Supreme Court : प्रदूषण फैलाने वाले कमर्शियल व्हीकल्स बौर्डरों से दिल्ली में घुसे ही नहीं कि इस के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी और कानूनी अधिकार के कई वर्ष पहले एक स्पैशल टैक्स ठोंक दिया था. उस टैक्स को वसूलने का अधिकार म्यूनिसिपल कौर्पोरेशन को दिया गया.

अब उस टैक्स को कई साल हो गए हैं पर फिर भी वह खत्म नहीं किया जा रहा. जिन कमर्शियल व्हीकल्स को दिल्ली में आना होता है वे इस, लगभग नाइंसाफी वाले, टैक्स को भर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में आम कमर्शियल व्हीकल्स वाला तो जा नहीं सकता क्योंकि वहां वकीलों पर खर्च लाखों में होता है. यह भी पक्का नहीं मालूम कि अगर सुप्रीम कोर्ट अपने 2015 के इस निरर्थक फैसले को बदल भी दे तो सरकार अपनी ओर से कहीं कोई और टैक्स न ठोंक दे.

एनवायरमैंट कंपनसेशन चार्ज. इसी नाम से यह टैक्स दिल्ली के 153 एंट्री पौइंट्स पर वसूला जा रहा है और जो ठेकेदार इस टैक्स को वसूल रहा है वह वसूली का खर्च इस में से काटता है. कौर्पोरेशन को 800-900 करोड़ रुपए मिल रहे हैं और कहा जाता है कि इस टैक्स को क्लीयर करने में धांधली किए जाने के बाद भी यह रकम इतनी बड़ी बन गई है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में सोचा था कि इस टैक्स को लगाने से दिल्ली में वाहन आएंगे ही नहीं और दिल्ली वालों को राहत मिलेगी. वर्ष 2015 के बाद से अब तक 10 साल हो गए हैं. कौर्पोरेशन का खजाना जनता की पीठ पर छुरा रख कर भरा जा रहा है पर किसी भी सूरत में ऐसा नहीं लग रहा कि जिन वाहनों को दिल्ली में कुछ काम नहीं, वे दिल्ली से होते हुए न जा कर कहीं और से जाएंगे.

ऐतिहासिक तौर पर बड़ा शहर होने के कारण आसपास की सड़कें और उन के किनारे के शहर इस तरह बसे हैं कि सारी सड़कें दिल्ली में पहुंचती हैं. पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण जाना हो तो चाहे कितना दावा किया जाए, अभी भी दिल्ली से होते हुए जाना व्हीकल्स के लिए आसान भी है और जरूरी भी.

सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं सोचा कि दिल्ली की भीड़भाड़ का सामना कोई कमर्शियल व्हीकल किसी भी हालत में नहीं करना चाहता. उस ने म्यूनिसिपल कौर्पोरेशन के हाथों लहरें गिनने का काम दे दिया और 10 साल हो गए, कभी यह परखने की कोशिश नहीं की कि क्या उस का यह फैसला केवल वसूली का जरिया बन जाएगा ?

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