Pahalgam Terrorist Attack : पहलगाम हमले के बाद सरकार ने इस की गंभीरता तभी खत्म कर दी जब इस पूरे मामले को धार्मिक रंग दे कर भटकाने की कोशिश की गई. यहां तक कि पीड़ितों की बात तक अनसुनी कर दी गई. परिणामतया, आम लोगों में एक अविश्वास और निराशा पैदा हो गई है.

उन में से किसी ने भी पति की अर्थी पर चूड़ियां नहीं फोड़ीं, मांग में भरा सिंदूर नहीं पोंछा और बिलखते हुए अपने कर्मों, भाग्य या भगवान को नहीं कोसा. उन्होंने सीधेसीधे अपने वैधव्य के लिए पहले आतंकी और फिर सरकार को जिम्मेदार करार दिया. उन का दुख कोई साझा नहीं कर सकता और न ही आने वाली जिंदगी की दुश्वारियों से निजात दिला सकता है. एक पहाड़ सी जिंदगी उन के सामने मुंहबाए खड़ी है. पहलगाम हादसे ने उन से जो छीना है उस की भरपाई तो अब भगवान भी कहीं हो तो वह भी नहीं कर सकता.

अपनी आंखों के सामने अपना ही सुहाग उजड़ने का दर्द कोई कलम बयां नहीं कर सकता. भारतीय समाज में विधवा होने का दुख एक विधवा ही महसूस कर सकती है. बिलाशक यह कोई मामूली हादसा नहीं था, इसलिए इस पर वाकई देश व्यथित और आक्रोशित हुआ. पर कम ही लोगों ने इस बात पर गौर करने की जरूरत महसूस की कि उन के विधवा होने के पीछे कोई आकस्मिक या गैरआकस्मिक वजह भी नहीं थी. उन की तात्कालिक प्रतिक्रिया पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाता है कि अपनी सूनी हो गई मांग का जिम्मेदार और कुसूरवार भी वे आतंकियों के बाद सरकार को मानती हैं.

कैसे, आइए उन की जबानी सुनें, उन शब्दों के अर्थ समझने की कोशिश करें जो उन्होंने पति को अंतिम विदाई देने के पहले कहे और अहम बात यह कि बिना किसी डर या लिहाज के कहे. भीषण दुख की घड़ियों में उन की साफगोई एक जोरदार सैल्यूट की हकदार तो है.

पहलगाम हमले में आतंकियों की गोलियों का शिकार हुए सूरत के शैलेश कलाथिया जो परिवार सहित अपना जन्मदिन मनाने गए थे, लेकिन वहां से लौटे लाश की शक्ल में. उन की पत्नी शीतल कलाथिया के सामने जैसे ही केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल पड़े तो शीतल बिफर पड़ीं. उन्होंने जो कहा उस का एकएक शब्द राजनीति और राजनेताओं की शोबाजी की न केवल पोल खोलता हुआ है बल्कि उस के चिथड़े उड़ाता हुआ सरकार को कठघरे में खड़ा करता हुआ भी है.
शीतल ने कहा-
“आप के पीछे कितने वीआईपी हैं, कितनी गाड़ियां हैं, नेता जिस हैलिकौप्टर से चलते हैं वह टैक्स देने वालों के दम पर ही चलता है. आप की जिंदगी जिंदगी है, टैक्स देने वालों की जिंदगी जिंदगी नहीं? आप इतना टैक्स ले रहे हैं तो सुविधाएं क्यों नहीं देते?”

सी आर पाटिल, “हम न्याय दिलाएंगे.”
शीतल, “बिलकुल नहीं, हम सरकार और सेना पर भरोसा कर पहलगाम गए थे. अब भरोसा नहीं है. कश्मीर में दिक्कत नहीं, दिक्कत तो सरकार की सुरक्षा व्यवस्था में है.”

तभी मंत्रीजी के आजूबाजू खड़े कुछ चंगूमंगू टाइप के नेताओं ने शीतल को रोकने की कोशिश की तो वे और बिफर कर बोलीं, “नहीं सर, आप को सुनना पड़ेगा. जब सब हो जाता है तब सरकार आती है, फोटो खिंचवा कर चली जाती है. मुझे बस न्याय चाहिए, सिर्फ अपने पति के लिए नहीं बल्कि उन सभी लोगों के लिए न्याय चाहिए जिन्होंने वहां अपनी जानें खोईं.”

इस दौरान शैलेष और शीतल के नन्हें बच्चे बेटी नीति और बेटा नक्ष पथराई आंखों से पिता की चिता और हैरानी से मां का यह रौद्र रूप देखते रहे. लेकिन बात कुछ और भी थी.

शीतल कुछ भी गलत नहीं कह रही थीं क्योंकि उन के पति की अर्थी को मंत्रियों के आगमन के लिए 15 मिनट तक रोक कर रखा गया था. हुआ यों था कि शैलेष के परिजन जब उन की अर्थी ले जाने लगे थे तभी खबर आई कि केंद्रीय मंत्री सी आर पाटिल आ रहे हैं. उन के साथ गुजरात के गृह राज्यमंत्री हर्ष संघवी भी हैं. इन मंत्रियों के प्रोटोकालिक इंतजार में अर्थी कोई 15 मिनट तक सड़क पर रखी रही. उस के आसपास लोग, जो शैलेष को अंतिम विदाई देने उन की अंत्येष्टि में शामिल होने आए थे, खड़े हो कर मंत्री का इंतजार करते रहे.

शीतल की मंशा बेहद साफ थी कि हम से तरहतरह से तगड़ा टैक्स वसूलने वाली सरकार सुरक्षा नहीं दे सकती तो वह सरकार किस काम की, जिस के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों की सुरक्षा और लावलश्कर में ही जनता का तगड़ा पैसा खर्च होता है. तिस पर मजाक यह कि ये यहां भी नेतागीरी छांटने आ गए.

पति की मौत पर राजनीति उन्हें रास नहीं आई और न ही वह वीआईपी कल्चर भाया जिस के कि हमारे नेता आदी हो गए हैं. पाटिल और संघवी को उम्मीद यह रही होगी कि उन के पहुंचते ही शैलेष के परिजन उन के सामने इंसाफ के लिए गिड़गिड़ाएंगे, गले से लग कर रोएंगे, मानो आसमान से कोई देवता उतर आए हों और मृतक की पत्नी वह तो बेचारी खुद के समय को कोसते दहाड़ें मारमार कर रो रही होगी.

उस के आंसू अगर सूख गए होंगे तो सुबक रही होगी, घर के किसी कोने में अचेत पड़ी होगी. लेकिन हुआ एकदम उलटा तो दोनों सकपका गए और शीतल की दिलेरी को प्रणाम कर चुपचाप खिसक लिए.

एक शीतल का ही भरोसा सरकार पर से नहीं उठा है बल्कि उन सभी पत्नियों का उठा है जिन के पति पहलगाम हमले में बेवक्त, बेमौत मारे गए. सरकार पर से भरोसा मृतकों के परिजनों का भी उठा है और उन करोड़ों लोगों का भी उठा है जिन्होंने यह भ्रम पाल रखा था कि नरेंद्र मोदी सिर्फ प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि एक खास उद्देश्य से ईश्वर द्वारा भेजे गए दूत या अवतार हैं, जिन का जन्म ही राम और कृष्ण की तरह दुख हरने के लिए हुआ है. वे विधर्मियों, नास्तिकों और हिंदू धर्म के गद्दारों को सबक सिखाएंगे और एक दिन भारत हिंदू राष्ट्र हो कर विश्वगुरु बनेगा.

खुद नरेंद्र मोदी भी अपना और भक्तों का यह भ्रम सलामत रखने के लिए ऊटपटांग और बेसरपैर की बातें अकसर करते रहते हैं. मसलन, लोकसभा चुनाव के दौरान काशी में नाव में दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद को नौनबायोलौजिकल बताया था. यह निश्चित ही मानव कल्पना से परे बात है लेकिन धर्मग्रंथों में इफरात से पाई जाती है.

ऐसी और भी कई बातें और वक्तव्य हैं लेकिन पहलगाम हादसे से ताल्लुक रखती एक यह भी है कि मृतकों की पत्नियों और परिजनों ने उन की सरकार को फेलियर करार दिया. जयपुर के 33 वर्षीय नीरज उधवानी की अर्थी उठने से पहले ही उन का घर पुलिस छावनी में तबदील हो गया था. क्योंकि वहां भी शोक प्रकट करने के लिए एक केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की ड्यूटी लगी थी. उन का साथ देने का जिम्मा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को सौंपा गया था.

यहां भी कमोबेश सूरत का ही रीप्ले हुआ. नीरज की दुखी पत्नी आयुषी खामोशी से पति की चिता पर हाथ जोड़े खड़ी रहीं. तय है वे नीरज को आखिरी बार जी भर कर निहार लेना चाहती थीं. अंत्येष्टि में शामिल होने आए लोग नेताओं के मय फौजफाटे के आने पर सब्र किए रहे लेकिन नीरज के एक परिजन खुद की भड़ास रोक नहीं पाए.

लिहाजा, उन्होंने सीधे इन नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “यह आप की सरकार का फेलियर है, यहां सिक्योरटी लगाने से क्या होगा?” यह बहुत कम शब्दों में कही गई लाख नहीं बल्कि करोड़ों टके की बात थी. एक तरह से शीतल की बात का एक्सटैंशन था. यहां भी वही हुआ, दोनों मंत्री अपना और अपनी सरकार की नाकामी का मखौल उड़ते देख मौका पा कर खिसक लिए. उन्हें निश्चित ही समझ आ गया होगा कि यहां नेतागीरी नहीं चलने वाली. इन्हें बनावटी नहीं बल्कि वास्तविक सहानुभति चाहिए जिस का इन के पास टोटा रहता है.

देखा जाए तो मोदी सरकार के ये मंत्री और मुख्यमंत्री पहलगाम हमले में हुई मौतों का फीडबेक लेने गए थे जो सौ फीसदी नैगेटिव था. इसलिए दूसरे दिन ही सरकार ने सार्वजानिक तौर पर मान लिया कि चूक हुई. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आदतन बड़बोलापन एकता कपूर के धारावाहिक सरीखा जारी रहा.

पर इस बार भक्तों की भी हिम्मत नहीं पड़ी कि वे इसे रामानंद सागर के सीरियल ‘रामायण’ के संवादों की तरह प्रचारित और वायरल करें. क्योंकि झूठ की भी अपनी हद तो होती है, यह और बात है कि मोदीजी के बोलने की नहीं होती जो उन्होंने बिहार के मधुबनी के झंझारपुरी की एक जनसभा में दहाड़ने की असफल कोशिश करते हुए कहा ‘आतंकियों को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है. हम उन आतंकियों को धरती के अंतिम छोर तक खदेड़ेंगे.’

यह कोई हैरत की बात नहीं थी बल्कि हमेशा की तरह लकीर पीटने वाली बात थी. इस सभा के पहले और बाद में भी वे कादरखाननुमा डायलौग अलगअलग तरह से दोहरा कर जाने क्या साबित करने की कोशिश करते रहे लेकिन झंझारपुर की सभा में वे इतने असहज और असामान्य हो गए थे कि एकाएक ही धड़ल्ले से इंग्लिश भी बोलने लगे जो आमतौर पर हिंदीभाषी एक खास मौके पर बोलते हैं. मकसद अपना आत्मविश्वास बढ़ाना रहता है.

रही बात दुनियाभर में आतंक के खिलाफ भारत के तथाकथित कड़े रुख का संदेश पहुंचाने की, तो अनुवाद मिनटों में हो जाता है.

आतंक के खिलाफ प्रधानमंत्री की हवाहवाई बातें सुन लोग अब उबासियां लेने लगे हैं. अब से कोई 6 साल पहले उन्होंने हिंदी फिल्मों सरीखा एक नया डायलौग ईजाद किया था कि घर में घुसघुस कर मारेंगे. भक्तों में यह डायलौग लोकप्रिय हुआ तो उन्होंने इसे तकियाकलाम ही बना लिया.

6 साल के अरसे में उन्होंने इसे 50 बार से भी ज्यादा देशभर की सभाओं में दोहराया पर 22 अप्रैल को इस की कलई भी खुल गई जब आतंकी पहलगाम के स्विट्जरलेंड कहे जाने वाले खुबसूरत मैदान में घुस कर 27 लोगों को मार गए.

इस हमले से सरकार ने कोई सबक सीखा हो, लगता नहीं. वह बारबार लोगों को उलझाए रखने, उन का ध्यान बंटाने को झूठ पर झूठ बोलती रही. इन में से पहला तो यही था कि आतंकी पाकिस्तानी थे. यह सच है कि उन के पाकिस्तानी होने की संभावनाएं ज्यादा हैं लेकिन यह साबित नहीं हो पाया था. सरकार कश्मीर में आतंकियों के मकान ढहाती रही.

दूसरा सफेद झूठ सिंधु नदी का जल रोक देने का था लेकिन यह भी ज्यादा टिका नहीं कि पाकिस्तान की तरफ बहने वाला पानी सरकार कैसे रोकेगी. यह सवाल सब से पहले मोदी और योगी की बखिया उधेड़ते रहने के चलते भक्तों द्वारा देशद्रोही के खिताब से नवाज दिए गए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने उठाया था.

इस पर देशभर में शकोसुबह की बातें होने लगीं पर जल्द ही बीबीसी ने एक वीडियो जारी करते सच सामने ला दिया. इस से सरकार की किरकिरी की तादाद में और वृद्धि हो गई.

बीबीसी ने साउथ एशिया नैटवर्क औन डैम, रिवर्स और पीपल्स के रीजनल वाटर रिसोर्स एक्सपर्ट हिमांशु ठक्कर के हवाले से यह हकीकत उजागर की कि भारत में जो बुनियादी ढांचा है वो ज्यादातर नदी पर चलने वाले हाइड्रोपावर प्लांट्स का है जिन्हें बड़ी स्टोरेज की जरूरत नहीं है. ठक्कर और दूसरे विशेषज्ञों के मुताबिक भारत को सिंधु नदी का जल रोकने के लिए कई नहरें और बांध बनाने होंगे जिस में सालोंसाल लग जाएंगे और भारीभरकम पैसा खर्च होगा.

तो फिर झूठ क्यों? मोदी ऐसे कई नामुमकिन कामों को महज बातों के जरिए मुमकिन बनाते रहे हैं और भक्त उन पर झूमते भजन सा गाते रहते हैं कि मोदी है तो मुमकिन है. पहलगाम हमले के बाद भी हिंदूमुसलिम किया जाना बताता है कि इस की गंभीरता पर पानी फिर गया है.

असल मुद्दा और समस्या सरकार की सुरक्षा संबंधी लापरवाही है जिस के चलते कोई 2 दर्जन महिलाएं विधवा हो गईं. इन का गुनाह इतना भर था कि सरकार के दावों और नरेंद्र मोदी की बातों पर भरोसा कर वे परिवार पति और बच्चों सहित कश्मीर गई थीं. इन के नुकसान की भरपाई अगर मुमकिन हो तो सरकार को जरूर यह बताना चाहिए कि वह कैसे होगी. क्या समाज और धर्म अपना नजरिया बदल लेंगे? विधवाओं को मनहूस कहते ताने मारने का रिवाज खत्म हो जाएगा? क्या विधवाओं को सम्मान देने और दिलाने की पहल सरकार करेगी?

ऐसा कुछ नहीं होने वाला क्योंकि विधवाओं की दुर्गति का जिम्मेदार धर्म और उस के स्त्रीविरोधी सिद्धांत व सूत्र हैं जिन पर किसी का जोर नहीं चलता. ऐसे हमलों में कोई महिला दोबारा फिर कभी विधवा न हो, इस के लिए पहलगाम हमले में अपने पति को खो चुकी नेहा मिरानिया सीधे सरकार पर न बरसते, उस की लापरवाही उजागर करते कहती हैं कि सुरक्षा होती तो ऐसा न होता, दिनेश हमारे साथ होते. सरकार को पर्यटकों की हिफाजत के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए.

नेहा का दुख भी इस हमले में विधवा हुई दूसरी महिलाओं सरीखा ही है जो अपने स्टील कारोबारी पति दिनेश मिरानिया के साथ शादी की सालगिरह मनाने कश्मीर गई थीं. अब उन की जिंदगी अभिशप्त हो गई है. आतंकियों के बाद अब उन्हें समाज का सामना करना है. कर पाएंगी या नहीं, यह उन्हें खुद साबित करना पड़ेगा. पर सरकार को इस से कोई सरोकार नहीं. उस की चिंता नरेंद्र मोदी की ध्वस्त होती चमत्कारिक छवि को रीस्टोर करने की है जो पहलगाम हमले के बाद तो मुमकिन नहीं दिख रही.

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