Hindi Story : भोपाल की वह पौश कालोनी थी जहां दादी के बेटे मानव का फ्लैट था. नया फ्लैट था. मानव और उस की पत्नी मीनल एक प्राइवेट कंपनी में जौब करते थे. मानव ने मां को महीनेभर पहले ही बोल दिया था, ‘अम्मा, हम दोनों कंपनी के काम से बाहर जाएंगे तो कुछ दिनों तक तुम को यहां आना है. तुम्हारे आने से हम निश्ंिचत हो कर जा सकेंगे. मानसी को भी आप के साथ ज्यादा समय मिल जाएगा.’

बेटेबहू के प्यारभरे बुलावे को कैसे टाल देती, रीना. पोती मानसी के साथ रहने की कल्पना से ही खुश हो उठी थी वह. मानसी 10 साल की थी. दादी सरकारी स्कूल में टीचर थीं. कुछ समय पहले ही रिटायर हुई थी. कुछ समय तो नहीं कह सकते क्योंकि वह 11-12 साल पहले रिटायर हुई थीं. गांव बीरमपुर में बड़े बेटे के साथ रहती थीं वे. गांव की शुद्ध ताजी हवा, पौष्टिक खानपान और फिजिकली रूप से सक्रिय दादी की चुस्तीफुरती देखते ही बनती थी. वे बढ़ती उम्र को सिर्फ नंबर मानती थीं क्योंकि उन्हें हर समय छोटीछोटी समस्याओं पर रोनाधोना, काम से जी चुराना पसंद नहीं था.

दूसरी आम महिलाओं की तरह मंदिरों में भजनकीर्तन में समय गंवाना भी पसंद नहीं था उन्हें. वे कर्म में विश्वास रखती थीं, जो सोचती थीं वही बोलती थीं. कर्म ही सब से बड़ा धर्म है, कर्म से बढ़ कर कुछ नहीं है. बेटे भी मां पर गर्व महसूस करते थे. लेकिन बहुएं कभीकभी चिढ़ जाती थीं और बोल देती थीं, ‘अम्मा आराम से घर में बैठो, गरम रोटी दे रहे हैं खाने को. आप आराम किया करो.’

लेकिन अम्मा कहां सुनतीं. वे तो गांव में भी बच्चों को फ्री ट्यूशन देने बैठ जातीं. आएदिन बच्चों का मजमा लगा लेतीं. कोई बच्चे को पढ़ने को न भेजता तो उस के घर जा कर उसे डांट पिला देतीं. गांव में बड़ी बहू खुश थी. चलो अम्मा, अब छोटे देवर के पास कुछ दिन रहेंगी तो गांव में बच्चों की भीड़ घर पर नहीं लगेगी. वैसे, अम्मा जाती रहती थीं भोपाल लेकिन कुछ दिन रह कर वापस आ जाती थीं. इस बार महीनेभर के लिए जा रही हैं. दोनों पतिपत्नी कंपनी के काम से बेंगलुरु जाएंगे तो अम्मा को वहीं रहना होगा.

भोपाल स्टेशन पर मानव आ गया था अम्मा को लिवाने. कार की डिक्की में अम्मा का सामान रखते हुए मानव ने पूछा, ‘‘अम्मा सब ठीक रहा सफर में, कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’’

अम्मा चुप रहीं. मानव ने कार स्टार्ट कर दी.

‘‘अम्मा, तुम जवाब नहीं दे रही हो, क्या हुआ?’’ मानव ने सवाल किया.

‘‘तकलीफ की बात पूछी तू ने, इस पर चुप हूं,’’ अम्मा बोलीं.

‘‘क्यों?’’ मानव आश्चर्य से बोला.

‘‘अरे, ट्रेन में पब्लिक हो तो तकलीफ होगी न. पब्लिक ही नहीं तो काहे की तकलीफ,’’ अम्मा ने खुलासा किया.

‘‘क्या कह रही हो, कंपार्टमैंट में पैसेंजर नहीं थे? तुम अकेली थीं?’’ मानव ने कार रोक दी.

‘‘अरे नहींनहीं, लोग थे पर एसी में पैसेंजर बातचीत कहां करते हैं? परदे खींच कर अपनीअपनी सीटों पर पसरे रहते हैं, मोबाइल चलाते हैं या फिर लैपटौप खोल कर बैठ जाते हैं.’’

मानव जोरजोर से हंसने लगा और उस ने कार स्टार्ट कर दी. लगभग 40 मिनट में वे अपनी कालोनी में पहुंच गए. बड़े अपार्टमैंट के सामने कार रुकी. मानव ने हौर्न बजाया. गार्ड दौड़ता हुआ आया और उस ने गेट खोल दिया. कार को पार्किंग में खड़ा कर मानव लिफ्ट से 5वें माले पर पहुंच कर फ्लैट के सामने पहुंचा ही था कि गेट खुल गया. दरवाजे पर बहू मीनल, पोती मानसी खड़ी थीं. मानसी दादी को देखते ही उन से लिपट गई तो जैसे दादी की सफर की थकान उतर गई हो.

फ्लैट नया था. दीवारों और दरवाजे पर नए किए गए पेंट की गंध पूरे घर में थी. मानसी दादी का हाथ पकड़ कर उसे नया घर दिखाने में व्यस्त थी. बड़ेबड़े 3 बैडरूम, डाइनिंग हौल, खूबसूरत किचन, ड्राइंगरूम सबकुछ बढि़या था. दोदो बालकनी जहां से पूरे भोपाल शहर को देखा जा सकता था.

‘‘मानसी, अब दादी को फ्रैश होने दो, थकी होंगी दादी,’’ बहू मीनल ने कहा.

‘‘अरे बहू, तू चिंता मत कर. मैं न थकती, मेरी थकान तो पोती का मुंह देखते ही उतर गई है,’’ कहती हुई दादी ने मानसी को गले लगा लिया.

बहू ने चाय टेबल पर रख दी थी. बहू जानती थी कि शाम को अम्मा चाय पीती हैं, वह भी खालिस दूध की, चायपत्ती नामभर की डलती है.

दादी बाथरूम से आई तो फ्रैश महसूस कर रही थीं. उन्होंने साड़ी बदल ली थीं. हलकी रेशमी साड़ी थी सफेद रंग की, ब्लाउज रंगीन था. मठरी के साथ दादी ने चाय का घूंट भरा, फिर बोलीं, ‘‘मठरी घर में बनी है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मा, बाहर की है. घर में समय नहीं मिल पाता.’’

‘‘अच्छा,’’ फिर बोलीं, ‘‘चाय अच्छी बनाई है, बहू.’’

मीनल मुसकरा दी.

‘‘तुम लोग कब जाओगे बेंगलुरु?’’ अम्मा ने सवाल किया.

‘‘कल शाम को,’’ मानव ने कमरे में आतेआते कहा, ‘‘अम्मा, हम लोग भी अभी नएनए आए हैं फ्लैट में, कुछ लोगों को जानते हैं, अच्छे लोग हैं. 5वें माले पर जितने भी लोग हैं उन से परिचय हो गया है हमारा. ज्यादा परेशान मत होना किसी बात के लिए. दरवाजा एकदम से मत खोलना. पहले देख लेना कौन है- दूध वाला, अखबार वाला, धोबी होगा, यही लोग ही आते हैं. बिल्ंिडग के नीचे मार्केट है, मानसी के साथ जा कर सब्जी वगैरह ले लेना. गार्डन नजदीक है.’’

‘‘अरे, बसबस. मैं क्या दूध पीती बच्ची हूं जो सम झा रहा है.’’

‘‘ये,’’ दादी ने पापा की बोलती बंद कर दी तो मानसी खुश हो गई.

मानव चुप हो गया.

‘‘मानसी है, वह सम झा देगी.’’ दादी ने कहा तो मानसी मुसकरा दी.

दूसरे दिन शाम को मानव और मीनल बेंगलुरु के लिए रवाना हो गए थे. मानसी दादी के साथ बहुत खुश थी, कभी बुक्स की बातें करती तो कभी टीवी पर कार्टून फिल्म लगा लेती.

‘‘दादी डिनर में क्या खाएंगे?’’ मानसी ने लाड़ जताया.

‘‘जो मानसी बोलेगी, दादी बना देगी.’’

‘‘चावल और मखनी मिक्स दाल,’’ मानसी बोली.

‘‘किचन में चलो,’’ दादी बोलीं.

दोनों डिनर की तैयारी में लग गईं. दाल में हींग, लहसुन, जीरे व प्याज का तड़का लगा. मानसी की भूख तेज हो गई. गरमगरम दालचावल, आलू और मूंग के पापड़ के साथ खाने का स्वाद बढ़ गया. दादी के हाथों का खाना खा कर मानसी खुश थी. दादी भी सोच रही थीं कि यह सुख सब को नहीं मिलता. उन दोनों ने खाना खाया और बालकनी में आ कर बैठ गईं. पूरा भोपाल शहर जगमग कर रहा था.

‘‘दादी, देखो चांद कितना सुंदर लगता है,’’ मानसी बोली.

‘‘हां बेटा, मानसी भी तो सुंदर है,’’ दादी बोलीं.

‘‘दादी, आप के बाल लंबे और सुंदर हैं. मेरे बाल लंबे क्यों नहीं करती मौम?’’ मानसी ने मां की शिकायत की.

‘‘बेटा, उस के पीछे वजह है. लंबे बाल, स्वस्थ बालों के लिए उन की देखभाल भी करनी होती है. मौम जौब में है, तुम छोटी हो, इसलिए समय नहीं निकल पाता होगा. बाल तो बढ़ जाएंगे, कौन सी बड़ी बात है,’’ दादी ने कहा, फिर बोलीं, ‘‘तुम्हारे छोटे कटे हुए बाल भी सुंदर हैं.’’

‘‘अच्छा, दादी,’’ मानसी बोली.

‘‘बिलकुल, चलो, तुम बैठो. मैं तुम्हारे लिए हलदी वाला दूध लाती हूं.’’

‘‘दादी, चौकलेट वाला दूध,’’ मानसी बोली.

‘‘एक बार आज हलदी वाला दूध पियो, कल चौकलेट वाला.’’

‘‘ठीक है,’’ मानसी मान गई.

दादी गरम दूध हलदी डाल कर ले आईं. मानसी को उस का स्वाद अच्छा लगा.

‘‘चल, अब सो जाते हैं,’’ दादी ने मानसी से कहा.

‘‘ठीक है, दादी,’’ कह कर मानसी ने दादी को प्यार किया और दादी के साथ ही सो गई. दूसरे दिन दादी सुबह जल्दी ही उठ गई थीं. उन्हें आदत थीं जल्दी उठने की. फ्रैश  हो कर बालकनी में बैठ गई. ठंडीठंडी हवा भली लग रही थी. पूरा शहर रोशनी से  झिलमिला रहा था. अपार्टमैंट खामोशी में डूबा था. नाइट शिफ्ट का गार्ड जरूर घर जाने की तैयारी में था. दोपहर वाली शिफ्ट का गार्ड आ गया था.

दादी सोच रही थीं, गांव में होतीं तो अब तक मौर्निंग वौक पर निकल जाती पर यहां अनजान हूं, रास्तों से. इसलिए वे बालकनी में ही बैठी रहीं. लगभग घंटेभर बाद दरवाजे के बाहर रखा अखबार ले कर पढ़ने लगीं. इस बीच कमरे में मानसी को देख आई थी. वह सो रही थी. अखबार में वही खबरें- चोरी, साइबर क्राइम, रेप. वे सोचने लगीं, तरक्की ने जीवन को आसान तो बनाया है लेकिन बदमाशों ने उस का भी फायदा उठा लिया. अब साइबर क्राइम बढ़ने लगे.

मोबाइल जैसी छोटी चीज जीवन को सरल बना देती है लेकिन सावधानी न बरतने पर खतरे बढ़ा देती है. दादी मोबाइल चलाती थीं लेकिन उस का इस्तेमाल कम करती थीं. पढ़ने के लिए प्रिंट मीडिया को ही वह अच्छा सम झती थीं.

‘‘दादी, दादी, कब उठीं आप?’’ इतने में मानसी बालकनी में चली आई.

दादी ने देखा, सुबह के सवा सात बज रहे हैं. मानसी को प्यार करती हुई किचन में ले आई. उस के लिए उन्होंने दूध गरम किया. मानसी ने दूध पिया, फ्रैश हो कर दादी से बोली, ‘‘चलो दादी, गार्डन में चलते हैं.’’ दादी को मालूम था कि मानसी के एग्जाम खत्म हो गए हैं. छुट्टियां चल रही हैं. स्कूल अप्रैल में खुलेगा. इस बीच डोरबेल बजी, दादी ने गेट खोला.

‘‘गुडमौर्निंग मैडम, दूध ले लो.’’

मानसी दूध लेने के लिए बरतन ले आई थी. दूध देख कर दादी ने उस में उंगली डाल कर निकाली और जोर से बोलीं, ‘‘यह दूध है कि चूने का पानी? दूध उंगली पर ठहरा ही नहीं. अच्छा लूटते हो. हमारे गांव आना, दूध उंगली से ही चिपक जाएगा इतना गाढ़ा दूध होता है.’’

दूध वाला हंसता हुआ चला गया.

‘‘दादी, अब गार्डन में चलते हैं.’’

‘‘ठीक है, चलोचलो,’’ कहते हुए दरवाजे को लौक किया और लिफ्ट से ग्राउंडफ्लोर पर उतर कर सड़क पर आ गईं वे दोनों.

‘‘मेड साढे़ दस बजे से पहले नहीं आएगी, अभी 8 बज रहे हैं, इस वक्त मौर्निंग वौक वाले मिलेंगे? दादी ने सवाल किया.

‘‘हां दादी, अपने फ्लोर वाली आंटियां इसी समय जाती हैं. वे लेट उठती हैं न, इसलिए. कुछ बच्चे भी होंगे, बाकी के फ्लोर वालों को मैं नहीं जानती,’’ मानसी ने दादी को जानकारी दी.

गार्डन में पहुंचते ही जोरजोर से हंसीठहाकों की आवाज कानों में पड़ने लगी. कहीं से जोर से तालियों की आवाज. बहुत सी महिलाएं लोअर और टीशर्ट में वौक कर रही थीं. शरीर जैसे शर्ट फाड़ कर बाहर आना चाहता हो. भोंडापन  झलक रहा था. कहीं महिलाएं मैदान में बैठीबैठी ऐक्सरसाइज कर रही थीं तो कहीं बतियाने में लगी थीं.

‘‘अरे, इतनी धीरेधीरे दौड़ोगी तो चरबी न पिघलेगी, जोर से दौड़ो.’’ वौक करती महिलाएं रुक गईं दादी की आवाज सुन कर. फिर जब मानसी पर उन की नजर पड़ी तो बोलीं, ‘‘मानसी, कौन हैं ये?’’

‘‘दादी हैं मेरी, मानसी ने जवाब दिया और फिर दादी से बोली, ‘‘अपने फ्लोर की

आंटियां हैं.’’

‘‘तेजतेज घूमो, नहीं तो खूब खेलो. पसीना आने दो,’’ दादी ने सब को सम झाया.

‘‘इस उम्र में क्या खेलना.’’

‘‘ठीक है, कल सुबह तैयार रहना, हम खेल खिलाएंगे,’’ दादी बोलीं.

‘‘वाह, क्या बात है, तालियां दादी के लिए.’’ मानसी खुश हो गई.

फिर दादीपोती पहुंच गईं हंसने वाले ग्रुप में. सब देखने लगे.

‘‘क्यों, घर में हंसने को नहीं मिलता जो यहां हाहा करते रहते हो, नकली हंसी हंसते हो.’’

हंसतेहंसते सब चुप हो गए एकदम से.

‘‘हंसोहंसो, नकली हंसी हंस लो. चलो मानसी, घर चलें.’’

फिर मार्केट से ताजा सब्जी ले कर दोनों घर आ गईं.

सुबह साढे़ दस बजे मेड आ गई थी. आते ही वह मोबाइल ले कर बालकनी में

चली गई. काफी देर हो गई तो दादी चिल्लाईं, ‘‘बाई, पहले घर का  झाड़ूपोंछा

कर लो, डस्ंिटग कर लो, फिर मोबाइल पर बतियाना.’’

‘‘बाई, कौन बाई?’’ मेड, जिस का नाम रजनी था, एकदम से भड़क

गई. मोबाइल दूर कर दादी से बोली, ‘‘मेरा नाम रजनी है, बाई नहीं है. बाई

गलत चीज है. बाई नाचनेगाने वाली और गलत काम करने वाली औरतों को

कहते हैं.’’

‘‘पर हमारे गांव में तो  झाड़ूपोंछा करने वाली को बाई कहते हैं,’’ दादी बोलीं.

फिर भी रजनी का मुंह चढ़ा रहा गुस्से से.

‘‘दादी, उस को बाई मत बोलो, मेड बोलते हैं यहां,’’ मानसी बोली.

‘‘अच्छा, ठीक है. चल, जल्दी से नहा ले, फिर मैं नाश्ता तैयार करूंगी,’’ दादी बोलीं.

‘‘नाश्ते का नहाने से क्या काम?’’ मानसी बोली.

‘‘बिना नहाए नाश्ता करेगी? दादी ने पूछा.

हां, मौमडैड भी तो छुट्टी वाले दिन यही करते हैं. लंच तक नहा लेते हैं,’’ मानसी ने बताया.

‘‘बेटा, नहा कर नाश्ता करना अच्छा होता है. बाद में फिर आलस आने लगता है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर मानसी खुशीखुशी नहाने चली गई.

दादी ने गरमगरम पनीर परांठे बना दिए थे. रजनी  झाड़ूपोंछा कर के बालकनी में बैठी थी फुरसत में क्योंकि उस को नाश्ता बनाने और खाना बनाने से फुरसत मिल गई थी.

किचन में दादी काम कर रही थीं. जब तक मानसी नाश्ता कर रही थी, दादी नहा कर आ गईं. दादी के कमर तक बाल खुले थे.

‘‘वाह, इतने सुंदर बाल,’’ मानसी नाश्ता भूल कर दादी के बाल देखने लगी.

दादी मुसकराती हुई बोलीं, ‘‘मानसी के भी इतने लंबे बाल हो जाएंगे.

‘‘मौम ने छोटे रखवा दिए, बोलती है, केयर करनी होती है, टाइम वेस्ट होता है.’’

‘‘कोई बात नहीं. जब तुम बड़ी होगी तो रखना लंबे बाल,’’ दादी ने अपना नाश्ता प्लेट में लिया.

‘‘दादी, परसों संडे है, अपने फ्लोर के हाल में किटी पार्टी होगी. मौम नहीं है तो तुम को जाना होगा.’’

‘‘मतलब, तुम नहीं चलोगी? दादी ने पूछा.

‘‘नहीं मैडमजी, वहां बच्चों का क्या काम? लेडीज की पार्टी होती है,’’ रजनी ने नाश्ते की जूठी प्लेट समेटते कहा.

‘‘अच्छा, ठीक है. चली जाऊंगी,’’ दादी बोलीं.

‘‘मैं घर पर वीडियो गेम खेलूंगी,’’ मानसी ने बताया.

दूसरे दिन सुबह मानसी दादी से पहले ही उठ गई और दादी को उठाती हुई बोली, ‘‘दादी, जल्दी से फ्रैश हो जाओ, हमें गार्डन चलना है. आप ने आंटियों को भी जल्दी आने को कहा था.’’

‘‘बेटा, अभी सुबह के 6 बजे हैं. हम ने उन को 7 बजे का कहा था.’’

‘‘उन को गेम्स का भी कहा था,’’ मानसी बोली.

‘‘हां, हम जल्दी चलते हैं, वे भी आ जाएंगी, ठीक है,’’ दादी ने पोती की बात मानी और फ्रैश हो कर दोनों गार्डन में आ गईं. ठंडी हवा सुकून दे रही थी. पेड़पौधे, हरियाली, चिडि़यों की आवाज भली लग रही थी.

मानसी की नजर एक छोटे से लड़के पर पड़ी जो फूल तोड़ रहा था और एक थैले में जमा कर रहा था. ‘‘देखोदेखो, फूल चुरा रहा है,’’ मानसी चिल्लाई. मानसी के चिल्लाते ही वह छोटा लड़का भागने लगा.

‘‘बेटा, डर मत, इधर आ,’’ दादी बोलीं.

वह डरतेडरते आया. दादी ने देखा, उस का थैला फूलों से भरा है. गुलाब, गेंदे के फूल.

‘‘बेटा, ये फूल क्यों तोड़े हैं, माली ने कभी देखा तो गुस्सा होगा?’’ दादी बोलीं.

‘‘मैं सुबह जल्दी आता हूं, इसलिए वह नहीं देख सकता,’’ बच्चा मासूमियत से बोला.

‘‘लेकिन क्यों तोड़ते हो?’’ दादी ने सवाल किया.

‘‘अपने दादू के लिए, वे फूल बेचते हैं,’’ बच्चा बोला.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘राजा बेटा. दादू मु झे इसी नाम से बुलाते हैं.’’

‘‘अच्छा, तुम हमें दादू से मिलवाने ले चलोगे?’’ दादी बोलीं.

‘‘चलिए,’’ राजा बोला. दादी उस के साथ उस के घर की तरफ चल दीं. लगभग

10 मिनट के रास्ते पर थोड़े कच्चेपक्के मकान थे. सड़क के उस पार एक कच्चे से मकान के सामने जा कर राजा बोला, ‘‘यहीं रहता हूं. दादू यहीं अंदर हैं.’’

दादी ने देखा कच्चे से मकान में थोड़ा सामान था. एक पलंग था, एक वृद्ध व्यक्ति बैठा था.

दादी को देख कर वह उठ गया.

‘‘बच्चे से सुबहसुबह बगीचे से फूल को तुड़वाते हो किसी ने चोरी करते देखा लिया तो?’’

‘‘फूल बेच कर थोड़ेबहुत पैसे आ जाते हैं. सो, गुजारा हो जाता है. मजदूरी नहीं होती मु झ से.’’

‘‘यह आप का पोता है, इस को पढ़ाओलिखाओ.’’

‘‘इस के मांबाप कोरोना में गुजर गए थे. मु झे मर जाना था पर मेरा बेटा और बहू चले गए,’’ वृद्ध रो पड़ा.

‘‘चिंता मत करो, मेरे घर भेज दिया करो, मैं पढ़ा दिया करूंगी. इस की स्कूल की जरूरत मैं पूरी करूंगी,’’ दादी आंसुओं को छिपाती बोली.

वृद्ध पैरों पर गिर पड़ा.

दादी दूर हट गईं. पास में कुछ दुकानें खुली थीं. दूध, बिस्कुट, मक्खन ला कर दादी ने राजा को दिए. कुछ रुपए उन्होंने वृद्ध को दिए और कहा, ‘‘राजा फूल नहीं चुराएगा, आप फूल खरीद कर बेचो.’’ राजा के सिर पर हाथ रख कर मानसी के साथ वे वापस गार्डन आ गईं.

गार्डन में सभी आंटियां दादी का इंतजार कर रही थीं. दादी ने उन को गेम्स खिलाए- रस्सी कूदना, सितोलिया वगैरह.

उन के चेहरे चमक उठे. लगभग घंटेभर बाद वे सब दादी को घेर कर बैठी थीं.

‘‘आप मीनल की सासुमां ही नहीं, हमारी भी मां हो. आप ने एक नई दिशा दी हैं. अब हम हफ्ते में कम से कम से कम दोतीन बार ये गेम खेलेंगे.’’

मानसी खुशी से तालियां बजाने लगी. वह दादी के गले लग गई.

जब घर पहुंची तो मानसी बहुत खुश थी, बोली, ‘‘दादी, मैं आज नाश्ता बनाऊं आप के लिए?’’

‘‘ठीक है, बनाओ, क्या बनाओगी?’’

‘‘चीज पास्ता,’’ मानसी बोली.

‘‘ठीक है,’’ दादी बोलीं.

मानसी का बनाया पास्ता दादी को पसंद आया. उन्होंने खूब तारीफ की.

संडे आते ही मानसी और मेड रजनी ने याद दिलाया कि 12 बजे किटी पार्टी में पहुंचना है.

दादी किटी पार्टी के लिए साड़ी ढूंढ़ने लगीं, कौन सी साड़ी पहनें.

बेबी पिंक कलर की साड़ी उन्होंने पहनने के लिए निकाली. बालों की लंबी चोटी बनाई.

जब पार्टी में पहुंचीं तो महिलाएं इकट्ठी थीं. स्टार्टर का दौर शुरू होने वाला था. खाने की खुशबू हवा में तैर रही थी. दादी को देख कर कुछ महिलाएं तो उन के नजदीक आ गईं. कुछ सुबह गार्डन में मिली थीं, कुछ अपरिचित थीं. कुछ चर्चा चल रही थी किसी मिसेज रायकुंवर के बारे में. पता चला कि वे नहीं आईं, उन की बहू नर्सिंग होम में एडमिट है, डिलीवरी होने वाली है.

दादी ने पूछा, ‘‘डिलीवरी हो गई या होने वाली है?’’

‘‘पता नहीं दोतीन दिन पहले एडमिट कराया गया था,’’ एक महिला बोली.

‘‘मोबाइल पर पूछ लेते हैं,’’ दादी बोलीं.

‘‘पहले लंच कर लेते हैं,’’ एक मौडर्न महिला बोली.

जींसटौप में वह महिला खूबसूरत लग रही थी.

‘‘पहले पूछ लेते हैं,’’ दादी बोलीं, ‘‘क्या आप भी?’’

‘‘चलिए, ठीक है,’’ उस महिला ने खुद फोन न कर के दादी को नंबर दिया.

दादी जब तक फोन करतीं, उस के पहले दूसरी महिला ने फोन कर दिया था दादी की बात सुन कर. ‘‘हैलो रायकुंवरजी, बहू कैसी है? तबीयत ठीक है? अच्छाअच्छा, बधाई हो,’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया था.

‘‘क्या हुआ?’’ दूसरी महिलाएं और दादी ने एकसाथ सवाल किया.

‘‘बेटी हुई है, बहू भी अच्छी है.’’

‘‘तो अच्छी बात है, बधाई देने चलते हैं,’’ दादी बोलीं.

‘‘अरे, आंटीजी आप भी, वह घर आएगी तो देख लेंगे. बहू को भी बच्ची को भी,’’ एक महिला बोली.

‘‘हां, बिलकुल सही बात है,’’ मौडर्न महिला बोली.

‘‘आप सम झिए बात को, नर्सिंग होम जाएंगे तो बच्चे के हाथ में भी कुछ रखना होगा, फिर कुछ फंक्शन रखेगी या नामकरण करेगी, फिर गिफ्ट दो. इसलिए अभी नहीं जाएंगे.’’

दादी ने मानसी को फोन लगाया और कहा, ‘‘रजनी को ले कर किटी पार्टी वाले हौल में आ जाओ.’’

‘‘अरे, दादी क्या हुआ, हम क्या करेंगे आ कर?’’

‘‘तुम आओ तो.’’

मानसी रजनी को ले कर हौल में पहुंच गई.

‘‘गेट वन नर्सिंगहोम चलना है,’’ दादी ने कहा.

‘‘ठीक है, चलिए, नजदीक है,’’ रजनी ने कहा. मानसी और रजनी के साथ दादी नर्सिंगहोम पहुंच गईं. मिसेज रायकुंवर मानसी को जानती थी. मानसी ने दादी का परिचय भी करवाया.

दादी फूलों का बुके, फल आदि ले कर गई थीं. रायकुंवर खुश हो गई. उस की बहू भी मुसकरा दी. नवजात नन्ही बच्ची को देख कर मानसी खुश हो गई. उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगी. बहुत देर तक दादी मिसेज रायकुंवर से बात करती रहीं. रजनी भी आश्चर्य में थी. वह सोच रही थी, लोगों के घर मेहमान आते हैं, उन्हें पड़ोसियों से बात करने की फुरसत नहीं होती, कहां मानसी की दादी इतना घुलमिल गई हैं, परायापन नहीं लगता.

जब दादी मानसी के साथ बाहर निकल रही थीं तो किटी पार्टी वाली महिलाएं नर्सिंगहोम आ रही थीं. उन को देख कर एक क्षण दादी रुकीं, फिर बोलीं, ‘‘बेटियो, मौडर्न कपड़े पहनना जरूरी नहीं है, मौडर्न सोच रखना जरूरी है.’’ उन का भोपाल आना सार्थक हो गया था. Hindi Story

 

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