Indian Politics: जम्मू कश्मीर की एक कड़वी सच्चाई तो 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के साथ ही उजागर हो गई थी कि वहां बदला कुछ खास नहीं है और धरती की इस जन्नत की हकीकत अकसर बाहर नहीं आती. मीडिया को तो ऐसे मुद्दों से कोई सरोकार ही नहीं कि दरअसल जम्मू कश्मीर में चल क्या रहा है. यह दुसाहस जो लोग कर सकते हैं बुकर पुरुस्कार विजेता अरुंधती राय उन में से एक हैं जिन्होंने अपनी किताब आजादी, स्वतंत्रता फासीवाद कथा में कश्मीर का पूरा सच उधेड़ कर रख दिया है.
आजादी में वही सब कुछ है जो हर कोई नहीं जानता. मसलन यह कि देश में अधिनायकवाद और फासीवाद सर चढ़ कर बोल रहा है लेकिन धार्मिक ढोल ढमाकों के शोर में किसी को कुछ सुनाई नहीं देता. कश्मीर के बहाने दरअसल अरुंधती ने पूरी भगवा गैंग को घेर लिया था. आजादी निबंध संग्रह की 240 पन्नो की किताब है जिस का सार यह है कि कश्मीर में भारतीय सेना की कार्रवाईयां मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही हैं और अनुच्छेद 370 को हटाना एक औपनिवेशिक फैसला था जिस ने कश्मीरियों के सेल्फ डिसीजन पर हमला किया है. अन्याय और दमन के साथसाथ वहां से लापता हो रहे लोगों का जिक्र भी इस किताब में है.
अब सरकार को भला कहां आलोचक और उदारवादी भाते हैं सो उस ने भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 98 के तहत आजादी पर प्रतिबंध लगा दिया. ऐसी एक नहीं बल्कि 25 अन्य किताबों पर भी प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई जिन में घाटी की बदहाली पर लिखा गया था. फ्रीडम औफ स्पीच को धता बताती बीएनएस की धारा 98 की खूबी यह है कि इस के तहत सरकार बिना किसी सुनवाई के ऐसी किताबों, प्रकाशन और दस्तावेजों को जब्त कर सकती है जो उसे पसंद नहीं. यानी यह धारा एक तरह की तानाशाही ही है.
यह सोचना बेमानी है कि यह प्रतिबंध राज्य सरकार ने लगाया बल्कि यह जम्मू कश्मीर के गृह विभाग यानी एलजी मनोज सिन्हा के हुक्म पर लगाया गया है जो केंद्र सरकार के अधीन काम करते हैं. जानने वाले जानते समझते हैं कि अरुंधती और उन के जैसे उदारवादी लेखक भगवा गैंग की नजर में देशद्रोही, माओवादी, नास्तिक, अर्बन नक्सली और कभीकभी कांग्रेसी भी होते हैं. लिहाजा किसी को हैरत नहीं हुई. वैसे भी यह अघोषित रूप से एक सेंसर्ड खबर थी इसलिए बात दूर तलक नहीं जा पाई. Indian Politics