Donald Trump : ‘मृत अर्थव्यवस्थाएं’ – ये शब्द भारत और रूस के बारे में अमेरिका के वर्तमान खब्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हैं. शायद ये सही हैं. भारत का दिखने वाला एकमात्र लक्ष्य ‘हिंदूमुसलिम’ है, रूस का दिखने वाला एकमात्र लक्ष्य यूक्रेन पर विजय पाना है. ऐसी अर्थव्यवस्थाएं जिन का लक्ष्य ही विध्वंस, विनाश, विवाद और विकासहीनता हो उन्हें मरा हुआ ही कहा जा सकता है. भारत कुछ ऐसा ही 1707 और 1947 के बीच में रहा.
जीवित अर्थव्यवस्था वह है जिस का लक्ष्य लोगों को खुश करना, उन की रोजीरोटी का इंतजाम करना, समाज के हर हिस्से को बराबरी व सुरक्षा दिलवाना, सरकारी कारिन्दों को काबू में रखना, लिखनेपढ़ने व समझने की सब को छूट देना हो. हमारी अर्थव्यवस्था में यह कहीं नजर आ रहा है क्या? रूस के शासक व्लादिमीर पुतिन के मुंह से आम रूसी के लिए कुछ कहते सुना जा रहा है क्या?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को सिर्फ इसलिए हिला दिया है क्योंकि वे अमेरिका को अपने हिसाब से महान देखना चाहते हैं. वे नए हथियारों की बात नहीं कर रहे, जमीनें छीनने की बात नहीं कर रहे बल्कि वे अमेरिकियों को काम के नए मौके और उन्हें बेहतर जीवन देने की बात कर रहे हैं. इधर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत का नारा तो दिया पर किया पाखंड का विकास जो गलीगली में पैर पसार रहा है. पुतिन गलीगली से पुरुषों को पकड़ कर यूक्रेन भेज रहे हैं और हम कांवड़ यात्रा पर. डोनाल्ड ट्रंप ये दोनों हरकतें नहीं कर रहे.
डोनाल्ड ट्रंप का राज कोई आदर्श नहीं है. वे मागा गैंग चला रहे हैं, जिसे सिर्फ गोरों का राज चाहिए, चर्च का राज चाहिए. सिवा गैरकानूनी ढंग से घुसे विदेशियों को बाहर निकालने के ट्रंप अपने नागरिकों को परेशान नहीं कर रहे. उन्होंने बहुत सी सोशल सेवाओं में कटौती की है क्योंकि उन का विश्वास है कि लोग मेहनत करें, पैसा कमाएं, पैसा बचाएं. उन्होंने टैरिफ के भिड़ का छत्ता छेड़ दिया है ताकि दूसरे देश अमेरिकी माल पर उतना ही टैक्स लगाएं जितना दूसरे देशों के सामान पर अमेरिका में लगता रहा है. वे बारबार अमेरिका में ज्यादा जौब्स, सस्ता सामान, कारखानों की बात कर रहे हैं. वे पुतिन और मोदी की तरह धर्म और युद्ध में पैसा बरबाद करने की बात नहीं कर रहे.
भारतीय नेता उन के मृत अर्थव्यवस्था बयान से चिढ़े हुए हैं क्योंकि वे जानते हैं कि जो भी भारत की अर्थव्यवस्था में दिख रहा है वह उस पैसों के चलते है जो विदेशों में भारतीय मूल के मजदूर 12-14 घंटे काम कर कमा व अपने भूखे परिवारों को भारत में भेज रहे हैं. हमारी उन्नति तो केवल धर्मस्थलों में दिख रही है जहां भीड़ बढ़ गई है क्योंकि मौजूदा भगवा सरकार भरपूर प्रचार कर लोगों को तीर्थों, मंदिरों, पहाड़ों के मंदिरों, अविश्वसनीय चिकित्सा व्यवस्थाओं की ओर धकेल रही है. यह 1947 से पहले का जमाना है जो लौट रहा है.
वर्ष 1947 से पहले अंगरेजों को सिर्फ भारत से सैनिक चाहिए होते थे जिन का इस्तेमाल वे अपने छोटे से द्वीप और उस के पचासियों उपनिवेशों की रक्षा में करते थे. हमारी अर्थव्यवस्था लगभग मरी हुई थी. आज अगर विदेशों से आए मजदूरों के पसीने के पैसों को छोड़ दें तो हमारी अर्थव्यवस्था मरी हुई ही समझ. हे राम! Donald Trump