USA : एक बड़े देश के नेता का दंभी और गुस्सैल होना स्वाभाविक है पर एक छोटे देश के नेता का आत्मसम्मानी और बड़े देश के सामने याचक की तरह खड़े होने पर भी अपना और अपने देश के सम्मान को न बेचना अद्भुत है. यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमिर जेलेंस्की ने डोनाल्ड ट्रंप और जेडी वेंस के सामने कैमरों के बीच खरीखरी कह कर दर्शा दिया कि यूक्रेन की हिम्मत रूस के व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के खब्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से ज्यादा है.
यह ठीक है कि अमेरिकी हथियारों के बिना यूक्रेन 2 साल तक रूस को रोक न पाता पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर यूक्रेन की जनता जान जोखिम में डाल कर पुतिन के सामने न खड़ी होती तो आज पुतिन पूरे यूरोप ही नहीं, दुनिया के बहुत से देशों में दखलंदाजी कर रहे होते.
यूक्रेन को हथियार दे कर यूरोप और अमेरिका ने दया नहीं की है, उन्होंने अपनी खुद की रक्षा की है. डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति एकदम बेहूदा है कि अमेरिका को यूरोप से कुछ लेनादेना नहीं है. अमेरिका को यह नहीं भूलना चाहिए कि रूसी और चीनी आज इतने ताकतवर हैं कि वे मिल कर अमेरिका का मुकाबला कर सकते हैं और चाह कर भी अमेरिका उन से जीत नहीं सकता.
अमेरिका वियतनाम में हारा, कोरिया में हारा, अफगानिस्तान में हारा, इराक और लीबिया में हारा. इन जगह अमेरिकी फौजी सामान के साथ सैनिक भी थे पर जनता नहीं. यूक्रेन में अमेरिकी सेना नहीं है, सिर्फ हथियार हैं और उस पर अमेरिकी राष्ट्रपति की अकड़ एक सिरफिरे नेता की बेवकूफी ही है. इस की बहुत बड़ी कीमत अमेरिकी जनता अगले दशकों में चुकाएगी जब रूस व यूरोप अमेरिका से लेनदेन बंद कर देंगे.
अमेरिका आज अमीर हो रहा है क्योंकि वह अपनी विशाल तकनीकी जानकारी और मार्केट के दोहरे वार को इस्तेमाल कर के बहुत से देशों को रूसी-चीनी खेमों में भटकने से रोक पा रहा था. डोनाल्ड ट्रंप ने एक दोस्त देश, जो अपने देशवासियों की हजारों जानें यूरोप की शांति के लिए गंवा चुका हो व भिखारी सा दिखने लगा हो, को खो दिया है.
अमेरिका अब फिलहाल किसी भी देश के लिए भरोसे लायक नहीं रह गया है. अमेरिकी कंपनियों के मालिकों, जो ज्यादातर ट्रंप भक्त हैं, से व्यापार करना भी खतरे से खाली नहीं है. ट्रंप हर नियम व कानून से अपने को ऊपर मानने हैं क्योंकि उन्होंने नाजियों जैसी ‘भगवा’ भीड़ जमा कर ली है जो अमेरिका को ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ बनाने का नारा-वादा कर रही है पर असल में वह अमेरिका को ‘मेक अमेरिका गटर एरिया’ बना रही है.
भारत के जो युवा अमेरिका में जा कर बसना या पढ़ने के सपने देख रहे थे उन्हें तुरंत इन सपनों को बुरा सपना मान कर भूल जाना चाहिए. कम से कम 4 साल के लिए तो अमेरिका ‘ग्रेट गटर’ ही रहेगा जब तक खब्ती का कार्यकाल चलेगा.