Prenuptial Agreement : देश में तेजी से तलाक के मामले बढ़ रहे हैं. अदालत से ले कर परिवार तक हर किसी की मंशा तलाक को बुरा साबित करने की होती है. जबकि बढ़ते तलाक बढ़ती जागरूकता की निशानी हैं. इस में प्रीनप यानी विवाहपूर्व अनुबंध कैसे सहायक हो सकता है, आइए, जानें.

मैं शोभित कुमार पुत्र श्री राजीव कुमार और अर्पिता कुमारी पुत्री श्री राजीव कुमार, उम्र वयस्क, निवासी भोपाल आज एक खास मकसद से यह अनुबंधपत्र साइन कर रहे हैं. हम दोनों एकदूसरे से बेहद प्यार करते हैं और जल्द ही शादी करने का फैसला ले चुके हैं. शादी के बाद भी हमारी जिंदगी इसी तरह हंसीखुशी और तनाव व विवाद रहित गुजरे, इस के लिए हम दोनों विवाहपूर्व इस अनुबंध की कुछ शर्तें संयुक्त रूप से जिन्हें वचन कहा जा सकता है, एकदूसरे को स्वस्थ मन से पूरे होशोहवास में बिना किसी दबाब के स्वीकार कर रहे हैं.यह अनुबंध इसलिए भी कि कल को हम दोनों के बीच ऐसे कोई विवाद या मतभेद होते हैं जो इन शर्तों का उल्लंघन करते हुए हों तो हम दोनों एकदूसरे को यह याद दिला सकें कि हम ने और तुम ने ऐसा कहा था या नहीं कहा था.

मैं शोभित कुमार पक्ष क्रमांक -1 और अर्पिता कुमारी पक्ष क्रमांक -2 पूरे आत्मविश्वास से घोषित कर अनुबंधित होते हैं कि-

1. हम कभी भी एकदूसरे की आजादी में दखल नहीं देंगे बशर्ते वह हमारे वैवाहिक जीवन को किसी भी रूप में बाधित न करती हो.

2. शादी के बाद पक्ष क्रमांक 1 शोभित, पक्ष क्रमांक 2 अर्पिता को बाध्य नहीं करेगा कि वह उस के पेरैंट्स के साथ उन के घर में ही रहे. लेकिन शुरू के 3 साल हम पेरैंट्स के घर में ही रहेंगे, ऐसा हम दोनों ने तय कर सहमति जताई है. इस दौरान पक्ष क्रमांक 2 साल में 2-3 बार मायके जाने को स्वतंत्र रहेगी. आनेजाने का पूरा खर्च वह अपनी सैलरी से उठाएगी.

3. घर पर हम दोनों का खर्च हम दोनों ही मिल कर उठाएंगे जोकि सैलरी का फिफ्टीफिफ्टी होगा न कि कुल खर्च का फिफ्टीफिफ्टी. अगर मेरी सैलरी 1 लाख रुपए है तो मैं उस में से 50 हजार दूंगा और अर्पिता की सैलरी अगर 80 हजार रुपए महीना है तो वह 40 हजार रुपए देगी. बाकी बचे पैसों में से हम दोनों जैसे चाहें अपनी मरजी से खर्च कर सकेंगे, फिर चाहें तो उस की सेविंग्स करें, कहीं इन्वैस्ट करें या फिर मौजमस्ती में उड़ा दें. इस पर दूसरा पक्ष एतराज नहीं जताएगा. हां, कुछ गलत लगे तो समझ जरूर सकता है लेकिन यह समझाइश बाध्यकारी नहीं होगी.

4. हम दोनों जो भी संपत्ति खरीदेंगे वह संयुक्त होगी जिस में दोनों बराबरी से अपनाअपना पैसा मिलाएंगे. संपत्ति दोनों की सहमति से ही खरीदी जाएगी. संपत्ति या वाहन के लिए लोन भी संयुक्त रूप से ही लिया जाएगा और संयुक्त रूप से ही चुकाया जाएगा.

5. शादी के 5 साल बाद तक हम बच्चा प्लान नहीं करेंगे. बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए हम एक संयुक्त बैंक अकाउंट अलग से खोलेंगे जिस में दोनों 10-10 हजार रुपए महीना डालेंगे. इस राशि को निकालने का अधिकार दोनों में से किसी एक को नहीं रहेगा. जरूरत पड़ी तो इसे निकालने के लिए दोनों की सहमति आवश्यक होगी.

6. अगर भविष्य में कभी हम दोनों के बीच किसी तरह का मनमुटाव या मतभेद होते हैं तो हम उन्हें आपसी बातचीत के जरिए सुलझने की कोशिश करेंगे. अगर नहीं सुलझते हैं तो हम बिना किसी हिचक के स्वस्थ मन से अलग हो जाएंगे और अगर तलाक लेने की नौबत आती है तो कोर्ट में एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप न लगा कर सहमति से हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 बी के तहत तलाक लेंगे. तलाक के बाद किस का क्या होगा और किस को क्या मिलेगा, यह सिर्फ हम दोनों तय करेंगे. अमूमन यह फिफ्टीफिफ्टी ही होगा.

7. पक्ष क्रमांक 2 अर्पिता तलाक के वक्त या बाद में भरणपोषण या गुजारा भत्ते का दावा नहीं करेगी क्योंकि वह खुद नौकरीपेशा है.

8. वैसे हम दोनों की पूरी कोशिश यह रहेगी कि तलाक न हो लेकिन अगर होता है, और बच्चे के जन्म के बाद होता है तो वह पक्ष क्रमांक 2 के पास रहेगा जो कभी पक्ष क्रमांक 1 को बच्चे से मिलने से रोकेगी नहीं. तलाक को हम दोनों बतौर दुश्मनी नहीं बल्कि बतौर दोस्त लेंगे. बच्चे का आधा खर्च पक्ष क्रमांक 1 वहन करेगा.
आज दिनांक ………… को हम दोनों ने अपनेअपने गवाहों के सामने दस्तखत किए ताकि सनद रहे और वक्तजरूरत काम आए. इस अनुबंध की एकएक प्रति हम दोनों ने अपने पास रखी है. हम दोनों ही अनुबंध की शर्तों का पूरी ईमानदारी से पालन करेंगे.
हस्ताक्षर पक्ष क्रमांक -1 हस्ताक्षर पक्ष क्रमांक -2.
गवाहों के हस्ताक्षर मय पूरा नाम, पता व मोबाइल नंबर सहित.
गवाह क्रमांक -1 गवाह क्रमांक -2

(अगर इस तरह का कोई अनुबंध इस शोभित और अर्पिता ने प्यार करने के दौरान किया होता तो क्या आज वे इतनी तकलीफें भुगत रहे होते जिन की उम्मीद भी उन्होंने नही की थी. इस तरह का अनुबंध जिसे प्रीनप या प्रीनप्शल एग्रीमैंट भी कहा जाता है भारत में कानूनी तौर पर मान्य नहीं है, इसलिए चलन में भी नहीं है. लेकिन यह अगर किया जाए तो पतिपत्नी कई दुश्वारियों से बच सकते हैं. वजह, यह एक नैतिक दबाब का काम तो करेगा. मुमकिन है अदालत भी इस पर गौर करे. खैर, आगे हम 2 मामले विस्तार से बता रहे हैं जिन में पतिपत्नी तलाक की कगार पर हैं)

25 साल का वह हट्टाकट्टा स्मार्ट नौजवान बिलकुल टूटा हुआ लग रहा था. सुर्ख गुलाबी रंगत वाले चेहरे पर बेतरतीब बढ़ी दाड़ी, सूखे होंठों पर बारबार जीभ फेरता वह शहर के नामी वकील के चैंबर की कुरसी में धंसा उन के सवालों का अटकअटक कर जवाब देते कई बार असहज हो जाता था, तब नजदीक की कुरसियों पर स्लेट सा चेहरा लिए बैठे उस के मम्मीपापा उसे हिम्मत बंधाते थे.

मामला एक और तलाक का था जिस की अपनी अलग कहानी थी. इस युवा नाम मान लें शोभित ने अब से कोई 6 साल पहले अर्पिता नाम की अपनी सहपाठी से शादी की थी. इस लव मैरिज की खास बात यह थी कि दोनों को फर्स्ट ईयर में ही प्यार हो गया था. ठीक वैसा ही जैसा ‘बौबी’ फिल्म में ऋषि कपूर को डिंपल कपाडि़या से और लव स्टोरी में कुमार गौरव और विजयेता पंडित को हुआ था.

दोनों की जातियां अलगअलग थीं. शोभित ठाकुर खानदान का था तो अर्पिता ब्राह्मण. दोनों के ही पेरैंट्स खासे इज्जतदार, पैसे वाले, दिखनेदिखाने में आधुनिक थे लेकिन हकीकत में एक हद तक परंपरावादी थे. लव मैरिज के खिलाफ थे या नहीं, यह कहा नहीं जा सकता लेकिन दोनों ही युवाओं ने अपने मांबाप पर भरोसा नहीं किया था और गुपचुप कोर्ट में शादी कर ली थी.

दिलचस्प बात यह है कि दोनों को इतना ज्ञान तो मिल चुका था कि बाद की जिंदगी आसान नहीं रहेगी क्योंकि पैसों के लिए पेरैंट्स की मुहताजी थी. शादी कर शोभित अर्पिता को ले कर फिल्मी स्टाइल में घर पहुंचा तो कैब से उतरते वक्त उस के पैर कांप रहे थे. पता नहीं मम्मीपापा का रिऐक्शन क्या होगा, रखेंगे या घर से निकाल देंगे. हुआ वही जो आज के पेरैंट्स की मजबूरी होती है. थोड़े से सवालजवाबों और नाराजगी के बाद घर में एंट्री दे दी गई.

मांबाप दोनों हालांकि सदमे की सी हालत में थे लेकिन खुद को काबू में किए रहे थे क्योंकि अब कुछ नहीं हो सकता था और जो हो सकता था वह करने की उन में न हिम्मत थी और न ही इच्छा थी.

उन के सामने अपनी दुनिया और समाज थे जिसे मैनेज करने के लिए अगले सप्ताह ही एक नामी होटल में शानदार रिसैप्शन दे दिया गया. अर्पिता के पेरैंट्स और कुछ रिश्तेदार भी उस में शामिल हुए लेकिन साफ दिख रहा था कि राजीखुशी नहीं हुए थे. उन्होंने बेटी को भोपाल भेजा था पढ़ने के लिए पर वह शोभित पर कुछ ऐसे मरमिटी थी कि पढ़ाई, कैरियर वगैरह सब प्यार के हवनकुंड में स्वाहा हो गया था जिस में आहुति शोभित ने भी दी थी.

तमाम दुश्वारियों के बाद भी यह नया ताजा कपल सभी को पसंद आया था. हालांकि उन की मासूमियत और बौडी लैंग्वेज बता रही थी कि वे अपनी अपरिपक्वता और उस के नतीजों से अभी वाकिफ नहीं हैं. स्टेज पर दोनों एकदूसरे में खोए हुए, एकदूसरे से सटे हुए दीनदुनिया से बेखबर मेहमानों का आशीर्वाद और उपहार लिए जा रहे थे मानो उन्हें सबकुछ मिल गया हो.

शोभित को पेरैंट्स पर गर्व हो रहा था जिन्होंने उस से कहा था कि ठीक है जो हुआ सो हुआ लेकिन अब दोनों पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान दो. अर्पिता के पेरैंट्स और रिश्तेदार कुछ सस्तेमहंगे उपहार बेटीदामाद को दे कर चलते बने. उन्हें अपनी बेटी के भविष्य को ले कर बेफिक्री नहीं थी जिस ने हमेशा अपने मन की की थी, कभी किसी की नहीं सुनी थी और शादी की इतनी जल्दी थी कि अपने बालिग होने के दूसरे दिन ही शादी कर ली थी.

शोभित के पेरैंट्स ने बेमन से ही सही अर्पिता को अपना लिया था. बेटाबहू दोनों अब साथसाथ कार से कालेज जाते थे जिस का खर्च भी पढ़ाई की तरह वे ही उठा रहे थे लेकिन अर्पिता के खर्चे शाही थे. नौकरीपेशा औफिसर सास से जबतब शौपिंग के लिए पैसे मांग ले जाती थी. मौजमस्ती और दूसरे शौक भी उन्हीं की कमाई से पूरे होते थे.

शादी के दूसरे साल यानी सैकंड ईयर में ही अर्पिता प्रैंगनैंट हो गई. जल्द ही उस ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया. अब शोभित के पेरैंट्स पर एक नई जिम्मेदारी आ गई लेकिन वे खुश थे क्योंकि उम्मीद से कम वक्त में दादादादी बन गए थे. नए बच्चे में उन का सारा वक्त बीतने लगा.

क्या आप दोनों ने बच्चे की बाबत भी जल्दबाजी नहीं की, वकील साहब ने शोभित से सवाल किया तो वह फिर सकपका गया. सिंह दंपती को भी समझ नहीं आया कि इस सवाल से तलाक के मुकदमे का क्या संबंध हो सकता है.

विवाद बढ़ने के बाद अर्पिता बच्चे को साथ ले कर अलग रहने लगी थी. बच्चा होने के बाद की कहानी अलगाव और तलाक के आम किस्सों जैसी ही थी जिस में हुआ इतनाभर था कि अर्पिता जम कर कलह करने लगी थी. अलग रहने की जिद पर अड़ गई थी तो शोभित के पेरैंट्स ने उन्हें अलग फ्लैट खरीद कर दे दिया था ताकि रोजरोज की कलह से मुक्ति मिले.

पर कलह खत्म नहीं हुई क्योंकि डिग्री लेने के बाद भी शोभित को नौकरी नहीं मिली थी. लिहाजा, बातबात पर पैसा मम्मीपापा से ही लेना पड़ता था जो आमतौर वे दे देते थे. फ्लैट में शिफ्ट होने के बाद भी संबंध खत्म नहीं हुए थे. सिंह दंपती पोते का मोह नहीं छोड़ पा रहे थे, इसलिए जबतब फ्लैट पर पहुंच जाते थे, बच्चे के साथ खेलते थे और उसी के नाम पर पैसे भी दे आते थे.

बच्चा पैदा करना अर्पिता की जिद थी, शोभित बोला उस का कहना था कि इस से मम्मीपापा को खुशी मिलेगी और हमारे बीच बौंडिंग बढ़ेगी. जवाब सुन कर वकील साहब ने सिर सा पकड़ लिया और बोले, आप लोग शुरू से ही उस लड़की की चालाकी का शिकार होते रहे हैं. उस ने शादी के लिए जल्दबाजी की. फिर बच्चे के लिए की और अलग हो गई. इस से बौंडिंग बढ़ी या खत्म हुई.

अब इतना हो सकता है कि आप लोग बच्चे का मोह छोड़ें और लड़की के खिलाफ सबूत जुटाएं. इस हफ्ते मुकदमा दायर हो जाएगा, वकील साहब ने बात कुछ इस अंदाज में कही थी कि अब आप लोग बढ़ लो. मुकदमे का ड्राफ्ट तैयार होते ही आप लोगों को बुला लिया जाएगा.

अब याद करने से क्या फायदा

बुझे मन से शोभित मम्मीपापा के साथ घर आ गया और अपने कमरे में बंद हो गया. बिस्तर पर पड़ेपड़े वह याद कर रहा था कि शादी के पहले अर्पिता उस की हर शर्त और बात पर थोड़ी सी नानुकुर के बाद राजी हो जाती थी. मसलन यह कि हम लोग जिंदगीभर मम्मीपापा के पास ही रहेंगे, उन की सेवा करेंगे, अपने खर्चे के लिए उन से ज्यादा पैसे नहीं लेंगे यानी उन पर बोझ नहीं डालेंगे और अहम बात, बच्चा तभी प्लान करेंगे जब दोनों या दोनों में से कोई एक कमाने लगेगा.

अब उसे अपनी बेवकूफी और बेबसी पर खीझ हो रही थी कि कैसे वह अर्पिता की धूर्तता का शिकार होता रहा था. वह अव्वल दर्जे की चालाक निकली जो अब 50 लाख रुपए और फ्लैट अपने नाम चाह रही है. 2 बार थाने में घरेलू हिंसा और प्रताड़ना की रिपोर्ट लिखा चुकी है और अब मैंटिनैंस का भी मुकदमा ठोंक दिया है.

वकील लोग लाख हिम्मत बधाएं कि कुछ नहीं होगा, ऐसे मामलों में तो ये बातें आम हैं. हम तो दिनरात यही सब तमाशे देखते रहते हैं, तुम्हें या तुम्हारे पेरैंट्स को कोई गुजाराभत्ता नहीं देना पड़ेगा क्योंकि तुम्हारी कोई आमदनी या रोजगार नहीं है. हम सब संभाल लेंगे.

पर शोभित का दिल संभालने वाला कोई न था जिस के दिमाग में रहरह कर यह खयाल कौंध रहा था कि उसे शादी से पहले ही अर्पिता से वह सब लिखवा लेना चाहिए था जिस पर उस ने हामी भरी थी और अब सरासर मुकर रही है. उस कागज को वह वकील और जज को दिखाता तो एक झटके में उस की हकीकत सामने आ जाती और तलाक भी आसानी से मिल जाता.

हैरानपरेशान शोभित जो सोच रहा है वही वे लाखों लोग सोचते हैं जिन की वैवाहिक जिंदगी, वजह कुछ भी हो, टूटने की कगार पर है. साथी की वादाखिलाफी, बेवफाई और किसी भी किस्म की बेईमानी कैसे आदमी को तोड़मोड़ कर देती है, यह तो शोभित जैसे पीडि़त ही बता सकते हैं या फिर इंदौर की नेहा जैसी युवतियां जो बहुत परिपक्व और अच्छे जौब में हैं. नेहा ने अपने सहकर्मी रांची के असित से बेंगलुरु में शादी की थी. लेकिन दोनों ने पेरैंट्स की अनुमति और सहमति ले ली थी जो एक तरह की फौर्मेलिटी थी.

शुरू से अकेले रहने की आदी रही नेहा ने असित को 3 साल डेट किया था. इस दौरान दोनों समझ रहे थे कि उन्होंने एकदूसरे को इतना तो समझ लिया है कि शादी के बाद कोई दिक्कत पेश नहीं आएगी. एकएक बात पर दोनों एकमत हुए थे, मसलन घर का किराया कौन देगा, किस की सैलरी में कितनी सेविंग अलगअलग और संयुक्त होगी, पैसा कहांकहां इन्वैस्ट किया जाएगा, रिश्तेदारी कितनी और कैसे निभाई जाएगी और बच्चा कब पैदा करेंगे वगैरहवगैरह.

असित अपने घर वालों को बहुत चाहता, इसलिए नेहा को शक था कि शादी के बाद कहीं वह अपनी विधवा मां को बेंगलुरु न ले आए. इसलिए उस ने एक नहीं बल्कि दर्जनों बार असित को बता दिया था कि वह किसी के साथ भी रहना अफोर्ड नहीं कर सकती.

इस से उसे असुविधा ही नहीं बल्कि कोफ्त भी होती है. तुम्हारी मां आए, साल में दोचार दिन साथ रहे, यहां तक तो मैं झेल लूंगी लेकिन इस से ज्यादा मैनेज नहीं कर पाऊंगी. इसलिए अच्छी तरह सोच लो, बाद में मुझे दोष मत देना.

असित को नेहा की यह बात यानी साफगोई भी अच्छी लगी थी और उस ने नेहा को आश्वस्त किया था कि ऐसा कुछ नहीं होगा. मां को यहां लाने का उस का कोई इरादा नहीं है और वे खुद भी रांची नहीं छोड़ने वाली. सबकुछ तय हो जाने के बाद शादी हो गई और दोनों अपनेअपने फ्लैट छोड़ कर नए फ्लैट में आ गए. शुरुआती दिन तो गृहस्थी जमाने और शौपिंग में बीत गए. हनीमून प्लान के मुताबिक मनाली में मनाया गया जिस में दोनों ने आधाआधा खर्च उठाया.

3 साल बेहद अच्छे गुजरे. दोनों खुश थे कि तभी असित की मां यों ही घूमनेफिरने के इरादे से बेंगलुरु आ गई. नेहा ने उन का यथासंभव ध्यान रखा क्योंकि वे वाकई में 8 दिनों के लिए आई थीं. लेकिन रांची वापस जाने के कुछ दिनों बाद उन्होंने स्थाई रूप से बेंगलुरु आने की इच्छा जताई तो असित घबरा उठा. मन में इच्छा थी कि अगर नेहा मान जाए तो कितना अच्छा रहेगा, मां का साथ मिल जाएगा जिन्होंने पापा की मौत के बाद उस की पढ़ाईलिखाई के लिए क्या नहीं किया. नानाजी से मिला जमीन का एक टुकड़ा था, वह भी बेच दिया था.

लेकिन नेहा नहीं मानी. उस ने याद दिलाया कि मैं ने इसलिए पहले ही कह दिया था. असित को याद था, इसलिए वह कसमसा कर रह गया. मां को हांहूं कर तरहतरह के बहाने बनाते टरकाता रहा. लेकिन ऐसा बहुत दिनों तक कर पाना मुमकिन नहीं था. हुआ वही जिस का डर था. एक दिन असित की मां अपना बोरियाबिस्तर बांध कर बेंगलुरु आ गईं.

इस के बाद जो हुआ उसे हरकोई समझ सकता है कि इस मामले में असल में गलती असित की थी जिसे मां को पहले ही बता देना चाहिए था. कुछ दिन नेहा उस के साथ रही, फिर समस्या का कोई हल न निकलते देख एक दिन खामोशी से अपना सामान समेट कर दूसरे फ्लैट में रहने चली गई.

अब असित 2 पाटों के बीच पिस रहा था क्योंकि मां सबकुछ जाननेसुनने के बाद भी अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं थीं और नेहा ने उसे वकील के जरिए तलाक का नोटिस भिजवा दिया था. मुकदमा अभी चल रहा है लेकिन ऐसा लग नहीं रहा कि नेहा को आसानी से तलाक मिल पाएगा.

उस के वकील ने उसे सुझाव दिया था कि अगर कुछ जोरदार और गंभीर आरोप लगाए जाएं तो सरलता से तलाक मिल सकता है वरना तो इस ग्राउंड में कोई खास दम नहीं है कि चूंकि सास रहने चली आई इसलिए तलाक चाहिए. दिक्कत यह है कि असित तलाक के लिए तैयार नहीं और अपनी बात वह अदालत में कहेगा भी. मुमकिन यह भी है कि वह अपना पक्ष मजबूत दिखाने के लिए नेहा को ही जिद्दी, गुस्सैल और झगड़ालू बताने लगे.

अगर नेहा ने विवाह पूर्व अनुबंध किया होता तो शायद असित पर ज्यादा दबाव पड़ता क्योंकि अब वह नेहा से कहता है कि शादी के पहले की गई ऐसी बातों के कोई माने नहीं होते. जब मैं ने हां की थी तब मां के परमानैंटली आने की कतई उम्मीद नहीं थी. अब क्या तुम्हारे लिए उन्हें भगा दूं और जिंदगीभर खुद से आखें न मिला पाऊं, मैं कोर्ट में भी नहीं मानूंगा कि कभी ऐसा कोई वादा मैं ने तुम से किया था.

मैं ने तो ऐसी कोई शर्त तुम पर नहीं थोपी थी. इस पर नेहा का जवाब भी ?ाठलाया नहीं जा सकता कि किसी के साथ रहने व न रहने की मेरी अपनी प्रौब्लम है, इसीलिए मैं ने तुम्हें एक नहीं बल्कि हजार बार आगाह किया था. यह तो सरासर प्रौमिस तोड़ने वाली बात हुई, फिर कैसा प्यार और कैसी शादी.

जानें क्या है प्रीनप या प्रीनप्शल एग्रीमैंट

ऊपर सब से शुरू में जो प्रोफार्मा दिया गया है वह शादी से पहले करार का है जिसे प्रीनप या प्रीनप्शल एग्रीमैंट भी कहते हैं. इस में कुछ भी खास नहीं है सिवा इस के कि शादी के पहले जो वादेइरादे और समझते मौखिक तौर पर किए जाते हैं उन का दस्तावेजीकरण कर दिया गया है.

इस तरह का अनुबंध भारत में चलन में नहीं है क्योंकि हम ने शादी को एक धार्मिक संस्कार मान रखा है जबकि है यह मूलतया एक अनुबंध या समझता ही. इसीलिए तलाक को हमारे समाज व देश में अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि हर तलाक इस धार्मिक धारणा पर प्रहार होता है.

अब देश में तेजी से तलाक के मामले बढ़ रहे हैं जिन पर आएदिन हरकोई बेकार की चिंता जता रहा होता है. अदालत से ले कर परिवार तक हर किसी की मंशा तलाक को बुरा साबित करने की होती है. जबकि, बढ़ते तलाक बढ़ती जागरूकता की निशानी हैं. प्रीनप का रिवाज विकसित देशों में ज्यादा इसीलिए हैं कि वहां महिलाएं शिक्षित, जागरूक और कमाऊ हैं.

वे अपने अधिकार जानतीसमझती हैं, इसलिए तलाक पर हिचकिचातीं नहीं. कई यूरोपीय देशों बेल्जियम और नीदरलैंड सहित कनाडा व यूएसए आदि में कानूनन प्रीनप को मान्यता मिली हुई है.

भारत में आजादी से पहले तलाक चलन में ही नहीं था. लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट 1956 में इस की व्यवस्था की गई तो लोगों, खासतौर से महिलाओं, को घुटनभरी जिंदगी से छुटकारा मिलने लगा क्योंकि वे हर तरह से शोषण का शिकार थीं.

अब हालात उलट हैं. 75 सालों में काफीकुछ बदलाव आए हैं पर पहली बड़ी उल?ान कानूनी प्रक्रिया की तरफ से है जिस ने तलाक की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है. दूसरी उल?ान अभी भी यह मान बैठना है कि वैवाहिक जीवन ऊपर वाला चलाता है.

शादी के वक्त मंडप में अग्नि के सामने लिए गए सात फेरों और वचनों को नकारने की हिम्मत कपल्स आसानी से नहीं कर पाते. इसलिए लंबे समय तक वे तलाक से बचने की कोशिश करते रहते हैं और जब हिम्मत जुटा लेते हैं तो उन का सामना कानूनी दुश्वारियों से होता है. तब उन्हें फेरों में लिएदिए वचन याद आएं न आएं लेकिन डेट्स और औपचारिक मुलाकातों में किए वादेइरादे जरूर याद आते हैं जिन की कानून की नजर में कोई अहमियत नहीं होती. जबकि अधिकतर तलाक की बुनियाद इन्हीं पर रखी होती है कि शादी से पहले तुम ने इस बात पर हामी भरी थी, उस बात पर रजामंदी जताई थी. चूंकि यह लिखित में नहीं होती, इसलिए कोई मानसिक या नैतिक दबाव भी दोनों के ऊपर नहीं होता जिस का प्रीनप से होना संभव है.

असित कितनी आसानी और सहजता से अपने वादे से मुकर जाएगा, यह कोई कहने की बात नहीं, तिस पर दिक्कत यह कि वह नेहा व कुछ ?ाठे आरोप भी लगाएगा. नेहा इस से और तिलमिलाएगी और पति पर सास पर वह भी हिंसा और दहेज के आरोप लगा सकती है. शोभित खुद को ठगा महसूस कर रहा है क्योंकि उस के पास खुद को तसल्ली देने के लिए भी कोई लिखित सुबूत नहीं. अर्पिता इसी का फायदा उठा कर उसे व उस के पेरैंट्स को घेरती जा रही है.

अदालतों की बढ़ती दिलचस्पी

यह सब लिखित में होता तो जरूरी नहीं कि अप्रिय नौबत न आती और अदालत लिखे को संविधान की धारा या वेदों की ऋचाएं मान लेती. वह तो दोटूक कहती कि कागज के इस टुकड़े की कानूनन कोई अहमियत नहीं. लेकिन अगर होती या यह व्यवस्था कर दी जाए तो किसी के लिए भी मुकरना आसान नहीं रह जाएगा.

वैसी भी उन पर वही दबाव या गिल्ट रहता जो इन दिनों सोशल मीडिया पर फर्जी या झुठी पोस्ट किसी को भेजने के बाद भेजने वाले के मन में एक शक और डर रहता है कि कहीं कोई गड़बड़ या फसाद न हो जाए. यानी, दाढ़ी में तिनका तो रहता है. यह डर भी कपल्स को रहेगा कि अदालत के फैसले पर इस का फर्क पड़ सकता है.

भोपाल के एक नामी अधिवक्ता महेंद्र श्रीवास्तव की मानें तो कानूनी तौर पर विवाहपूर्व किए गए समझते लागू नहीं होते. लेकिन कोर्ट निश्चित रूप से इस पर विचार करेगा कि आखिर शादी करने से पहले किन मुद्दों पर पतिपत्नी ने सहमति या असहमति जताई थी. बकौल महेंद्र, यह संपन्न, पर्याप्त शिक्षित और अभिजात्य वर्ग में लोकप्रिय है क्योंकि उन्हें अपनी प्रतिष्ठा और पैसों का खयाल रहता है. अदालत कुछ और करे न करे लेकिन यह सवाल कर सकती है कि आप क्यों विवाहपूर्व किए समझते या अनुबंध को नकारना चाहते हैं.

कई मुकदमों में अदालतों ने भी प्रीनप की जरूरत और अहमियत की तरफ इशारा किया है. मसलन, सुनीता देवेंद्र देशप्रभु बनाम सीतादेवी देशप्रभु 2016 में बौम्बे हाईकोर्ट ने विवाह पूर्व अनुबंध को संपत्ति के बंटवारे में गौर किया था. इस से लगता है कि अदालतें ऐसे अनुबंधों को हालात की बिना पर मान्यता दे सकती हैं. एक और मामले मोहम्मद खान बनाम शाहमल में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने जायज माना था. इस मामले में पति ने खाना दामाद (एक तरह से घरजंवाई) बनने की शर्त पर निकाह किया था. अदालत ने इसे मुसलिम कानून के अनुरूप पाया था.

ज्यादा नहीं अब से 2 साल पहले मुंबई की एक फैमिली कोर्ट ने विवाहपूर्व अनुबंध को बाध्यकारी तो नहीं माना लेकिन इसे दोनों पक्षों की मंशा समझने के लिए विचार किया था. कोर्ट ने पति को क्रूरता के आधार पर तलाक दिया और अनुबंध को उन के इरादों की पुष्टि के रूप में देखा.

इस मामले में पति ने अदालत में प्रीनप पेश किया था जिस में उल्लेखित था कि दोनों पक्षकार किसी भी समस्या की स्थिति में आपसी आधार पर अलग होने के लिए सहमत हुए थे.

यानी, प्रीनप में ऐसी कोई शर्त है जो कानून का या सार्वजनिक नीति का उल्लंघन नहीं करती है तो अदालत उस पर गौर कर सकती है लेकिन ऐसा तभी होगा जब कपल्स प्रीनप की अहमियत समझते उस पर अमल शुरू करें. यह उन के भविष्य और सुकून के लिए बेहद जरूरी है.

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