Instagram Reels Craze : सोशल मीडिया पर लड़कियों नाचने का रोग छूत की तरह फैल रहा है. लड़कियां इफरात से रील्स बना रही हैं और पुरुष उन्हें पसंद कर रहे हैं. लेकिन असल बात तो ये है कि ये लड़कियां खुद नहीं नाच रहीं बल्कि इन्हें नचाया जा रहा है. नचाने वाले उन के अपने वाले होते हैं जिन का मकसद महिला की उर्जा और उत्पादकता को खत्म कर देना होता है.
आंकड़ों के मुताबिक भारत में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में महिलाओं की भागीदारी महज 18 फीसदी है. जबकि वे आबादी का 48 फीसदी हैं. यह अनुपात न केवल दुनिया में बल्कि एशियाई देशों में भी सब से कम अनुपातों में से एक है. ऐसा नहीं है कि भारतीय महिलाएं मेहनती, लगनशील और प्रतिभावान न हों, वे हैं, लेकिन ज्यादातर यह सब धार्मिक आयोजनों की मसलन कलश यात्रा वगैरह के बाद सोशल मीडिया में किए जा रहे उन के `नृत्यों` में प्रदर्शित होता है.
इंस्टाग्राम, यूट्यूब और फेसबुक सहित सभी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर ऐसी रील्स की भरमार है जिन में महिलाएं अपने इस `हुनर` और लगन का जलवा बिखेरती दिख जाएंगी. इन के चाहने वाले दोचार या कुछ सौ हजार नहीं बल्कि लाखों की तादाद में होते हैं. इन्हीं में से एक है मेघा चोबे हैं जिन के 10 लाख से भी ज्यादा फौलोअर्स इंस्टाग्राम पर हैं. मेघा कभीकभार डांस के अलावा दीगर वीडियो भी पोस्ट करती हैं लेकिन उन्हें तारीफ और प्रोत्साहन डांस के वीडियोज पर ज्यादा मिलते हैं. क्योंकि उन के चाहने वाले उन से सिर्फ डांस की ही उम्मीद रखते हैं बाकी सब उन की नजर में कूड़ा करकट है.
पहनावे से मेघा संभ्रांत घराने की लगती हैं. सोशल मीडिया की दूसरी डांसर्स की तरह वे बहुत ज्यादा बदन उघाडू पोशाक नहीं पहनती. लेकिन नाचती खूब हैं बकौल शोले के गब्बर सिंह और उन के प्रिय शिष्य सांभा बहुत कटीली नचनिया हो.
इंस्टाग्राम पर ही एक हैं मिस मून जो अपने डांस में स्टेप कम लेती हैं लेकिन छातियां तरहतरह से दिखाती हैं. आमतौर पर वह फिल्मी गानों पर मटकती नजर आती हैं. मिस मून देखने में स्मार्ट और सैक्सी हैं जिन्हें 3 लाख से भी ज्यादा लोग चाहते हैं. अपने फौलोअर्स की यह संख्या और बढ़ाने वे क्याक्या लटकेझटके नहीं दिखाती यह तो उन्हें नाचते देखने के बाद ही समझ आता है. ये दूसरी डांसर्स की तरह छत के बजाय ड्राइंग रूम के वीडियो ज्यादा शेयर करती हैं.
उलट इस के फेसबुक पर मौजूद आरती देवी एक कमसिन युवती हैं जो छाती कमर और नितम्ब कुछ इस अंदाज में मटकाती हैं कि यूजर आहें भरने मजबूर हो जाते हैं. आरती के अधिकतर वीडियो फिल्मी गानों पर होते हैं और वे अकसर कच्ची छत पर शूट होते हैं. बिलाशक उन के पास एक स्टाइल है जो हिंदी फिल्मों की केबरे डांसर्स हेलन, बिंदु और जयश्रीटी से नगद ली हुई लगती है. इस नगदी के दीवानों यानी आरती के फौलोअर्स की तादाद रिकौर्ड 20 लाख पार कर चुकी है.
जितनी फालतू ये रील्स होती हैं उस से लाख गुना ज्यादा फालतू लोग देश में हैं जिन्हें ये फूहड़ डांस देखने में नौटंकी जैसा मजा आता है. इन फुरसतिये मजनुओं को नाचती लड़की देख कोई सुकून नहीं मिलता और न ही कोई मनोरंजन उन का होता बल्कि ये अपनी उत्तेजना बढ़ाने और शांत करने इन रील्स का मजा लेते हैं, यह कोई खास हर्ज की बात नहीं हर्ज की बात है महिलाओं की उर्जा और उत्पादकता को 15 – 20 सेकंड के डांस में जाया कर देना.
इन लड़कियों को लगता है कि चंद सैकड़ों के डांस से वे सेलिब्रिटी बन गई हैं और आजकल में ही फिल्म इंडस्ट्री से बुलावा आने वाला है पर हकीकत इस के उलट है. ये अपनी छत ड्राइंगरूम सड़क और पार्क के अलावा कहीं की नहीं रह जातीं. ज्यादा व्यूज और ज्यादा फौलोअर्स से इन्हें काम चलाऊ पैसा मिल जाता है लेकिन कम व्यूज और कम फौलोअर्स वालियों की लागत भी नहीं निकलती.
इन लड़कियों को एहसास ही नहीं हो पाता कि वे मर्दों के हाथों का खिलौना बन कर रह गई हैं. और ये मर्द उन के आसपास वाले ही होते हैं वे नजदीकी रिश्तेदार यहां तक कि भाई, पति और बौयफ्रेंड भी हो सकते हैं. इस किस्म के लोग सीधेसीधे मनुवादी नहीं होते लेकिन कहेसुने की बिना पर मनुवाद उन के दिलोदिमाग में बहुत गहरे तक बैठा हुआ होता है जो उन्हें सिखाता है कि औरत नुमाइश और मनोरंजन की चीज है और वह ऐसी बनी रहे इस के लिए जरुरी है कि उसके सोचनेसमझने की ताकत छीन लो.
शोहरत की भूख एक बार जब किसी में पैदा हो जाती है तो फिर वह खत्म नहीं होती खासतौर से इन डांसर्स में जो नृत्य की एबीसीडी भी नहीं जानती ये बस जिस्म मटकाने को ही डांस मान बैठी हैं. ज्यादा तारीफ और शोहरत के चक्कर में खीझ कर ये फूहड़ता पर उतर आती हैं. ऐसी ही एक डिजिटल क्रिएटर इंस्टाग्राम पर हैं डिजिटल नाम है प्रतिभा यूपी 91. पूजा तरहतरह से छातियों की नुमाइश करती है जिस के चलते उस के फौलोअर्स की तादाद डेढ़ लाख पार कर चुकी है. अब एक औरत तो दूसरी औरत की छातियों में दिलचस्पी लेने से रही लिहाजा पूजा के चाहने वाले भी ज्यादातर मर्द ही हैं जो उसे और उकसाते रहते हैं कि वाह जानदार, शानदार, क्या अदा है नाईस वगैरहवगैरह.
यानी ये मर्द भी नहीं चाहते कि लड़कियां कम व्यूज मिलने पर निराश हो कर नाचना छोड़ें इसलिए ये दिल खोल कर उन की तारीफ करते हैं, उन्हें फौलो करते हैं, सब्सक्राइब करते हैं और उन के व्यूज बढ़ाते हैं. इन की मानसिकता भी धर्मपंथियों सरीखी ही होती है कि औरत कुछ तुक का न करे वह रसोई में और घर के दीगर कामों में खटती रहे और फिर खाली वक्त में धरमकरम करे और उधर भी मन न लगे तो यूं नाचने लगे.
नाचना हर्ज की बात नहीं बशर्ते वह नाच हो तो पर यह नाच नहीं है बल्कि मर्दों की नपीतुली साजिश है जो औरतों को इस तरह नाचने के लिए उकसाती है. 15 – 20 सेकंड की एक रील बनाने दोतीन दिन ये लड़कियां बरबाद कर देती हैं. फिर क्या खा कर इन से जीडीपी में योगदान की उम्मीद रखी जाए. इस पारिवारिक और सामाजिक शोषण में हर तबके की महिलाएं शिकार हैं, झुग्गीझोपड़ी से ले कर आलीशान मकानों तक की लड़कियां नाच रही हैं और मर्द उन्हें नचा रहे हैं.
यह जानकर और हैरानी न चिंता होती है कि यह रोग हमारे देश की लड़कियों को ही लगा है दूसरे देशों में यह बीमारी नहीं है. चीन, अमेरिका और जापान जैसे देशों में इस तरह की रील्स का चलन नहीं है इसलिए वहां की जीडीपी हम से डेढ़ गुनी दोगुनी है. क्योंकि वहां की महिलाएं उत्पादक काम करती हैं.