130th Amendment Bill : केंद्र सरकार संसद में संविधान का 130वां संशोधन विधेयक लाने की जुगत में है जिस के मुताबिक को भी पदासीन नेता जो अपने पद पर रहने के दौरान 30 दिनों से अधिक जेल में बिताता है तो उसे अपना पद छोड़ना होगा. कितना पेचीदा है यह बिल और क्या चुनौतियां हैं, पढ़िए.
‘कुछ न कुछ किया कर, पाजामा फाड़ कर सिया कर’ यह एक पुरानी देहाती कहावत है जिस का मतलब है कोई काम धाम न हो तो अपना ही पजामा फाड़ लो और फिर उसे सिलते रहो. इस से कुछ और हो न हो लेकिन कुछ करने का मुगालता बना रहेगा. यही इन दिनों केंद्र सरकार कर रही है. इस की एक और मिसाल संविधान का 130 वां संशोधन विधेयक है जिस के पारित होने में उतना ही शक है जितना इस बात में कि सूर्य कभी पश्चिम से भी उग सकता है.
यह अनूठा विधेयक बीती 20 अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में पेश किया जिस के मुताबिक कोई भी मंत्री जो अपने पद पर रहने के दौरान 30 दिनों तक किसी ऐसे अपराध के मामले में गिरफ्तार किया जाता है या हिरासत में लिया जाता है जिस में अपराध साबित होने पर 5 साल या उस से ज्यादा की जेल की सजा है तो 31वें दिन उसे प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा पद से हटा दिया जाएगा. हालांकि पद से हटाए जाने के बाद अगर कोई मंत्री रिहा हो जाता है तो उसे वापस अपने पद पर बहाल किया जा सकता है. यह नियम प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर भी लागू होगा.
इस के लिए सरकार को संविधान के तीन अनुच्छेदों में बदलाब करना पड़ेंगे पहला अनुच्छेद 75 जो प्रधानमंत्री और केन्द्रीय मंत्रियों की नियुक्ति और उन की जबाबदेही से जुड़ा है. दूसरा अनुच्छेद 164 जो राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित बाकी मंत्रियों से जुड़ा है और तीसरा अनुच्छेद 239 एए है जो केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों से जुड़ा है. इस प्रस्तावित संशोधन में इन सभी अनुच्छेदों में एक नया क्लाज जोड़ा जाएगा.
गौरतलब है कि अभी तक संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था जिस के तहत किसी मंत्री या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को पद से हटाया जा सके. लेकिन दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लगभग 6 महीने जेल में रहते सफलतापूर्वक सरकार को चलाया तो जिल्लेलाहियों को समझ आया कि ऐसा प्रावधान आखिर नहीं है तो क्यों नहीं है. इस कमी पर सफाई देते अमित शाह ने बताया कि कोई भी व्यक्ति जेल से शासन नहीं चला सकता.
संविधान निर्माताओं ने ऐसी कल्पना नहीं की थी कि गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार होने के बावजूद नेता अपने पदों पर बने रहे. भीमराव आंबेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरु सहित समूची संविधान निर्मात्री सभा की इस भूल चूक को (भी) सुधारने के लिए सरकार ने बीड़ा मुंह में रख तो लिया है लेकिन उसे चबा कर निगल पाएगी इस में शक है. संभावना इस बात की ज्यादा है कि उसे थूकना पड़ेगा.
क्यों यह विधेयक पारित नहीं हो सकता इस से पहले इस बात को समझना जरूरी है कि यह विधेयक आखिर लाया क्यों गया. यह दलील बेमानी और खोखली है कि संविधान निर्माताओं को इस बात का ख्याल नहीं आया होगा. यह सीधेसीधे उन का अपमान और मखौल उड़ाती दलील है जिन्होंने दुनिया का सब से बड़ा संविधान रच दिया था.
देखा यह गया है कि इस तरह के किसी प्रावधान का न होना प्रधानमंत्री को तानाशाह होने से रोकता है लेकिन यह लोकतंत्र है कोई मुगलिया दरबार नहीं कि शहंशाह को जो मुसाहिब पसंद नहीं आया या उस के मुताबिक नहीं चला तो एक मुंह जुबानी फरमान के जरिये उसे गद्दी से उतार दिया.
विपक्ष के खिलाफ साजिश
एकएक कर देखें तो सरकार की बदनीयती की एक और स्क्रिप्ट बनता यह बिल एक साजिश है जिस के तहत अलिखित मसौदा इतना भर है कि जब किसी विपक्षी मुख्यमंत्री के पैरों से कुर्सी खींचनी हो तो ईडी को छू करवा कर उसे गिरफ्तार करवा दो और फिर 30 दिन तक जमानत न होने दो. और फिर 31 वें दिन सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सिफारिशी चिट्ठी लिखेंगे ( जो कि गिरफ्तारी के दिन ही तैयार हो गई होगी ) और ठीक दो घंटे बाद राष्ट्रपति भवन से यह सनसनाती ब्रेकिंग न्यूज आएगी कि फलां मुख्यमंत्री को 130वें संशोधन विधेयक के जरिये पद से हटाया गया.
देखते ही देखते विपक्ष के कोई आधा दर्जन दिग्गज सीएम की कुर्सी की रेस में शामिल हो जाएंगे. सौदेबाजी और खरीद फरोख्त की खबरें आएंगी और दूसरे तीसरे दिन ही सत्ता रूढ़ दल के आधे के लगभग विधायक भाजपा ज्वाइन कर लेंगे और और कोई भगवाधारी भगवान कसम खा कर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा होगा. कल तक जो पार्टी सत्ता में थी वह विपक्ष की कुर्सियों पर बैठी नजर आएगी और सरकार की मंशा पूरी हो जाएगी. इस के लिए न हल्दी लगेगी न फिटकरी और रंग तो चोखा आएगा ही.
लगता नहीं कि आईडिया खुद से सरकार के दिमाग में आया होगा. लगता यह है कि यह उसे अरविंद केजरीवाल और सेंथिल बालाजी जैसे ताजे मामलों से मिला. 24 मार्च 2024 को शराब नीति घोटाले में ईडी ने अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. भगवा खेमे को तब उम्मीद रही होगी कि वे नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दे देंगे लेकिन केजरीवाल जरूरत और उन से से भी ज्यादा सयाने निकले. उन्होंने जेल से ही सरकार चलाना शुरू कर दिया और वह भी कोई चार छह दिन तक नहीं बल्कि 6 महीने तक, तो भगवा पेशानी पर बल पड़ गए कि बंदा तो हम से भी ज्यादा समझदार और ढीठ निकला अब क्या करें.
करने के नाम पर भाजपाइयों के पास सिवाय झींकने के कोई और रास्ता था नहीं, सो वे ख़ामोशी से निहारते कसमसाते रहे कि केजरीवाल जेल से ही फैसले ले रहे हैं, फाइलों का अनुमोदन कर रहे हैं और उन पर दस्तखत भी कर रहे हैं और उन पर बिना किसी सवाल जवाब के अमल भी हो रहा है. आम आदमी पार्टी में कोई टूट फूट नहीं हो रही. यह उस के लिए हैरत और सदमे की बात थी. लिहाजा बादशाहों ने तभी फैसला मन ही मन कर लिया था कि यह तो झंझट हो गई. इस का मन्त्र ढूंढा जाना जरुरी है नहीं तो हम से डरेगा कौन. मई में केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली तो वे हिंदी फिल्मों के हीरो की तरह बाहें झटकारते जेल से बाहर आए और व-हैसियत दिल्ली के मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार में जुट गए.
जमानत खत्म होने के बाद वे फिर जेल चले गए. लेकिन नहीं देना था तो तुरंत इस्तीफ़ा न दे कर यह जता दिया कि वे भगवा मनमानी के आगे घुटने नहीं टेकेंगे. लेकिन फिर 17 सितम्बर 2024 को इस्तीफ़ा दे कर तेज तर्रार आतिशी मार्लेना को उन्होंने मुख्यमंत्री बना दिया. जिन्होंने 152 दिन मुख्यमंत्री रहते सरकार का कार्यकाल पूरा किया. लेकिन जब 8 फरवरी 2024 को दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे आए तो आप 22 सीटों पर सिमट कर रह गई और भाजपा 48 सीटें ले जा कर अपना ख्वाव पूरा करने में कामयाब रही.
31 जनवरी 2024 में जेल वाली गाज झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर भी गिराई गई. ईडी ने उन्हें जमीन घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया. लेकिन हेमंत ने अपने वफादार चम्पई सोरेन को मुख्यमंत्री बना डाला जिस से झामुमो टूट फूट से बच गई. 28 जून 2024 को हेमंत झारखंड हाईकोर्ट से रिहा हुए तो चंपई सोरेन ने खड़ाऊ राज्य की परिपाटी पर अमल करते 4 जुलाई 2024 को गद्दी उन्हें वापस ज्यों की त्यों सौंप दी. इस के बाद झारखंड में दिल्ली का दोहराव नहीं हुआ. 24 नवम्बर 2024 को जब विधानसभा नतीजे घोषित हुए तो इंडिया ब्लाक के खाते में 81 में से 58 सीटें आईं जिन में से झामुमो को 34 व कांग्रेस को 16 सीटें मिली थीं भाजपा 21 पर सिमट कर रह गई.
इन दो मामलों ने भाजपा को सबक सिखाया या ज्ञान दिया कि जेल से सरकार चलाना कोई अच्छी बात नहीं. इसलिए संविधान निर्माताओं की भूल सुधार ली जाए. हालांकि इस से पहले भी कई मुख्यमंत्री जेल में गए लेकिन उन्होंने अरविन्द केजरीवाल की तरह जेल से सरकार नहीं चलाई बल्कि हेमंत सोरेन की तरह अपना खड़ाऊ शासन चलाया. बिहार से लालू यादव, मध्य प्रदेश से अर्जुन सिंह, तमिलनाडु से जयललिता भी इस की मिसाल हैं. लेकिन हालिया विधेयक लाने को मजबूर करने में उनका कोई योगदान नहीं इस की इकलौती प्रेरणा तो अरविंद केजरीवाल ही साबित होते हैं.
एक दूसरी लेकिन संक्षिप्त प्रेरणा तमिलनाडु के बिजली मंत्री सेंथिल बालाजी भी रहे जिन्हें मनी लांड्रिंग सहित भ्रष्टाचार के कई मामलों में गिरफ्तार किया गया था. 14 जून 2023 को सेंथिल को ईडी ने केश फार जौब स्केम में गिरफ्तार किया था लेकिन मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने उन्हें मंत्री पद से हटाया नहीं. हां उन के विभाग जरुर दूसरे मंत्रियों को बांट दिए थे. इस तरह लम्बे वक्त तक वे बिना विभाग के मंत्री रहे और दुनिया देखती रह गई. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन की खिंचाई की थी तब उन्होंने 27 अप्रैल 2025 को मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश यह था कि या तो आजादी ले लो या मंत्री पद छोड़ो. उन्होंने आजादी चुनी. तब मजाक में कहा गया था कि तुम मुझे इस्तीफ़ा दो मैं तुम्हे जमानत दूंगा.
ऐसे अमल के माने क्या
अब जिसे मुख्यमंत्री पद से हटाना हो उस का गिरफ्तार होना भी जरुरी है जिस के लिए ईडी से ज्यादा मुफीद एजेंसी कोई नहीं. सरकार इशारा करेगी और सुबह चार पांच बजे ईडी छापा मारने का अपना रिवाज निभाते उस का बाजा बजा देगी. फिर भले ही उस पर कोई अपराध साबित हो या न हो इस के कोई माने नहीं. क्योंकि मंशा तो 30 दिन जेल में रख कर 31वें दिन हटाने की है कि जिस पर विपक्षी नेताओं ने तार्किक प्रतिक्रियाएं दी हैं.
बकौल प्रियंका गांधी इसे भ्रष्टाचार विरोधी उपाय कहना आंखों पर पर्दा डालने जैसी बात है. कल को आप किसी भी मुख्यमंत्री पर कोई भी मुकदमा दर्ज कर सकते हैं, उसे बिना दोषी ठहराए 30 दिनों के लिए गिरफ्तार कर सकते हैं और वह मुख्यमंत्री नहीं रह जाएगा. यह पूरी तरह संविधान विरोधी अलोकतान्त्रिक और बेहद दुर्भावनापूर्ण है. क़ानूनी खामी गिनाते वरिष्ठ अधिवक्ता कांग्रेसी सांसद विवेक तनखा का यह तर्क माने रखता है कि यह अजीब है कि बिल में सिर्फ 30 दिन का समय है. कोर्ट मामले में फैसला सुनाती है इस में बहुत समय लगता है.
यह सही भी है क्योंकि किसी भी आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस के पास चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिन का समय होता है. इस के बाद अदालत आरोप तय करती है फिर आरोपी पर मुकदमा शुरू होता है जो सालोंसाल चलता है. फैसले में आरोपी दोषी पाया भी जा सकता है और दोषी नहीं भी पाया जा सकता. अगर वह निर्दोष साबित होते रिहा होता है तो उस के और उस जनता जिस ने उम्मीदों से उसे चुना था की भरपाई कौन करेगा.
यह बात भी हर कोई जानता है कि संविधान के मुताबिक कोई भी आरोपी तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उस पर कोई आरोप साबित न हो जाए .फिर महज 30 दिन में आरोप साबित न होने पर उसे पद से हटाने की सजा क्यों . इस और ऐसे कई सवालों का जबाब अमित शाह शायद ही दे पायें जो कम अहम नहीं लेकिन जिद जब अहम ब्रम्हास्मि की हो तो कोई क्या कर लेगा और फौरी तौर पर विपक्षी सांसद जो कर सकते थे वह उन्होंने किया कि विधेयक की प्रतियाँ फाड़ दीं .
दूसरी कई छोटीमोटी खामियां भी इस विधेयक में हैं मसलन यह कि प्रधानमंत्री मुख्यमंत्रियों और दूसरे मंत्रियों को हटाने की सिफारिश करेंगे लेकिन उन्हें हटाने कौन अनुशंसा करेगा. एक खामी यह भी है कि 31 वे दिन हटाए जाने के बाद अदालत किसी आरोपी मंत्री या मुख्यमंत्री को रिहा कर देती है तो उस की जगह ले चुके किसी दूसरे को कैसे यानी किस नियम कानून के तहत हटाया जाएगा. इसलिए रिहा होने के बाद बहाल किया जा सकेगा जैसी बात बेमानी है.
इस बेतुके विधेयक पर तुक की एक बात असद्दुदीन ओबेसी ने भी कही कि गंभीर मामलों में ईडी जैसी एजेंसियां पीएमएलए यानी प्रिवेंशन औफ मनी लांड्रिंग एक्ट जैसे कानूनों के तहत नेताओं को गिरफ्तार करती हैं इन में जल्दी जमानत मिलना मुश्किल होता है. यह संघवाद और ताकत के बंटबारे के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है. इस से सरकार चुनने का अधिकार कमजोर होगा. आप नेता अनुराग ढांडा ने सरकार की मंशा उधेड़ते दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सत्येन्द्र जैन का हवाला देते साफ कहा कि यह केंद्र सरकार का तानाशाही भरा कदम है. उस ने पहले भी मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार करने और उन पर फर्जी आरोप लगाने के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल किया.
विपक्ष के आरोप और आशंकाएं निराधार नहीं हैं क्योंकि मोदी सरकार के वजूद में आने के बाद 2021 तक 85 फीसदी के लगभग मामले विपक्ष के खिलाफ दर्ज किए गए. 2014 के बाद एनडीए के शासन काल में 2022 तक ईडी के इस्तेमाल में 4 गुना बढ़ोतरी हुई. इस दौरान 121 नेता जांच के दायरे में आए जिन में से 115 विपक्ष के हैं.
इसलिए लटकेगा
यह विधयक हाल फ़िलहाल संसद की 31 सदस्यों वाली जेपीसी यानी संयुक्त समिति के पास भेजा गया है जिस में सरकार के 19 और विपक्ष के 12 सांसद हैं. जेपीसी की रिपोर्ट जो सरकार के पक्ष में ही रहेगी के आने के बाद बिल को फिर से लोकसभा में पेश किया जाएगा. जहां एनडीए के 293 वोट हैं जबकि लोकसभा में इसे पारित होने के लिए दोतिहाई यानी 363 सांसदों की दरकार रहेगी. यही हाल राज्यसभा का भी है जिस में भाजपा और उस के सहयोगी दलों के खीसे में 245 में से दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सांसदों की जरूरत होगी जबकि हैं कुल 126. ऐसे में यह विधेयक आसानी तो क्या मुश्किल से भी पारित नहीं होने वाला. जरुरी यह भी नहीं कि इस बेतुके विधेयक पर भाजपा का सहयोगी दल उस का समर्थन करेंगे ही.
लेकिन सरकार की एक मंशा यह दिखाने की भी है कि हम पैजामा सिल रहे हैं जिस से आम लोगों को यह लगे कि हम निठल्ले नहीं बैठे. उधर जनता के हाथ में अब पैजामा नहीं बल्कि स्मार्ट फोन है जिस पर वह रील्स देखते अपना मुश्किल वक्त गुजार रही है. महंगाई बेरोजगारी और खुद से ताल्लुक रखते दीगर मुद्दों से उसे कोई सरोकार है या नहीं यह अगले लोकसभा चुनाव नतीजे बताएंगे. लेकिन इतना तय है कि जनता संविधान से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करने वाली. यह वह पिछले लोकसभा चुनाव में जता और बता भी चुकी है जब 400 पार का राग अलाप रही भाजपा को उस ने 243 पर समेट कर रख दिया था. 130th Amendment Bill