Highways of India: अक्टूबर माह में देश के हाईवे पर तीन भयंकर बस हादसे हुए. हाईवे पर तेजी से दौड़ती बसें अचानक आग का गोला बन गईं और उन में बैठे यात्री जो अपने गंतव्य पर पहुंचने के सपनों में खोए हुए थे, अचानक धूंधूं कर जल उठे. अपनी सीट से उठ कर भागने तक का मौका नहीं मिला. दौड़ती बस में अनेकों चिताएं एकसाथ जल उठीं.

देश के हाईवे बड़ी तेजी से डेथवे में तब्दील हो रहे हैं. समाज को उच्च वर्ग और निम्न वर्ग में बांटने वाले इन हाईवे पर आप को बैलगाड़ी, रिक्शा, साइकिल, स्कूटर जैसे वाहन नजर नहीं आएंगे. इन पर दिखेंगी मंहगी, तेज रफ़्तार चमचमाती कारें, लग्जरी बसें और बड़े बड़े ट्रक. दूरदूर तक पैदल आदमी का नामोनिशान नहीं. कहीं कोई पुलिस बूथ, स्वास्थ्य केंद्र, फायर स्टेशन, पीने के पानी का नल या आग लगने की स्थिति में पानी की व्यवस्था, शौचालय कुछ भी तो इन हाईवे पर नहीं हैं.

नतीजा यह कि दुर्घटना होने पर पीड़ितों को तुरंत कोई मदद नहीं मिलती है. दो वाहनों की टक्कर हो जाए या बस अथवा कार में आग लग जाए तो कोई बचाने वाला नहीं होता. जख्मी लोग सड़क पर तड़पतड़प कर मर जाते हैं, पूरी की पूरी कारबस जल कर राख हो जाती हैं मगर घंटों बाद तक कोई मदद नहीं पहुंच पाती हैं.

भारत में अक्टूबर माह में दस दिन के भीतर तीन भयानक बस हादसों में 46 लोगों की जानें चली गईं. आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में 24 अक्टूबर की सुबह एक बाइक से टकराने के बाद कावेरी ट्रैवल्स की बस में आग लग गई,  हैदराबाद से बेंगलुरु जा रही कावेरी ट्रैवल्स की इस बस में 20 लोग अपनी सीट पर ही जल कर मर गए. बस में 40 से ज्यादा यात्री सवार थे, चिन्ना टेकुरा गांव में एक बाइक से टकराने के तुरंत बाद बस आग का गोला बन गई. आग लगने के बाद बस का दरवाजा भी जाम हो गया, जिस से यात्री बाहर नहीं निकल पाए. कोई 12 लोग खिड़कियों से कूदकर बचे, तो कुछ इमरजैंसी द्वार से निकलने में सफल हुए.

जांच के बाद यह सामने आया कि यह बस हाल ही में बिना अनुमति के सीटिंग कोच से स्लीपर कोच में बदली गई थी और इसे संदिग्ध दस्तावेजों के साथ राज्यों के बीच चलाया जा रहा था.

बस को दो मई 2018 को दमन और दीव में खरीदा गया था. बाद में 29 अप्रैल 2025 को इस का रजिस्ट्रेशन ओडिशा के रायगड़ा आरटीओ में जी बिजया लक्ष्मी के नाम पर ट्रांसफर किया गया, मगर जांच अधिकारियों ने यह पता गलत पाया. दस्तावेजों के मुताबिक बस के पास वैध फिटनेस सर्टिफिकेट (31 मार्च 2027 तक), बीमा और रोड टैक्स थे, लेकिन जांच में पता चला कि यह बस मूल रूप से सीटर कोच के रूप में पंजीकृत थी और बिना किसी अनुमति के इसे स्लीपर बस में बदला दिया गया था, वह भी बिना सुरक्षा मानकों का पालन किए हुए. क्योंकि यह स्लीपर बस थी, लिहाजा जिस समय हादसा हुआ अधिकांश यात्री सोए हुए थे.

यात्रियों से भरी इस बस में बड़ी संख्या में मोबाइल फोन की बैटरियां भी ले जाई जा रही थीं. माना जा रहा है आग लगने के बाद इन बैटरियों में भयानक विस्फोट हुआ और पूरी बस एकदम से धधक उठी.

इस से कुछ दिन पहले, राजस्थान में जैसलमेर जा रही एक बस थैयात गांव के पास आग की लपटों में घिर गई, जिस में 26 लोगों की जान चली गई और 15 गंभीर रूप से घायल हो गए. राजस्थान के जैसलमेर में केके ट्रैवल्स की एक प्राइवेट बस, जिसे हाल ही में नौन एसी से एसी में बदला गया था, जैसलमेर से जोधपुर जाते समय आग की चपेट में आ गई. यह हादसा थैयात गांव के पास हुआ, जो जैसलमेर शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर है.

आग बस के अगले हिस्से में लगी, जिस के बाद सभी निकास द्वार स्वयं जाम हो गए. इस से यात्री अंदर फंस गए. फोरैंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL), परिवहन विभाग और पुणे के सैंट्रल इंस्टीट्यूट औफ रोड ट्रांसपोर्ट (CIRT) की टीमों ने जांच में पाया कि एयर कंडीशनिंग सिस्टम में शौर्ट सर्किट के कारण गैस लीक हुई थी.

इस ने खिड़की पर लगे पर्दों और सीट कुशन को आग लगा दी. पीछे की सीटों पर बैठे यात्रियों के पास भागने का कोई रास्ता नहीं था. आगे ड्राइवर के केबिन में घुस कर कुछ लोगों ने अपनी जान बचाई. बस से 19 शव बरामद हुए, जिन में तीन बच्चे शामिल थे. इलाज के दौरान 75 वर्षीय यात्री हुसैन खान की भी मौत हो गई.

26 अक्टूबर को आगरा एक्सप्रेसवे पर एक डबल डेकर बस धूधू कर जल उठी. इस में 39 यात्री सवार थे, मगर गनीमत है कि दिन का वक्त था, लिहाजा समय रहते सभी बस से निकल भागने में सफल हुए. दिल्ली से गोंडा जा रही इस बस के टायरों से काकोरी स्थित टोल प्लाजा के पास चिंगारियां निकलने लगी क्योंकि ड्राइवर ने रास्ते में कहीं भी बस नहीं रोकी थी. सड़क के साथ टायरों के लगातार घर्षण से अंततः टायर जल उठे.

ड्राइवर ने धुंआ उठते देखा तो बस रोक कर यात्रियों को उतारा. बस में रखे अग्निशामक यंत्र से आग बुझाने की कोशिश की गई मगर यंत्र काम नहीं कर रहा था. इस के बाद ड्राइवर बस को उसी हालत में चला कर टोल प्लाजा के निकट लाया ताकि आग बुझाने के लिए पानी मिल सके, मगर वहां भी पानी का कोई इंतजाम नहीं था. थोड़ी ही देर में पूरी बस आग का गोला बन गई. फायर ब्रिगेड सूचना देने के 50 मिनट बाद घटनास्थल पर पहुंची, जब बस पूरी तरह जल कर  चुकी थी. वजह यह कि दमकल की गाड़ियों ने उस हाईवे पर पहुंचने के लिए गलत रूट पकड़ लिया था.

देश के हाईवे लोगों के लिए डेथ वे बनते जा रहे हैं. भारत की सड़कों पर हर दिन जो मौतें हो रही हैं, वो किसी राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं हैं. सड़कें जो किसी भी देश के लिए विकास की पहचान होती हैं, भारत के लिए विनाश का सामान बन गई हैं. लोगों के समय की बचत और तेज रफ्तार की सोच के तहत जिन हाईवेज का निर्माण हुआ है वे अब मौत का दूसरा नाम बन गए हैं. हर साल लगभग 1.7 लाख से अधिक लोगों की जान सड़क दुर्घटनाओं में जाती है, जिन में से बड़ी संख्या राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर होती है.

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, कुल सड़क हादसों में से लगभग 35-40% दुर्घटनाएं हाईवे पर होती हैं. जबकि देश की कुल सड़क लंबाई में हाईवे का हिस्सा मात्र 5% से भी कम है. इस से साफ है कि मौत का सब से बड़ा जाल इन्हीं तेज रफ्तार सड़कों पर फैला है. इन हादसों का सब से बड़ा कारण है – ओवरस्पीडिंग. नयानया पैसा आते ही लोग नई लखदख गाड़ियां ले कर हवा से बातें करने के लिए हाईवे पर निकल जाते हैं. यहां उन को रोकने के लिए न ट्रैफिक पुलिस है, न स्पीड ब्रेकर और न लोगों की भीड़.

नतीजा अंधाधुंध गाड़ियां दौड़ती हैं. बहुत सारे एक्सीडेंट उन किशोरवय के लड़कों द्वारा हो रहे हैं, जिन के मांबाप ने अपने पैसों का दिखावा करने के लिए गाड़ी चलाने में अनट्रेंड बेटों के हाथों में स्टेयरिंग थमा दिए हैं कि लो जाओ जी लो अपनी जिंदगी. यह सोचे बिना कि वे अपने बच्चों को मौत की राह पर भेज रहे हैं.

हाईवे पर एक्सीडेंट की दूसरी बड़ी वजह है थके हुए या शराब पीकर वाहन चलाने वाले ड्राइवर. जब ये हाईवे नहीं थे और बसें शहरों और गांवों के बीचे से हो कर गुजरती थीं तब जगह जगह खुले ढाबों के आगे बसें रुकती थीं, सवारियां और ड्राइवर उतर कर चाय नाश्ता करते थे, फ्रेश होते थे, कुछ देर आराम करके फिर यात्रा शुरू करते थे. इस तरह ड्राइवर और बस दोनों को आराम मिल जाता था. हाईवे बनने के बाद दूरदूर तक रुकने और फ्रेश होने का कोई स्थान नहीं है. ड्राइवर थके हुए रहते हैं, थकान दूर करने के लिए लगातार नशा भी करते हैं, नतीजा एक्सीडेंट.

देश की मोदी सरकार चीन, जापान और सिंगापुर का सपना जनता को दिखा कर लगातार हाईवे का निर्माण कर रही है, मगर उन देशों की तरह हमारे हाईवे पर सड़क सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर का नामोनिशान नहीं है. न कट, न लाइट, न स्पीड ब्रेकर, न पेट्रोलिंग. चालकों का अव्यवस्थित ट्रैफिक सेंस जैसे ओवरटेकिंग और गलत साइड से आना यहां आम बात है.

इमरजेंसी मेडिकल रिस्पांस इतनी जर्जर है कि घटना की जानकारी ही घंटों बाद होती है और उस के कई घंटों बाद एम्बुलैंस पहुंचती है जब तक घायल जल्दी सड़क पर तड़पतड़प कर दम तोड़ चुके होते हैं. देश में सिर्फ सड़कें बढ़ रही हैं, सुरक्षा का नामोनिशान नहीं है.

मोदी सरकार “भारतमाला” जैसी योजनाओं के तहत हजारों किलोमीटर हाईवे बना रही है, लेकिन सड़क सुरक्षा पर खर्च अब भी न के बराबर है. सड़क चौड़ी होने से हादसे कम नहीं होते, सुरक्षित ड्राइविंग कल्चर और निगरानी से होते हैं. इस के लिए हर हाईवे पर स्पीड कैमरा, ब्लैक स्पौट मैपिंग और रीयलटाइम मौनिटरिंग अनिवार्य होनी चाहिए, जो नहीं है. ट्रक और बस चालकों को सुरक्षा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जो नहीं दिया जाता है. हर 20–30 किमी पर इमरजेंसी हेल्प सेंटर और मेडिकल यूनिट होनी चाहिए, जो देश के किसी हाईवे पर नहीं है.

भारत के हाईवे आज विकास का प्रतीक नहीं, बल्कि लापरवाही और व्यवस्था की नाकामी का आईना बन चुके हैं. जब तक “सड़क सुरक्षा” को “सड़क निर्माण” जितना महत्व नहीं मिलेगा, तब तक ये हाईवे नहीं, “डेथ वे” ही बने रहेंगे. Highways of India.

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