Best Hindi Story : श्वेता के अतृप्त मन को शिखर की मीठी फुहार ने तृप्त कर दिया था. वह अब सिर्फ उस की थी यह जानते हुए भी कि शिखर उस का कभी नहीं हो सकता. श्वेता का प्यार तो राधा के प्यार के समान था.

‘‘शिखर.’’ ‘‘हूं.’’
‘‘श्वेता तुम से बहुत प्यार करती है.’’
‘‘हा हा हा.’’
‘‘तुम इतना हंस क्यों रहे हो?’’

‘‘अरे, कोई प्यारव्यार नहीं. सब नाटक है. वह भी खेल रही है और मैं भी. बस एंजौय. कोई बंधन नहीं. हम जब चाहे खेल खत्म कर सकते हैं. मैं वह मूर्खों वाला प्यार नहीं करता जो सबकुछ छोड़ कर उस के पास चला जाऊं. वह नाटक करती है प्यार का. और मैं भी थोड़ा नाटक कर लेता हूं प्यार का. तभी तो सैक्स कर पाता हूं.’’

कार तीव्र गति से भाग रही थी. थोड़ी देर सन्नाटा छाया रहा. शेखर ने फिर बोलना शुरू किया.

‘‘रात को 11 बजे गाड़ी ड्राइव कर के वह आ जाती है. होटल में रुक जाती है. मुझेवहीं बुला लेती है. उसे डर नहीं लगता. मैं भी महीने में एक बार जाता हूं उस के पास.

‘‘एंजौय करना चाहती है. उसे सैक्स की भूख है. मैं उस की भूख शांत करता हूं. इस में बुराई क्या है. आदमी को सब से पहले अपनी खुशी देखनी चाहिए, लवी. अतीत बीत गया, भविष्य का पता नहीं, वर्तमान को अच्छे से जी लो न.’’
लवी निशब्द थी. ‘‘ओह, शिखर, तुम यह क्या कहे जा रहे हो, चुप रहो.’’
‘‘यह सच है, लवी.’’
‘‘लेकिन वह तो मांग भरती है, क्या तुम्हारे नाम की.’’

‘‘मैं ने मांग भर दी थी तो उस से क्या होता है. भर दी तो भर दी. उस ने कहा भर दो मैं ने भर दी. मैं ने तो उस से कह दिया है कि तुम मेरी जिंदगी में पहली महिला नहीं हो जिस के साथ में सैक्स कर रहा हूं और किसी को कानोंकान खबर भी नहीं है. जिंदगी एंजौय करने के लिए है.’’
कार अपनी रफ्तार से बढ़ रही थी.
लवी सोच रही थी, जिंदगी के रंगमंच का यह रंगकर्मी कितनी निर्भयता और सफलता से अभिनय कर रहा है. सृष्टिनियंता भी विस्मयबोध से भर गया होगा. श्वेता को तो एक पुरुष की जरूरत है लेकिन शिखर के पास तो पत्नी है, फिर भी.
लवी को लगा इस के आगे वह कुछ नहीं सुन पाएगी. ‘‘बस करो, शिखर. अब मैं कुछ और नहीं सुनना चाहती.’’
‘‘प्लीज लवी, तुम मेरी भरोसेदार राजदार हो. मैं जानता हूं तुम सब बातें अपने तक सीमित रखोगी. मैं भी तुम्हें सबकुछ बता कर आज हलका होना चाहता हूं. फिर तुम तो साहित्यकार हो. तुम्हें यह सच्चाई जान लेनी चाहिए. तुम लोग तो समाज को दिशा देते हो.

‘‘मैं बुरा व्यक्ति नहीं हूं, दिल का बिलकुल साफ हूं. मैं ने इस स्तर पर स्त्री के मनोविज्ञान को समझ है. स्त्री का जीवन इतना सस्ता तो नहीं कि जीवनभर रंगहीन रहा जाए. तुम मुझेभले चरित्रहीन कह सकती हो. मैं ने अब तक जितनी भी महिलाओं के साथ सैक्स किया है वे सब बहुत खुश हैं, स्नेह देती हैं मुझे. कोई नहीं कोसती. मैं उन महिलाओं को बेवफा या चरित्रहीन नहीं कहता. वे अपनी घरगृहस्थी चला रही हैं न.
‘‘सुनो लवी, विवाह कोई बंधन नहीं होता. पति का अर्थ प्रतिबंध नहीं होता.’’
‘‘चुप रहो शिखर. यह तुम चरित्र की कैसी परिभाषा गढ़ रहे हो.’’
‘‘हां, लवी. विवाह का अर्थ होता है परिवार बनाना और एकदूसरे के दुखसुख में हमेशा साथ होना, बस. दोनों को स्वतंत्र होना चाहिए. यदि कहीं अधिक सुख मिलता है तो जाए न. प्रतिबंध क्यों लगाना. मुझेजीवन में बंधन स्वीकार नहीं.

‘‘लवी, यह सब सच है कि हर महल्ले में दोचार महिलाएं ऐसी मिल जाती हैं जो अपने पति के साथ आनंद नहीं ले पातीं. उन की क्रूर प्यार शैली से वे नाखुश हैं. मुझेऐसी महिलाओं से मिलने का मौका मिला है.
‘‘मेरे साथ वे खुश हो जाती थीं. मैं भी खुश. कौन सा हमें पीठ पर तख्ती लगा कर घूमना है कि हम ने या उस ने मेरे साथ आनंद लिया.’’
‘‘शिखर तुम कितना दोहरा चरित्र जी रहे हो?’’
‘‘हां, जी रहा हूं. बिलकुल बिंदास. और सुनो, मैं किसी का घर बरबाद नहीं करता. माहौल बना कर चलता हूं. महिलाओं का सम्मान बरकरार रखता हूं.’’
‘‘कैसी फितरत है तुम्हारी?’’
‘‘फितरत नहीं, सिग्नल मिलता है, तब आगे बढ़ता हूं. अपनी भी चांदी, सामने वाले की भी चांदी.’’
‘‘ओह शिखर. मैं तुम्हें कितना अच्छा समझती थी. आज तुम ने मेरा सारा भ्रम तोड़ दिया. खुद पर अनुशासन जरूरी है, शिखर वह चाहे स्त्री हो या पुरुष वरना संस्कृति तो गर्त में ही चली जाएगी.’’
‘‘लवी, प्लीज, तुम मुझेजो चाहे, समझ. यह सब देवताओं ने भी किया है और वे पूजे जाते हैं. फिर, मैं तो मनुष्य हूं. मैं ने बहुतों को संतुष्ट कर उन का उद्धार किया है. किसी का बुरा नहीं किया. सामाजिक बाध्यताओं ने और संकीर्ण मान्यताओं ने न जाने कितनी स्त्रियों के जीवनबोध को निगल लिया है, लवी.
‘‘मैं नारी को भोग्या नहीं मानता, पूज्या मानता हूं और सुनो, श्वेता किसी और के साथ नहीं खेलती, यह मैं जानता हूं. मैं उस का भी उद्धार कर रहा हूं. मैं ने एक महीने तक उस की जासूसी की है. वह सुंदर है, मादक है. सैक्स उस की जरूरत है. मैं ने तो उस से कहा कि तुम्हें खुश होना चाहिए जो तुम ने मुझ जैसे व्यक्ति को चुना जहां ब्लैकमेल, ब्लू फिल्म किसी बात का डर नहीं है. बस, एंजौय करो. लवी, मैं उसे समझते हुए उस के साथ हूं ताकि अकेली यंग डिवोर्सी महिला समझ कर कोई उस के साथ गलत न करे. बस, इतना ही उद्देश्य है और मेरा भी उस में इंट्रैस्ट है. प्यार तो बहुत ऊंची चीज होती है.’’

लवी को काटो तो खून नहीं. यह मैं कैसे व्यक्ति के साथ बैठी हूं, किसे मैं ने अपना दोस्त बनाया है, यह मुझेलिखने को कौन सी कहानी दे रहा है.
शिखर ने फिर कहना शुरू किया.
‘‘लवी, तुम मुझेचरित्रहीन कह सकती हो. वैसे, मैं ने अभी पाप बहुत कम किए हैं. पुण्य ज्यादा किए हैं, हां.
‘‘लवी, अब मैं 50 यानी उम्र के 5 दशक के करीब हूं. आज तुम्हें थोड़ा बता कर बहुत हलका हो गया हूं.’’
‘‘शिखर, मुझे यहीं ड्रौप कर दो. मैं अब एक भी लफ्ज सुनना नहीं चाहती. मुझेकुछ शौपिंग करनी है.’’
‘‘ओके थैंक्स, लवी. बायबाय.’’
लवी को लग रहा था जैसे उस के कानों में कोई पिघला सीसा उड़ेल रहा हो. एक क्षण के लिए उस ने उन महिलाओं के बारे में सोचा. सैक्स संतुष्टि ही सबकुछ है क्या. मैं भी तो 4 वर्ष से अकेली रह रही हूं. लवी के मस्तिष्क में एक के बाद एक विचार कौंध रहे थे. क्या शिखर के जैसे और भी पुरुष होंगे? लोग पुरुष को ही क्यों दोषी मानते हैं?

लवी कार से उतर गई थी. अब उस का मन बाजार जाने का नहीं था. उस ने चुपचाप पैदल ही घर का रास्ता पकड़ लिया. मस्तिष्क में अजीब सी उथलपुथल मचा दी थी शिखर ने. श्वेता, जिस के साथ वह एंजौय कर रहा था, लवी की बहुत अच्छी दोस्त थी. वह श्वेता को पूरी तरह से जान लेना चाहती थी. श्वेता ऐसी नहीं हो सकती.

श्वेता और लवी एक ही औफिस में काम करती थीं. करीब 4 वर्ष पहले उस का ट्रांसफर आगरा से कानपुर हो गया था. शेखर और लवी दोनों आगरा में ही थे. लवी को शिखर की दोस्ती अच्छी लगती थी क्योंकि कभीकभी वह लिखता भी था और अच्छे साहित्यकारों को पढ़ता भी था. लवी की रचनाओं का तो वह फैन था. धर्म के प्रति अंधआस्था थी उस की. नियमित पूजापाठ करता था. गीतसंगीत का बेहद शौकीन, स्मार्ट और औफिस में अपने काम के प्रति सजग.

कुछ वर्ष पहले उस के पिता गुजर गए थे. मां, पत्नी और 2 बच्चे थे जिन के लिए वह तनमनधन से समर्पित था. कितनी बार तो वह रक्तदान कर चुका था. अब ऐसे व्यक्ति को कौन पसंद नहीं करेगा? लेकिन आज उस की बातों ने मस्तिष्क में लावा पिघला दिया था. उसे शिखर से घृणा तो नहीं हो रही थी लेकिन उस ने मस्तिष्क में चिंतन का सैलाब उड़ेल दिया था और एक नई कहानी को जन्म दे दिया था.

घर जा कर लवी ने कामधाम निबटाए.

रात बड़ी मुश्किल से सो पाई. पति को गुजरे 4 वर्ष हो गए थे. बस, कलम ही सहारा थी. सोचा, कल कानपुर जाती हूं. छुट्टी है, श्वेता के पास बैठूंगी. उसे समझंगी. मेरी प्यारी सखी तुझे हुआ क्या है?

लवी ने फोन लगाया. ‘‘मैं आ रही हूं, श्वेता. घर पर ही रहोगी ना?’’
‘‘हां, बेटी आज स्कूल से टूर पर जा रही है.’’
‘‘अच्छा, मेरे बेटे भी आज दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहे हैं. अपन दोनों गपशप करेंगे.’’
‘‘हां, आजा. बहुत दिन हो गए.’’

लवी ने कार स्टार्ट की. रास्तेभर श्वेता और शिखर की बातें दिमाग में घूमती रहीं. करीब 3 घंटे में वह कानपुर पहुंच गई. दोनों सहेलियां जी भर कर गले मिलीं. चायवाय हुई और गपशप.
‘‘और सुनाओ श्वेता, कैसी चल रही है जिंदगी की गाड़ी?’’
श्वेता ने आह भरी, ‘‘बस, ठीक है.’’
लवी बोली, ‘‘तुम बताओ कि शिखर कैसा है?’’
‘‘बढि़या, तुझे याद करता है,’’ श्वेता ने कहा.
‘‘तू शिखर को बहुत पहले से जानती है क्या?’’ लवी ने पूछा.
‘‘हां, यों समझ कि बचपन से. वह मेरे पिताजी के दोस्त का बेटा है. हम साथ पढ़े हैं. हम हमेशा मिलते रहे हैं. बस, एक दोस्त की तरह.’’
‘‘समय तेजी से बढ़ता गया. लंबे अंतराल तक हम नहीं मिले. फिर मेरी शादी हो गई. पत्नी बन कर मैं ने 6 वर्ष गुजारे पति के साथ. बेटी हो गई. किंतु शारीरिक सुख के नाम पर क्रूरता ही भोगी. आदिम भूख की तरह पैग लगा कर टूट पड़ता. भोगने के बाद कोई सरोकार नहीं. तुझे आज सच बता रही हूं, लवी. मैं अतृप्त ही रह जाती. बेटी हो जाने के बाद पति का अजीब सा व्यवहार मुझेरोज शूल चुभोता.

‘‘कुछ दिनों से उस ने आध्यात्मिक की बातें करना शुरू कर दी थीं. उसे घरगृहस्थी या मुझ में कोई दिलचस्पी न रह गई थी. कभीकभी तो वह तंत्रमंत्र की बातें करने लगता. जाने क्याक्या हवनयज्ञ करता, पता नहीं कौन से मंत्र पढ़ता. मुझेभी बैठा लेता. कहता, तुम भी करो, कहां भोगलिप्सा में लिप्त हो.
‘‘मैं तंग आ चुकी थी. 4 साल से मेरा उस के साथ कोई संपर्क न था. मैं रातभर सो न पाती थी.’’
‘‘फिर आत्मनिर्भरता की घड़ी टिकटिकटिक मेरे दिमाग में चलने लगी. समय ने साथ दिया, मेरी नौकरी लग गई. मैं ने फैसला कर लिया था हम साथ नहीं रह सकते. तलाक चाहते हैं. वह तो तुरंत राजी भी हो गया और मैं अपनी दुनिया में अपनी बेटी के साथ रह गई अकेली.’’
‘‘हम उन दिनों बरेली में थे. शिखर भी अपने घर बरेली में ही था. उसे पता चला तो आया था मिलने.’’
‘‘मेरा भी अकसर उस के घर आनाजाना होता था. उस की पत्नी मेरी बहुत अच्छी दोस्त है.’’
‘‘एक दिन शिखर जब मेरे घर आया, हम छत पर थे. सां?ा ढल चुकी थी. आसमान में एक भी तारा न था. बहुत देर तक शिखर और हम मौन साधे बैठे रहे. फिर शिखर ने ही मौन तोड़ा.’’
‘श्वेता.’
‘हूं.’
‘मैं कब से तुम्हारे पास बैठा हूं, कहां खोई हो?’
‘कहीं भी तो नहीं, शिखर. तुम्हारे बारे में ही सोच रही हूं. कितने अलग हो तुम. कितनी खुश होगी तुम्हारी पत्नी जो उसे तुम मिले.’

‘‘मेरी डबडबाई आंखों से ढलते आंसुओं को उस ने होंठों से सोख लिया, लवी. वह मेरे बेहद नजदीक आ गया. उस ने अपनी बांहें मेरे गले में डालते हुए कहा, ‘मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं सेतु.’

‘‘लवी, मैं अपनेआप को संभाल नहीं पाई और हम दोनों क्लोज हो गए. जीवन में पहली बार मुझेपूर्ण संतुष्टि मिली थी.

‘‘छत की वह अमावस की रात मेरे जीवन की सब से उजली रात थी. मैं ने उसे मन से पति मान लिया. मैं ने अगले रोज रजनीगंधा के पेड़ के नीचे आ कर उसे उंगली में अंगूठी पहनाने को कहा. अंगूठी मैं ने पहले ही एक खरीदी हुई थी.

‘‘वह बोला, ‘मतलब, तुम मेरा घर बरबाद कर दोगी?’

‘‘मैं ने प्रौमिस किया, ‘कभी नहीं. मैं ऐसा कभी नहीं चाहूंगी. बस, तुम मुझ से मिलते रहो. मुझेऔर कुछ नहीं चाहिए.’ मैं उस के नाम की मांग भरती हूं, लवी. करवाचौथ का व्रत रखती हूं. उस के अलावा किसी पुरुष की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखूंगी. उस का परिवार कभी बरबाद नहीं होने दूंगी. मैं ने तो कह दिया है कि मैं तुम्हारी राधा हूं, शिखर. रोज सवेरे मैं उसे मैसेज करती हूं प्यार का. और वह भी कह देता, ‘प्यार तुम्हें’ और मेरा पूरा दिन शिखरमय हो जाता है, लवी. वह बहुत प्यारा है. मैं उस के प्यार करने के सलीके में खो जाती हूं. मैं उस के व्यक्तित्व, उस के परिवार के सुख के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए जीवन गुजार दूंगी.

‘‘मैं पूरी तरह उस की हो चुकी हूं, लवी. वह दिल का साफ है.’’
लवी के मनमस्तिष्क में शिखर का अट्टहास गूंजने लगा. सब नाटक है, एंजौय.
‘‘यह तू कैसे कह सकती है श्वेता कि वह दिल का साफ है?’’
‘‘विश्वास, लवी. विश्वास. मेरे जीवन में मेरी बेटी और शिखर के अतिरिक्त तीसरा कोई नहीं है.’’
‘‘ओह श्वेता. तुम ने शिखर के आने के पहले भी अकेले 3 वर्ष गुजारे हैं. विवाह करने की क्यों न सोची तुम ने? उस से तुम्हें नाम मिलता. सम्मानजनक जीवन जीतीं तुम. इस रिश्ते को क्या नाम दोगी?’’
‘‘मैं जानती हूं लवी कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. एक टूटे सितारे की तरह मैं कभी भी भोगे हुए आसमान से जमीन पर गिर जाऊंगी. पर हम 5 वर्षों से इतने क्लोज हैं कि मैं अब उस के बिना नहीं रह सकती. मैं जानती हूं वह मुझेकभी भी छोड़ सकता है पर मैं, जीवनभर उस की रहूंगी. यह तन और यह मन सब उस का है. वह भी तो मुझेजीभर कर दुलारता है. मेरी जरूरत पूरी करता है. आनंद देता है. बस, मुझेकुछ और न चाहिए.’’

लवी के मन में शिखर की बातें गूंजने लगीं. मैं भी नाटक करता हूं प्यार का तब तो सैक्स कर पाता हूं. उफ्फ, किस चरित्र से वक्त ने मुझेमिलवाया है.

श्वेता ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘हम विवाह नहीं कर सकते. हमारे इस रिश्ते को समाज भले पवित्र न समझे पर हमारा मन पवित्र है. जिएंगे तो उस के लिए, मरेंगे तो उस के लिए. उस ने भी हमारे दुखसुख में साथ देने की कसमें खाई हैं.’’

लवी लिपट गई थी श्वेता से. स्त्री का प्रेम नदी की सलिल धार है. वह जिस से एक बार प्रेम करती है तो अंतिम सांस तक निभाती है, खारे समुद्र में मिल कर ही दम तोड़ती है.
दोनों सहेलियां मिलीं, विदा हुईं.

लवी दिल पर भारी बोझ लिए चल पड़ी. उस के मनमस्तिष्क में शिखर की बातें हथौड़े चला रही थीं. कुछ भी नहीं है. एंजौय, वह भी खेल रही है और मैं भी नाटक कर रहा हूं. ओफ्फ. जब भी चरित्र की बात उठेगी तो स्त्री को उछाला जाएगा, पुरुष को नहीं. लेकिन, शिखर वाकई कितना अलग है. 2 तरह की बात करता है. विश्वास ही नहीं होता उस की मानसिकता ऐसी हो सकती है.

कहता है मैं नारी का सम्मान करता हूं. उस की पूजा करता हूं. नारी चरित्रहीन नहीं होती. पुरुष ही उसे चरित्रहीन बनाते हैं, बनने पर मजबूर करते हैं. शारीरिक सुख के लिए जो स्त्री दुखी है, मुझ से मिलती है, मैं उस के दुख दूर कर देता हूं. इस में कहीं कोई गलत नहीं है. भला, यह कैसा चरित्र है.

लवी ने घर जाते वक्त सोचा कि शिखर से मिलती जाऊं. शिखर ने दरवाजा खोला. रिकौर्ड चल रहा था. ‘कसमें वादे प्यार वफा सब वादे हैं वादों का क्या…’
‘‘आओ, लवी. कैसी हो?’’
‘‘श्वेता से मिल कर आ रही हूं.’’
‘‘ओह, कैसी है वह?’’
‘‘बस, तुम्हारी है.’’
वह हंसा.
‘‘शिखर, मजाक मत करो. वह तुम्हारी है. उस का सम्मान करो जैसे वह तुम्हारा सम्मान करती है. माना कि तुम्हारा परिवार है लेकिन क्लोज होने के लिए वह अकेली जिम्मेदार नहीं है. वह केवल तुम्हारे लिए ही जीतीमरती है. तुम से प्यार करती है.’’

हवा के तेज झोंके की तरह लवी आई और चली गई. शिखर ने रिकौर्ड बंद किया. लवी जा चुकी थी. लवी की बातों ने शिखर के मन में अजीब सी हलचल मचा दी थी.

रात करवटें बदलते गुजरी. सुबह पहाड़ों से झांकते सूरज की मद्धिम रोशनी खिड़की से झांक रही थी. सुनहरी धूप में हलकी ठंडक थी. लेकिन शिखर को सैक्सुअल श्वेता याद आ रही थी. आनंद के चरम तक डूबना डूबते चले जाना.

लेकिन लवी से श्वेता ने यह क्या कह डाला, वह मुझ से सचमुच प्यार करती है.
वह सोच रहा था. जब वह उस के अकेलेपन को समझ कर उस से मिला. पहल तो उस ने ही की थी पर श्वेता ने भी तो अपना दामन न खींचा था. फिर अतृप्त भावनाओं का सैलाब उमड़ चला था. डूबते चले गए थे हम. फिर थोड़ा सामान्य होते हुए श्वेता ने पास की मेज पर रखी अंगूठी की डब्बी बढ़ा दी थी. मैं ने भी उस वक्त उस को पहनाते हुए कहा था, हमेशा साथ निभाऊंगा.

मैं ने उस की भावनाओं को समझने में भूल की है.
नहीं, नहीं. लेकिन मैं 2 पत्नियों को कैसे खुश रख पाऊंगा.

श्वेता कहती है, कभी किसी को पता नहीं चलने दूंगी पर यह तो पत्नी के साथ धोखा होगा. श्वेता अपनी फ्रैंड को धोखा दे रही है और मैं भी पत्नी के साथ विश्वासघात कर रहा हूं. यह मुझेक्या हो रहा है. मैं पहले बहका हुआ था या अब बहक रहा हूं. यदि पत्नी को बता देता हूं तो क्या होगा? वह तो उस की बहुत अच्छी फ्रैंड है. 5 वर्षों से हम इतने क्लोज हैं. किसी को कानोंकान खबर नहीं. मैं ने ही लवी को सब बता दिया और श्वेता ने भी. क्या करूं?
शिखर की पत्नी भावना पढ़ीलिखी समझदार, खुले विचारों की गंभीर प्रवृत्ति की थी.
5 वर्षों से अपने 2 बेटों और सासुमां के साथ घरगृहस्थी संभाले थी.
शिखर महीने में एक बार या छुट्टियों में आ जाता आगरा से बरेली.
3 दिन की छुट्टियां पड़ रही थीं, शिखर का मन बहुत बेचैन था.
श्वेता ने कहा, ‘‘मैं आ रही हूं.’’
शिखर ने मना कर दिया, ‘‘नहीं, मैं घर जा रहा हूं.’’
‘‘ओके, जाओ.’’
शिखर बरेली पहुंचा, बच्चे बहुत खुश हुए. भावना भी बेहद खुश थी.
शिखर ने कहा, ‘‘चलो भावना, तैयार हो जाओ. चलते हैं कहीं लौंगड्राइव पर.’’
बच्चे दादी के साथ घर पर थे और दोनों खुली वादियों में. एक पार्क में बैठे. ‘‘आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो ऐसे जैसे सूरज निकलने पर सूरजमुखी.’’
‘‘तुम जो आ गए हो,’’ भावना कुछ लज्जा गई.
‘‘भावु.’’
‘‘हूं.’’
‘‘तुम्हें कभी किसी से प्यार हुआ है.’’
‘‘हां. तुम से,’’ उस ने नजरों से जैसे चूम लिया शिखर को.
‘‘ओह, भावु. तुम कितनी अच्छी हो. मैं इतने दिनों तक दूर रहता हूं तुम से. शारीरिक आवश्यकता महसूस होती होगी?’’
भावना ने शिखर के चेहरे को पढ़ते हुए कहा, ‘‘तो क्या हुआ, सैक्स ही सबकुछ नहीं होता. फिर हम रोज बात करते हैं. वीडियोकौल कर लेते हैं. बिलकुल पास हैं हम. बेहद पास, शिखर. हम दोनों के बीच पवित्र रिश्ता है. प्रेम का, विश्वास का और सम्मान का. वह बना रहे.’’
शिखर के दिमाग में एक क्षण को श्वेता, उस का सैक्स आकर्षण कौंध गया.
वह संभला.
‘‘हां भावु,’’ शिखर ने भावना का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, कभीकभी जिंदगी में ऐसी दुर्घटनाएं हो जाती
हैं जिन्हें न चाहते हुए भी स्वीकारना
पड़ता है.
‘‘क्या हुआ, कोई है क्या?’’
‘‘खैर छोड़ो. हम इतने दिनों बाद
मिले हैं.’’
‘‘ओह जानूं, बताओ भी.’’
शिखर ने भावु के गले में बांहें डालते हुए उसे चूम लिया और उस ने श्वेता के साथ घटित सारा घटनाक्रम बता दिया. ‘‘मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता भावु. तुम बताओ मैं क्या करूं? वह मेरे बिना नहीं रह सकती. वह उम्र में मुझ से बड़ी है लेकिन उसे प्यार है मुझ से. मैं ने उसे समझने में देर की है.
‘‘भावु, अभी तक मैं उसे सैक्सुअल समझता रहा और अब उस की भावनाओं को समझ हूं तो तुम से व्यक्त कर रहा हूं.’’
भावना ने भरपूर दृष्टि से शिखर को देखा. कुछ क्षण तक उसे देखती रही. उस की निर्णयात्मक दृष्टि में अजीब सा तेज था.
शिखर उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. शिखर का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. न मालूम भावना क्या निर्णय लेगी? कहीं वह मुझेछोड़ तो न देगी?

‘‘शिखर, तुम चाहते तो मुझेकभी न बताते. तुम इतना बड़ा बोझ 5 साल से उठाए हुए हो. मैं पत्नी हूं जो हर कमजोर होते वक्त पर पति का सहारा बनती हूं. देर से सही, तुम ने बता कर कम से कम मुझेधोखे में तो नहीं रखा. वह मेरी बहुत अच्छी फ्रैंड है और हम फ्रैंड बने रहेंगे. उस की बेटी अब हमारी बेटी है.’’
ओह, स्त्री कितनी सहनशील होती है और गंभीर निर्णय लेती है. वह सचमुच पूज्य है.
शिखर की धारणाएं बदल चुकी थीं. वह अपनेआप को भावना के समक्ष कितना कमजोर अनुभव कर रहा था.
एंजौय, मैं ने श्वेता को अभी तक एक सैक्सी लेडी ही समझ था. यही समझ था कि वह अपनी जरूरत के लिए मुझ से प्यार करती है. लवी की बातों से उस के हृदय में श्वेता के प्रति प्यार का निर्झर झरना बहने लगा. श्वेता ने भी अपना सर्वस्व समर्पण किया है मुझे. मेरा दायित्व है उस के सम्मान की रक्षा करना. लेकिन मैं उसे क्या नाम दूं? शिखर अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था. भावना ने ही श्वेता को फोन मिलाया. ‘‘श्वेता अगले हफ्ते हमारी वैडिंग एनिवर्सरी है. हम दोनों यहीं केक काटेंगे.’’
श्वेता के मन में असंख्य विचारों का तूफान टूट पड़ा. वह समझ नहीं पा रही थी, धीमी आवाज में कह पाई, ‘‘…क्या… भावना… तुम.’’
‘‘हां श्वेता. शिखर ने मुझेसब बता दिया है.’’
श्वेता फफकफफक कर रो पड़ी थी. वह अपनेआप को कितना बौना समझ रही थी, ‘‘भावना, मुझे क्षमा कर देना.’’
‘‘वह शिखरभावना की एनिवर्सरी पर बरेली गई. भावना से लिपट कर खूब रोई. कितनी महान हो भावना तुम. मुझे क्षमा कर देना.’’
‘‘ओह नो श्वेता. एक स्त्री ही एक स्त्री की भावना को समझ सकती है. दुनिया इसी से चलती है. यह समाज उजागर प्रेम को स्वीकार नहीं करता. प्रेम इसी से बदनाम होता है.’’

भावना फिर गंभीर हो गई थी. ‘‘श्वेता, प्रेमिका को प्रतिष्ठापद नहीं मिलता और पत्नी को प्रेम नहीं मिलता. तुम लकी हो कि तुम्हें प्रेम मिला. एनिवर्सरी तुम दोनों को मुबारक हो, श्वेता.’’
श्वेता और शिखर दोनों भावना के सम्मुख गुनाहगार की तरह खड़े थे. केक पर मोमबत्तियां जगमग कर रही थीं, इस त्रिकोण प्रेम का साझा बन कर.
दूसरे दिन श्वेता चली गई.
पल, दिन, माह बीतते गए.
किंतु श्वेता की कहीं कोई खबर नहीं थी, न फोन न मैसेज.
3 वर्ष गुजर गए. श्वेता का कहीं कोई पता नहीं. शिखर ने लवी से भी कई बार पूछा. उसे भी श्वेता ने कभी कोई खबर न दी. न मालूम वह किस दुनिया में है. बेटी होस्टल में पढ़ रही थी. शिखर और भावना ने उसे अपना लिया था.

शाम हो चली थी. शिखर बालकनी में अकेले बैठा था. आज उसे उम्र के इस पड़ाव में एकएक कर तृप्त होती महिलाएं याद आ रही थीं जो केवल सैक्स के लिए शिखर की थीं और श्वेता को भी उस ने यही तो समझ वर्षों तक.

सोच रहा था वह. उस रात को याद करते हुए गममीन हो गया था. अमावस की वह काली रात थी. छत पर बैठे थे हम. होश ही न था कि कब से बैठे हैं. शिखर सुन रहा था. कितने अलग हो तुम. कितनी खुश है तुम्हारी पत्नी. जो तुम मिले. श्वेता की आंखें डबडबा आई थीं. सोख लिए थे मैं ने अपने होंठों से उस के आंसू. डाल दी थीं उस के गले में बांहें. हमेशा साथ रहूंगा सेतु. और देर तक उस के होंठों के अंगारे ठंडे करता रहा.

याद कर रहा था शिखर उस की बिंदास हंसी. हम बूढ़े हो जाएंगे, पोपले मुख से भी हम ऐसे ही प्यार करेंगे, शिखर.
हां सेतु और उस की खिलखिलाहट से जैसे झरने लगे थे पारिजात.
शिखर वह झरते पारिजात महसूस कर रहा था. मन सुगंध से सराबोर हुआ जा रहा था. कहां हो सेतु, तुम. हम बूढ़े हो गए हैं, अब.

लेखिका : डा. सुधा गुप्ता ‘अमृता’

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