Motivational Story : ससुराल वालों के सामने अचला हमेशा झुकती ही आई थी. चुप, अपने में ही घुटती रही लेकिन आज उस के आत्मसम्मान और आत्मबल के लिए जो लोग सामने खड़े थे उन्हें देख वह हैरान थी.

अचला ने फ्लैट लौक किया और चाबी देने के लिए सीढि़यों से ऊपर चढ़ गई. पति राजीव से काफी बहस के बाद आपसी सहमति से यह तय हुआ कि फ्लैट वापस किराए पर चढ़ा दिया जाएगा. ऊपर रहने वाले परिवार को चाबी इसीलिए दे रही थी ताकि पीछे से कोई किराएदार आए तो उसे फ्लैट दिखाया जा सके.

मन बहुत भारी हो रहा था. केवल भारी ही नहीं, बल्कि चीत्कार कर रहा था. बचपन से अपने हक के लिए लड़तेलड़ते उस ने पहली बार खुद को हारने के लिए राजी कर लिया था. 50 साल की उम्र की होने के बाद और सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों को यथासंभव निभाने के बाद भी वह पति का इतना विश्वास नहीं जीत पाई थी कि अपने ही फ्लैट में अपनी मरजी से कुछ दिन बिता सके.

चाबी ऊपर दे कर सीढि़यों से नीचे उतरते हुए एकएक कर उस के अरमान नीचे गिर रहे थे. आज उन्हें रोकने की कोई कोशिश भी उस की तरफ से नहीं हो रही थी. आंसुओं के सैलाब को जैसेतैसे रोक लिया था. उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिस इंसान के लिए अपने वजूद को भी भुला देगी वह बच्चों के संभल जाने पर अपने परिवार में जा कर मिल जाएगा और उसे ही गलत ठहराएगा.

नीचे उतर कर उस ने दोनों बैग उठाए और सामने सड़क पर आ गई. ईरिक्शा वाला थोड़ी दूरी पर था. उसे अपने पास बुलाने के लिए हाथ से इशारा किया और मोबाइल चैक करने लगी. किसी फोन या मैसेज के इंतजार में सबकुछ चैक कर लिया. हर दिन की तरह आज भी कुछ नहीं था. पति का, बेटियों का या ससुराल वालों का कोई फोन या मैसेज नहीं था.

ईरिक्शा में बैठ कर इधरउधर दोनों ओर यों ही देख रही थी आंसुओं को छिपाने की कोशिश में. जाने कब वापस इस शहर में आना हो. हो भी या न हो.

बस स्टैंड पहुंच कर पता चला कि अभी आधा घंटा लगेगा बस को पहुंचने में. वहीं एक चाय की दुकान पर बैठ कर चाय का और्डर दिया और आतेजाते यात्रियों को देखने लगी.

‘‘अचला,’’ किसी ने जोर से पुकारा. पीछे मुड़ कर देखा तो कोई नहीं था. सिर को झटका. 28 साल पहले इसी तरह इसी जगह पर राजीव ने आ कर आवाज लगाई थी. वह उन दोनों की पहली मुलाकात थी. सगाई हो चुकी थी लेकिन घर में इतनी आजादी नहीं थी कि लड़का और लड़की शादी से पहले एकदूसरे से मिल सकें. राजीव स्वतंत्र विचारों के थे, इसलिए उन्होंने घर पर बिना कुछ बताए अचला को मिलने के लिए बुलाया था. अपनी मां की पसंद पर उन्हें पूरा भरोसा था लेकिन फिर भी जीवनभर के बंधन में बंधने से पहले खुद भी जीवनसंगिनी से एक बार मिल कर बातें करना चाहते थे वे.

‘फोटो से कहीं ज्यादा ही सुंदर हो तुम तो,’ प्यारभरी नजरों से अचला को ताकते हुए उन्होंने पहला वाक्य बोला था.

‘फोटो तो ऐसे ही खिंचवाई हुई थी. अचानक से मांगी तो देनी पड़ी. मैं ने मामी से कहा था कि नई खिंचवा लेती हूं पर मेरी कोई सुने तब न,’ सीधीसादी अचला ने फोटो का पूरा विवरण दे दिया था.
‘तुम तो बहुत पढ़ीलिखी हो. नौकरी भी करना चाहती हो. मेरी नौकरी तबादले वाली है, निभा पाओगी?’

दूसरे प्रश्न के जवाब में अचला थोड़ी सी घबराई लेकिन तुरंत जो मन में आया वह जवाब दे दिया, ‘‘नौकरी तो करना चाहती हूं. पिताजी ने सब से ऊपर हो कर पढ़ाया है मु झे, लेकिन बाकी की जिम्मेदारियों से ऊपर नौकरी नहीं है.’

जवाब सुन कर जैसे संतुष्ट हो गए थे राजीव. दोनों ने चाय खत्म की. कुछ इधरउधर की बातें हुईं. आगे के जीवन के बारे में कुछ भी नहीं पूछा था अचला ने. उस की इसी बात पर फिदा हो गए थे राजीव. रात की गाड़ी से अपने शहर वापस चले गए राजीव और अचला अपने घर आ गई. छोटी बहन ने बहुत शिकायत की या यों कहें कि डांट ही लगाई थी उसे.

‘मैडम, पूछना तो था कि शादी के बाद कहां रखेगा तु झे. उस की मां बहुत तेज है. बड़े लड़के को ही सब मानती है. सबकुछ अपने ही नियंत्रण में रखती है. सारे निर्णय भी खुद ही लेती है. इसीलिए तुम से मिलने आया होगा बेचारा. तुम तो ठहरी सीधी गाय. पढ़लिख कर भी सब बराबर कर दिया तू ने तो.’

‘जो मां से ऊपर हो कर मिलने आ सकता है वह रहने का ठिकाना भी बना ही लेगा.’
खयालों में खोई हुई अचला ने जवाब दिया था. काश, उसी समय सच को जान गई होती, जमाने के रिवाज को पहचान गई होती. लड़के शादी तो मरजी से कर लेते हैं मगर उस के बाद के फैसले मांबाप के अनुसार ही लेते हैं. 28 साल बाद उसी तारीख को उसी जगह दोनों मिले. अचला अपने घर से आई और राजीव अपने शहर से. आते ही राजीव ने वह सबकुछ बोल दिया जो उन्हें सम झा कर भेजा गया था.

‘अच्छी तरह सोच लो, अचला. भाईभाभी को यों तुम्हारा अकेले आ कर फ्लैट में रहना अच्छा नहीं लगता है. कुछ दिनों के लिए ही इधर आती हो तो उन के साथ ही रहा करो.’

अचला तिलमिला उठी थी. इतने सालों की वफादारी का यह सिला दिया है उस के जीवनसाथी ने. जब तक अपने परिवार से दूर थे, सबकुछ अचला से सलाह कर के ही करते थे. इसीलिए यह फ्लैट भी लिया गया था परंतु घरवालों के संपर्क में आते ही सबकुछ भूल गए. यह भी कि अचला के मातापिता भी अब नहीं हैं. उस ने लड़के को जन्म नहीं दिया, इसीलिए सासससुर ने घर भी बड़े लड़के को सौंप दिया. आहत हो कर भी उस ने अपना पक्ष रखना चाहा.

‘आप जानते हैं राजीव, भाभी का व्यवहार मेरे साथ बिलकुल भी अच्छा नहीं है. घर भी उतना बड़ा नहीं है. आप की मम्मीजी अब चुप हो गई हैं. भाभी कुछ भी बोलती हैं तो सब चुपचाप सुनती रहती हैं. गलती उन की हो, तब भी मु झ से ही सम झौते की अपेक्षा की जाती है और सब से बड़ी बात, वह घर तुम्हारे पापा का नहीं, भाई का है. आज नहीं तो कल, वे मना कर ही देंगे वहां जा कर रहने के लिए. भाभी के घरवालों का हस्तक्षेप भी बढ़ता ही जा रहा है.’
अचला की बात पूरी होने से पहले ही राजीव ने जवाब दे दिया.

‘हां, तो तब नहीं आएंगे उन के घर. तब तक तो निभाओ. इस समाज में सभी लोग उन्हें जानते हैं. तुम यहां आ कर अकेली रहती हो तो लोग उन्हें बोलते हैं. पूरा परिवार एकसाथ है. बस, तुम्हें ही अलग आ कर रहने की जिद है. कुछ सोचो, बदनामी होती है उन की. तुम्हारे कहने से फ्लैट अलग ले लिया है लेकिन जब तक मेरे मांबाप हैं, मैं उसी घर में रहना चाहता हूं. तुम्हारे लिए मैं सब से संबंध नहीं तोड़ सकता.’

‘मैं यहां आ कर कोई गलत काम नहीं कर रही हूं. हमारा फ्लैट है. उसी में आ कर रहती हूं. ये सब बातें तुम्हें ही बोलते हैं वे लोग. मैं 10 दिनों से अकेली रह रही हूं, मेरे पास एक फोन तक भी नहीं किया कभी. तुम सम झते क्यों नहीं हो?’

अचला की आवाज में तल्खी थी. पूरा परिवार तो उस का विरोध शादी के पहले दिन से ही कर रहा था. अब राजीव भी उन की टोली में शामिल हो गए थे. फ्लैट पर आने से पहले ननद को भी उस ने आने के लिए फोन किया. सासससुर को भी अपने साथ आ कर रहने के लिए कहा परंतु किसी का कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला. उलटे, राजीव को भड़का दिया. उन्होंने जैसे ताना कसा.

‘मीरा को भी तुम ने फोन किया था लेकिन वह भी बड़े भाई से ऊपर हो कर तुम्हारे पास आने को तैयार नहीं हुई.’

‘बच्चों से मेरी भी बात हुई थी. अभी छुट्टी नहीं हुई है. छुट्टी होते ही आने के लिए बोल रहे थे.’

अचला ने तर्क दिया तो राजीव हंस कर बोले, ‘तुम्हें लगता है कि वह अपनी मां से ऊपर हो कर तुम से मिलने आएंगे? फिर यहां कोई सुविधा नहीं है. बिना एसी आजकल किसी को नींद नहीं आती है. सम झा करो परिस्थितियों को.’
अचला ने फिर से अपना पक्ष रखा.

‘राजीव, जब हम यहां आ जाएंगे तब भी वे लोग आएंगे हमारे पास. यही घर होगा. हम भी वहीं होंगे तो फिर अभी क्या समस्या है? क्यों बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है.’
राजीव मुंह घुमा कर दूसरी तरफ चले गए.

अचला और बहस नहीं करना चाहती थी. जल्दीजल्दी चाय खत्म की और फ्लैट पर वापस लौट आई. रहरह कर अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था. क्यों उस ने राजीव के पूछने पर मना नहीं किया था इस शहर में फ्लैट खरीदने को? क्यों राजीव की भावनाओं को प्राथमिकता दी?

बीते साल किसी फिल्म की तरह आंखों में तैर गए थे. छोटी बेटी के पैदा होते ही घरवालों का व्यवहार और भी कटु हो गया था. अचला का जैसे अस्तित्व ही भुला दिया गया था. रसोई के मामलों में या फिर मेहमानों के आनेजाने में हर जगह जेठानी अपनी बात को ही बड़ा रखने लगी थी. ससुर तो सेवानिवृत्ति के बाद से ही चुप हो गए थे. सास भी अब बुढ़ापे के कारण शारीरिक रूप से अक्षम सी हो गई थी.

पहले जिस औरत की कड़क आवाज से पूरा घर कांप जाया करता था, आज मुश्किल से ही कोई बात पूरी बोल पाती थी. चुप रह कर जैसे अपनी इज्जत बचा लेती थी. जेठानी अब नई हाकिम बन गई थी. उस के साथ सास और ननद ने जो भी कुछ किया वह पूरा बदला अचला से लेना चाहती थी. राजीव ने अचला का साथ दिया और दोनों बेटियों के साथ अचला को भी अपने साथ ले गए. उन की नौकरी दूसरे शहर में थी.

बेटियां बड़ी हो गईं. पढ़ाई में अच्छी थीं तो आगे की पढ़ाई के लिए पुणे और बेंगलुरु में चली गईं. अचला अब अकेली हो गई थी. राजीव सेवानिवृत्ति के बाद गृहनगर वापस लौट जाना चाहते थे. यही सोचते हुए भाई के घर से दूर शहर के दूसरे कोने पर एक फ्लैट खरीद लिया था. 2 साल किराए पर दे कर रखा. अचला और राजीव दोनों ही भाई के ही घर पर आतेजाते रहे. राजीव की खूब खातिर होती. उस के साथ खूब बातचीत होती. हर बात में उसे विशेष महत्त्व दिया जाता. उस के सामने उस की राय को मान दिया जाता.

अचला एक कैदी की तरह अपना समय व्यतीत करती. जेठ और ससुर से परदा करती थी, इसलिए बातचीत में शामिल ही नहीं हो पाती. बस, अंदर कमरे में बैठ कर सब की बातें सुनती रहती. आखिर राजीव से कह कर पिछले साल दीवाली पर अपने फ्लैट में आ कर रहने की शुरुआत की. दीवाली के अगले दिन आंखें खुलने से पहले ही फोन बजना शुरू हो गया. पहले सास का, फिर जेठ का और उस के बाद ससुर का.

‘दीया ही तो जलाना था. पूरी रात क्या दीवाली ही मन रही थी जो घर वापस नहीं लौटे?’ और भी कई तरह के सवाल. जैसेतैसे नहाएधोए और सामान उठा कर फिर से वापस लौट आए वहीं उसी अखाड़े में.

वर्षों तक अकेले अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच कर अचला ने थोड़े सुकून की इच्छा क्या रखी, पूरा परिवार सारे कामधाम छोड़ कर उस की इच्छा को कुचलने पर उतारू हो गया था. राजीव को बच्चों की तरह बहलायाफुसलाया जा रहा था. सास और जेठानी पूरे समय उन के आसपास ही रहने की कोशिश करते. रिश्तेदारों के सभी मसले उन के सामने ही रखे जाते और घंटों तक चर्चा चलती रहती.

जितना समय ससुराल में रहते, राजीव का एक अलग ही रूप अचला को नजर आता. वहां रहते हुए आपस में कोई बात करना संभव न हो पाता था. अचला कभी कुछ कहने की कोशिश भी करती तो छोटी सी बात बहस में बदल जाती. अचला से सभी बच कर रहते जैसे कोई अछूत हो.

घर से वापस लौट कर राजीव घर के बारे में कोई बात ही नहीं करते थे. हां, अपने घरवालों से उन की फोन पर रोज ही बात होती थी. एक अनचाही चुप्पी छा गई थी. एकदम अकेली पड़ गई थी अचला. बेटियां भी पापा की ही बात को बड़ा रखती थीं. अचला को विश्वास नहीं होता था कि यह वही घर है जिसे संजोने में उस ने अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल दिए थे. ये वही बेटियां हैं जिन के होने के बाद उसे घरनिकाला मिल गया था और यह वही राजीव है जिस ने पहल कर के उसे उस तनावभरे माहौल से बाहर निकाला था.

समय अपनी गति से चल रहा था, बस, विचारों की गति रुक गई थी. किसी की बुरी नजर लग गई थी अचला की गृहस्थी को. काफी जद्दोजेहद के बाद आखिर हिम्मत कर के अचला ने अपनी बात राजीव के सामने रखी.

‘राजीव, फ्लैट जब से खरीदा है, बंद पड़ा हुआ है. प्रीति और नीति अब कभीकभी आती हैं. मैं सोच रही हूं कि फ्लैट पर जा कर ही रह लेती हूं. वहीं अपना बुटीक शुरू कर लूंगी. आप महीने व दोमहीने में आते रहना. आखिर जाना तो वहीं पर है.’

कई दिनों तक राजीव ने कोई उत्तर नहीं दिया. फिर एक दिन बताया कि छुट्टी ले कर साथ ही चलेंगे. वहां थोड़ीबहुत व्यवस्था हो जाएगी तो वापस आ जाएंगे. पहले मां का आशीर्वाद लेने की बात हुई तो अचला ससुराल जाने को तैयार हो गई. एक दिन रुकने के बाद अचला ने पूछा,
‘राजीव, कब चलना है?’

पूछते ही राजीव तुरंत जा कर रिक्शा बुला लाए और सामान ले जा कर उस में रखने लगे. चायनाश्ता कुछ भी नहीं. जेठानी रसोई के दरवाजे पर खड़ी मुसकरा रही थी. सास अचला को चायनाश्ता बनाने के लिए बोल रही थी परंतु जेठानी रसोई के दरवाजे के बीच में दोनों ओर चौखट पर हाथ रख कर खड़ी थी.
‘चलो, बैठो रिक्शा में. देर हो रही है.’

राजीव की आवाज में गुस्सा था. बस में बैठ कर राजीव थोड़ा सामान्य हुए लेकिन तब तक अचला के मनमस्तिष्क पर तनाव हावी हो चुका था. फ्लैट पर पहुंच कर भी जाने क्याक्या बड़बड़ाती रही. जो सोचा था उस का उलटा ही हुआ. इतने वर्षों तक राजीव के साथ मिल कर अपना घर बसाने का जो सपना देखा था वह टूट कर बिखर चुका था. फ्लैट की सफाई हुई. सामान भी खरीदा गया. खाना भी बना और खाया भी लेकिन वह बात नहीं थी. अपने घर का अपनापन नहीं था. घर को सजाने की योजनाएं नहीं थीं. बस, एक दिनचर्या पूरी हो रही थी.

आगे का अंश बौक्स के बाद 

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बैंक डूब जाए तो कितना पैसा मिलेगा आप को

अगर कोई बैंक डूब जाए, दिवालिया हो जाए तो उस में जमा रकम खातेदार को कैसे और कितनी मिलेगी, यह सवाल हर जमाकर्ता के मन में जवाब तलाशता रहता है. केंद्र सरकार डिपौजिट इंश्योरैंस एंड क्रैडिट गारंटी (डीआईसीजीसी) एक्ट के तहत इस सवाल का समाधान करती है. इस के अनुसार, अगर वह बैंक दिवालिया हो जाए जिस में खातेदार का बैंक खाता है तो बैंक के दिवालिया होने के 90 दिनों के अंदर खाते का भुगतान हो जाता है. बैंक 45 दिनों में डीआईसीजीसी को खाताधारकों का पूरा विवरण देता है. इस के बाद 45 दिनों में पैसे का भुगतान कर दिया जाता है. इस तरह से 90 दिनों में यह काम होता है.

सवाल उठता है कि कितना पैसा भुगतान किया जाता है? यदि बैंक में खाताधारक के 10 लाख रुपए जमा हैं और बैंक डूब गया तो जमाकर्ता को केवल 5 लाख रुपए ही बीमा के रूप में मिलेंगे. भारत में जिस तरह से बैंकों को आपस में मर्ज किया गया उस का कारण था कि वे दिवालिया न हों. इस के बाद भी न्यू इंडिया कोऔपरेटिव बैंक, पीएमसी या दूसरे बैंकों में घोटाले बताते हैं कि बैंक कभी भी दिवालिया हो सकते हैं. इस दशा में खाताधारक को अधिक से अधिक 5 लाख रुपए तक की बीमा राशि मिलेगी.

पहले यह राशि केवल एक लाख रुपए थी. इस को बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दिया गया है. बैंकिंग सैक्टर को मजबूत करने और जनता का भरोसा बढ़ाने के लिए जरूरी है कि इस राशि को बढ़ाया जाए, जिस से जमाकर्ता को उस का पूरा पैसा मिल सके. तब ही वह बैंक पर पूरा भरोसा कर पाएगा और देश का बैंकिंग सैक्टर मजबूत हो सकेगा.

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एक दिन रुक कर राजीव वापस लौट गए. अचला का आरक्षण 15 दिन बाद का था. खाली फ्लैट, न सामान था, न टीवी. बस, मोबाइल ही था उस के अकेलेपन का साथी.

राजीव का एक बार फोन आया लेकिन बात करने का वही तरीका. अचला ने फिर राजीव को फोन नहीं किया. इतने सालों में पहली बार हिम्मत जुटाई थी इस कदम को उठाने की. जो ठीक से बात न करे उसे महत्त्व न देने की. ननद का एक दिन फोन आया लेकिन उसे भी समय नहीं था कुछ दिन आ कर रुकने का. बच्चों के पास मैसेज किया. ननद की बेटी को भी मैसेज किया. सभी व्यस्त थे. अचला से आ कर मिलने का उस का सहारा बनने का किसी के पास समय ही नहीं था.

जाने की तिथि नजदीक आतेआते अचला की हिम्मत टूट गई. उस ने राजीव को मैसेज किया कि फ्लैट को वापस किराए पर चढ़ाना ही ठीक रहेगा. यहां आ कर अकेले पड़ने से बेहतर है वहीं पर किसी काम में मन लगा लेना.

मांबाप होते तो शायद स्थिति उस के पक्ष में जा सकती थी. उन के रहते हुए राजीव भी पूरी तरह अपने घरवालों के नियंत्रण में नहीं आए थे. सामान बांध कर निर्धारित तिथि पर अचला बसस्टैंड पहुंच कर बस के आने का इंतजार कर रही थी. तभी बस सामने से स्टैंड में घुसती हुई नजर आई. चाय का कप डस्टबिन में फेंक कर अचला ने अपने दोनों बैग दोनों हाथों में उठा लिए.

‘‘मामी, कहां जा रही हो? सुबह से न तो फोन उठा रही हो न मैसेज देख रही हो.’’
ननद की बेटी कृति की आवाज थी. अचला ने आश्चर्य से पीछे मुड़ कर देखा तो बेटी सान्या भी बैग हाथ में ले कर खड़ी हुई थी.
‘‘मां, हम दोनों पर आप को विश्वास नहीं था क्या?’’
अचला उस के प्रश्न पर हैरान थी. जवाब देना चाहती थी लेकिन मुंह से कुछ निकल ही नहीं पाया. बस स्टैंड पर आ कर रुक गई. सभी यात्री तेजी से अपना सामान उठा कर बस में बैठने को दौड़ पड़े.

‘‘हमारे देश में न, लोगों को सब्र ही नहीं है. सीट बुक है लेकिन फिर भी दौड़ना है.’’
सान्या गुस्से में बड़बड़ा रही थी. अचला के दोनों बैग उन दोनों ने उठा लिए.
‘‘मामी, वापस फ्लैट पर चल रहे हैं हम. आप की सीट कैंसिल करवा दी है. अब विरोध मत करना. आप की इच्छा को ऊपर रखने के लिए हमें कितनी लड़ाई लड़नी पड़ी, आप को बता नहीं सकते.’’
अचला को सम झ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है?
‘‘मां, कृति सही बोल रही है. आप चलो, अब. बहुत भूख लगी है. हम दोनों ने कल शाम से कुछ नहीं खाया है आप के हाथ का खाना खाने के लिए.’’

सान्या ने एक हाथ से अचला का हाथ पकड़ लिया. अचला उन दोनों के आने से हैरान थी लेकिन खुद को खुश होने से नहीं रोक पा रही थी.
‘‘तुम लोग तो बोल रहे थे मैं ही जिद पर अड़ी हूं. मु झे सम झौता कर लेना चाहिए, फिर अचानक कैसे?’’

कृति ने जवाब दिया, ‘‘मामी, वह सब मम्मी और मामा के कहने से बोला था. उन्होंने ही आप को सम झाने के लिए कहा था लेकिन हम ने उन्हें ही सम झा दिया है कि आप को अपनी मरजी से, अपने फ्लैट में आ कर रहने का पूरा हक है. बड़े मामा और नानी को इस से दिक्कत होती है तो वह उन की समस्या है, आप की नहीं.’’
सान्या ने भी उस की बात का समर्थन किया.

‘‘उन लोगों को इतनी ही समाज की परवा है तो आ कर रहें आप के साथ. क्यों पापा को भड़काते रहते हैं. समाज के नाम पर खुद को सही साबित करने पर तुले हुए हैं, हां.’’
तभी सामने से ईरिक्शा आता दिखाई दिया.

ईरिक्शा में बैठ कर तीनों फ्लैट में वापस आ गईं. ऊपर से चाबी ले कर दरवाजा खोल दिया कृति ने. सान्या ने सामान उठा कर अंदर रखा.
‘‘बच्चो, नहा कर आओ, तब तक चाय बना देती हूं.’’
‘‘और पकौड़े भी,’’ अचला की बात का जवाब दे कर कृति बाथरूम में चली गई.
पुरानी पीढ़ी से अचला हार गई थी. नई पीढ़ी की लड़कियों ने उसे जिता दिया था.
‘‘मैं ने तबादले की अर्जी लगा दी है. उम्मीद है इस बार मिल ही जाएगा. तब तक तुम अकेले रह कर अपना काम शुरू कर सकती हो.’’
राजीव भी ऊपर आ गए थे. अचला ने दोनों बच्चियों को गले से लगा लिया. जो वह नहीं कर पाई, उन दोनों ने मिल कर कर दिखाया था.
‘‘आखिर, आप को बात सम झ में आ ही गई,’’ अचला ने शिकायत करते हुए कहा.
‘‘अब तुम ने अपनी सोच बच्चों के दिमाग में भी डाल दी है तो मैं अकेला क्या कर सकता था. समाज के नाम का झंडा अकेले कैसे फहरा सकता था. इसलिए, बच्चों की बात मान ली. अब तुम जीतीं, मैं हारा.’’

कृति और सान्या तालियां बजा कर हंस रही थीं. अचला समझने की कोशिश कर रही थी कि क्या हुआ, कैसे हुआ.

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