलेगी.
एक फिल्म के सैट पर सहायक के तौर पर राज कपूर को क्लैप देना था. राज कपूर की आदत थी कि वे क्लैप देते समय अपने बालों में कंघी करने के अलावा कैमरे में अपनी शक्ल जरूर देखते थे. उस दिन केदार शिंदे ने राज कपूर को खास हिदायत दी कि समय की कमी है. सूरज डूबने वाला है, इसलिए कैमरे में अपनी शक्ल देखने या अपने बालों को संवारने के बजाय सही ढंग से क्लैप दें लेकिन उस दिन भी राज कपूर गलती कर बैठे. कैमरे में अपनी शक्ल देखने के चक्कर में क्लैप देते समय ऐसी गड़बड़ी कर बैठे कि क्लैप के साथ ही सामने वाले कलाकार के चेहरे पर लगी हुई नकली मूंछें भी क्लैप के साथ आ गईं. अब शूटिंग नहीं हो सकती थी.
निर्देशक केदार शिंदे को गुस्सा आना स्वाभाविक था. केदार शिंदे ने उसी वक्त राज कपूर के गाल पर जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया. राज कपूर के गाल पर पांचों उंगलियां साफ नजर आने लगीं. राज कपूर काफी देर तक रोते रहे पर किसी ने भी उन से कुछ नहीं कहा. केदार शिंदे भी राज कपूर को रोता हुआ छोड़ कर चल दिए. राज कपूर में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे इस वाकए को जा कर अपने पिता पृथ्वीराज कपूर को बताते. यह अलग बात है कि जब पृथ्वीराज कपूर और केदार शिंदे मिले तो केदार शिंदे ने उन्हें सारी बात बताई थी.
नोपो किड के अपने टशन
आज की तारीख में किसी भी निर्देशक की इतनी औकात नहीं है कि वह किसी नोपो किड या राजनेता के पोते या बेटे को डांट सके. आज की तारीख में तो पहले ही दिन सैट पर नेपो किड या यों कहें कि राजनेता के बेटे या पोते राज कुमार की तरह सैट पर अपने साथ सेक्रेटरी, मैनेजर, स्पॉट बॉय, हेयर ड्रेसर, मेकअप मैन, पीआरओ आदि की लंबी चौड़ी फौज ले कर पहुंचता है. सैट पर अपने किरदार को अभिनय से न्याय संगत तरीके से साकार करने के बजाय उस का ध्यान अपने साथ आई अपनी टीम के सामने अपने रुतबे की नुमाइश करना ज्यादा होता है. ऐसे में वह सीखेगा क्या?
वंशावली सफलता की गारंटी नहीं
बॉलीवुड से जुड़ते समय यदि यह समझ लें कि बॉलीवुड में करियर केवल वंश से ही सुनिश्चित नहीं होता बल्कि इस के कई कारक होते हैं, मसलन अभिनय प्रतिभा, जनून, प्रतिस्पर्धा, सार्वजनिक धारणा और बाजार के रुझान के अनुसार खुद को ढालना आदि. अगर सामने वाला कलाकार इन्हें नजरअंदाज कर दे तो फिर चाहे उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, वह सफलता नहीं पा सकता.
अभिनेता रणबीर कपूर खुद कह चुके हैं कि ‘वंशावली कभी सफलता की गारंटी नहीं देती. एक बार जनता की नजर में आने के बाद उन का अस्तित्व पूरी तरह से दर्शकों की स्वीकृति पर निर्भर करता है.’
शुरुआती पूर्वाग्रह कभी कभी उन के काम को प्रभावित कर सकते हैं. मगर उन्हें हर कसौटी पर खुद को खरा साबित करने की तैयारी कर के ही इस इंडस्ट्री का हिस्सा बनने के बारे में सोचना चाहिए. नेपो किड हो, राजनेता के परिवार का सदस्य हो, वह मुंह में सोने का चम्मच ले कर पैदा होता है पर बौलीवुड में कदम रखने से पहले उसे यह सब भूलना होगा. उसे उन आदतों को दरकिनार करना होता है जो कि वह राजनेता के परिवार के सदस्य के रूप में पालता आया है.
प्रतिभा छिपे नहीं छिपती
राजनेता के परिवार का सदस्य होने के नाते या नैपोकिड होने के नाते पहली फिल्म का मिल जाना संभव है. मगर यह सफलता नहीं है. जैसे ही कलाकार इसे अपनी सफलता मान लेता है, वैसे ही उस के पतन की राह बन जाती है. अभिनय करियर को सफल बनाने, उस में टिके रहने के लिए उस के अंदर सच्ची प्रतिभा, निरंतर कुछ सीखने की प्यास के साथ ही दर्शकों से जुड़ने की क्षमता विकसित करना अनिवार्य है. पहली फिल्म की सफलता को सफलता मान लेना दीर्घकालिक सफलता नहीं होती.
आज का दर्शक अभिनेता की पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना खराब विषयवस्तु या अभिनय को अस्वीकार कर रहा है. बोनी कपूर के बेटे व अनिल कपूर के भतीजे अर्जुन कपूर से ले कर कई नेपो किड ही क्यों, एक प्रमुख राजनेता के पोते व सलमान खान के बहनोई आयुष शर्मा जैसे अभिनेताओं के कैरियर नहीं संवर सके.
ये भूल जाते हैं कि यह ग्लोबलाइजेशन का युग है. आज का दर्शक पूरे विश्व का सिनेमा देख रहा है. वह पूरे विश्व के कलाकारों के अभिनय को देख व परख रहा है. ऐसे में स्वाभाविक तौर पर दर्शक दूसरे कलाकारों से तुलना भी करेगा पर अर्जुन कपूर हों, आयुष शर्मा हों या राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाले कलाकार हों, ये लोग अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के ही बल पर सब कुछ पाना चाहते हैं. ये अपने अंदर निखार लाने के लिए मेहनत नहीं करना चाहते. इन्हें तो निंदा सुनना भी पसंद नहीं है.
अब सोने का चम्मच ले कर पैदा हुए राजनेताओं के पोते या बेटे या नेपो किड पढ़ना लिखना नहीं चाहते. इन का साहित्य से कोई नाता नहीं रहा. ये किताबें नहीं पढ़ते. हिंदी से इन का सब से बड़ा बैर है. इन्हें सैट पर स्क्रिप्ट भी इंग्लिश में चाहिए.
ऐसे में मुंबई की लगभग हर गली में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए एक्टिंग स्कूल में एक से 3 माह का क्रैश कोर्स कर खुद को महान अभिनेता बताने वाले इन कलाकारों का जीवन से, इंसानी जिंदगी से जब कोई वास्ता ही नहीं होता तो ये कैसे किसी किरदार के साथ न्याय कर सकते हैं.
फिल्म के रिलीज से पहले इस तरह के कलाकार अपनी भारी भरकम टीम के सहारे मुंबई मेट्रो में सवारी कर उस के वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पता नहीं क्या साबित करना चाहते हैं?
अब कोई भी कलाकार अपनी अभिनय क्षमता, अपने किरदार, फिल्म के विषय आदि पर बात करना पसंद नहीं करता क्योंकि वह तो सैट पर जाता है. कैमरे के सामने खड़े हो कर टेलिप्रॉम्टर पर लिखे संवाद पढ़ कर चला आता है. वह फिल्म की कहानी या किरदार के साथ जुड़ता ही नहीं है. तो ऐसे में यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि परदे पर सब कुछ ऐसा नजर आएगा जोकि दर्शक को मोहित कर सकेगा. Bollywood Nepotism Actors.





