Online Harassment: फेसबुक पर एक अजीबोगरीब वीडियो दिखी जिस में किसी अनजान सब्जी मार्किट में भीड़ में एक लड़का वीडियो शूट कर रहा होता है. वह शूट करते हुए कैमरा उस जगह ले कर जाता है जहां महिलाएं सब्जियां खरीद रही हैं. अब है तो यह साधारण सी व्लौग वीडियो मगर इस की बारीकियां कैमरे के पीछे छुपे इंसान की मंशा से पता चलती है. वह जानबूझ कर कैमरे का एंगल कुछ इस तरह रखता है कि महिलाओं की आपत्तिजनक फूटेज दिखाई दे. कभी कैमरा उन के पीछे की तरफ जूमइन करता है कभी उन के ब्रैस्ट की तरफ.
ठीक ऐसे ही भरी ट्रेन में किसी डब्बे में ऊपर वाली सीट पर बैठा लड़का नीचे खड़ी लड़कियों की छुप कर वीडियो इस एंगल से बनाता है कि उन की क्लीवेज दिखाई दे. या हावभाव दिखाई दे. आखिर वह बना क्यों रहा है सवाल इस पर है. यह बेरोकटोक है.
एक वीडियो में ट्रेन एक कपल किसी कम्पार्टमेंट में सोते हुए इंटिमेट होते दिखाई देते हैं. उसी समय कोई उन की वीडियो चुपके से बना लेता है और उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर देता है.
ऐसे ही मेट्रो वाली कई वीडियो सोशल मीडिया पर दिखाई पड़ती हैं, जहां कोई कपल एकदूसरे को किस कर रहे होते हैं. कोई गले मिल रहे होते हैं. इसे शूट कर के कोई सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देता है और लिखता है “दिल्ली मेट्रो में आप का स्वागत है.” अरे भाई, तुम्हे उन के व्यवहार से आपत्ति है तो जहां तुम्हारी इच्छा है, शिकायत करो, मगर बिना उन की मर्जी के उन की प्राइवेट वीडियो शूट कर के पोस्ट करना कहां तक सही है.
बात अब सीसीटीवी कैमरे तक नहीं रह गई है अब हर हाथ में फ़ोन है, जो बेलगाम है. ये कैमरे जो चाहे शूट कर रहे हैं. बिना किसी की मर्जी के बिना किसी परमिशन के.
इमेज बेज्ड सैक्सुअल हरासमेंट
डिजिटल युग ने हमें अनगिनत सुविधाएं दी हैं. हम हर रोज इंटरनेट पर फोटो शेयर करते हैं, वीडियो अपलोड करते हैं और हर पल को सोशल मीडिया पर दर्ज करने के फितूर में रहते हैं. नेपाल में युवा आंदोलन कर रहे हैं क्योंकि वहां सोशल मीडिया पर ही बैन लगा दिया है और उन के पास सोशल मीडिया से पैसे कमाने के अलावा कोई और काम ही नहीं है. जिस दुनिया में ‘कंटेंट ही करंसी’ बन चुका है, वहां लोग लाइक्स, फौलोअर्स और वायरल होने की भूख में किसी भी हद तक चले जाते हैं.
इस का एक अंधेरा पक्ष अपस्कर्टिंग और इमेज-बेस्ड सैक्सुअल एब्यूज यानी बिना सहमति किसी की प्राइवेट फोटोज या वीडियो बनाना व शेयर करना है.
अपस्कर्टिंग पहले विदेशों में खूब था, उन की कुछ छटीकटी वीडियो देख कर लगता है कि वहां यह आज भी है. जैसे, कुछ वीडियो इस तरह की भी दिखाई देती हैं जहां सड़क पर किसी सीवर के नीचे एयर ब्लोअर लगा दिया जाता है और जो स्कर्ट वाली लड़की उस के आसपास से गुजरती है तो हवा ब्लो की जाती है जिस से उन की स्कर्ट हवा में उड़ती है और उन की क्लिप बना ली जाती है.
वहां की फिल्मों में यह अभी भी दिखाया जाता है. जहां हाई स्कूल में कोई लड़का अपनी बेंच के आगे स्कर्ट में बैठी लड़की की नीचे से चुपके से पिक्चर ले लेता है.
सुनने में यह मामूली और हंसी में टालने जैसी बात लग सकती है, लेकिन हकीकत में यह मेंटल और इमोशनल लेवल पर गहरा हमला करता है. बात केवल एक वीडियो या फोटो तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह किसी इंसान की पूरी प्राइवेसी और सेल्फ रिसपेक्ट को तोड़ कर रख देती है. दिक्कत यह कि डिजिटल प्लेटफौर्म्स के पहले जो हरकतें छिप कर की जाती थीं, आज वे खुले तौर पर “कंटेंट” का हिस्सा बन गई हैं.
अपस्कर्टिंग का ताजा मामला
राजधानी दिल्ली का ताजा मामला इसे समझने में बिल्कुल सटीक उदाहरण है. हाल ही में दिल्ली पुलिस ने एक पायलट को गिरफ्तार किया, जो मेट्रो और भीड़भाड़ वाली जगहों पर महिलाओं के प्राइवेट हिस्सों की चोरीछुपे वीडियो बनाता था.
उस के पास से करीब 74 ऐसी क्लिप्स बरामद की गईं, जिन्हें उस ने एडवांस स्पाई कैमरे के जरिये रिकौर्ड किया था. यह कैमरा उस ने जूते में बारीकी से लगाया था, जिस से वह महिलाओं के बिल्कुल पास खड़ा हो कर उन के कपड़ों के नीचे वीडियो बना लेता था, और उन्हें भनक तक नहीं लगती थी. यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति के अपराध की कहानी नहीं बताती, बल्कि यह समाज में टैक्नोलौजी और यौन कुंठा के खतरनाक जोड़ को सामने लाती है.
अब सोचिए इन जैसे लोगों के चलते लड़कियों को कितना सतर्क रहना पड़ता होगा. कैसे हर समय अपने कपड़े संभालने पड़ते होंगे. कई मामलों में उन का सामाजिक जीवन पूरी तरह बदल जाता है.
साल 2018 में, इंग्लैंड में इस पर बड़ा राजनीतिक विवाद हुआ था. कई महिलाओं और एक्टिविस्ट्स ने एक कैम्पेन चलाया कि सरकार अपस्कर्टिंग को अपराध घोषित करे. लंबे समय तक चली बहस के बाद इसे सैक्सुअल औफेंस की श्रेणी में शामिल तो किया गया, लेकिन तब तक सैकड़ों महिलाएं ऐसी हरकतों का शिकार बन चुकी थीं. औस्ट्रेलिया ने भी इस दिशा में कदम उठाया और कानून ला कर साफ कर दिया कि बिना सहमति किसी भी प्रकार की निजी तस्वीर बनाना, चाहें असली हो या डीपफेक, एक सीधा अपराध है.
क्यों हो रही सामान्य
भारत की स्थिति और चिंताजनक है. दिल्ली मेट्रो का उदाहरण लीजिए. हम अकसर सुनते हैं कि यहां से लगातार “वायरल वीडियोज” निकलते रहते हैं. किसी के फैशन स्टाइल या किसी लड़की के पहनावे को ले कर जानबूझ कर वीडियो बनाना और फिर उसे सोशल मीडिया पर डालना अब कौमन हो गया है. धीरेधीरे यह ट्रैंड सिर्फ बौडी-शेमिंग तक सीमित नहीं रहा. अब इस में छिपे कैमरों से अपस्कर्टिंग कर क्लिप्स बनाई जाने लगीं हैं. इन वीडियोस को ‘मज़ाक’ या ‘प्रैंक’ कह कर शूट किया जाता है, लेकिन असल में यह सीधेसीधे सैक्सुअल हैरेसमेंट के दायरे में आता है.
इस तरह की आप कोई भी वीडियो उठा कर देखिए, कंटेंट के नाम पर क्या दिखाने की कोशिश की जा रही है. आज यूथ के दिमाग में यह फितूर भर गया है कि अगर आप इंस्टाग्राम पर ट्रेंड नहीं कर रहे, अगर आप के रील्स पर हजारों लाइक नहीं आ रहे, तो आप किसी काम के नहीं हैं. इस दबाव ने लाखों युवाओं को ऐसा शौर्टकट ढूंढने पर मजबूर कर दिया है जिस की कीमत किसी दूसरे को चुकानी पड़ रही है. सोचिए, अगर किसी लड़की को यह पता चले कि उस की चोरीछिपे ली गई एक फोटो या वीडियो आज सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी है, तो उस की मानसिक स्थिति कैसी होगी?
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर लड़की को अपनी कोई ऐसी वीडियो का पता भी चलता है तो इंग्लैंड में ऐसे 70 प्रतिशत मामले दर्ज ही नहीं हो पाते क्योंकि लड़कियां पुलिस तक जाने से हिचकती हैं. उन्हें डर रहता है कि केस दर्ज करने से उन का नाम सामने आ जाएगा और वीडियो और ज्यादा फैल जाएगी.
भारत में भी लगभग यही हाल है. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2023 में 18 हजार से ज्यादा साइबर उत्पीड़न और अश्लील कंटेंट शेयरिंग के केस दर्ज हुए, लेकिन यह आंकड़ा असल संख्या की तुलना में बहुत कम है. असली हकीकत यह है कि ज्यादातर लड़कियां डर और शर्म की वजह से चुप रह जाती हैं. यह तो वो मामले हैं जो जांच के दायरे में आ गए हैं. मगर हर दिन ऐसी सैकड़ों वीडियो रोज बन रही हैं कुछ इन्फ्लुएंसर्स के द्वारा जो कभी जांच के दायरे में आते ही नहीं क्योंकि उन के लिए तो यह कंटेंट क्रिएशन है.
दरअसल, अब केवल चोरीछिपे मोबाइल कैमरा ही खतरा नहीं है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीपफेक तकनीक ने हालात को और खतरनाक बना दिया है. किसी लड़की की इंस्टाग्राम से ली गई तस्वीर को एआई टूल्स के जरिए बदल कर अश्लील वीडियो बना देना सेकेंडो का खेल बन गया है. वह वीडियो व्हाट्सएप ग्रुप्स या टेलीग्राम चैनलों पर फैलतेफैलते हजारों हाथों में पहुंच जाती है. कई बार तो असल और नकल में फर्क करना तक मुश्किल हो जाता है.
इन्फ्लुएंसर्स कल्चर से बढ़ावा
यहां एक और गंभीर सवाल उठता है, इन्फ्लुएंसर कल्चर इस पूरे खेल को कितना बढ़ावा दे रहा है? आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के युवा इन्फ्लुएंसर्स की गिरफ्त में फंसे हैं. अच्छाखराब जो भी कंटेट वो दिखाते हैं वही उन की दुनिया बनते जा रहे हैं.
लेकिन समस्या यह है कि कई इन्फ्लुएंसर फौलोअर्स की भूख में किसी भी हद तक चले जाते हैं. वे बिना सोचेसमझे पब्लिक जगहों पर वीडियो बनाते हैं, कभी राह चलती लड़कियों से छेड़छाड़ को मजाक की तरह दिखाते हैं और कभी ऐसी क्लिप शूट कर देते हैं जो सीधे किसी लड़की की प्राइवेसी का उल्लंघन करती है.
भारत में कानूनी स्थिति अभी बहुत कमजोर है. अपस्कर्टिंग को अभी तक कानून में अलग अपराध नहीं माना गया है. हालांकि आईपीसी सेक्शन 354सी यानी वोयुरिज्म और 509 यानी महिलाओं की अस्मिता का अपमान करने से जुड़े प्रावधान लागू हो सकते हैं, लेकिन इन की सीमाएं स्पष्ट हैं. डीपफेक जैसे आधुनिक अपराध इन धाराओं में फिट नहीं बैठते. जब तक कोई खास, अलग कानून नहीं बनेगा, तब तक पीड़ितों को न्याय मिलना बहुत मुश्किल है. इस के साथ ही पीड़िता को गुमनामी (anonymity) का भी अधिकार मिलना चाहिए, ताकि वह शिकायत दर्ज कराने में सहज महसूस करे. लेकिन भारत में ऐसे मामलों में अभी यह सुरक्षा बहुत सीमित है.
पुलिस और न्याय प्रणाली की धीमी रफ्तार अलग समस्या है. अकसर सुनवाई लंबी खिंच जाती है, सबूत इकट्ठा करना मुश्किल हो जाता है और पीड़िता की हिम्मत टूट जाती है. अफसोस की बात यह है कि एक पीड़िता के पास केवल दो ही रास्ते बचते हैं. या तो वह कोर्ट का चक्कर लगाए और अपनी प्राइवेसी के उजागर होने का खतरा उठाए, या फिर चुपचाप यह सब झेले और जिंदगी भर उसे याद रखे. ऐसे में ज्यादातर लड़कियां शिकायत करने के बजाय चुप रहना बेहतर समझती हैं.
इंस्टाग्राम, यूट्यूब और टेलीग्राम जैसे प्लेटफौर्म्स को तुरंत ऐसे कंटेंट हटाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. बेशक वे सिर्फ प्लेटफौर्म हैं और उन्हें इस के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, मगर उन्हें ऐसे कंटेंट देखना पड़ेगा कि बारबार किसी यूजर का अकाउंट आपत्तिजनक कंटेंट डाल रहा है, तो उस पर उपयुक्त कार्यवाही हो. दूसरा वीडियो डालने से ज्यादा जरूरी यह है कि वीडियो देखने वाला ही इस तरह के कंटेंट क्रिएटर को बायकोट करें, क्योंकि आज किसी के साथ हो रहा है तो कल को उन के साथ भी हो ही सकता है.
जेन जेड को यह समझना होगा कि किसी की प्राइवेसी कभी भी मजाक नहीं है. असली ‘कूलनेस’ यह है कि आप दूसरों की प्राइवेसी का ख्याल रखें, और यह दिखाएं कि आप डिजिटल सिटीज़नशिप निभा सकते हैं. अगर आप देखते हैं कि कोई दोस्त ऐसे वीडियो बना रहा है या अनजाने में किसी को शर्मिंदा कर रहा है, तो उसे रोकना भी जिम्मेदारी है. Online Harassment