Population : उत्तरी राज्यों में जनसंख्या ज्यादा बढ़ने और दक्षिणी राज्यों में कम बढ़ने से लोकसभा की सीटों के लिए होने वाले परिसीमन से दक्षिण के राज्य चिंतित हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में सीटें बढ़ जाएंगी जबकि तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में उस तरह नहीं बढ़ेंगी. गृहमंत्री से यह तो कहलवाया गया है कि दक्षिणी राज्यों की सीटें कम नहीं होंगी लेकिन उत्तरी राज्यों में जरूरत से ज्यादा नहीं बढ़ेंगी, ऐसा आश्वासन नहीं दिलवाया गया है.
धर्मभीरुओं, गौभक्तों व आरएसएस के गढ़ उत्तरी राज्यों में जनसंख्या ज्यादा बढ़ रही है जबकि दक्षिणी राज्यों में आर्थिक उन्नति ज्यादा हो रही है. उत्तरी राज्य पैसा मंदिरों और धार्मिक कामों में गंवा रहे हैं. उत्तरी राज्यों में अभी भी हिंदूमुसलिम, दलितसवर्ण, यादवकुर्मी विवादों में सिर फोड़े जा रहे हैं और दक्षिणी राज्य फैक्ट्रियां लगा रहे हैं, बढि़या शिक्षा संस्थान खड़े कर रहे हैं, अस्पताल बनवा रहे हैं, अनुशासित हैं, ज्यादा सभ्य हैं.
उत्तर व दक्षिण की यह लड़ाई टेढ़ा मोड़ न ले ले, यह डर सताने लगा है. दक्षिण के नेताओं की अब केंद्र की राजनीति पर पकड़ बहुत कम रह गई है. केंद्र की शक्ति अब सिमट कर उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे 2 राज्यों के नेताओं के हाथों में रह गई है. दक्षिणी राज्यों पर उत्तरी राज्यों के नेताओं के फैसले थोपे जा रहे हैं चाहे मामला शिक्षा में भाषा का हो या जीएसटी और आय कर के बंटवारे का.
एक जमाना था जब भरभर के दक्षिणी राज्यों के मजदूर और शिक्षित लोग उत्तरी राज्यों में सरकारी व गैरसरकारी नौकरियां करने के लिए आते थे. अब तो दक्षिणी राज्यों में बिहारी और उत्तर प्रदेश के मजदूर जा रहे हैं क्योंकि जब उत्तर के राज्य मंदिर बनाने में लगे थे तब दक्षिण भारत के लोग अपने को स्वावलंबी और शिक्षित बनाने में लगे थे.
वहां भी ब्राह्मणवाद था, वहां भी जातिवाद था पर फिर भी वहां उदारता की लहर भी थी. सदियों तक वहां पिछड़े वर्गों के राजाओं के साम्राज्य पनपे थे जिन्होंने कभी कट्टरता को लागू किया तो कभी उदारता दर्शायी. वहां चेतना पहले जागी पर वह चेतना ब्राह्मणवादी नहीं, खुद को सुधारने की थी. नतीजा यह हुआ कि चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, त्रिवेंद्रम जैसे छोटे शहर धीरेधीरे विशाल मैट्रो बन गए जिन का उत्तर के शहरों से ज्यादा अच्छा प्रबंध हो रहा था.
वहां जनसंख्या नियंत्रण हुआ, वहां रामचरितमानस की गंध नहीं फैली. आज दक्षिणी राज्यों की आर्थिक उन्नति से उत्तर भारत के राज्य जल रहे हैं और लोकसभा में उन का स्थान और महत्त्व कम करने का प्रयास कर रहे हैं. वे विघटन का बीज बो रहे हैं. हालांकि विघटन तो नहीं हो सकता लेकिन खटपट चलती रहेगी. भारत की समृद्धि अब दक्षिणी राज्यों पर निर्भर है और उन्हें विवादों में फंसा कर दिल्ली की केंद्र सरकार अपना उल्लू सीधा करना चाह रही है.