Health Update : पैरों में ऐंठन होने के कई कारण हो सकते हैं. अच्छी बात यह है कि इस में सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती. सही दिनचर्या और रखरखाव से ही ठीक हो जाता है यह, मगर जरूरी है कि समझें वे क्या तरीके हैं.

कुछ लोग रात के वक्त टांगों में ऐंठन या क्रैम्प्स की शिकायत करते हैं. पैरों में ऐंठन की शिकायत अकसर बुजुर्ग करते रहते हैं. ऐसी महिलाएं जिन का वजन ज्यादा है वे पैरों की ऐंठन से पीड़ित रहती हैं. कभीकभी खेलकूद में रुचि रखने वाले छात्र भी टांगों में क्रैम्प्स की शिकायत करते हैं. शराब के आदी लोग टांगों में ऐंठन की समस्या से ग्रसित रहते हैं. इस समस्या को दुनियाभर में नएनए नाम दिए गए हैं, जैसे ‘नाक्टरनल लेग सिंड्रोम’, ‘रैस्टलैस लेग सिंड्रोम.’ कभी आप ने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है.

ऐंठन के ज्यादा शिकार कौन

जो लोग धूम्रपान या तंबाकू यानी जर्दा या खैनी के आदी हैं, वे अकसर टांगों में अकड़न की शिकायत करते हैं. डायबीटिज के मरीज भी अकसर ऐंठन की समस्या से ग्रस्त रहते हैं. कौफी का बहुत ज्यादा सेवन करने वाले लोग भी पैरों की अकड़न की समस्या से पीडि़त रहते हैं. मोटापे से पीडि़त महिलाएं व बुजुर्ग इस का शिकार ज्यादा होते हैं. कभी अत्यधिक थकान व बहुत ज्यादा चलने के बाद भी लोग टांगों की ऐंठन की समस्या से ग्रसित रहते हैं. टीवी या कंप्यूटर के सामने घंटों लगातार बैठने वाले लोग भी पैरों में ऐंठन की समस्या से पीडि़त रहते हैं.

डायलिसिस पर निर्भर गुरदे के मरीज भी टांगों में अकड़न व छटपटाहट की शिकायत करते हैं. जो मरीज डाइयूरेटिक्स यानी पेशाब ज्यादा निकालने वाली दवा लेते हैं वे भी टांगों में क्रैम्प्स की शिकायत करते हैं.

शराब के व्यसनी या लिवर सिरोसिस जैसी समस्याओं से पीडि़त व्यक्ति भी टांगों में ऐंठन की समस्या से ग्रसित रहते हैं. कुछ गर्भवती महिलाएं भी टांग व पैरों में ऐंठन की तकलीफ से पीड़ित रहती हैं. घुटनों के आर्थ्राइटिस से पीडि़त मरीज भी टांगों में क्रैम्प्स की जबतब शिकायत करते हैं.

कहां जाएं

ऐंठन की समस्या है तो तुरंत किसी अनुभवी वैस्कुलर सर्जन से सलाह लें. अपने खून में विटामिन डी, कैल्शियम व मैग्नीशियम की मात्रा की जांच करवाएं. टांगों की नसों की वेन्स डौप्लर नामक जांच करवाएं. अगर आप धूम्रपान या तंबाकू के आदी हैं या फिर मधुमेह रोग से ग्रस्त हैं तो टांगों की आट्रिरियल डौप्लर नामक जांच भी करवाएं. कमर व घुटने का एक्सरे भी करवाएं. पैरों की नसों की एक विशेष जांच एनसीवी जरूर करवाएं. कुछ विशेष खून की जांचें, जैसे एलएफटी व पैराथाइरायड हारमोन भी करवा लें. कभीकभी कमर की हड्डी की एमआरआई की जरूरत पड़ती है. इन सब जांचों की रिपोर्ट के आधार पर ही सही इलाज की दिशा का निर्धारण होता है.

बचने के उपाय

कभी भी औफिस, घर व दुकान में एक घंटे से ज्यादा लगातार न बैठें और न ही एक घंटे से ज्यादा खड़े रहें. बैठेबैठे अगर एक घंटा हो जाए तो तुरंत 5 से 10 मिनट के लिए चलना शुरू कर दें. फिर चलने के बाद दोबारा बैठ सकते हैं. यह क्रिया हर घंटे दोहराएं. अगर लगातार खड़े रहते एक या डेढ़ घंटे से ज्यादा हो जाए तो तुरंत बैठ जाएं और कुरसी पर 5 मिनट के लिए पैरों को थोड़ा ऊपर रख कर टखनों (एन्किल जौइंट) को ऊपरनीचें करें.

प्रतिदिन 5 से 6 किलोमीटर सैर करें. अगर संभव हो सके तो शाम को भी 2 से 3 किलोमीटर टहलें. अपने शरीर के वजन को नियंत्रण में रखें. आधा लिटर टोंड मिल्क का प्रतिदिन सेवन जरूर करें. हरे पत्तेदार सब्जियों का भरपूर आनंद लें. रोज 250 ग्राम सलाद व 250 ग्राम फलों का नियमित सेवन करें. यह न्यूनतम मात्रा है और अगर इस से थोड़ा ज्यादा मात्रा में लेंगे तो और फायदा होगा.

खून में जिंक, कैल्शियम व विटामिन डी व बी ग्रुप के विटामिन की कमी न होने दें. कच्चे व हरे नारियल के पानी का प्रतिदिन सेवन करें.

कुछ विशेष दवाएं भी मददगार होती हैं क्रैम्प्स की समस्या से निबटने के लिए. गाबापेन्टीन, मैग्नीशियम व बी कौम्पलेक्स का सेवन कुछ हद तक मददगार साबित होता है. प्रीगाबालीन दवा से बचें. कभीकभी कैल्शियम चैनल ब्लौकसर्स व डोपामीनर्जिक दवाएं, जैसे ब्रोमोक्रिप्टीन इत्यादि की भी जरूरत पड़ती है लेकिन इन दवाओं को वैस्कुलर सर्जन की सलाह के बिना कतई न लें पेय पदार्थों में कौफी का अत्यधिक सेवन न करें. किन्हीं भी तरह के मादक पदार्थों से बचें. शरीर पर कम से कम 2 से 3 घंटे धूप को पड़ने दें. गरमी में सुबह 6 बजे से 8 बजे तक और शाम को 5 बजे से 6 बजे तक की धूप का सेवन कर सकते हैं.

इलाज की विधाएं

क्रैम्प्स के इलाज के लिए ज्यादातर मामलों में सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है. अपनी दिनचर्या में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है. अगर आप का ऐसा व्यवसाय है जिस में घंटों लगातार खड़े रहना पड़ता हो तो अपना व्यवसाय या नौकरी बदलने की संभावना तलाशें. धूम्रपान व तंबाकू को हमेशा के लिए त्याग दें. शराब के सेवन से बचें वरना टांगों की हड्डियां कमजोर हो जाएंगी और क्रैम्पस की समस्या और जटिल हो जाएगी.
अगर वेन्स में शिकायत है और समस्या ज्यादा बढ़ गई है तो लेसर या आरएफए (रेडियो फ्रीक्वैंसी एबलेशन) द्वारा इलाज की जरूर पड़ती है. अगर शुद्ध रक्त वाली नलियों यानी धमनियों में रुकावट है तो बाईपास सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है. इन सब के लिए हमेशा किसी अनुभवी वैस्क्युलर सर्जन से संपर्क में रहें.

पैरों की स्ट्रेचिंग (खिंचवाने) वाले व्यायाम करें. रोजाना नहाने से पहले या दिन में कभी लेट कर टांगों को एक फुट ऊपर रख कर, पैरों से जांघ की तरफ जैतून या सरसों के तेल से मांसपेशियों पर हलका दबाव डालते हुए मालिश करें. सोने से पहले आधे घंट के लिए टहलें या स्थिर साइकिल पर बैठ कर पहियों को घुमाएं. गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के दौरान क्रमित दबाव वाली जुराबें जरूर पहना करें.

लेखक दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में वरिष्ठ वैस्कुलर व कार्डियो थोरेसिक सर्जन हैं.

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