Hindi Love Stories : एक अनिश्चित भविष्य की कल्पना कर के रश्मि अमित से दूर चली गई थी लेकिन विडंबना देखो, वही अमित उसे उज्ज्वल भविष्य देने के लिए सामने खड़ा था और उस के पास उसे देने के लिए कुछ न था.
रात के पौने बारह बज रहे थे. ट्रेन खुलने वाली थी. मैं नीचे वाली बर्थ पर खिड़की के पास बैठा खाना खा रहा था. सोचा था, खापी कर तुरंत सो जाऊंगा. ट्रेन रेंगने लगी थी. तभी एक युवती दौड़तेदौड़ते मेरी खिड़की के पास आई.
‘‘यह कोच नंबर 7 है क्या?’’ वह ट्रेन की बढ़ती गति के साथ लगभग दौड़ रही थी.
‘‘हां.’’
उस ने मुझे एक लिफाफा पकड़ाया और बोली, ‘‘17 नंबर बर्थ पर मेरी बहन रश्मि है. जरूर से दे दीजिएगा.’’ ट्रेन की गति बढ़ती गई और वह पीछे छूटती गई. उस ने दोनों हाथ जोड़ कर मुझे मानो धन्यवाद दिया और फिर वह आंखों से ओझल हो गई. बाएं हाथ से मैं ने वह लिफाफा पकड़ा था क्योंकि दाहिने हाथ से खाना खा रहा था. वह लिफाफा मैं ने अपने बैग के ऊपर वाले पौकेट में रख दिया यह सोच कर कि हाथ धो कर लौटता हूं और फिर 17 नंबर पर जा कर रश्मि को दे आऊंगा. खाना खाने के बाद मैं हाथ धोने के लिए वाशबेसिन की ओर बढ़ गया. टौयलेट भी हो आया कि बस निश्चिंत हो कर सो जाऊंगा और यही हुआ. मैं लौट कर आते ही बर्थ पर पसर गया. एक चादर तानी और सो गया.
करीब साढ़े 5 बजे सुबह नींद खुली और मैं अपना सामान सहेजने लगा क्योंकि कुछ ही देर बाद लखनऊ स्टेशन आने वाला था जहां मुझे उतरना था. जब मैं ने चादर रखने के लिए बैग उठाया तो वह लिफाफा दिखा. ओह, मैं तो भूल ही गया. बड़ी शीघ्रता से मैं 17 नंबर बर्थ के पास पहुंचा तो उसे खाली पाया.
मैं ने सामने वाले यात्री से पूछा तो उस ने बताया कि वह तो पहले ही रायबरेली पर उतर गई थी. मुझे उस युवती ने कितने विश्वास से वह लिफाफा पकड़ाया था. मुझे अपने ऊपर ही क्रोध आने लगा. ध्यान से देखा तो यह एक खुला पत्र था. मैं ने निकाला तो पता चला कि यह नियुक्तिपत्र था और उसे आज ही जौइन करना था. रायबरेली के एक कालेज का नाम और अन्य विवरण भी अंकित थे. लिफाफे के ऊपर रश्मि शर्मा, पूरा पता और मोबाइल नंबर लिखा था.
ट्रेन लखनऊ आ पहुंची. स्टेशन से बाहर आया. अपने ऊपर ही झुंझलाहट हो रही थी. एकाएक लिफाफे पर लिखे फोन नंबर का ध्यान आया. तुरंत ही फोन किया, ‘‘हैलो. मैं अमित बोल रहा हूं. आप रश्मिजी हैं?’’ मैं उत्तर सुनने के लिए उतावला था.
‘‘हां, लेकिन आप कौन और आप को यह फोन नंबर कहां से मिला?’’ उस के स्वर में कुछ कड़वाहट थी.
‘‘देखिए, वह सब मैं आप को बता दूंगा. आप का नियुक्तिपत्र मेरे पास है.
मुझे बनारस रेलवे स्टेशन पर किसी ने दिया था. मैं 2 घंटे में रायबरेली पहुंच जाऊंगा. वैसे भी, कार्यालय तो 10 बजे ही खुलेगा. बाकी मिलने पर,’’ मैं ने बिना कुछ सुने फोन बंद किया और औटोरिकशा पकड़ अपने कमरे की ओर निकल पड़ा.
कमरे पर पहुंच कर दैनिक कार्यों से निवृत्त हुआ और रायबरेली के लिए निकल पड़ा. बस, मैं बैठा सोच रहा था कि मैं एक बड़ी उलझन और गहरे अपराधबोध से बच गया.
9 बजतेबजते मैं उस विद्यालय के कार्यालय के पास पहुंच गया. रश्मि को फोन किया.
‘‘मैं आ गया हूं, आप कहां हैं?’’
‘‘कार्यालय के सामने एक रैस्टोरैंट में चाय पी रही हूं. आप कहां हैं?’’
‘‘मैं तो कार्यालय के मुख्य द्वार के पास खड़ा हूं. ऐसा करता हूं कि मैं अपना दाहिना हाथ उठा लेता हूं, नीले रंग का कोट पहने हुआ हूं. आप पहचान लेंगी.’’
2 मिनट बाद ही पीछे से आवाज आई, ‘‘हाथ नीचे कर लीजिए, मैं रश्मि हूं.’’ इस बार उस के स्वर में कड़वाहट नहीं थी.
‘‘लीजिए रश्मिजी अपना पत्र. अब मैं निश्चिंत हूं. बड़ी उलझन में था.’’ और फिर मैं ने पूरी घटना रश्मि को बताई.
‘‘वे मेरी भाभी हैं. ट्रेन में बैठने के बाद मैं ने अपना फोन बंद कर दिया था कि सोना ही तो है. आप के फोन के आने के कुछ ही देर पहले औन किया. थोड़ी देर बाद ही भाभी का भी फोन आया. आप को कितनी कठिनाई हुई, मैं हृदय से आप की आभारी हूं.’’ इतना कह कर उस ने नमस्कार किया और कार्यालय की ओर मुड़ने लगी.
मुझे न जाने क्या सूझा कि बोल पड़ा, ‘‘आप जौइन कर आइए. मैं प्रतीक्षा कर लूंगा.’’
‘‘न जाने कितना समय लगे, आप वैसे भी यात्रा की भागदौड़ से थके हुए हैं,’’ उस ने टालना चाहा.
‘‘यदि इच्छुक नहीं हैं आप तो मैं भी विवश नहीं करूंगा. चलिए. यह भेंट इतनी ही सही. लेकिन क्या कभी फोन कर सकता हूं? विश्वास मानिए, कोई अभद्रता नहीं होगी.’’
मैं उस के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा. उस ने कहा तो कुछ नहीं. बस, हाथ जोड़े और आगे बढ़ गई. मैं समझ रहा था कि कोई भी युवती एक अपरिचित शहर में किसी अपरिचित व्यक्ति से मेलजोल भला क्यों बढ़ाना चाहेगी? पत्र वाली घटना तो संयोगवश घट गई. कोई भी संवेदनशील व्यक्ति ऐसी परिस्थिति में संभवतया वही करता जो मैं ने किया. मैं इस बात को भूलने का प्रयास करते हुए वापस लखनऊ लौट पड़ा. लेकिन न जाने किस भावनावश उस का फोन नंबर मैं ने सुरक्षित कर लिया.
मैं लखनऊ में एक वृद्धाश्रम के संचालक के रूप में कार्यरत था. परिवार और समाज से पीडि़त वृद्धजनों के सहज और स्वस्थ जीवनयापन में सहायता करना हमारा उद्देश्य था. मेरे परिवार में एक बड़े भाई थे, इंजीनियर थे जो सपरिवार पुणे में बस गए थे. हमारा घर बनारस में ही था. भैया तो कभीकभी आते थे पर मैं महीने दो महीने में बनारस हो आता था. एक किराएदार रख छोड़ा था. लखनऊ में अकेला ही किराए पर रहता था.
कभीकभी रश्मि वाली घटना याद आ ही जाती थी. शायद अब मन को किसी साथी की तलाश थी. एक दिन न जाने किस भावनावश मैं ने रश्मि को फोन कर ही दिया.
‘‘हैलो, मैं अमित बोल रहा हूं. पहचाना आप ने? मैं ने उस की प्रतिक्रिया भांपने की कोशिश की.
‘‘जी हां. आप ने ही वह पत्र पहुंचाया था. मैं भी आप को फोन करने वाली थी. उस दिन मेरा व्यवहार बड़ा रूखा रहा. सोचती थी कि यदि कभी भेंट होती तो उस अशिष्टता के लिए आप से क्षमा मांग लेती,’’ उस के स्वर में संकोच था.
‘‘तो इस में क्या बड़ी बात है. कल रविवार है. आप का विद्यालय बंद ही रहेगा. आ जाता हूं रायबरेली. आप मुझ से क्षमा मांग लीजिएगा और मैं क्षमा कर भी दूंगा,’’ यह कहते हुए मैं हंस पड़ा.
कोई उत्तर न पा कर मैं ने पूछा, ‘‘तो मैं सुबह 10 बजे उसी रैस्टोरैंट में मिलता हूं. मना मत कीजिएगा.’’
‘‘जी ठीक है.’’ लग रहा था कि बड़े पसोपेश में उस ने स्वीकार किया. अगले दिन मैं उसी रैस्टोरैंट के सामने प्रतीक्षा करने लगा. थोड़ी देर में वह रिकशे से आई. मैं ने रिकशेवाले को पैसे दिए जो उसे अच्छा नहीं लगा.
‘‘रश्मिजी, यह शिष्टता है और कुछ नहीं.’’
वह कुछ न बोली. हम सब से पीछे वाली सीट पर जा बैठे.
‘‘अमितजी, मैं ने सारी बातें भाभी को भी बताईं तो उन्होंने भी मुझ से कहा कि तुम्हें ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था. अपने इस रूखे और अशोभनीय व्यवहार पर वास्तव में बहुत लज्जित हूं.’’ उस के शब्दों और चेहरे पर आ रहे भावों ने स्पष्ट कर दिया कि वह सच बोल रही है.
बातों ही बातों में पता चला कि उस के मातापिता नहीं रहे. बनारस में भाभी अपनी बेटी नमिता के साथ रहती हैं. वह वहीं पढ़ती है.
‘‘आप के बड़े भाई कहीं बाहर नौकरी करते हैं क्या?’ इस प्रश्न के पूछते ही रश्मि की आंखें भर आईं और रुंधे कंठ से उस ने कहा, ‘‘भाभी विधवा हैं. मुझ से मात्र 4 वर्ष बड़ी हैं. वैधव्य और एक बेटी के जीवन की जिम्मेदारी के साथ जी रही हैं. कुल हम ही 3 लोग हैं एकदूसरे के सुखदुख के साथी,’’ कहतेकहते रश्मि ने दुपट्टे से अपने आंसुओं को पोंछ लिया.
‘‘ओह, मुझे नहीं पूछना चाहिए था.’’
‘‘आप का क्या दोष? जीवन के घाव सब को नहीं दिखाए जाते पर यह प्रश्न ही ऐसा है कि इस का उत्तर मेरी आंखें देने लगती हैं और फिर आंसू कहां छिपते हैं?’’ वह असहज हो उठी थी.
मैं ने उसे धीरज बंधाने का प्रयास किया. उस ने खाया कुछ नहीं, बस चाय पी और फिर हम लोग रैस्टोरैंट से बाहर आ गए. मैं ने एक रिकशे वाले को बुलाया. वह बैठ गई तो मैं ने थोड़ा मुसकराते हुए कहा, ‘‘इस बार पैसे मैं नहीं दूंगा.’’ मैं ने स्थिति सहज करने के लिए ऐसा कहा. वह धीमे से मुसकराई, दोनों हाथ जोड़े और बोली, ‘‘आप का नंबर अब मेरे मोबाइल में सुरक्षित है, अमितजी.’’
वह चली गई और मैं उस के इस वाक्य के मधुर अर्थ निकालते हुए वापस लखनऊ आ गया. यह एक सुखद स्मृति थी.
समय बीतता रहा. हम मिलते रहे और अब हम एकदूसरे के लिए आप न हो कर तुम हो गए. मैं मान बैठा था कि हम एकदूसरे के हृदय में बस चुके हैं. एक दिन बातचीत के क्रम में मेरे मुंह से अकस्मात ही निकल गया, ‘‘भाभी कब से अकेली हैं?’’
रश्मि कुछ पलों तक तो चुप रही, फिर बोली, ‘‘भैया एकलौते बेटे थे. मातापिता का दुलार और प्यार पा कर वे न जाने कब ऐसे लोगों की संगत में आ गए जिन के जीवन में कोई बंधन और अंकुश नहीं था. भैया को सिगरेट पीने की बुरी आदत लग गई. बहुत समझाया गया लेकिन सब व्यर्थ. सोचा गया कि शादी हो जाए तो शायद पत्नी के कहने पर सुधर जाएं पर ऐसा न हुआ. इतना ही करते कि मम्मीपापा के सामने न पीते. अपने कमरे को बंद कर लेते और सिगरेट पीते. उस धुएं और घुटनभरे कमरे में ही भाभी रहने को विवश थीं.’’
‘‘यह तो आप के भैया की निष्ठुरता थी जो वे अपनी पत्नी की इच्छाओं व भावनाओं का भी सम्मान नहीं करते थे.’’
‘‘बस, अचानक ही एक दिन पता चला कि सिगरेट की इस आदत के कारण भैया ‘क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज’ के गंभीर रोगी बन चुके थे.’’
‘‘यह कौन सी बीमारी है?’’ मैं जानना चाहता था.
‘‘हमें तो यही बताया गया कि लंबे समय तक तंबाकू के धुएं से या फेफड़ों में जलन पैदा करने वाले पदार्थों के संपर्क में रहने से व्यक्ति के फेफड़े और वायुमार्ग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. इस बीमारी का प्रमुख कारण धूम्रपान ही है,’’ वह बोली.
‘‘तो भैया को परेशानी क्या होने लगी?’’
‘‘समझ अमित कि एक नहीं, कई परेशानियों को ले कर वे जी रहे थे. खूब खांसी आती थी, बलगम भी अधिक बनने लगा था, सांस लेने में कठिनाई, थकान और लगता था कि वजन भी धीरेधीरे कम होने लगा था. कहते थे भैया कि उन्हें घरघराहट जैसे लक्षणों के साथ छाती में जकड़न का भी अनुभव होता है.’’
‘‘तो डाक्टर ने उपचार क्या बताया?’’ मैं ने पूछा.
‘‘कुछ विशेष नहीं. इन्हेलर का प्रयोग करने को कहा. कुछ दवाएं भी दीं और समयसमय पर दिखाते रहने को कहा.’’
रश्मि की इन बातों को सुन कर बड़ा दुख हुआ. एक बुरी आदत ने पूरे परिवार से सुखशांति छीन ली थी. मैं ने पूछा, ‘‘क्या किसी और डाक्टर से परामर्श नहीं लिया?’’
‘‘किया था यह भी. बिना किसी को बताए एक दिन भैया की सारी रिपोर्ट और चल रहे उपचार का विवरण ले कर मैं ने एक और वरिष्ठ डाक्टर से भेंट की और उन्होंने जो कहा, वह सुन कर मैं सन्न रह गई.’’
‘‘क्या कहां उन्होंने?’’ मैं भी जानना चाहता था.
‘‘बोले कि लंबे समय तक सिगरेट पीने से फेफड़ों की स्थिति बिगड़ चुकी है. कई बार ऐसे लोग कुछ और रोगों से भी प्रभावित हो जाते हैं, जैसे हृदय रोग, फेफड़े का कैंसर, औस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों का कमजोर होना आदि. दवा तो ठीक ही चल रही है. कुछ विशेष करने को नहीं बचा है अब.’’ डाक्टर एक बुरा संकेत दे कर चुप हो गए.
‘‘3 वर्ष बीततेबीतते वे चल बसे. जिन घूटों को वे पीते रहे, एक दिन वही धुआं उन्हें पी गया और हमारे जीवन को धुएं से भर कर भैया छोड़ गए हम सब को.’’
इस दुखद, बोझिल और हताशाभरे माहौल में मैं भला क्या बोलता. सांत्वना के 2 शब्द कह कर उसे पीड़ामय अतीत की परिधि से वापस लाने का प्रयास करने लगा. कुछ देर और बैठे रहे हम लोग और फिर वह कमरे की ओर निकलने के लिए उठ खड़ी हुई.
‘‘चलती हूं, अमित. अपना दुख तुम से कह चुकने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो डांवांडोल हृदय को कोई आसरा मिल गया हो. तुम्हें भी लौटना ही है.’’
वह रिकशे पर बैठ गई और मैं बस स्टैंड की ओर बढ़ चला.
मैं ने अब निश्चित कर लिया कि अपने मन की बात उस से कह ही डालूंगा. फोन कर के उसे आगामी रविवार का दिन और समय भी बता दिया. शायद उसे भी आभास हो गया है कि मैं उस से क्या कहने वाला था.
रविवार को मैं समय से पहले ही पहुंच गया और प्रतीक्षा करने लगा. यह अवसर आनंद का अतिरेक था या हृदय की बात कह देने की अकुलाहट या फिर अपने जीवन के एक मधुर निर्णय को उस से बता डालने की व्यग्रता, मैं समझ नहीं पा रहा था.
एक अद्भुत मनोदशा में था कि रश्मि अभी तक आई क्यों नहीं. प्रतीक्षा के उन बोझिल क्षणों को व्यतीत करने के लिए मैं ने एक सिगरेट सुलगाई, कश लेते हुए चहलकदमी करने लगा. अब 11 बज रहे थे लेकिन रश्मि नहीं आई. फोन किया तो कट गया. दोतीन प्रयास किए पर उस ने फोन उठाया नहीं. मैं समझता था कि वह काट दे रही है. इसी बेचैनी में घंटेभर और टहलता रहा पर न वह आई और न ही उस ने फोन उठाया.
मुझे यह भी नहीं मालूम था कि वह रहती कहां है. थकहार कर वापस लखनऊ आ गया. बिना कुछ खाएपिए लेट गया. ऐसी परिस्थिति में मनुष्य अनहोनी ही सोचता है. सोचा, कल बात करूंगा. अशांत हृदय और आशंकाओं के झंझावात के झेलते हुए न जाने कब नींद आ गई.
अगले दिन सुबह ही फोन की घंटी बजी. रश्मि का फोन था.
‘हैलो रश्मि. क्या हुआ? कल आईं क्यों नहीं? फोन भी काट दे रही थी. तुम ठीक तो हो न? मेरा मन बहुत घबरा रहा है. कुछ बोलतीं क्यों नहीं? मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’ मैं अपनी ही धुन में बोलता ही जा रहा था कि उस की आवाज सुनाई दी.
‘‘लेकिन अब मैं तुम से कभी भी नहीं मिलना चाहूंगी. कुछ देर से पहुंची थी कि रिकशे पर से ही मैं ने तुम्हें सिगरेट के धुएं से छल्ले बनाबना कर उड़ाते देखा. तुम ने कभी अपनी इस बुरी आदत के बारे में मुझे नहीं बताया. जिस धुएं के कारण मेरा पूरा परिवार उजड़ गया, भाभी विधवा हो गईं, बेटी बिना बाप की हो गई. तुम भी उसी राह पर चल रहे थे. फोन केवल इसलिए किया कि तुम्हें यह सच्चाई बता कर इस संबंध को यहीं समाप्त करना था. मिलने या फोन करने का प्रयास न करना, कहीं अपमानित न होना पड़ जाए.’’
‘‘रश्मि मेरी बात सुनो. वह तो बस समय काटने के लिए मैं कभीकभी सिगरेट पीता हूं, हमेशा नहीं.’’ मैं अपनी बात कह भी न पाया था कि उस ने फोन बंद कर दिया.
मैं सिर पकड़ कर बैठ गया. क्या से क्या हो गया? सारे सपने, सारी आशाएं पलक झपकते ही समाप्त हो गईं. जीवन के सामने एकाकीपन का वही विराट दैत्य फिर आ खड़ा हुआ. कार्यालय गया पर काम में मन न लगा. अकारण ही घूमघूम कर समय काटता रहा. होटल से ही खाना खा कर कमरे में लौटा. आंखों में नींद न थी, हृदय में हाहाकार मचा था. बस, रश्मि की वह बात याद आई, ‘हम सभी के जीवन में धुआं भर कर भैया हम सब को छोड़ कर चले गए.’ शायद इसी कल्पना से भयभीत हो कर रश्मि मुझे छोड़ कर चली गई.
जो होना था, सो हो गया. समय के साथ घटनाएं और उन की यादें अतीत के अंधकूप में समाती गईं. इस शहर से मन बुरी तरह उचट गया. तय कर लिया, यहां नहीं रहूंगा. कई बातें कई बार सोचीं, फिर मन में एक क्षण विचार और निश्चय ले कर यह शहर छोड़ कर मैं बनारस आ गया.
अपने शहर में तो आ गया लेकिन अब यहां मेरा कोई अपना न था. मैं ने यहां एक देखभाल के नाम से संस्था खोली. मुझे अनुभव तो था ही, यहां कुछ दक्ष लोगों और एजेंसियों के साथ मिल कर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने का कार्य प्रारंभ कर दिया. एक दिन फोन की घंटी बजी.
‘‘हैलो, क्या आप देखभाल संस्था से बोल रहे हैं?’’
‘‘जी, मैं अमित बोल रहा हूं,’’ मैं ने उत्तर दिया.
‘‘मुझे एक महिला सहायिका की आवश्यकता है जो मेरी देखरेख कर सके और सप्ताह में 2 दिन मुझे डायलिसिस के लिए अस्पताल ले कर जा सके. मुझे अपनी फीस और औपचारिकताएं पहले बता दीजिए.’’ यह एक दुर्बल आवाज थी लेकिन मुझे न जाने क्यों कुछ जानीपहचानी सी लगी.
‘‘मैं सब से पहले आप के घर आऊंगा. आप की आवश्यकताएं जानूंगा, कितने घंटे के लिए आप को सहायिका चाहिए और इस बात की भी पुष्टि करूंगा कि जो महिला सहायिका आप के यहां जाएंगी, वे वहां कितनी सुरक्षित होंगी. इसी प्रकार हम आप को उक्त महिला से जुड़ी सारी सूचनाएं देंगे और उन के बारे में पुलिस द्वारा सत्यापित तथ्यों का एक प्रमाणपत्र भी देंगे. फीस तब तय होगी जब हम आप की पूरी आवश्यकताएं जान जाएंगे और इन सब बातों के लिए अधिकृत व्यक्ति और आप की ओर से कोई जिम्मेदार व्यक्ति हस्ताक्षर करेंगे,’’ मैं ने संक्षिप्त सा विवरण उन को बता दिया.
‘‘ठीक है. आप कल सुबह 10 बजे तक आ जाइए. मैं अपना पता और फोन नंबर नोट करा देती हूं. आइएगा जरूर क्योंकि कल मुझे अस्पताल भी जाना है.’’ उस महिला की वाणी में इतनी करुणा और पीड़ा थी कि सहज ही मेरा मन द्रवित हो उठा.
अपनी संस्था की परिचारिका निर्मला को ले कर अगले दिन मैं उक्त पते पर पहुंचा. एक दुर्बल सी और क्षीणकाय महिला ने द्वार खोला. मैं उसे देखते ही चौंक गया और मेरे मुंह से निकला, ‘अरे रश्मि, तुम, इस हालत में?’’
‘‘अरे अमित, तुम?’’ ऐसी ही आश्चर्य से भरी प्रतिक्रिया उस की भी थी. हम लोग अंदर आ गए. 30 वर्ष की उस समय की युवा रश्मि आज मेरे सामने एक अधेड़ और बीमार महिला के रूप में बैठी थी. मैं ने अपनी संस्था की परिचारिका से कहा, ‘‘तुम दूसरे कमरे में बैठ जाओ. मैं बुला लूंगा.’’
‘‘अरे, इस में क्या बात है. ये तब तक चाय बना लें, फिर आगे की सोचते हैं,’’ यह कहते हुए रश्मि निर्मला को ले कर किचन में चली गई.
हम दोनों एकदूसरे के सामने मौन बैठे थे. चुप्पी रश्मि ने तोड़ी.
‘‘मैं अपनी दशा और दुर्दशा तुम्हें बताऊं, उस के पहले मैं उस दिन की घटना का उल्लेख करना चाहूंगी जिस दिन तुम ने मुझ से कुछ कहने के लिए बुलाया था. मुझे पूरी आशा और विश्वास था कि तुम उस दिन हम दोनों के आगामी जीवन से जुड़ा कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय ले कर आए थे.’’
‘‘छोड़ो उन बातों को,’’ मैं ने उस का ध्यान भटकाना चाहा.
‘‘नहीं अमित. मैं जब तक कह न लूंगी तब तक अपने को अपराधबोध से मुक्तनहीं कर पाऊंगी. उस दिन रिकशे पर बैठेबैठे जब मैं ने तुम्हें सिगरेट पीते देखा तो मेरे हृदय को गहरा आघात लगा और मैं बिना मिले ही चली आई. और तो और, दूसरे दिन मैं ने तुम से फोन पर बहुत ही असभ्य और अपमानजनक ढंग से बात की,’’ कहतेकहते रश्मि का गला रुंध गया.
‘‘भूल जाओ उन बातों को रश्मि,’’ मैं उसे अतीत से आज में लाना चाहता था.
‘‘मैं तो तुम्हें भी बड़े व्यथित मन से भूल जाना चाहती थी पर ऐसा हुआ नहीं. मुझे लगा कि मुझे तुम्हारी बात सुननी चाहिए थी. यह मेरी अक्षम्य भूल थी,’’ रश्मि ने कहा.
‘‘रश्मि, जीवनभर हम अपने कर्मों की व्याख्या ही तो करते हैं. उचितअनुचित, पापपुण्य, उपकारअपकार और न जाने क्याक्या. इस प्रकार से हम अपने कर्मों का लेखाजोखा करने लगे तो सारा जीवन प्रायश्चित्त, पश्चात्ताप और प्रतिशोध में ही चला जाएगा. मैं तुम्हारा अतीत नहीं, आज जानना चाहता हूं.’’
‘‘तुम ठीक ही कह रहे हो लेकिन हम सभी का आज किसी न किसी रूप में हमारे अतीत से जुड़ा होता है,’’ रश्मि ने कहा.
‘‘लेकिन तुम इस दशा में कैसे पहुंचीं और तुम ने रायबरेली क्यों छोड़ दिया?’’
‘‘अमित, हमारे विद्यालय में सभी विद्यार्थियों व शिक्षकशिक्षिकाओं और अन्य स्टाफ का वर्ष में एक बार स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाता था. मेरी जांच हुई तो मेरा रक्तचाप काफी बढ़ा हुआ आया. डाक्टर ने चिंता जताई और यह कहा कि वे रक्त की कुछ रूटीन जांचें और एक्सरे भी करा लें.’’
‘‘क्या परिणाम रहा जांच का?’’ मैं ने पूछा.
‘‘जब डाक्टर ने रिपोर्ट्स देखीं तो पूछने लगे, ‘क्या आप को सिरदर्द रहता है? क्या आप की सांस फूलती है? पैरों में कभी आप ने सूजन का अनुभव किया? मूत्र त्याग करते समय कोई कठिनाई होती है क्या? और उन्होंने बहुत सारे प्रश्न पूछे और कहा कि आप एक अल्ट्रासाउंड जांच करा लीजिए.’’
‘‘अल्ट्रासाउंड में क्या आया?’’ मैं व्यग्र था जानने के लिए.
‘‘मेरी एक किडनी निष्क्रिय थी, न जाने कब से और दूसरी सिकुड़ती जा रही थी. इतना ही नहीं, अमित, डाक्टर ने यह भी कह दिया कि आने वाले चारपांच वर्षों में आप को डायलिसिस की आवश्यकता होगी और आप अभी से गुरदा प्रत्यारोपण के बारे में सोचना शुरू कर दीजिए. कुछ दवाएं लिख देता हूं जो बचाव कर सकती हैं कुछ वर्षों तक. डाक्टर के इस अप्रत्याशित कथन को सुन कर मैं कांप गई.
‘‘और कोई उपाय है डाक्टर साहब?’’ मैं ने सशंकित मन से पूछा था.
‘‘दुर्भाग्य से अभी तक इन 2 विकल्पों के सिवा कुछ नहीं. आप को डायटीशियन के पास भेज रहा हूं जो आप को आहार संबंधी परामर्श और परहेजों के बारे में बताएंगी.’’ डाक्टर साहब ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की.
‘‘डायटीशियन ने क्या कहा?’’ मैं ने पूछा.
‘‘डाक्टर की बातों को सुन कर तो मैं टूट ही चुकी थी और डायटीशियन से मिलने के बाद तो जीवन की बचीखुची आशाओं पर भी वज्रपात हो गया.’’
‘‘उन्होंने ऐसा क्या बता दिया?’’
रश्मि ने अपने पास पड़ी एक फाइल में से एक आहारतालिका निकाल कर दी, ‘‘पढ़ लो, खुद ही समझ जाओगे.’’
मैं ने पढ़ना शुरू किया तो मैं कांप सा गया. दिनभर में 3 ग्राम नमक, सारे फल करीबकरीब मना थे, सूखे मेवे नहीं खाना था. गिनीचुनी सब्जियां, बहुत सारे खाद्य पदार्थों को या तो मना कर दिया गया था या मात्रा सीमित कर दी गई थी. हर 3 महीने पर रक्त की जांच खासकर के क्रिएटिन, पोटैशियम, सोडियम और अन्य चीजों की स्थिति देखने के लिए करानी ही करानी थी. इतने कठोर परहेज और प्रतिबंधों के साथ जीवन जीना किसी यातना से कम न था.
मैं ने तालिका रश्मि को लौटाते हुए पूछा, ‘‘फिर आगे क्या हुआ?’’
‘‘वही जो डाक्टर ने कहा था. 4 वर्ष बीततेबीतते डायलिसिस पर आ गई. नौकरी छोड़नी पड़ी. कुछ फंड के रुपए मिले. ले कर वापस यहां बनारस आ गई. जब मैं नौकरी में थी तो भाभी को भी कुछ पैसे भेजती थी. उन की बेटी नमिता की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी निभाई. इन विपत्तियों के बीच एक संतोषजनक बात यह हुई कि नमिता की नौकरी लग गई.
‘‘जब नमिता नौकरी के लिए हैदराबाद जाने लगी तो भाभी को भी साथ जाना पड़ा और मैं यहां टुकड़ोंटुकड़ों में मरने के लिए जी रही हूं. महीनों बाद तुम्हारी आवाज सुन रही हूं, अमित. वरना इस घर में मैं अपनी आवाज के सिवा दूसरे की आवाज सुनने को तरसती थी.’’ यह सब कहतेकहते रश्मि फूटफूट कर रो पड़ी.
एकाएक उसे खयाल आया कि 2 बजने वाले हैं और डायलिसिस के लिए अस्पताल पहुंचना था. उस के लाख मना करने के बावजूद मैं रश्मि के साथ निकल गया और निर्मला से कहा कि वह रात 8 बजे तक आ जाएगी. रश्मि के घर पर ही रुक जाएगी. रास्ते में मैं ने रश्मि के गले में घाव के सूखे निशान देखे. पूछा, तो कहने लगी, ‘‘पहले यहीं गले से 6 महीने तक डायलिसिस होती रही. इसे ‘जुगलर’ कहते हैं. जब इस में संक्रमण हो गया तो बाईं बांह में सूई डालने के लिए स्थान बनाया गया जिसे फिस्टुला कहते हैं.’’
करीब 5 घंटे बाद शाम को 7 बजे उस की डायलिसिस पूरी कराने के बाद उसे ले कर घर लौटा. रास्ते में कोई बातचीत नहीं हुई. मेरे पास पूछने को बहुतकुछ था पर उस के पास बताने को शायद कुछ शेष नहीं बचा था. घर पहुंच कर निर्मला की प्रतीक्षा की. उस के आने के बाद रश्मि को उस के भरोसे छोड़ कर मैं अपने कमरे में लौट आया. खापी कर जब मैं बिस्तर पर लेटा तो आंखों के सामने रश्मि से पहली भेंट, उस से जुड़ाव, दुखद अलगाव और इन पीड़ामयी परिस्थितियों में पुनर्मिलन. सबकुछ एक चलचित्र की भांति गुजर गया.
अगले दिन सुबह ही रश्मि का फोन आया.
‘‘निर्मला आ गई हैं, मैं ने अपनी आवश्यकताएं समझ दी हैं. बहुत भली महिला हैं. तुम आते समय अपना रजिस्ट्रेशन फौर्म अवश्य लेते आना. तुम्हें भुगतान भी तो करना है.’’
‘‘आऊंगा तो इन सब बातों पर चर्चा करूंगा,’’ मैं ने यह बात यहीं खत्म की.
शाम को रश्मि के घर पहुंचा तो रश्मि लेटी हुई थी. मेरे पहुंचने पर निर्मला चाय ले कर आई. मैं ने रश्मि से पूछा, ‘‘तुम चाय क्यों नहीं पी रही हो?’’
‘‘क्या बताऊं, अमित. इस रोग ने मेरे जीवन को 2 भागों में बांट दिया है. एक डायलिसिस के पहले वाला जिस के बारे में तुम्हें सबकुछ बता ही दिया है और दूसरा डायलिसिस के साथ वाला जीवन. इस में कुछ अलग प्रकार की हिदायते हैं लेकिन सब से अधिक तकलीफदेह बात यह है कि 2 डायलिसिस के बीच में मुझे तरल पदार्थ बहुत कम मात्रा में लेना है. करीब डेढ़दो लिटर. चाहे इतनी मात्रा में पानी पीना हो, दवा के साथ पानी लेना हो. चाय पीनी हो या किसी भी रूप में. मैं तो यही हिसाब लगाती रहती हूं कि कितना तरल पदार्थ शरीर में गया. इतनी कठिन जीवनशैली से कभीकभी मन इतना घबरा उठता है कि…’’
‘‘सचमुच बड़ा कठिन जीवन हो गया तुम्हारा,’’ मैं भी दुखी हुआ.
‘‘इतना ही नहीं, अमित. डायलिसिस के दौरान की विपत्तियां तो हिम्मत ही तोड़ देती हैं. कभी सिरदर्द, कभी असहनीय पेटदर्द, कभी बढ़ा हुआ रक्तचाप तो कभी पैरों में भयानक ऐंठन.’’
मैं ने विषय बदलते हुए पूछा, ‘‘तुम ने भाभी को बता दिया होगा कि यहां देखरेख के लिए व्यवस्था हो गई है?’’
‘‘हां. मैं ने तुम्हारे बारे में सारी बातें बताईं तो कहने लगीं, ‘रश्मि, तुम्हारी ओर से मैं निश्चिंत हो गई.’’
‘‘इतना गहरा विश्वास मुझ पर?’’
‘‘हां अमित. मैं ही तुम पर विश्वास न कर पाई. कभीकभी सोचती हूं, यदि हमारा विवाह हो गया होता और उस के बाद मेरी यह बीमारी सामने आती तो क्या होता? तुम सोचते कि मैं ने यह बात जानबूझ कर छिपाई.
‘‘अतीत को छोड़ो, रश्मि. कुछ घटनाएं कब कैसे घटित हो जातीं या किन परिस्थितियों में हम कोई निर्णय ले बैठते हैं, इस का अनुमान लगाना संभव नहीं.’’
‘‘ठीक है, अमित. अच्छा बताओ कि निर्मलाजी को कितना देना है और अभी 4 घंटे सुबह, 4 घंटे शाम के लिए ही बुलाना चाहूंगी क्योंकि भुगतान के बारे में भी तो मुझे सोचना है.’’
‘‘तुम भुगतान के बारे में न सोचो. भावनाओं का सम्मान किया जाता है. भावनाओं के इस व्यवसाय में भुगतान के नियम कुछ अलग ही हैं,’’ यह कहते हुए मैं लौटने के लिए उठ खड़ा हुआ.
अगली तिथि पर डायलिसिस कराने के बाद जब मैं रश्मि को उस के घर छोड़ने गया तो रास्ते में मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने गुरदा प्रत्यारोपण के बारे में क्या सोचा, रश्मि?’’
‘‘इस में सोचने को बचा ही क्या है? प्रथम प्राथमिकता मांपिता, भाईबहन या रिश्ते वाले हैं जो गुर्दादाता हो सकते हैं. मेरे मांपिता या भाईबहन हैं ही नहीं. पतिपत्नी भी एकदूसरे को दान कर सकते हैं लेकिन मैं तो इस बिंदु पर भी शून्य हूं.’’ इतना कहते हुए रश्मि का गला भर आया.
उसे छोड़ कर अपने घर पर आ कर रश्मि के बारे में सोचने लगा. जब तक जीना है डायलिसिस और पीड़ा के साथ जीना है क्योंकि और कोई विकल्प नहीं है. मेरे मन में एक विचार आया कि यदि मैं उस से विवाह कर लूं तो उस की प्राणरक्षा… दूसरे दिन जैसे ही मैं ने यह बात रश्मि को बताई, वह अवाक रह गई.
‘‘यह कैसे हो सकता है, मैं क्या कहूं ऐसी स्थिति में? किस मुंह से यह बात स्वीकार कर लें. मैं ने तो तुम्हें अस्वीकार कर दिया था जब तुम पूरी पवित्रता और समर्पण की भावना से मुझे अपनाना चाहते थे और तुम मुझे आज तक अपनाना चाहते हो जब इस समस्या का मेरे पास कोई समाधान नहीं, कोई सहारा नहीं. यदि मैं स्वीकार भी कर लूं तो यह सिवा स्वार्थ के और क्या हो सकता है? यह संभव नहीं है, अमित,’’ कहतेकहते वह रो पड़ी.
यह कहना कठिन था कि ये आंसू विवशता के थे, पश्चात्ताप के थे या प्रायश्चित्त के थे. मैं ने समझना चाहा, ‘‘तुम भावुकता में बह रही हो, रश्मि. तुम ने मुझे इसलिए अस्वीकार कर दिया था क्योंकि तुम ने मुझे सिगरेट पीते हुए देख लिया था और तुम्हारे भाई की मृत्यु का कारण भी सिगरेट ही थी. तुम्हें भी अपने भविष्य में धुआं दिखने लगा और तुम मुझ से बिना मिले, बिना मेरी सुने एक निर्मम निर्णय ले कर उस समय लौट गईं. तुम ने मुझे अपनी बात कहने का अवसर नहीं दिया और आज फिर तुम आवेश में मुझे और मेरे निर्मल प्रस्ताव को अस्वीकार कर रही हो,’’ मैं ने अपने मन की सारी बात कह ही डाली.
‘‘मैं तुम्हें स्वीकार भी लूं तो मैं तुम्हें क्या दे पाऊंगी भला? मेरे पास इस दुर्बल देह के सिवा क्या शेष है? एक पत्नी से अपेक्षाएं, जो किसी को भी होती हैं, भला मैं कैसे पूरी कर पाऊंगी. नहीं, अमित. नहीं. मैं अपने डूबते जीवन के साथसाथ तुम्हारे जीवन को नहीं डूबने दूंगी.’’
‘‘अब क्या तुम्हारा जीवन और क्या मेरा जीवन? क्या तुम अकेले यों टुकड़ोंटुकड़ों में जी पाओगी? तुम्हें इस दारुण दुख में देख कर क्या मैं जी पाऊंगा? आज से 13 वर्ष पूर्व मुझे तुम्हारे देह की लालसा हो सकती थी लेकिन आज मुझे तुम्हारे उसी देह की कुशलता चाहिए. सोच लो. भाभी से बात कर लो. भले ही तुम्हारा उत्तर ‘हां’ न हो पर मैं जब तक और जितना तुम्हारा साथ दे पाऊंगा, देता रहूंगा. जब भी मेरी जरूरत हो, अधिकारपूर्वक बुलाना. अब चल रहा हूं.’’ मैं वापस अपने घर पर आ गया.
अगली बार जब मैं उसे डायलिसिस के लिए ले गया तो प्रतीक्षा की घडि़यों को मैं ने व्यर्थ नहीं जाने दिया. मैं रश्मि के डाक्टर से मिलने चला गया.
‘‘डाक्टर साहब, रश्मि आप की पेशेंट है. उसी के साथ आया हूं.’’
‘‘जी, मुझे जानकारी है. रश्मि का सप्ताह में 2 बार ‘होमोडायलिसिस चल रहा है लेकिन यह स्थिति पीड़ादायक भी है और महंगी भी. मैं ने तो उन से कहा है कि शीघ्र से शीघ्र गुरदा प्रत्यारोपण के बारे में निर्णय लें.’’ डाक्टर ने कहा.
‘‘उसी सिलसिले में आप से बात करने आया हूं. मैं उस के लिए गुरदा दान करने को तैयार हूं,’’ मैं ने अपना मंतव्य बताया.
‘‘बहुत अच्छी बात है और इस से भी अच्छी बात है कि आप लोगों ने समय से निर्णय ले लिया है. आप कौन हैं रश्मि के?’’ डाक्टर के इस प्रश्न ने मुझे सोच में डाल दिया. मैं ने सोचा, सारी बातें सचसच बता ही देता हूं. मैं ने कहा, ‘‘मैं रश्मि का कुछ लगता नहीं हूं.’’ इतना ही कहा था मैं ने.
‘‘यानी, आप रश्मि के भाई या पति नहीं हैं?’’ डाक्टर कुछ हैरान हुए.
‘‘मैं उस का हृदय से दोस्त हूं. यदि गुरदा दान करने के लिए रक्त के रिश्ते की प्राथमिकता और आवश्यकता है तो मैं उस से विवाह कर लूंगा और एक पति के रूप में खुद को प्रस्तुत करूंगा.’’
डाक्टर मेरे इस प्रस्ताव को सुन कर सोच में पड़ गए.
‘‘आप का निर्णय मानवीय और भावनात्मक दृष्टिकोण से तो अत्यंत ही स्वागतयोग्य है लेकिन इस में कुछ व्यावहारिक, चिकित्सकीय और वैधानिक प्रक्रियाओं से गुजरना होगा. आप के इस प्रस्ताव को मैं ‘गुरदा प्रत्यारोपण समित’ के समक्ष प्रस्तुत करूंगा. वे ही आप के इस निवेदन को स्वीकृति देंगे तब हम आप की और रश्मि की चिकित्सकीय जांचों के लिए आगे बढ़ेंगे,’’ डाक्टर ने कहा.
‘ऐसी लंबी प्रक्रिया क्यों और इस में इतनी बाधाएं क्यों हैं? क्या एक पति अपनी पत्नी को गुरदा दान नहीं कर सकता जब उस की जान पर बन आई हो?’’ मैं कुछ आवेश में आ गया.
‘‘अमितजी, मैं समझ सकता हूं कि आप के निर्णय में कहीं कोई नहीं है. लेकिन आज की दुनिया में गुरदा प्रत्यारोपण को कई लोगों ने एक बिजनैस बना लिया है. इसीलिए सघन जांच के बाद ही निर्णय लिया जाता है जिस में ‘सोटो’ यानी स्टेट औरगन एंड टिश्यू ट्रासंप्लांट और्गेनाइजेशन के दिशानिर्देशों का कड़ाई से अनुपालन किया जाता है,’’ डाक्टर ने मुझे मेरी बातों का जवाब दे कर समझाया.
‘‘तो आप मेरे लिए क्या सलाह देना चाहेंगे?’’ मैं ने पूछा.
‘‘आप हताश मत होइए. पहले रश्मि और उन के जो भी उपलब्ध अभिभावक हों, उन से मिल कर अपने विचार और निर्णय को साझा कीजिए. यदि विवाह में कोई बाधा न हो तो पहले यह शुभकार्य कीजिए. अपने विवाह को रजिस्टर्ड भी कराइए. इस के बाद आप लोग मु?ा से मिलिए, जो भी संभव सहायता होगी, मैं करूंगा. डाक्टर के रूप में मैं भी यही चाहूंगा कि किसी की प्राणरक्षा की जा सके,’’ डाक्टर साहब ने संतुलित उत्तर दिया.
डायलिसिस पूरी हुई तो मैं रश्मि को ले कर उस के घर आया. वह मेरे चेहरे को देख कर भांप गई कि मैं किसी उलझन में हूं, पूछ बैठी, ‘‘क्या बात है, बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हो?’’
मैं ने रश्मि को सारी बातें बता दीं. सुनने के बाद उस ने कहा, ‘‘मैं तो कह ही रही हूं जैसे मैं जी रही हूं वैसे ही मुझे जीने दो. भावुकता और मोह में आ कर तुम अपना भी जीवन नष्ट कर लोगे. मैं ने भी ढेरों जानकारियां जुटाई हैं,’’ वह बोली.
‘‘तुम्हारे पास कौन सी जानकारी है?’’ मैं ने पूछा.
‘‘कहते हैं कि डायलिसिस के साथ का जीवन बहुत सफलतापूर्वक बीता तो शायद अधिकतम 10 वर्ष तक और गुरदा प्रत्यारोपण बेहद सफल रहा तो अनेक परहेजों, नियंत्रित जीवन और लंबे समय तक चलने वाली दवाओं के साथ भी जीवन की अवधि पंद्रहबीस वर्षों तक भी चल गई तो समझ बहुत जी लिया पर यह एक सामान्य जीवन नहीं होगा,’’ रश्मि के इन शब्दों में पीड़ा और विवशता झलक रही थी.
रश्मि की बातें सच थीं या नहीं, मैं इस अंतर्द्वद्व में पड़ना ही नहीं चाहता था. मैं ने निश्चय कर लिया था कि उस से विवाह कर के खुशियों का एक छोटा सा अंग उसे जरूर दूंगा. मेरे इस हठपूर्ण निर्णय के आगे रश्मि की एक न चली. उस ने अपनी भाभी और भतीजी को कुल चार दिनों के लिए बुला लिया और हम बिना किसी दिखावे के एकदूसरे के हो गए.
रश्मि की भाभी ने उस से कहा, ‘‘अब तुम्हारे 2 घर हो गए. लेकिन आज तुम्हें अपनी ससुराल अवश्य जाना चाहिए. एक नवदंपती के नवजीवन का प्रारंभ तभी आनंददायक होगा. जब केवल वे तीनों ही साथ हों.’’
रश्मि मेरे घर आई. कुछ देर बेहद खामोशी से हम दोनों एकदूसरे को देखते हुए बैठे रहे. एकाएक रश्मि उठी और दौड़ कर मेरे सीने से लग कर रोने लगी. यह उस के अनुराग की पवित्रतम प्रस्तुति थी. मैं ने भी भावविभोर हो कर अपने हृदय में उसे भींच लिया. न मेरे पास कुछ खोने को था, न उस के पास कुछ खोने को था. हां, हम दोनों के पास यों मिल कर पाने को शायद बहुतकुछ था.
बस, कुछ ही दिनों बाद हम दोनों अब पतिपत्नी के रूप में डाक्टर से मिले. उन्होंने भी हमें सराहना और सांत्वना के शब्दों से प्रोत्साहित किया. मैं जो आवेदनपत्र अपने साथ लाया था, उसे मैं ने डाक्टर साहब को सौंप दिया. अस्पताल के कुछ प्रपत्र उन्होंने भी दिए जो मुझे भर कर देने थे.
उन्होंने एक बार फिर सारी बातें दोहराईं, प्रक्रियाओं और औपचारिकताओं की जानकारी दी. उन्होंने हमें गुरदा प्रत्यारोपण के बारे पक्षों को समझाते हुए यह भी कहा, ‘‘मैं आप लोगों की भावनाओं के साथ हूं. चिकित्सा विज्ञान रोज ही नएनए चमत्कार कर रहा है. अनेक देशों में इस समस्या के समाधान के लिए शोध किए जा रहे हैं और आशा है कि आने वाले वर्षों में चिकित्सा विज्ञान ऐसे रोगियों के लिए ‘आर्टिफिशियल वियरेबल किडनी’ यानी कृत्रिम किडनी भी तैयार कर लेगा. तब तक डायलिसिस कराते रहिए और आशावान रहिए,’’ डाक्टर साहब के इन शब्दों ने मानो हमारे अंदर आशा की एक नई ऊर्जा भर दी.
मैं ने रश्मि का हाथ पकड़ा. एक सुखद भावना और एकदूसरे के प्रति प्रेम के आवेग व समर्पण की निश्छल संवेदना लिए हम उस पथ पर बढ़ चले जिस पर प्रकाश ही प्रकाश था. आहत अतीत और अनदेखे आगामी भय का धुआं छंटने लगा था. Hindi Love Stories